राष्ट्र के संवैधानिक अधिकारों से देश को सैकड़ों वर्षों के बाद बराबरी का मौसम मिला है जो तानाशाही नहीं, लोकतांत्रिक है।
खबरदार,
होशियार!
— कृष्णा सोबती

भारतीय सत्ता तंत्र की प्रशासनीय प्रणाली कितनी भी तानाशाही की हो, वह किसी भी बेटे की आत्महत्या पर उनके प्रियजनों को नहीं दुत्कारती।
Policemen stand around CM Arvind Kejriwal at Lady Hardinge Hospital. PTI | Photo Indian Express क्या सचमुच ऐसी घटना में पुलिस की महाभारती दखलअन्दाजी जरूरी है? क्या पुलिस की मौजूदगी यहाँ तक प्रशिक्षण का प्रदर्शन करने में मजबूर थी। |
क्या सचमुच ऐसी घटना में पुलिस की महाभारती दखलअन्दाजी जरूरी है? क्या पुलिस की मौजूदगी यहाँ तक प्रशिक्षण का प्रदर्शन करने में मजबूर थी। जन्तर-मन्तर पर धरने के लिए गरेवाल साहिब के माता-पिता, सम्बन्धियों की प्रताड़ना का सगुण जरूरी था। एक बार मान भी लें कि शहीद गरेवाल की रुचि कांग्रेस की ओर थी, फिर भी कानून की किस धारा के तहत लोगों को फटकारा गया, हिकारत से यहाँ-वहाँ फिराया गया और विरोधी दल के नेता को तुगलकाबाद का चक्कर लगवाया गया। आजादी के बाद लगभग 70 सालों के बाद क्या तानाशाही की गई?
जैसा शोर-शराबा राष्ट्रीय कोलाहल उभारा और उड़ाया जाता है, वह प्रजातंत्र की इज्जत नहीं।
लोकतंत्र की सैद्धान्तिक गरिमा अमर-ज्योति के सन्मुख खड़े-खड़े भले प्रजातंत्र के गीत गाती रहे। सैनिक शहीद हो या आत्महत्या करे वहाँ इस कुचक्र का काम नहीं था। सियासी दलों के बड़बोले नेताओं को मुबारकबाद!
जैसा शोर-शराबा राष्ट्रीय कोलाहल उभारा और उड़ाया जाता है, वह प्रजातंत्र की इज्जत नहीं। हम नागरिकों की विनम्र प्रार्थना है कि बेकार की प्रचार-शृंखलाओं को दूर रखें। यह कम महत्त्वपूर्ण नहीं कि संसद में एक साथ बैठनेवाले हमारे माननीय सांसद के बीच ऐसा कोई व्यावहारिक शिष्टाचार न हो जो मौका लगते ही एक दूसरे पर जूत पैजारी करने लगे।
राष्ट्र के संवैधानिक अधिकारों से देश को सैकड़ों वर्षों के बाद बराबरी का मौसम मिला है जो तानाशाही नहीं, लोकतांत्रिक है।
हमारा ऐसा देश जो विश्व में अपनी वैचारिक विशेषता के लिए प्रसिद्ध है उसे लोकतांत्रिक प्रणाली के अनुरूप अपने में आचार- व्यवहार भी जगाना होगा।
राष्ट्र की प्रजाएँ सियासत के अन्दरुनी तंत्र से इतने नावाकिफ नहीं होती कि इस बर्ताव में फर्क न कर सकें कि कोई भी सत्तातंत्र किन-किन कानूनी हथियारों से लैस होता है।
अप्रसांगिक न होगा यह दोहराना कि भारत का हर नागरिक उसी सत्ता तंत्र में आस्था रखे जो नागरिकों के चुनाव से या सत्ता तंत्र की विचारधारा में विश्वास रखता हो। कुछ देर पहले लेखक नागरिक भी अपमानित स्थितियों से गुजरे हैं। राष्ट्र के बुद्धिजीवी प्रजाओं पर ऐसा दुधारी नजरिया किसी भी सत्ता तंत्र के हित में सफल नहीं होता। जरूरी नहीं कि लेखक बिरादरी ही सत्ता तंत्र का या जयकारा करे या धिक्कार।
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
— कृष्णा सोबती
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1 टिप्पणियाँ
गहरी बेबाक़ इस जन-मन की लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति को सलाम !
जवाब देंहटाएं-----प्रेमपुष्प