आज के 'टाइम्स ऑफ़ इण्डिया' की ख़बर है: 'जेएनयू में रिकॉर्ड आवेदन, पिछले साल की तुलना में 22% अधिक'. आज से ठीक तीन वर्ष पूर्व प्रो सदानंद शाही को बिलासपुर विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए जाने पर रोक लगा दी गई थी. सुनने में आया था, यह (आरोप लगाते हुए) कहते हुए कि वह बिलासपुर विश्वविद्यालय को वह एक ही वर्ष में जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी बना देंगे. फिलहाल, कवि सदानंद शाही की कोरोना समय की कविताएं पढ़िए और ख़ुद तय कीजिये. यह कोरोना-समय में आपके द्वारा पढ़ी गयीं अन्य कविताओं-सी नहीं हैं — एक जगह कवि कह रहा है — "मनुष्य बचेगा, पृथ्वी बचेगी / तो धर्म भी बच जाएंगे" तो कहीं यह भी कि, "बैल पहले ही अलगा दिए गये थे / गाड़ियों से / अपने गुट्ठल कंधों के साथ / कभी कभार दिख जाते हैं / यह बताने के लिए / कि हम भी कभी बैल थे"... भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक
कोरोना समय की कविताएं :सदानंद शाही
कोरोना का कहर
यह सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं हैन सिर्फ मुसलमान के लिए
और न ईसाई, यहूदी या पारसी के लिए
यह सिर्फ भारत के लिए नहीं आया है
न सिर्फ पाकिस्तान के लिए आया है
और न अमरीका योरप आस्ट्रेलिया के लिए
यह संकट जितना चीन और रूस के लिए है
उतना ही नेपाल मालदीव श्रीलंका फीजी मारिशस के लिए भी है
उन देशों के लिए भी है
जिनके नाम भी हम नहीं जानते हैं
संकट का यह बादल
सारी दुनिया पर छाया है
पृथ्वी पर कितने धर्म है
पृथ्वी पर कितने देश हैं
पृथ्वी पर कितनी जातियां हैं
कितने तरह के लोग हैं
क्या आप दावे के साथ कह सकते हैं
कि अमुक धर्म या अमुक जाति पर यह वायरस असर नहीं करेगा
या कि एक खास भूगोल पर इसका असर नहीं होगा
और दूसरे भूगोल पर होगा
धर्म की सीमा से बाहर निकलिए
भूगोल की सीमा से बाहर निकलिए
मनुष्य बचेगा, पृथ्वी बचेगी
तो धर्म भी बच जाएंगे
और भूगोल भी बच जाएगा
लोकतंत्र भी बचेगा
और वोट बैंक भी
मनुष्य को बचाओ
पृथ्वी को बचाओ
घृणा से कुछ भी नहीं बचेगा —
न मनुष्य
न पृथ्वी
इस आपदा ने जो एकांत दिया है
अपने भीतर के अंधेरे में झांकिए
और हो सके तो
वहां करुणा का दीप जलाइए।
धरती मेरी मां! *
देश की सबसे बडी कुर्सी पर बैठे हुए लोगो
मेरी कुर्सी देख लो
मेरा ठाट देख लो
बेश कीमती और खूबसूरत चीजों से खेलने वालों
मेरा हाथ देख लो
मेरा खिलौना देख लो
धरती को दुधारी गाय की तरह दूहने वालों
सड़क पर पत्थर कूटनेवाली
धरती जैसी मेरी मां को देख लो
मेरी ओर आँख उठाने वाले को
वह
वैसे ही कूट देगी
जैसे कूटती है पत्थर
ओ धरती से खेलने वालो!
सुनो!
धरती मेरी मां है
मैं धरती का बेटा
पूरे होशो-हवास से कह रहा हूं
जिस दिन अपने पर आ जायेगी
कूट कर रख देगी
धरती मेरी मां!
(*शिमला में पत्थर तोड़ रही झारखंड की आदिवासी युवती के दो साल के बेटे को देखकर)
यही भारत भाग्य विधाता हैं
ये जो सिर पर गठरियां लिए भागे जा रहे हैंपांवों से नाप रहे हैं जम्बूदीप
जरूरी नहीं
कि तुम्हें इनके दुख का अंदाजा हो
जरूरी नहीं
कि तुम्हें उनकी बुद्धि का अंदाजा हो
जरूरी नहीं
कि तुम्हें उनके कौशल का अंदाजा हो
जरूरी यह भी नहीं
कि तुम्हें मालूम हो
कि वे यहाँ शहरों में क्या रच कर जा रहे हैं?
पर हे कृपा निधानों!
सरस्वती के वरद पुत्रो!
तुम जो अपने सुरक्षित स्थानों में बैठे
वर्क-ऐट-होम कर रहे हो
उस घर को बनाने वालों का चेहरा याद कर लो
तुम जो जुटा लिए हो साल भर का राशन
नहीं समझ पाओगे
शाम के भोजन का इंतजाम न होने पर
कैसा लगता है
कैसा लगता है
बच्चों को तीन दिन से भूखा देखकर
इनकी मदद नहीं कर सकते
मत करो
कम से कम अपनी गालियों को
किसी और मौके के लिए बचा लो
ये भारत माता की संततियां हैं
अपनी बेचारगी की भरपाई इन्हें गाली देकर मत करो
यही वो शय हैं जिसे भारत कहते हैं।
भारत का आदर करो
वह माता है
गांठ बांध लो
यही भारत भाग्य विधाता हैं।
पांवों की अभ्यर्थना में
हमारी यात्रा के आदिम साधन हैं पांवबाद में आयीं बैलगाड़ियां
घोड़ागाड़ियां और गाड़ियां
रेलगाड़ियां और बाद में आईं
और भागते-भागते बदल गयीं
बुलेट ट्रेन में
साइकिलें बाद में आईं
और रफ्तार बढ़ाती हुई
बदल गयीं मोटर साइकिलों में
जहाज आये
पंख फैलाए
नापते रहे अनंत आकाश
एक एक कर सब बंद हुए
सबसे बाद में आने वाले हवाई जहाजों ने
सबसे पहले साथ छोड़ा
रेलगाड़ी के पहियों ने बंद कर दिया
पटरी पर सरकना
बैल पहले ही अलगा दिए गये थे
गाड़ियों से
अपने गुट्ठल कंधों के साथ
कभी कभार दिख जाते हैं
यह बताने के लिए
कि हम भी कभी बैल थे
भाग्य विधाताओं के गैराज में जा छुपी गाड़ियां
बता रही थीं
कोई नहीं है किसी का भाग्य विधाता
ऐसे वक्त में
जब कि तरह तरह के पहियों ने डाल दिए हथियार
पांव अनथक चले जा रहे हैं
समय जितना कठिन हो
रास्ता जितना बीहड़
दूरी जितनी अलंघ्य
आदमी के पांवों ने छोड़ा नहीं
चलते चले जाने का कौशल
वे निरंतर यह साबित करने में लगे हैं
कि
आदमी अपने पांवों पर खड़ा है
अनंत काल से
और
खड़ा रहेगा
अनंत काल तक।
भारी खोट
अपने जान की गठरीअपने अपने कंधों पर लिए
यह जो भागती हुई भीड़ है
अपने नाक और कान को गमछे से ढके हुए
ध्यान से देखिए —
क्या आप पहचान सकते हैं
इनमें कौन यादव है और कौन तिवारी
कौन प्रसाद है और कौन चौरसिया
कौन श्रीवास्तव है और कौन गुप्ता
क्या पहचान सकते हैं —
इनमें से कौन रहमान है
और कौन हनुमान
इस भागती हुई भीड़ के
हर चेहरे के पीछे एक ही ईश्वर है
इसके अलावा अगर आप कुछ भी पहचान ले रहे हैं
इनकी जाति
इनका धर्म
इनका इलाका
तो समझ लीजिए
कि
कोई कमी रह गई है
आप की परवरिश में
आपकी शिक्षा अधूरी है
आपके मनुष्य होने में
रह गयी है भारी खोट ।
कोरोना तुम्हारी जाति क्या है?
कोरोना तुम्हारी जाति क्या हैकोरोना तुम्हारा धर्म क्या है
कोरोना तुम्हारी विचारधारा क्या है
कोरोना तुम किस देश के वासी हो
कोरोना तुम किस रंग के हो
काले हो या सफेद
या निपट भूरे हो
कोरोना
क्या तुम दढ़ियल हो
जैसा कि हमारे न्यूज़ चैनल बता रहे हैं
या क्लीन शेव
तुम लुंगी पहनते हो
दक्षिण भारतीय तो नहीं हो
तुम्हारी नाक चपटी है क्या
क्या तुम्हारी शक्ल मंगोलों से मिलती है?
कोरोना तुम इतना उधम क्यों मचाए हो
आओ न
इधर बैठो
हमारे पालतू बन जाओ
हम जिसे कहें उसे सताओ
जिसे कहें उसे बक्स दो
टीका चंदन लगाओ
हम तुम्हारी मूर्ति बनवा देंगे
हम तुम्हारे लिए मंदिर भी बनवा देंगे
चालीस दिन होते होते
लिख देंगे तुम्हारे लिए चालीसा
बना देंगे मंत्र
स्तोत्र कई तरह के
हे सर्व शक्तिमान!
तुमने कहा घर में रहोहम घर में रहें
तुमने कहा थाली पीटो
हमने थाली पीटी
तुमने कहा लोटा बजाओ
हमने लोटा बजाओ
तुमने कहा दांत चिआरो
हमने दांत चिआरा
तुमने कहा उठक-बैठक करो
हमने उठक-बैठक किया
तुमने कहा झुके रहो
हमने रेंगना शुरू कर दिया
तुमने कहा आवाज निकालो
हम रेंकने लगे
तुमने जो जो कहा
हमने वह सब किया
फिर भी तुमने हमारी घंटी बजा दी
हे सर्व शक्तिमान! कोरोना!
इतनी शक्ति कहां से मिली।
हुक्मदाता का हुक्म है
जो फेसबुक पर नहीं हैंवे हैं ही नहीं
जिनका नहीं है ट्वीटर पर एकाउंट
जिनका नहीं है इन्स्ट्राग्राम पर खाता
जो ब्लॉग नहीं लिखते है
यूट्यूब चैनल भी नहीं है जिनके पास
जो ईमेल इत्यादि का इस्तेमाल नहीं करते
उनका होना प्रामाणिक नहीं है
वे क़िस्से में हो सकते हैं
कहानी में हो सकते हैं
हुआ करें
महज़ कविताओं में दर्ज होने से
उनका होना सिद्ध नहीं हो जायेगा
उन्हें लेनी ही होगी
किसी न किसी सोशल मीडिया की नागरिकता
तभी वे गिनती में आयेंगे
अन्यथा बट्टे खाते में डाल दिए जायेंगे
यही हुक्म हुआ है
हुक्मदाता का।
स्पीड ब्रेकर करार दे दिए जाएँगे
रेल की पटरियां पकड़ करमुंबई से मध्यप्रदेश लौटते हुए
जिनका शरीर चिथड़े चिथड़े हुआ है
वे राजनीति के हिसाब से क्या मानें जायेंगे
देशभक्त अथवा देशद्रोही?
या डाल दिए जायेंगे बट्टे खाते में।
कोरोना से लड़ते हुए मरे
कि भूख से
या दर्ज कर दिए जायेंगे
आत्महत्याओं वाले रजिस्टर में
इनकी मृत्यु
स्मार्ट शहरों की निष्ठुरता के खाते में दर्ज होंगी
या फिर
गांवों के लिए गलदश्रु भावुकता के
इनकी मृत्यु को
न्यू इंडिया के निर्माण में
बलिदान माना जायेगा
या फिर वे भी
विकास की तेज रफ्तार गाड़ी के लिए
स्पीड ब्रेकर करार दे दिए जाएँगे
यह दृश्य याद रखा जाएगा
तारीख सात मई साल दो हजार बीसइक्कीसवीं सदी जवान हो रही थी
भारत न्यू इंडिया हो रहा था.......
पांव पटरियों पर भाग रहे थे
रेलें पांवों पर
भाग रहीं थीं....
आसमान विस्मित था
और धरती लज्जित
चांद के धब्बे अब सूरज में चमक रहे थे
जहां अभी भी जीवन रहता है
लाखों पैर निकल पड़े हैंदूरियों का बूता थाहते—
घर की ओर
पैरों की ऊर्जा का स्रोत घर है
जहां अभी भी जीवन रहता है
कवियों की ज़िम्मेदारी
जब डाक्टरों ने फोन उठाना बंद कर दिया होप्रेमिकाओं ने साध ली हो अनत चुप्पी
दोस्त दुबक गए हों दड़बों में
बेहद अपने भी पराए लगाने लगे हों
ऐसे में कवियों की ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना तुच्छ क्यों नहीं बनायाकि अपने समय के
किसी भी राजनीतिक दल
या विचार की
चूहेदानी में अमा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना निरीह क्यों नहीं बनाया
कि तुम्हारे लिए गायी जाने वाली प्रार्थनाएं
अपने समय के
छलात्कारी महाप्रभुओं के लिए
खुलकर गा सकूं
हे मेरे ईश्वर!
मुझे इतना मूढ़ ही क्यों नहीं बनाया
कि समय के रथ पर सवार
किसी भी लम्पट हत्यारे को
तुम्हारी जगह बिठाकर
दिन-रात
आरती उतार सकूं
हे मेरे ईश्वर !
मुझे ऐसी भाषा क्यों नहीं दे दी
जिसके शब्दकोश में
सिर्फ पार्टी, झंडा, डंडा, नारा
या गालियां होतीं
मैं चाहकर भी
सत्य, न्याय, मानवता, प्रेम, करुणा
जैसे शब्द नहीं बोल पाता
और अपराधी नहीं कहा जाता
हे मेरे ईश्वर!
तुमने मुझे नाहक बना दिया
बुद्ध, गोरख और कबीर
का वारिस
बेहतर होता
मुझे कम्प्यूटर बना देते
नहीं डालते कोई मेमोरी कार्ड
कोई किसी गुप्त रिमोट से
रोज-रोज प्रोग्रामिंग कर देता
और
मैं खुशी से उछलता कूदता
आसमान पर थूकता
मस्त रहता
हे मेरे ईश्वर !
तुमने मुझे ऐसा क्यों बना दिया
कि मेरे लिए समय की हर चादर
छोटी पड़ जाती है....!
सदानंद शाही ,एच ½ वी डी ए फ्लैट्स ,नरिया ,बी एच यू ,वाराणसी -221005
9616393771 /9450091420
००००००००००००००००
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