उमर ख़ालिद मेरा बेटा है—अपूर्वानंद Apoorvanand #JNURow


Professor Apoorvanand speaks on why he called Umar Khalid his son

उमर मेरा बेटा है

वह कितना दुर्भाग्यशाली राष्ट्र होगा जिसके पास युवाओं के रूप में बस आज्ञाकारी, अनुयायी दिमाग भर होंगे

Hindi translation — 'Umar Khalid, my son' the article by Apoorvanand in 'Indian Express' — by Bharat Tiwari


“उमर मेरा बेटा है”, मैं यह कहना चाहता हूँ। मैं कभी उससे मिला नहीं हूँ। मैं उसे जानता नहीं हूँ। लेकिन फिर भी उसको अपना बेटा होने का दावा करना चाहता हूँ। मेरा कोई बेटा नहीं है।
वो एक विद्रोही ही होता है जो मानवता की मरम्मत करता है, उसे जंग लगने से बचाता है
मेरी सिर्फ एक बेटी है। बेटी जो जल्द ही उस उम्र की होने वाली है जहाँ सोच स्वतन्त्र हो जाती है। उमर ख़ालिद इस उम्र के आगे निकल गया है। उसकी सोच तो अब स्वतन्त्र और स्वायत्त हो चुकी है।  और दिल खून बहा रहा है दुनिया के सताये गयों पर, जल रहा है उनके साथ हुए अन्यायों पर, रो रहा है उनके साथ न्याय पर।

उमर वो बेटा है जिसकी इच्छा हर माँ-बाप को होनी चाहिए, जिस पर गर्व होना चाहिए। क्योंकि वो ही ऐसा है जो असहमत हो सकता है, जो उनसे विद्रोह कर सकता है और परिवार या समाज या धर्म की बनायी पहचान की चहारदीवारी तोड़ के बाहर आ सकता है – जिन सीमाओं को पार करने से लोग डरते है उनसे ऊपर उठ-के वो अपनी इंसानियत साबित कर सकता है।

और अगर उमर जैसा नहीं तो फिर युवाओं को कैसा होना चाहिये ? वह कितना दुर्भाग्यशाली राष्ट्र होगा जिसके पास युवाओं के रूप में बस आज्ञाकारी, अनुयायी दिमाग भर होंगे – युवक जो सिर्फ मोटी तनख्वाह की नौकरी के लिए लड़ें, जो उस मशीनरी के कलपुर्जे बनने को तैयार हों जो चन्द लोगों को फ़ायदा दे और बाकी मानवजाति को कुचल दे।

यह वही तबका है – जिसने अपनी आत्मा को आरामतलबी के हाथों बेच दिया है - जो फेसबुक और ट्विटर पर अपना राष्ट्रवाद दिखा रहा है। यही उन्हीं की भीड़ है, जो उमर से नाराज़ है क्योंकि उसने उनमें शामिल होने से इनकार कर दिया।

मुझे ग़लत न समझिएगा। मैं उमर को उसकी राजनीति या विचारधारा के कारण अपना नहीं कह रहा हूँ। वो मेरा ज़बरदस्त विरोध करेगा, मेरे सुधारवादी विचारों पर ताने मारेगा और लोकतंत्र से जुड़ी मेरी भोली उम्मीदों पर हंसेगा। मुझे बताया गया है कि वो एक परा-माओवादी है। मैं एक संशोधनवादी हूँ। एक संसदीय-दल का पूर्व कार्ड-धारक। मैं उसे उसके आंतरिक-विद्रोही के कारण स्वीकार करूँगा। विद्रोह करना अपनी इंसानियत की पड़ताल होती है। वो एक विद्रोही ही होता है जो मानवता की मरम्मत करता है, उसे जंग लगने से बचाता है।

“विद्रोही क्या होता है? एक इंसान जो ‘ना’ कहता है, लेकिन उसके इनकार में नामंज़ूरी नहीं होती। विद्रोह के अपने पहले क्षण से वो हाँ कहने वाला इंसान भी है” —  अल्बर्ट कामू।  विद्रोही में गुस्सा होता है असंतोष नहीं; वो व्यक्तिगत अभाव की भावना से ग्रस्त नहीं होता। असंतोष से ईर्ष्या उपजती है — वो ईर्ष्या जो तब होती है - जब कोई यह सोचता है कि दूसरे के पास ऐसा कुछ है जो उसके पास नहीं है। विद्रोही की भावनाओं में ईर्ष्या और असंतोष नहीं दर्द और पीड़ा होती है। विद्रोही में “दूसरों” से जुड़ जाने की क्षमता होती है, वह उनकी पीड़ा में डूब के ख़ुद पीड़ित होता है। वो आंसूओं की नदी में तैर कर अपने अपनी सलीब को वृहत कर लेता है। लेकिन उसमें कटुता नहीं होती क्योंकि वह स्वार्थी नहीं होता है, वह व्यक्तिगत अभाव की भावना से प्रेरित नहीं होता है।

उमर नाम से उमर है, लेकिन वह एक मुसलमान नहीं है। उसके पिता और परिवार मुसलिम धर्म को मानने वाले हैं। कभी उसके पिता स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) के सदस्य थे। लेकिन उमर ने अपने पिता की राह नहीं चुनी। वह राजनीति उसकी नहीं है जो सिर्फ मुसलमानों की चिंता करती हो। परिवार से नाता तोड़ वो एक नास्तिक और एक परा-माओवादी बन गया। यहाँ तक कि उसने लैंगिक समानता और दलितों के प्रति असंवेदनशीलता के चलते अपने संगठन तक से इस्तीफा दे दिया।

उमर निरंतर वाम-गामी इंसान बन के उभरा है।

मगर वाम, एक मायावी विचार और एक न-हासिल होने वाला अंत है। उमर इसी विचार की खोज में है। मैं उसे रोकूंगा नहीं, क्योंकि हो सकता है ये खोज कुछ नया पैदा कर दे, कुछ ऐसा जो शायद हम नहीं बना पाए हों। यह खोज हमारे लिए मूल्यवान है क्योंकि यह किसी पुरानी उम्मीद तक सीमित नहीं है।

विद्रोही की ‘हाँ’ उसके प्यार से नज़र आती है, प्यार उनके लिए जिन्हें वह व्यक्तिगत रूप से जानता भी नहीं, प्यार उनके लिए जिनके साथ अन्याय हुआ हो, जिन्हें सताया गया हो, जो इतिहास के गलत वाले हिस्से के हों। कामु इसे अजब-प्यार कहते हैं। ये नफ़ा नुकसान नहीं देखता। इसमें शक़ की गुंजाइश नहीं होती। ऐसा प्यार करने वाला विद्रोही अपने भविष्य की परवाह नहीं करता। दार्शनिकों के अनुसार सिर्फ मानव ही भविष्य की कल्पना कर सकता है। लेकिन एक विद्रोही अपने कल के लिए योजना बना कर नहीं चलता। वो अपना सब कुछ आज को दे देता है, वर्तमान में ज़िन्दा लोगों को । विद्रोही पर अपने शोध के निष्कर्ष में कामु कहते हैं कि वर्तमान को अपना सब कुछ दे कर हम भविष्य के प्रति अपनी “असली उदारता” दिखा सकते हैं।

उमर एक सुरक्षित भविष्य चुन सकता था। वो यह तर्क दे कर अपनी बात को जायज सिद्ध कर सकता था कि ऐसा करने से ही वो अपनी-राजनीति को ठीक से आगे बढ़ा पायेगा। लेकिन उसने असुरक्षा चुनी।

उमर ख़ुद को असीम देखता है। वो राष्ट्रीयताओं में कैद नहीं रहना चाहता। वो मुझे राशल कोरी की याद दिलाता है, अमरीका की वो युवती, जो अपने घर कोलंबिया से दूर, बहुत दूर, एक फिलिस्तीनी घर को बुलडोज़र से बचाने के लिए इसरायली टैंक के सामने आ खड़ी हुई थी। वह अपने देश के हितों के खिलाफ काम कर रही था। जिसकी क़ीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी। इजरायली टैंक ने अपने सहयोगी राष्ट्र के नागरिक को भी नहीं बख्शा। भले ही हम उनसे डरें, साधारण राष्ट्रीय अस्तित्वता के शुद्धिकरण के लिए हमें और बहुत उमर और कोरी के होने की आवश्यकता है।

उमर जेएनयू में अपने दोस्तों के बीच वापस आ गया है। आप उसे, स्पष्ट सुन सकते हैं। वह कोई कायर नहीं है; उसमें इस ख़फा राष्ट्र का सामना करने की हिम्मत है। यहाँ सवाल यह है, क्या हम उसकी आँख से आँख मिला कर उसे देख सकते हैं? हम जो पिछले दस दिनों से अंतरजाल-जगत में उसको अपमानित होता और मारा जाता देख रहे हैं?

हम ऐसा नहीं कर सकते कि हम गाएं काज़ी नज़रूल इस्लाम की ‘बिद्रोही’ और उमर से दूर भागें। उमर, कन्हैया और उनके दोस्तों को, भारत की “देशभक्ति” के जीवित रहने का मोल, अपने खून से चुकाना है। अगर हमारी आवाज़ों में सच्चाई है, हमें उनको अपना कहने की ऐलान करना होगा।

उस देश के लिए यह शोक की बात होगी जो अपने हर उमर और कन्हैया का साथ नहीं देता, जो उनके द्वारा दी गयी चुनौती न सह सके, जो उनको सवालों के पूछने के कारण सज़ा दे। हम उनका बलिदान न करें।

ख़ुद को उनसे दूर न करें। अपने बच्चों की हत्या न करें।

Translation : Bharat Tiwari
अनुवाद: भरत तिवारी
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1 टिप्पणियाँ

  1. लेखक महोदय को खालिद का पिता बनने पर बधाई.पिता बनकर क्या साबित करना चाहते हैं.मेरी समझ से तो बाहर हैं.

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