हिंदी कविता -रेवन्त दान बारहठ | Hindi Poems - Rewant Dan


हिंदी कविता - रेवन्त दान बारहठ

मैं अ से अनार लिखता 

- रेवन्त दान बारहठ की कवितायेँ 


'अ' से

मैं अ से अनार लिखता
या अलिफ़ लिखता
एक ही तो बात थी
पर मुझ से लिखा ना गया,
मेरी नियति ने लिखवाया
जिंदगी की सियाह स्लेट पर
अमिट दूधिया आखरों से
और मैंने लिख दिया-
अनार की जगह अनुभव
अलिफ़ की जगह अदब ।

और फिर क्या था...
मुझ से ख़फ़ा हो गया मेरा उस्ताद
मुझसे नाराज़ हो गयी ये दुनिया ।
इल्म की खैरात बांटने वाले मकतबों ने
मुझे एक राय करार दिया-
मेरी नाफ़रमानियों को,मुझे नाम दिया
कमज़र्फ,बेअदब और नाक़ाबिल
...मैं तब से भटक रहा हूँ
और बटोर रहा हूँ
अ से अनुभवों का अदब।
मेरी अनुभवों की झोली में
डिग्रियां नहीं,उपाधियाँ नहीं
ना ही कोई टंकित बॉयडाटा
जिससे बना जाता है कोल्हू का बेल

कुल मिलाकर जमा है -मेरी झोली में ...
तपते हुए रेगिस्तान की आँच,
अथक अनवरत यात्राओं के पड़ाव,
अपने ही पसीने से नहाने के दुपहरी पल,
पीठ पर लादे हुए मासूम से कुछ ग़म
और उन ग़मों की अता की हुई
वेदनाएं,संवेदनाएं प्रतिक्षाएं...
कई जोड़ी आँखों से बिछुड़ने के दर्द
ऐसे अबोले दर्द -
जो कुछ भी कहे नहीं
जो पानी बन के बहे नहीं

मैं लिख तो सकता था
-अ से अनार
-अ से अलिफ़
पर कभी-कभी सोचता हूँ
कि अगर लिखता वही जो लिखते हैं सब
तो कैसे लिख पाता -अनुभवों का अदब।

क्योंकि ज़िन्दगी पगार का-रूतबे का,
घरों और घरों में घुटती साँसों का नाम नहीं, ज़िन्दगी किसी खाये अघाये
नकली कवि की बेचैन पागल दिवानगी का नाम नहीं, ज़िन्दगी दर्द है -कालिदास
के यक्ष का जिसकी आँखों से गिरा आँसू भाप बनाकर मेघदूत बन जाता है।
ज़िन्दगी एक दरिया है - दरिया कि जो अपने साथ लेकर चलता है रास्तों के दिए
हुए सारे नज़राने जिसे सौंपना होता है समंदर को सारी नेमतें,सारी अमानतें
और खुद को।

मुझे कोई अफ़सोस नहीं
कि मैंने अनार नहीं लिखा
अलिफ़ नहीं लिखा...
क्योंकि लिखना तो होता है - अनुभवों को
लिखना तो होता है-अदब को।



विदा-गीत

अब भी वक़्त है 
कि लौट जा तू,
यहाँ तक तो तू चली आई 
अपनी ही ज़िद्द पर 
ज़िद्द कि तुझे चाहिए मेरा साथ
पर अब आगे की राहें मुश्क़िल है।

बीहड़ रास्ते और कड़ी धूप का सफ़र
क़दम-क़दम पर इम्तेहान
और क़दम-क़दम पर शिक़स्त है।
उखड़ती साँसों के बीच
हिरणों जैसी प्यास लिए 
अनवरत दौड़ना है अब
मुझे इस जीवन के मरुस्थल में।

अब भी वक़्त है
ए मेरी ज़िन्दगी
कि लौट जा तू।
प्रेम और सुंदरता के गीत लिखने वाला
तेरा ये कवि अब छोड़ चुका शीतल छाँह
वो अब नहीं लिखेगा
लता कुँज की ओट में
तुम्हारी प्रतीक्षा के अभिसार गीत।

लौट जा और छोड़ दे अपनी ज़िद्द
अब तू नहीं मेरी परछाई भी जुदा होगी
मैंने चुना है धधकते ज्वालामुखियों का रास्ता।

ए ज़िन्दगी तू कैसे देख पाएगी?
कि जीवन-राग गाने वाले तेरा कवि
आग उगलती अगनभट्टियों के बीच
जब गायेगा रण-राग सिन्धु।
तेरी मुहब्बत के सदके
कि मुझे हंसकर विदा कर
मैं जा रहा हूँ जीवन-समर के लिए।




सूरज को न्यौता

ये वक़्त -एक सियाह रात है
रात जो बहुत डरावनी है।
इस रात के सन्नाटे में असहनीय है
उल्लुओं और सियारों का शोर।
इस रात में जागे और सोये हुए
सबके दिलों में अन्धेरा है
रेवंतदान बारहठ
जन्म - 15 जून 1982
पश्चिमी राजस्थान के थार के रेगिस्तान में गाँव - भींयाड (जिला- बाड़मेर, राजस्थान)
वर्तमान में - हिन्दी विभाग-राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से "समकालीन हिंदी और उर्दू ग़ज़ल का तुलनात्मक अध्ययन" विषय पर पीएचडी ज़ारी।
आजीविका - आल इंडिया रेडियो जयपुर में कैज़ुअल  न्यूज़ रीडर।
इस अन्धेरे में
देखी नहीं किसी ने किसी की शक़्ल
यहाँ धुंधलका ही रौशनी का पर्याय है।

इस दुनिया के लोग उजालों से अनजान हैं
इस दुनिया के लोग सच से अनजान हैं
इस दुनिया में रौशनी का ज़िक्र भी नहीं हुआ ओ सूरज! तुमको इस वक़्त का 
न्यौता है अब आना पड़ेगा यहाँ। ताकि इस दुनिया के वाशिंदे जान सके कि 
उजालों का सच कितना विराट होता है।



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