पशु: पुराणों से पशु-पक्षियों की रोचक कथाएं Best Books of Devdutt Pattanaik
देवदत्त पटनायक

गरुड़ की मुक्ति

गरुड़ ने कहा, ‘‘मुझे यह अमृत नागों के पास लेकर जाना ही होगा ताकि मैं अपनी माँ और खुद को दासत्व से मुक्त करा सकूँ। लेकिन मैं इसे वापिस ले आऊँगा और यह सुनिश्चित करूँगा कि नागों को इसका एक घूँट भी न मिले।’’
इन्द्र ने कहा, ‘‘अगर तुम ऐसा करने में सफल हो गये तो मैं तुम्हें मनचाहा वरदान दूँगा।’’
गरुड़ धरती पर वापस आ गया और अमृत के घट के साथ नागों के पास जाकर बोला, ‘‘मैं इसे तभी तुमको सौंपूँगा जब तुम मुझे और मेरी माँ को दासत्व से मुक्त कर दोगे।’’
नागों ने कहा, ‘‘ऐसा ही होगा। हम तुम्हें और तुम्हारी माँ को मुक्त करते हैं।’’
गरुड़ ने अमृत का घड़ा धरती पर रख दिया। जैसे ही नाग उस कलश की ओर बढ़े, गरुड़ ने कहा, ‘‘इस दैवी पदार्थ को पीने से पहले नहाना या कम-से-कम कुल्ला करके मुँह साफ करना ज़रूरी माना गया है।’’
नागों ने उसकी बात मान ली और डुबकी लगाने के लिए नदी की तरफ लपके। जिस बीच वे गये हुए थे, कलश अरक्षित रखा हुआ था। उसी समय इन्द्र उतरे और कलश को वापस अमरावती ले गये।
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जब नाग लौटकर आये और उन्होंने देखा कि कलश वहाँ नहीं है, तो उन्होंने क्रोधित होकर गरुड़ से पूछा, ‘‘तुमने इन्द्र को रोका क्यों नहीं?’’
‘‘अच्छा,’’ गरुड़ ने कहा, ‘‘तो मुझे अमृत की रखवाली भी करनी थी? मगर मैं अब तुम लोगों का दास तो रहा नहीं। याद करो, तुमने मुझे मुक्त कर दिया था।’’
नाग अपना-सा मुँह लेकर रह गये। वे जानते थे कि गरुड़ सही कह रहा था। वे कुछ नहीं कर सकते थे। वे अमृत चखने का मौका खो चुके थे। हताश होकर वे घास के उन तिनकों पर लोटने लगे जिन पर अमृत का कलश रखा हुआ था। नतीजे के तौर पर उन्हें अपनी केंचुली उतारने की जादुई शक्ति मिल गयी, जिसके बाद उन्हें फिर नयी चमड़ी मिल जाती है। इससे यह पक्का हो गया कि वे कभी बूढ़े नहीं होंगे।
फिर गरुड़ इन्द्र के पास अपने वरदान के लिए गया। ‘‘बोलो, क्या इच्छा है तुम्हारी?’’ इन्द्र ने पूछा। गरुड़ ने जवाब दिया, ‘‘मैं चाहता हूँ कि सर्प मेरा स्वाभाविक आहार बनें।’’
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‘‘तथास्तु,’’ इन्द्र ने कहा। उस दिन से गरुड़ को हमेशा नागों को अपने तीखे पंजों में पकड़े दिखाया जाता है। किसी समय वह उनका दास था, अब उनका भक्षक है।
फिर विष्णु गरुड़ से मिले और उन्होंने पूछा, ‘‘तुमने खुद अमृत क्यों नहीं पिया?’’
गरुड़ ने जवाब दिया, ‘‘वह मेरा नहीं था, उसे पीना चोरी होती। मैं तो वही कर रहा था जो मेरे पूर्व स्वामी चाहते थे कि मैं करूँ, क्योंकि मैं उनका दास था।’’
गरुड़ की इच्छा-शक्ति और निष्ठा से प्रसन्न होकर विष्णु ने कहा, ‘मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे वाहन बनो। मैं तुम पर सवार होकर युद्ध में जाया करूँगा।’
‘‘ठीक है,’’ गरुड़ ने कहा, ‘‘मुझे स्वीकार है लेकिन मैं आपके नीचे तभी रहूँगा, जब आप मुझे अपने ऊपर रखेंगे।’’
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उसकी शर्त बहुत न्यायसंगत, मगर पूरी करने में बहुत मुश्किल लगती थी। विष्णु इस शर्त को सुनकर मुस्कुराये और बोले, ‘‘तुम्हारी छवि हमेशा मेरी पताका पर रहेगी। इस तरह तुम सदा मेरे ऊपर भी रहोगे।’’
पुस्तक का नाम - पशु: पुराणों से पशु-पक्षियों की रोचक कथाएं
Best Books of Devdutt Pattanaik
प्रकाशक - राजपाल एण्ड सन्ज़, 1590 मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली-6
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