यारा दस्तक देत अठारा — अशोक चक्रधर


यारा दस्तक देत अठारा —अशोक चक्रधर

चौं रे चम्पू!

—अशोक चक्रधर

                                       

चौं रे चम्पू! नए साल ते का उम्मीद ऐ तेरी? 

साल तो पलक झपकते बीत जाता है। उम्मीदें की जा सकती हैं तो किसी नए युग से ही की जा सकती हैं। चचा, मनुष्य का विकास पाषाण युग से हुआ, जब उसने पत्थर से पत्थर टकराकर आग पैदा की। उसके बाद लौह युग, कांस्य युग और विभिन्न सभ्यताओं के सांस्कृतिक युग आए। अब हम प्रकाश युग के संक्रमण वर्ष में जा रहे हैं।





कहां दीख रह्यौ ऐ तोय प्रकास? समाज में चौतरफ, सौ तरियां कौ अंधियारौ ऐ! 

अंधकार तो हर युग में रहता है, वरना उजाले की महत्ता ही क्या! पाषाण युग के जो पत्थर आग जलाते था, वे दूसरे का सिर फोड़ने के काम भी आते थे। लौह युग में हल की फाल बनीं, तो भाले की नोक भी बनीं। कांस्य युग में बर्तन-भांडे बने तो तलवारों की मूंठें भी बनीं। शुद्ध कोई नहीं था, बुद्ध के युग में भी युद्ध हुए। अगला युग कनैक्टिविटी का प्रकाश युग है।




अपईं समझि में नायं आय रई तेई बात?

ये इंटरनेट का ज़माना है चचा! डाटा जितना ज़्यादा और जितनी ज़्यादा गति से भेजा-पाया जा सकेगा, उतना ही हर ओर विकास होगा। इंटरनेट अभी तक प्राय: धातुओं के युग में जी रहा है, लेकिन फाइबर ऑप्टिक धीरे-धीरे कॉपर वायर का स्थान लेती जा रही है। देश भर में अब जो नई केबल फैलाई जा रही हैं, वे हैं फाइबर ऑप्टिक केबल! प्रकाश के ज़रिए डाटा पहुंचाने वाली केबल, समझे? पहले मैं भी नहीं समझता था। अभी रायबरेली में देखकर आया हूं, हाई स्पीड डाटा ट्रांसमिशन मीडियम। ऑप्टीकल फ़ाइबर केबिल देश की नस-नाड़ी में कुशलतापूर्वक फैल जाय तो संभावनाओं की अनंत खिड़कियां खुल जाएंगी, भाषाओं की, संस्कृति की, विकास की। लेकिन, हर युग का अंधकार अपना अलग चरित्र रखता है, असत्य और अफवाह को भी उसी गति से फैला सकता है ये फाइबर! उम्मीद करो कि अट्ठारा में प्रकाश हमारे देश में विकास की पौबारा करे। गाने का मन कर रहा है, चचा।

यारा, 
   दस्तक देत अठारा! 
दिल-दिमाग़ की खोल खिड़कियां, 
    आने दे उजियारा। 
यारा, 
  दस्तक देत अठारा!


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل