इक्कीसवीं सदी और ट्रिपल तलाक़ | Pritpal Kaur on #TripleTalaq issue



इक्कीसवीं सदी और ट्रिपल तलाक़

— प्रितपाल कौर

Pritpal Kaur on triple talaq issue

प्रितपाल कौर

pritpalkaur@gmail.com
+919811278721
देश में एक बार फिर मुसलमानों में प्रचलित ट्रिपल तलाक़ का मुद्दा गरमा उठा है. मसला उच्चतम न्यायालाय में विचाराधीन है. मुद्दे की बारीकी से जांच परख की जा रही है. मामला राष्ट्रीय, स्तरीय और निजी महफिलों में भी गरमागरम बहस का विषय बन गया है.
                                       
राजनेता, समाज विज्ञानी, आम जनता, पत्रकार, महिला संगठन, यहाँ तक कि इस्लामिक धर्मगुरु; सभी इस मुद्दे पर अलग-अलग तरह की राय रखते हैं और पूरे तर्कों के साथ पेश करते हैं. ट्रिपल तलाक़ के बारे में कुछ लोगों की राय जो भी हो, लेकिन मुस्लिम समाज में जिस तरह यह प्रथा प्रचलित है, वह किसी भी तरह से महिलाओं के पक्ष में नज़र नहीं आता.




यह पुरुषवादी, स्त्रीविरोधी तथा दमनकारी प्रथा दुनिया के लगभग उन सभी देशों में प्रचलित हैं जहाँ इस्लाम राष्ट्रीय धर्म है. इसके अलावा भारत में मुस्लिम पसर्नल लॉ के चलते यहाँ का मुस्लिम समाज भी इस बीमारी से ग्रसित है.


मुस्लिम पसर्नल लॉ देश के मुस्लिम समाज को कुछ ऐसी ख़ास रियायतें देता है जो समाज के अन्य वर्गों को उपलब्ध नहीं हैं. जैसे कि कोई भी मुस्लिम पुरुष अपनी पत्नी को तीन बार तलाक़ शब्द कह कर उसका पत्नी होने का दर्जा ख़त्म कर सकता है. साथ ही लगभग तीन महीने का उसका खर्चा दे कर उस स्त्री के प्रति अपनी सारी ज़िम्मेदारी से मुक्त हो सकता है.


इसके अलावा मुस्लिम पसर्नल लॉ मुसलमान मर्दों को एक वक़्त में चार स्त्रियों से शादियाँ करने और चारों पत्निओं को रखने की  इजाज़त देता है. हालाँकि ऐसे किस्से भी सुनने में आते हैं जहाँ ग़ैर  मुस्लिम मर्द भी इस कानून का फायदा उठाने के लिए इस्लाम कबूल करने के बाद पत्नी को तलाक़ दिए बगैर दूसरी शादी कर लेते हैं.


ट्रिपल तलाक़ और बहुविवाह के अलावा एक और कानून जो मुस्लिम पसर्नल लॉ के तहत मुस्लिम समाज को ख़ास रियायत देता है, वह है विरासत कानून. इसके तहत देख के मुसलमान भारतीय संविधान के अनुसार नहीं बल्कि शरियत के अनुसार अपनी सम्पत्ति का बटवारा करते हैं. जो निस्संदेह महिलाओं के पक्ष में नहीं है.



बहुत लम्बे समय से कई संगठन भारत में यूनिफार्म सिविल कोड की मांग करते आये हैं. एक नए सर्वे, जो भारतीय मुस्लिम महिला आन्दोलन ने करवाया है, के अनुसार देश की 92% मुस्लिम महिलाएं चाहती हैं कि ट्रिपल तलाक़ की प्रथा को कानूनन ख़त्म कर दिया जाये.  अब अखिल भारतीय मुसलिम महिला पर्सनल लॉ बोर्ड ने उच्चतम न्यायालय से इस मामले में दखल दे कर इसे लागू करवाने की गुज़ारिश की है.


इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार द्वारा देश में महिलाओं की स्थिति की समीक्षा के लिए गठित एक उच्च स्तरीय समिति ने मुस्लिम समाज में प्रचलित मौखिक तौर पर दिए जाने वाले एक पक्ष तलाक़ और पुरुषों द्वारा किये जाने वाले बहुविवाह पर रोक लगाने की सिफारिश की है. लेकिन मुस्लिम संगठन इसे उनके निजी मामलों में दखलंदाज़ी मानते हैं और उनका कहना है कि यह हिन्दुत्व फैलाने की एक साज़िश है.



जब कि मिस्र, सूडान, ईरान, जॉर्डन, सीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, इराक, लेबोनोन, मोर्रोको जैसे २० से ज्यादा देशों ने शरियत कानूनों में फेर बदल की पहल की है और इन देशों में अब इस तरह  मौखिक रूप से पुरुषों द्वारा दिया जाने वाले तलाक़ के खिलाफ अदालती कार्यवाही की शुरुआत कर दी गयी है.

इक्कीसवीं सदी के इस दौर में जहाँ वैज्ञानिक मंगल गृह पर कॉलोनी बसाने की तैयारी में लगे हैं, हमारे सामने कई सवाल मुंह बाये खड़े हैं.

भारत में आज भी एक समुदाय के पुरुषों को कानूनी तौर पर एक तरफ़ा तलाक़ की इजाज़त क्यूँ है?  क्या हम उन महिलायों के दुःख से अनजान हैं जिन्हें उनके पति ज़रा जरा सी नाराज़गी पर रोज़मर्रा की ज़िंदगी में चलते-फिरते तलाक़ देने की धमकी देते हैं?

मेरा तर्क ये भी है कि अगर भारत के मुस्लिम पुरुषों को एक तरफ़ा तलाक़ देने की और एक से ज्यादा विवाह करने की इजाज़त है, क्यूंकि ऐसा करना शरियत के अनुसार जायज़ है तो फिर उन्हें सामाजिक मसलों के अलावा अपराधिक मामलों में भी शरियत के अनुसार ही दण्डित भी किया जाना चाहिए.  शरियत कानून सिर्फ तलाक़, शादी और विरासत के मामलों में ही क्यूँ लागू हो?

क्यूँ न एक सामानांतर कानून प्रणाली और अदालतें देश की मुस्लिम आबादी के लिए निर्धारित कर दिए जाएँ जो शरियत के अनुसार मुस्लिम अपराधियों की सजा तय करें. शरियत में हर एक अपराध की बेहद सटीक और असरदार सजा निर्धारित की गयी है और यह सजाएं मध्य पूर्व के कई देशों में जहाँ इस्लाम राष्ट्रीय धर्म है,  आज भी दी जाती हैं.

लेकिन हम एक आधुनिक और विश्व के सब से बड़े लोकतंत्र के सभ्य नागरिक किसी भी असभ्य अथवा कठोर न्यायिक प्रणाली के समर्थक नहीं हैं. इसलिए अच्छा होगा कि हम वक़्त रहते संभलें और अलग अलग धर्मों के लिए अलग अलग कानून की व्यवस्था को ख़त्म कर दिया जाये. ताकि यूनिफार्म सिविल कोड देश में लागू हो, जिससे समाज में आज जो तरह तरह के विघटन देखने को मिल रहे हैं. उन पर लगाम लग सके.

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2 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 'मृत्युंजय योद्धा को नमन और ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ' विरोध के बाद भी चमका जिनका सितारा - ब्लॉग बुलेटिन’ में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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