कविता : सुशील उपाध्याय | Sushil Upadhyay's Poems


दर्द को दोहराया नहीं जा सकता - सुशील उपाध्याय की कवितायेँ #शब्दांकन

दर्द को दोहराया नहीं जा सकता

- सुशील उपाध्याय की कवितायेँ




दुखती रग पर हाथ!

दुखती रग पर
रखे गए तुम्हारे हाथ को,
अपना समझकर स्वीकार किया,
हमेशा-हमेशा!
गहरे तक जा बैठी
पीड़ा की अनथक अनुभूति के साथ।
न कोई तर्क,
न भरोसा दिलाने लायक कोई बात,
न कोई वादा, न दिलासा!
भला, दर्द किन्हीं शब्दों का बंधुआ है ?
या
शब्दों में लिपटी अभिव्यक्ति का गुलाम ?
यकीन मानो,
दर्द को दोहराया नहीं जा सकता!
जिद न करो,
इसे दोहराने की!
यदि, यही शर्त है रिश्तों को परखने की,
तो बढ़ाओ अपना हाथ,
फिर रख दो,
दुखती रग पर!
जैसा चाहो-
कोमल, स्नेहिल स्पर्श
या
दर्द की दुखन, चुभन को और गहरा करता हुआ।
सच की टोह लेने में समर्थ हैं
पांचों उंगलियां।
क्या अब भी ये दोहराने की जरूरत है
कि
दुखती हुई रग पर
रखे तुम्हारे हाथ को
अपना समझकर स्वीकार किया,
सदा-सदा!
शर्त रहित, उम्मीद रहित
सौ फीसद साक्षी भाव से।




अग्निस्नात!

उसने, अचानक कहा-
तुम्हारा लहजा इतना तीखा क्यों है!
तेजाबी, चुभता, तोड़ता हुआ,
अग्निस्नात!
मैंने दिखा दिया
बदन उघाड़कर।
गर्म सलाखों से दागा गया,
एश-ट्रे के काम आया,
लात-घूसे, जूते खाया बदन!
अपने अस्तित्व को बचाने की जिद में
बार-बार मरा, मारा गया
और
मुरझाया बदन!
मैंने, दिखा तो दिया,
क्या वो देख पाया ?
भीतर के अनगिन,
बेनिशां जख्म,
टूटा हुआ मन,
बिखरे हुए सपने और
गुंझल पड़ी कड़िया!
गांठ खाए, बर्फ बने हाथों को
कितनी देर सहेज सकता है कोई ?
यूं ही, बेसबब,
सब कुछ पा लेने की फितरत से
नर्म हुए हाथों में।
रह-रहकर उठती है-
इस तरह की चुभन
तेजाबभरी, तोड़ती हुई
और अग्निस्नात!
तब, कैसे बताऊं,
मेरा लहजा ऐसा सख्त क्यों है!




सांप अभी मरा नहीं है!

घर के ठीक सामने
भोर तड़के पेड़ों के झुरमुट पर
चिड़ियों का अनंत गान
हर बुरी शै को मात देता!
चिड़िया चहचहाती, स्पर्धा करती
एक-दूसरे से ऊंची और खूबसूरत आवाज में गाने की।
.....
बेटियां का स्कूल जाता समूह,
चिड़ियों की तरह चहकता।
ऊंची और ऊंची आवाज में खिलखिलाता
सारी हिदायतों, बंदिशों को बस्ते में डालकर
स्कूल-बस में सवार होता।
चिड़िया दाना चुगने उड़ती,
और बेटियां स्कूल जाती।
चिड़िया शाम ढले लौटती,
रात की खामोशी को सुनती।
बेटियां थकी दिखती,
फिर भी बस्ते को सहेजती,
सपनों को सजातीं।
.....
किसी ने नहीं देखा उस सांप को
जो पेड़ का हिस्सा बन गया चुपचाप
उसी रंग का, वैसा ही हरा, थोड़ा मटमैला।
धीरे से बढ़ता आगे
चिड़ियों के घौंसलों की तरफ
अचानक चिड़ियों का आनंदित स्वर
चित्कारों में बदल गया।
सांप खा गया अच्छे दिनों को

डाॅ. सुशील उपाध्याय

उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार में हिन्दी एवं भाषा विज्ञान विभाग के प्रभारी अध्यक्ष हैं। विगत दो दशक से मीडिया और अकादमिक जगत में सक्रिय हैं।
संपर्क: एच-176, मनोहरपुरम, कनखल, हरिद्वार
मोबाइल: 09997998050
ईमेल: gurujisushil@gmail.com
चहकने की उम्मीदों
और सपनों को।
.....
सब सहम गए
बेटियां घर नहीं लौटी
पिंकी, सुहानी और सिद्धी!
लापता है सांप, जो धीरे-धीरे चढ़ा पेड़ पर।
सांप जो स्कूल-बस में था!
लील गया बेटियों की हंसी, सपने और उम्मीदें।
पेड़ उदास खड़ा है,
उसकी किसी डाल से लिपटा हैं सांप।
चिड़ियां चली गई हैं अनंत उड़ान पर।
उदास है कि घर-द्वार,
बेटियां हैं, पर सहमी हुई
क्योंकि सांप अभी मरा नहीं है!




००००००००००००००००

ये पढ़ी हैं आपने?

काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है