head advt

Chhapaak Review: छपाक से देखो | #छपाक_से_देखो #Chhapaak


Chhapaak Review: छपाक से देखो  

छपाक हर उस युवती की फिल्म है जिसने कुछ कर दिखाने का सपना देखा है


Chhapaak Review: दीपिका और मेघना की जुगलबंदी ने किया कमाल, तपाक से देख आइए छपाक

साभार अमर उजाला छपाक का रिव्यु 


कलाकार: दीपिका पादुकोण, विक्रांत मैसी, मधुरजीत, अंकित बिष्ट आदि
निर्देशक: मेघना गुलजार
निर्माता: फॉक्स स्टार स्टूडियोज, दीपिका पादुकोण, गोविंद सिंह संधू और मेघना गुलजार



हर अंधेरी सुरंग के दूसरे छोर पर प्रकाश की लौ दिखती है। हाउसफुल 4 और घोस्ट स्टोरीज जैसी फिल्मों के दौर में छपाक यही काम करती है। छपाक माने वह आवाज जो कोई तरल पदार्थ फेंकने पर होती है। ये तरल पदार्थ अगर दुकानों पर खुलेआम बिकने वाला तेजाब हो और निशाने पर कह पाने की हिम्मत रखने वाली युवती हो तो इसकी आवाज किसी की दुनिया बदल देती है। लेकिन, मेघना गुलजार की छपाक रोने-धोने की कहानी नहीं है, ये कहानी है समय से दो-दो हाथ करने की और अपने जीवट से एक नई इबारत लिखने की।

दुनिया के चंद बेहद खूबसूरत चेहरों वाली दीपिका को सलाम, ऐसी एक फिल्म करने के लिए जो खूबसूरती की ऐसी परिभाषा गढ़ती है जिसका एक भी हर्फ सुंदर नहीं है। छपाक कहानी है मालती की। मालती आधी आबादी की करोड़ों लड़कियों में से कोई भी हो सकती है। वह हमारे घर की या पड़ोस की कोई भी ऐसी लड़की हो सकती है जो आगे बढ़ना चाहती है और जीवन में कुछ कर दिखाने की राह में मिलने वाले गली के शोहदों को ना कह सकने की हिम्मत रखती है। एक छपाक से उसकी दुनिया बदल जाती है। लेकिन मालती अपना चेहरा छुपाकर अज्ञातवास में नहीं चली जाती। उसे मिलता है कंधे से कंधा मिला सकने वाला दोस्त अमोल और वह निकल पड़ती है एक ऐसी जंग के मोर्चे पर जिसमें उसकी जीत की कहानी दुनिया में तेजाब हमले के सबसे ज्यादा मामलों वाले देश भारत का सर्वोच्च न्यायालय लिखता है।








फिल्म छपाक दीपिका पादुकोण के करियर का वो मील का पत्थर है जिस पर देश के सियासी माहौल का रंग चढ़ाने की कोशिश हो रही है। फिल्म समीक्षकों को फोन करके बताया जा रहा है कि दीपिका का दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जाना एक पब्लिसिटी स्टंट हैं और उन्हें ये फिल्म इसी परिप्रेक्ष्य में देखनी चाहिए। लेकिन, किसी मुद्दे पर बिना कुछ कहे पूरे देश को मथ देने का साहस रखने वाली दीपिका की ये फिल्म सिर्फ दीपिका की नहीं है। ये हर उस युवती की फिल्म है जिसने कुछ कर दिखाने का सपना देखा है। ये सपना ही इस फिल्म की जीत है। दीपिका तो बस इस संदेश को फैलाने का एक माध्यम हैं। दीपिका ने चुपचाप रहकर एक लंबी लकीर खींच दी है जो इतनी लंबी है कि उसे छोटी करने की कोशिशों के सिरे तक पहुंचने से पहले इसके निशान स्थायी हो चुके हैं। ये किरदार सर्वश्रेष्ठ अभिनय के लिए उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार दिलाने का दम रखता है।

दीपिका के अलावा इस फिल्म में अपना असर छोड़ा है विक्रांत मैसी ने। फिल्म संजू में जैसे विकी कौशल तमाम तालियां बटोर ले गए थे, वैसा ही कुछ यहां विक्रांत ने कर दिखाया है। दीपिका जैसी कलाकार के सामने उनसे ज्यादा कुछ अपेक्षा किसी ने की नहीं थी लेकिन वह इस फिल्म का सरप्राइज पैकेज हैं। फिल्म में बाकी कलाकार नए चेहरे हैं, कुछ वास्तविक तेजाब हमले की पीड़िताओं ने भी इसमें कमाल का अभिनय किया है। फिल्म देखकर निकलने के बाद भी दिमाग में छपे रह जाते हैं वे सीन जिनमें दीपिका अपना दुपट्टा हवा में उछालकर आगे बढ़ती हैं या फिर जहां तेजाब से झुलसे चेहरे में पड़ते उनके डिंपल दर्शकों के चेहरे पर भी मुस्कान ले आते हैं।

तेजाब हमले की पीड़ित एक युवती की कहानी देखते हुए भी दर्शकों के चेहरे पर मुस्कान ले आने की ये कीमियागिरी मेघना गुलजार ही कर सकती हैं। अपनी पिछली फिल्मों राजी और तलवार से उन्होंने साबित किया है कि सामयिक विषयों पर वे बिना बनावटीपन के एक कहानी को सीधे और सच्चे तरीके से कह सकती हैं। मेघना की फिल्में उनके पिता की चंद फिल्मों जैसे मेरे अपने, आंधी, माचिस आदि की भी याद दिलाती हैं, वैसी ही रिश्तों की कमशमकश, वैसी ही सामाजिक चुनौतियां और वैसी ही मुख्य किरदार के भीतर की बेचैनी। छपाक दर्शकों को भी बेचैन करती है। फिल्में अगर कभी समाज का दर्पण कहलाई होंगी तो छपाक उसका सुनहरा फ्रेम बनने में कामयाब रही है। अमर उजाला के मूवी रिव्यू में फिल्म छपाक को मिलते हैं चार स्टार

(अमर उजाला से साभार)
००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

गलत
आपकी सदस्यता सफल हो गई है.

शब्दांकन को अपनी ईमेल / व्हाट्सऐप पर पढ़ने के लिए जुड़ें 

The WHATSAPP field must contain between 6 and 19 digits and include the country code without using +/0 (e.g. 1xxxxxxxxxx for the United States)
?