हिंदी में कला आलोचना की कोई दिशा नहीं रह गई है
हिंदी में कला पर किताबें सुंदर ढंग से नहीं छपती
“हिंदी में कला आलोचना इतनी बोझिल होती है कि कोई पढ़ना नहीं चाहता।” और भी न जाने कितनी तरह की बातें ‘हिंदी और कला’ को लेकर की जाती रही हैं। खासकर चाक्षुस कला को लेकर एक अजीब सी स्थिति का सामना हम सब दशकों से करते आए हैं। हिंदी कला आलोचना को लेकर एक और संगीन आरोप यह है कि अक्सर हिंदी के आलोचक कविता के औजार से कला आलोचना करते हैं। यही नहीं, कला की दुनिया में तकनीक का दखल इतना बढ़ गया है कि पुराने ‘औजारों’ से कला की चीर-फाड़ संभव ही नहीं। नए जमाने की कला आलोचना के लिए नजरिया भी नया चाहिए।यह नया नजरिया दिखता है देव प्रकाश चौधरी की नई किताब ‘जिसका मन रंगरेज-आकारों से पूरे एक संसार में अर्पणा कौर’ में। किताब हमारे समय की महत्वपूर्ण चित्रकार अर्पणा कौर की कला यात्रा पर है।
कहा जाय तो पेंटिंग एक परदा है। जिसके पार समय के पैरों के निशान होते हैं। यादों की पोटली होती है। नफरत का जलता दीया और प्रेम के पाठ होते हैं। जिंदगी के गोदाम का बहीखाता समेटे पेंटिंग अपने समय का सच हमें दिखाता है। और हमें रंगों के आकाश में पूरी पृथ्वी दिखती है। अपने कैनवस पर भी रंगों के छोटे-छोटे आकाश बुनती सुपरिचित चित्रकार अर्पणा कौर बार-बार इस पृथ्वी को पुकारती है...कभी अपने लिए, कभी दूसरों के लिए। देव प्रकाश चौधरी की लिखी किताब 'जिसका मन रंगरेज ' अर्पणा कौर की इस पुकार को एक प्रार्थना की तरह देखती है-“रंगों की प्रार्थना।“
'जिसका मन रंगरेज' देव प्रकाश चौधरी की चौथी किताब है। जितने खूबसूरत अंदाज में यह किताब लिखी गई है, किताब का डिजाइन भी उतना ही शानदार है। सिलसिलेवार तरीके से यह किताब अर्पणा कौर के जीवन, संघर्ष और चित्रकार के रूप में सफलता को बयां करती है। इसे पढ़ते हुए पाठक को महसूस होगा कि वह अर्पणा कौर पर कोई डॉक्यूमेंट्री देख रहा है। किताब के बीच-बीच में देव प्रकाश चौधरी द्वारा लिखी गईं कवितानुमा पंक्तियां ने इसे और भी प्रभावी बना दिया है। जैसे- किताब में लिखी लाइनें- 'ममता का रंग आज भी हरा है', आपको कल्पना की अलग ही दुनिया में ले जाती हैं।
किताब में लिखे 'इनके पास मां है' शीर्षक में अर्पणा कौर और उनकी मां एवं मशहूर लेखिका अजीत कौर की आपसी समझ को बेहद भावनात्मक शब्दों में पिरोया गया है। इसमें सिर्फ मां-बेटी के संबधों को नहीं लिखा गया है, बल्कि पढ़ते हुए महसूस होगा जैसे मातृत्व को फिर से परिभाषित किया गया है। एक तरफ अर्पणा कौर के बचपन और कला से लगाव को बयां किया गया है, तो दूसरी ओर एक मां के रूप में अजीत कौर के सहयोग और संबल। दोनों चीजें साथ-साथ चलती हैं। इसी तरह अन्य शीर्षक जैसे- 'प्रेम जैसी विकलता', 'बार-बार इतिहास', 'दिल्ली से प्यार' में चित्रकार अर्पणा कौर के जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूआ गया है।
किताब के बारे में देवप्रकाश चौधरी कहते हैं, “अर्पणा कौर के यहां रंग का हर संस्करण एक नई सृष्टि रचता रहा है। इस सृष्टि में प्रवेश के लिए यह किताब 'पासपोर्ट' है, ऐसा दंभ तो नहीं। हां, इस किताब को पढ़ने के बाद आप अर्पणा कौर की कला को आवाज जरूर दे पाएंगे और देखेंगे कि रंग पहले खुद को कैसे रंगता है।“
'जिसका मन रंगरेज' आकारों से पूरे संसार में अर्पणा कौर | लेखक-देव प्रकाश चौधरी | प्रकाशक- अंतरा इन्फोमीडिया,जयपुर | मूल्य- 1200 रूपए
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