हंस का ३१वां प्रेमचंद जयंती समारोह
— श्रीमंत जैनेंद्र
क्या लोकतंत्र का ये मतलब है कि जब गुड़गाँव में कुछ घंटे बारिश और जाम पर ख़बर दिखाएँगे और त्रिपुरा में पेट्रोल की क़ीमत ढाई सौ रुपये लीटर हो जाए लेकिन नहीं दिखाएँगे. जब नीता अंबानी आइपीएल पर डांस करेंगी तभी ख़बर दिखाएँगे, ये लोकतंत्र है ?- राजदीप सरदेसाई
बारिश के मौसम में बारिश नहीं होने की संभावना के बीच जब ऐवाने ग़ालिब ऑडिटोरियम के बाहर ऑटो से उतरा तो भारी भीड़ थी। हर साल यहाँ प्रेमचंद जयंती पर हंस का वार्षिक जलसा होता है। एकबारगी इस भीड़ ने चौंका दिया लेकिन बाद में पता चला कि यह पीएमएस मार्केटिंग कंपनी की बैठक में आये लोग थे। किसी तरह तैर कर अंदर पहुंचा। गेट पर रचना जी स्वागत के लिए खड़ी थीं जहां कुछ साल पहले तक राजेंद्र यादव जी अपने विह्ल चेयर पर हुआ करते थे। राजेन्द्र यादव जब होते थे तो लोगों से बुरी तरह घिरे होते थे। सब लोग यह बताने के लिए टूट पड़ते थे कि लो जी मैं भी आ गया हूँ। रचना जी के आसपास भीड़ कम थी। मैंने उनको हैलो कहा। अंदर लोग ठसाठस थे। सेल्फी लेने के लिए दाँए-बाँए देख कर हाथ निकालना पड़ रहा था। मुझे हंस के कार्यक्रम में आते-आते इतना अनुभव तो हो ही गया था सो सबसे पहले वीणा जी के पास पहुंच कर गिफ्ट पैक लिया। जिसमें लकड़ी का घड़ी लगा पेन स्टैंड था और एक पतला सा नोट पैड ।हर बार की तरह भरपूर नाश्ते का इंतजाम था। मैंने सिर्फ पानी पिया। सामने राजदीप सरदेसाई दिख गये। खेल पर उनका लिखा मुझे पसंद है। यही बात कहते हुए मैंने उनके साथ फोटो खिंचवायी । उस धक्कामुक्की वाली भीड़ में भी आशिमा ने एक सम्मानजनक फोटो खींच ही दिया जिसे फेसबुक पर पोस्ट किया जा सकता था। चारों तरफ साहित्य से जुड़े लोगों का जमावड़ा था। मन्नू भंडारी, असगर वजाहत, मैत्रेयी पुष्पा, रमणिका गुप्ता सहित हिन्दी के बहुत सारे नये पुराने दिग्गज चारों तरफ दिखाई दे रहे थे। हर कोई किसी से मिल रहा था, सेल्फी ले रहा था। कुछ लोग कुंभ मेले में बिछड़े भाई की तरह मिल रहे थे। कुछ लोग को यह बताने से फुर्सत नहीं कि अब तक उन्होंने क्या लिखा है और अभी क्या लिख रहे हैं। कुछ लोग बोर हो रहे थे तो कुछ लोग ध्यान से सुन रहे थे। हिन्दी के दिग्गजों का एक साथ ऐसा जुटान और कहीं संभव नहीं है।
बहरहाल इससे पहले कि पीछे बैठने की नौबत आये मैं ऑडिटोरियम के अंदर चला गया। वक्ता मंच पर आ चुके थे। संचालन पुरुषोत्तम अग्रवाल कर रहे थे। संजय सहाय, सईद नकवी, मृणाल पांडे, चंदन मित्रा, राजदीप सरदेसाई, हरिवंश मुखिया और विनीत कुमार क्रम से मंच पर बैठे हुए थे। रचना यादव के नेम प्लेट वाली कुर्सी खाली थी। वो मंच पर बैठने के बजाए हाल में पति दिनेश खन्ना के साथ अग्रिम पंक्ति में बैठी थीं। हॉल में लोगों की संख्या संतोषजनक थी। हंस के 31 वें गोष्ठी का विषय था ‘लोकतंत्र और राष्ट्रवाद : मीडिया की भूमिका’ । किसी श्रोता के याद दिलाने पर महाश्वेता देवी के लिए दो मिनट का मौन रखा गया। लोगों ने नीलाभ, रज़ा साहब, और लच्छू महराज की भी याद दिलाई। अग्रवाल जी पूरी तैयारी के साथ आये थे। आमतौर पर वे नोट्स का सहारा नहीं लेते लेकिन कुछ पुराने उदाहरण के लिए वे भी कभी-कभी नीचे देख रहे थे। आखिर हंस की गंभीर गोष्ठी का सवाल था। राजदीप सरदेसाई नाखून चबाकर सौरभ गांगुली की याद दिलाते रहे।
जिस राष्ट्रवाद में लोकतंत्र नहीं है, वो फासीवाद है- चंदन मित्रा
पुरुषोत्तम अग्रवाल ने कहा कि मीडिया ने राष्ट्रवाद को लोकतंत्र के विरुद्ध खड़ा कर दिया है। इस उग्र राष्ट्रवाद के दौर में बुद्धिजीवी शब्द को चोट्टा की तरह प्रयोग किया जा रहा है। इस बात से तालियों की शुरुआत हुई। उन्होंने सहज और स्वाभाविक राष्ट्रवाद की वकालत की। उसके बाद वक्ताओं के लिए 15 मिनट का समय निर्धारित करते हुए सबसे युवा चेहरे विनीत कुमार को बुलाया।
विनीत कुमार ने तकनीकी रूप से मजबूत ओपनिंग बैट्समैन की सधी शुरुआत दी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि हमें मीडिया को भी एक व्यवसाय की तरह देखने की जरूरत है। मीडिया के लोकतंत्र और राष्ट्रवाद सिर्फ़ एक बिजनेस पैटर्न है। इस बीच... मोबाइल से हमारी पुरानी पीढ़ी अभी भी फ्रेंडली नहीं हो पायी है। मेरे पीछे एक अंकल का बज उठा। उन्होंने हड़बड़ाते हुए फोन ऑफ कर लिया शायद वो साइलेंट करना नहीं जानते थे। विनीत कुमार ने शिल्पा शेट्टी और उत्तराखंड बाढ़ में इनोवा गाड़ी का उदाहरण देकर पीआर एजेंसी की ताकत को समझाया। तीन बार लोगों ने ताली बजा कर विनीत का हौसला बढ़ाया।
अब बारी मृणाल पांडे की थी। अग्रवाल जी ने उनको बुलाते हुए श्रोताओं की तरफ देख कर कहा कि वक्ता समय का ध्यान रखें। एक दर्शक ने चुटकी ली हमलोग क्यों रखें वक्ताओं को कहिए। नंदन और हिन्दुस्तान की पूर्व संपादक मृणाल पांडे ने बहुत मीठी आवाज के साथ मीडिया के सकारात्मक पक्ष की तरफ ध्यान दिलाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि अगर उपभोग खराब है तो हम उपभोक्ता अधिकार के लिए इतने सजग क्यों हैं? उन्होंने हिंदी वालों को लताड़ने की कोशिश की और उन्हें होमवर्क करने की सलाह देती रही। पुरूषोत्तम अग्रवाल मंद-मंद मुस्कुराते रहे। राजदीप अपने टैब में बिजी रहे और विनीत मोबाइल से फेसबुक पर ताजा स्टेटस डालते रहे। दर्शकों में भी फोन की घंटी बजती रही। साहित्य टैक्नोलॉजी के सुरक्षा घेरे फंसा हुआ था। मैंने भी समय निकालकर एक मिनट के लिए अपना फेसबुक चेक किया।
चंदन मित्रा ने आते ही जेएनयू पर प्रहार किया कहा कि एक दो विश्वविद्यालय का पता नहीं बाकी देश राष्ट्रवादी है। उन्होंने चारा, टू जी, बोफोर्स इत्यादि घोटाले का नाम लेना शुरू ही किया कि एक दर्शक ने जोर से चिल्ला कर कहा- व्यापम। मित्रा जी झेंप गये। कहा- जो प्रमाणित नहीं है मैं उनकी बात नहीं कर रहा। मित्रा जी के आते ही दर्शक उत्तेजित हो गये थे। बार-बार टोकाटोकी होती रही। अग्रवाल साहब ने स्कूल प्रिसिंपल की तरह सबको हड़काया और संवाद की गरिमा बनाये रखने को कहा। मित्रा जी ने आगे कहा कि मीडिया लोकतंत्र का रक्षक है। बिना राष्ट्रवाद के लोकतंत्र हो ही नहीं सकता और राष्ट्रवाद जनता तय करेगी। मौका आने पर अग्रवाल साहब ने इस बात पर मजे लिए।
राजदीप सरदेसाई की हिंदी अच्छी थी। उसने शुरुआत भी इसी बात से की कि मेरी हिंदी शरद पवार से अच्छी है। उन्होंने मीडिया के दोहरे चरित्र की बात की। कहा कि जब धोनी राँची आता है तब ही झारखंड खबरों में आता है। जब छत्तीसगढ़ में नक्सली हमला होता है तब ही वह चर्चा में आता है। आईपीएल की चर्चा हर तरफ लेकिन लातूर गायब। अपने पेशे के लिए उन्होंने कहा कि गंदा है पर धंधा है। सोशल मीडिया पर होने वाली बदतमीजी पर वे बोले - जो लोग प्रोफ़ाइल में नेशन फ़र्स्ट लिखकर माँ-बहन की गाली देते हैं, वही प्रधानमंत्री के यहाँ बुलाए जाते हैं । राजदीप के बोल चुकने के बाद बहुत सारे लोग उठ कर चले गये।
सईद नकवी ने बहुत गंभीर और चुटीले अंदाज में उदाहरण देकर बताया कि बाबरी मस्जिद कांड में राममंदिर निर्माण के अलावा सब कुछ था लेकिन राम मंदिर ना था। किसी ने सईद को टोकते हुए कहा कि टॉपिक पर बोलिए। उन्होंने पलटी मारी और एक दो वाक्यों के सहारे तुरंत उसे विषय से जोड़ दिया। पूछने वाला आवाक। दर्शकों ने हर्षध्वनि की और तालियाँ बजायी। एक आदमी नकवी जी से चिढ गया और बार-बार टिप्पणी करने लगा। अग्रवाल जी ने फिर हस्तक्षेप अस्त्र चलाते हुए कहा भैया मैं हेडमास्टर तो हूँ नहीं कि किसी को स्कूल से निकाल दूँ इसलिए कृपया वक्ताओं को बोलने दीजिए।
अंतिम वक्ता के तौर हरिवंश मुखिया ने मित्रा जी को उस स्टेटमेंट के लिए घेरा जिसमें जो उन्होंने एनडीटीवी डॉट कॉम पर लिखा "जेएनयू को बंद कर देना चाहिए, लाल बहादुर शास्त्री संस्थान के प्रशासन को हैंडओवर कर देना चाहिए. चंदन ने ये बात शायद इसलिए लिखी है क्योंकि जेएनयू में सवाल किए जाते हैं. पिछले दिनों जेएनयू ने नेशनलिज्म पर सवाल उठाए और इस पर तीस-पैंतीस अलग-अलग लेक्चर हुए.कि जेएनयू को बंद करके लाल बहादुर शास्त्री संस्थान के हवाले कर देना चाहिए।" मित्रा जी ने तुरंत सफाई देते हुए कहा कि बहुत पहले लिखा था। हरिवंश जी ने विश्वविद्यालय के होने का मतलब समझाया और कहा कि विश्वविद्यालय में सवाल पूछे जाते हैं। बहस होती है। कुछ लोगों को इसी से दिक्कत है।
श्रीमंत जैनेंद्र
जेएनयू से पीएचडीखेल और साहित्य में गहरी रुचि
क्रिकेट के राज्य स्तरीय खिलाड़ी
मो० 9250321601
अंत में श्रोताओं ने वक्ताओं से तीखे सवाल जवाब किये। चंदन मित्रा को बार-बार घेरा गया। उनके जेएनयू वाले स्टेटमेंट की तीखी आलोचना हुई। जिनको भी दर्शकों में प्रश्न पूछने की व्याकुलता देखनी हो उसे एक बार हंस के वार्षिक आयोजन में जरूर आना चाहिए। प्रश्न पूछने की ऐसी आपाधापी में मौका भी आगे बैठने वालों को ही मिलता है। संचालक को भी आसानी होती है कि ज्यादा भागना नहीं पड़ता। एक दर्शक ने मीडिया हाउस में वंचित तबकों के प्रतिनिधित्व का सवाल उठाया। विनीत ने उसका जवाब देते हुए कहा कि संचालक शक्तियाँ इतनी ताकतवर है कि इससे बहुत फर्क नहीं पड़ेगा। उनकी भागीदारी होनी चाहिए लेकिन वे भी इसमें आकर इसी सिस्टम का हिस्सा हो जाएंगे। उनके पास इसके ढेरों उदाहरण हैं। अजित अंजुम ने भाजपा सरकार की तरफ से मीडिया हाउस पर दवाब के संबंध में चंदन जी से सवाल किया। चंदन जी ने इस दवाब को सही तो नहीं बताया लेकिन ज्यादा बोलने से बचते रहे। रचना यादव ने अंत में धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने राजेन्द्र यादव ग्रंथावली के लोकार्पण और राजेंद्र यादव हंस कथा सम्मान समारोह में सबको आमंत्रित भी किया।
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5 टिप्पणियाँ
शानदार तरीके से बयान किया गया !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (03-08-2016) को "हम और आप" (चर्चा अंक-2423) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्रीमंत, बतकहिया अदाज में लिखा आपका गद्य बहुत रोचक है। गंभीर बातों को इतनी सहजता से दर्ज करने के लिए शुक्रिया। इसे बनाए रखें।
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