![बस इतनी गुज़ारिश है — अखिलेश्वर फ़ोटो: भरत तिवारी बस इतनी गुज़ारिश है — अखिलेश्वर फ़ोटो: भरत तिवारी](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiBNBRGNDdB9bpUWDgF8t8-rmxSnuGCI2FYaeGJ-lip20K3LYPO8hKJfScjayjlVD7lEIxv24xC4bds4YoMZKmAtodK7cSt_ClmzxFzaCYAm2SVep0exrwB9ujeMpHHPHEBYNjVZUFwo_nk/s1600-rw/akhileshwar-pandey-kavita-photo-bharat-tiwari-shabdankan.jpg)
अखिलेश्वर पांडेय की कविता
बस इतनी गुज़ारिश है
मुझे ग़ालिब न बनाओ
ग़ाली न दो!
मैं बड़ी क़द्र करता हूं उनकी
मैं तो उनकी सफेद दाढ़ी का
एक बाल जितना भी नहीं
उर्दू मेरी मौसी (हिन्दी मां) ज़रूर है
पर ठीक से जान-पहचान नहीं अभी
शेरो-शायरी भाती है (आती नहीं)
ग़ज़ल सुनकर
वाह-वाह कह सकता हूं
सुना नहीं सकता
माफ़ करो यारों मुझे
मैं गुलज़ार भी नहीं हूं
सुना बहुत है उनको
पढ़ा भी है काफ़ी
पर मतला और कैफ़ीयत
मेरी समझ से बाहर है
निराला, प्रसाद, बच्चन, त्रिलोचन भी नहीं मैं
सक्सेना, धूमिल जैसी ज़मीन नहीं मेरी
मैं किसी की छवि बनना भी नहीं चाहता
किसी से प्रतिस्पद्र्धा नहीं मेरी
प्रेरक हैं सब मेरे
आदरणीय हैं सब
पर उनके दिखाये रास्ते पर चलकर
मैं अपनी मंजिल नहीं पा सकता
मुझे अपनी राह अलग बनानी है
आप मुझे साधारण समझ सकते हैं
पर दूसरों से अलग हूं मैं
मैं नहीं चाहता किसी से संघर्ष
किसी को भयाक्रांत या
तनावग्रस्त करना
नीचे गिराना या कुचलना
करना ज़लील या ओछा देखना
मैं तो सबका मित्र बनना चाहता हूं
मेरे पास जो थोड़ी सी दौलत है
उसे ख़र्च करना चाहता हूं
लुटाना चाहता हूं अपनी शब्द-संपदा
इस बाज़ारी कहकहे में
नीलाम होना फ़ितरत नहीं मेरी
मैं शब्दों की सुगंध फैलाना चाहता हूं
विचारों को रोपित करना चाहता हूं
आपके कोमल मन के धरालत पर
मैं अब भी इन बातों पर
विश्वास करता हूं कि
हवा शुद्ध हो न हो
प्रेम अब भी सबसे शुद्ध है
हम अपनी मूर्खतापूर्ण इच्छाओं से
धोखा भले खा जाएं
ख़ुद पर भरोसा हो तो
प्रेम में धोखा नहीं खा सकते
आप जानकर भले ही चकित न हों
पर सच यही है कि
धरती की शुद्ध हवा
इसलिए कम हो गयी क्योंकि
हमने प्रकृति से प्यार करना कम कर दिया
इसलिए मित्रों!
मैं कहता हूं-
हवा को हम शुद्ध भले न बना पाएं
प्रेम तो शुद्ध करें
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे
सबकुछ सहज ही शुद्ध हो जाएगा
अगर शुद्ध होगा
हमारा अंतर्मन
हमारा वातावरण
हमारे विचार
हमारे कर्म
हमारे व्यवहार
तो बची कहां रह जायेगी
गंदगी!
मेरा मानना है-
किसी के पीछे दौड़ना छोड़ो
ख़ुद से मुक़ाबला करो
ख़ुद के ही बनो दुश्मन
और रक्षक भी
रोज़ मारो ख़ुद को
रोज़ पैदा हो जाओ ख़ुद ही
अहं का पहाड़ आख़िर कब तक
खड़ा रह सकता है
ख़ुद पर काबू पाना सबसे
आसान काम है और सबसे कठिन भी
यह जानते हैं सब
फिर आजमाने में हर्ज क्या है!
ग़ाली न दो!
मैं बड़ी क़द्र करता हूं उनकी
मैं तो उनकी सफेद दाढ़ी का
एक बाल जितना भी नहीं
उर्दू मेरी मौसी (हिन्दी मां) ज़रूर है
पर ठीक से जान-पहचान नहीं अभी
शेरो-शायरी भाती है (आती नहीं)
ग़ज़ल सुनकर
वाह-वाह कह सकता हूं
सुना नहीं सकता
माफ़ करो यारों मुझे
मैं गुलज़ार भी नहीं हूं
सुना बहुत है उनको
पढ़ा भी है काफ़ी
पर मतला और कैफ़ीयत
मेरी समझ से बाहर है
निराला, प्रसाद, बच्चन, त्रिलोचन भी नहीं मैं
सक्सेना, धूमिल जैसी ज़मीन नहीं मेरी
मैं किसी की छवि बनना भी नहीं चाहता
किसी से प्रतिस्पद्र्धा नहीं मेरी
प्रेरक हैं सब मेरे
आदरणीय हैं सब
पर उनके दिखाये रास्ते पर चलकर
मैं अपनी मंजिल नहीं पा सकता
मुझे अपनी राह अलग बनानी है
आप मुझे साधारण समझ सकते हैं
पर दूसरों से अलग हूं मैं
मैं नहीं चाहता किसी से संघर्ष
किसी को भयाक्रांत या
तनावग्रस्त करना
नीचे गिराना या कुचलना
करना ज़लील या ओछा देखना
मैं तो सबका मित्र बनना चाहता हूं
मेरे पास जो थोड़ी सी दौलत है
उसे ख़र्च करना चाहता हूं
लुटाना चाहता हूं अपनी शब्द-संपदा
इस बाज़ारी कहकहे में
नीलाम होना फ़ितरत नहीं मेरी
मैं शब्दों की सुगंध फैलाना चाहता हूं
विचारों को रोपित करना चाहता हूं
आपके कोमल मन के धरालत पर
मैं अब भी इन बातों पर
विश्वास करता हूं कि
हवा शुद्ध हो न हो
प्रेम अब भी सबसे शुद्ध है
हम अपनी मूर्खतापूर्ण इच्छाओं से
धोखा भले खा जाएं
ख़ुद पर भरोसा हो तो
प्रेम में धोखा नहीं खा सकते
आप जानकर भले ही चकित न हों
पर सच यही है कि
धरती की शुद्ध हवा
इसलिए कम हो गयी क्योंकि
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEheszrO0OmC9v-wQNdc8ZOg2RT7wuP_zObaNb0TN3NaNSsZoPYgXkr5KSqgBlNVwIBbvz8Ezi8HkuyHwdDmqf2U3W-u7L3UuvlGwYIP9RnXqb0_shw9ql0lIHqvjajFf84c7PZ6OQMuDi5c/s320-rw/Akhileshwar-Pandey.jpg)
इसलिए मित्रों!
मैं कहता हूं-
हवा को हम शुद्ध भले न बना पाएं
प्रेम तो शुद्ध करें
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे
सबकुछ सहज ही शुद्ध हो जाएगा
अगर शुद्ध होगा
हमारा अंतर्मन
हमारा वातावरण
हमारे विचार
हमारे कर्म
हमारे व्यवहार
तो बची कहां रह जायेगी
गंदगी!
मेरा मानना है-
किसी के पीछे दौड़ना छोड़ो
ख़ुद से मुक़ाबला करो
ख़ुद के ही बनो दुश्मन
और रक्षक भी
रोज़ मारो ख़ुद को
रोज़ पैदा हो जाओ ख़ुद ही
अहं का पहाड़ आख़िर कब तक
खड़ा रह सकता है
ख़ुद पर काबू पाना सबसे
आसान काम है और सबसे कठिन भी
यह जानते हैं सब
फिर आजमाने में हर्ज क्या है!
संपर्क : 8102397081
ई मेल : apandey833@gmail.com
संप्रति : प्रभात खबर, जमशेदपुर में मुख्य उपसंपादक.
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