सम्मान लौटा देना मोदी - भाजापा विरोध का मानक या आधार न माना जाए
- असग़र वजाहत
हिंदी और अंग्रेजी के तीन महत्वपूर्ण लेखकों ने साहित्य अकादमी सम्मान वापस कर दिया है. हो सकता है कुछ और भी करेँ या यह भी हो सकता है कि कुछ न करेँ.
सम्मान वापस करने वालों ने यह माहौल बना दिया है कि जो साहित्य अकादमी का सम्मान वापस नहीँ करेंगे या लेंगे वे वर्तमान मोदी सरकार के समर्थक या मौन समर्थक मान लिये जायेगे. यह शायद किसी भी या अधिकतर रचनाकारों को गवारा न होगा.
ऐसी स्थिति मेँ कुछ मुद्दों पर बात करना आवश्यक है. इसमेँ संदेह नहीँ की वर्तमान भाजापा - नरेंद्र मोदी सरकार देश को सांप्रदायिक फांसीवाद की ओर तेजी से ले जा रही है. राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए मोदी सरकार असहिष्णुता, एकाधिकार, धर्मांधता, अहिंसा, और बर्बरता को लगातार बढ़ावा दे रही है. देश के बहुलतावादी चरित्र पर लगातार हमले हो रहे हैँ. और अल्पसंख्यको तथा कमजोर वर्ग के प्रति अपराध बढ़ रहे हैँ जिंहेँ धर्म और संस्कृति के नाम पर गौरवांवित किया जा रहा है.
साहित्य अकादमी सम्मान वापस करने वाले साहित्यकारोँ ने वर्तमान सरकार के प्रति जो प्रतिरोध दर्ज कराया है उस से मैँ 100 प्रतिशत सहमत हूँ. यह कहने की बात नहीँ कि अन्य लेखकोँ के साथ मैंने भी हमेशा धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता, एकाधिकारवाद शोषण, अत्याचार का विरोध किया है.
लेकिन क्या मोदी सरकार की नीतियों के प्रति विरोध दर्ज कराने का यही एक रास्ता बचा है कि जिन लेखकोँ को साहित्य अकादमी सम्मान मिला है वे उसे वापस कर दे? जिन्हें नहीँ मिला वो अपना विरोध कैसे दर्ज करेंगे? क्या किसी और ढंग से दर्ज किए जाने वाले विरोध को भी वही मान्यता मिलेगी जो सम्मान वापस कर के विरोध दर्ज करने वालो को मिल रही है?
महत्वपूर्ण यह है कि साहित्य अकादमी का सम्मान सरकार नहीँ देती. यदि यह सरकार ही देती है तो सम्मान उसी सरकार को लौटाना चाहिए जिसने दिया था. संदर्भित साहित्यकारों को कांग्रेस के शासन काल मेँ सम्मान मिला था इसलिए उचित यही होता कि सम्मान उसी को लौटाया जाता.
साहित्य अकादमी कहने के लिए ही सही एक स्वायत्तशासी संस्था है जिसमेँ लेखकों के माध्यम से लेखकों को सम्मान दिया जाता है. मतलब यह कि सरकार या अकादमी नहीँ बल्कि वरिष्ठ लेखकों का एक पैनल किसी लेखक को सम्मान देता है. इस प्रकार सम्मान लौटाने का अर्थ यह है कि उस पैनल को सम्मान लौटाया जा रहा है जिसने लेखक को सम्मान दिया था.
इस बात को कौन नहीँ जानता कि साहित्य अकादमी के कुछ पुरस्कार विवाद मेँ भी रहे हैँ और उनके साथ जोड़-तोड़ की अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैँ. यदि ऐसा सम्मान जो जोड़ - तोड़ से प्राप्त किया गया है तो उसे लौटना कहाँ तक किसी प्रतिरोध का सूचक बनता है?
यह कहा जा रहा है कि साहित्य अकादमी ने लेखको की हत्या और मौलिक अधिकारों के हनन पर कोई बयान नहीँ दिया. क्या इससे पहले साहित्य अकादमी या अन्य दूसरी अकादमियों ने ऐसे बयान दिए है? यदि नहीँ तो आज उन से यह आशा क्यों की जा रही है?
मैँ उन लेखकों और उनकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ और उनके साथ अपने को खड़ा पाता हूँ जिन्होंने सम्मान लौटा दिए हैँ लेकिन निवेदन यह है कि सम्मान लौटा देना मोदी - भाजापा विरोध का मानक या आधार न माना जाए.
असग़र वजाहत
००००००००००००००००
0 टिप्पणियाँ