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जीवन तो एक ही है, बस यही: रीता दास राम की कविताएं | Reeta Das Ram - Kavitayen

हद है कि अनाचार होता रहा है 
हद है कि अनाचार हो रहा है 
हद है कि अनाचार देख रहे हैं 
हद है कि ख़ामोश हैं 
हद है कि सोचना मुल्तवी है 
सभी आस लगाये देख रहे हैं क़ानून की ओर 
सभी को विश्वास है क़ानून पर 
प्रतीक्षा है के हों न्याय 
वह भी आशा के अनुरूप 

कविताएं जब स्वयं को सुनाते हुए, बात भी करती हों तब वे बहुत निखरी हुई दीखती हैं। रीता राम की कविताओं में यह निखरापन होता है। आनंद उठाइए। ~ सं० 

Reeta Das Ram - Kavitayen



कविताएं

रीता दास राम

कवि / लेखिका /  एम.ए., एम फिल, पी.एच.डी. (हिन्दी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई 
प्रकाशित पुस्तक: “हिंदी उपन्यासों में मुंबई” 2023 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली), / उपन्यास : “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” 2023, (वैभव प्रकाशन, रायपुर) / कहानी संग्रह: “समय जो रुकता नहीं” 2021 (वैभव प्रकाशन, रायपुर)  / कविता संग्रह: 1 “गीली मिट्टी के रूपाकार” 2016 (हिन्द युग्म प्रकाशन)  2. “तृष्णा” 2012 (अनंग प्रकाशन). विभिन्न पत्रिकाओं में कविताएं प्रकाशित: ‘हंस’, कृति बहुमत, नया ज्ञानोदय, साहित्य सरस्वती, ‘दस्तावेज़’, ‘आजकल’, ‘वागर्थ’, ‘पाखी’, ‘शुक्रवार’, ‘निकट’, ‘लमही’ वेब-पत्रिका/ई-मैगज़ीन/ब्लॉग/पोर्टल- ‘पहचान’ 2021, ‘मृदंग’ अगस्त 2020 ई पत्रिका, ‘मिडियावाला’ पोर्टल ‘बिजूका’ ब्लॉग व वाट्सप, ‘शब्दांकन’ ई मैगजीन, ‘रचनाकार’ व ‘साहित्य रागिनी’ वेब पत्रिका, ‘नव प्रभात टाइम्स.कॉम’ एवं ‘स्टोरी मिरर’ पोर्टल, समूह आदि में कविताएँ प्रकाशित। / रेडिओ : वेब रेडिओ ‘रेडिओ सिटी (Radio City)’ के कार्यक्रम ‘ओपेन माइक’ में कई बार काव्यपाठ एवं अमृतलाल नागरजी की व्यंग्य रचना का पाठ। प्रपत्र प्रस्तुति : एस.आर.एम. यूनिवर्सिटी चेन्नई, बनारस यूनिवर्सिटी, मुंबई यूनिवर्सिटी एवं कॉलेज में इंटेरनेशनल एवं नेशनल सेमिनार में प्रपत्र प्रस्तुति एवं पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित। / सम्मान:- 1. ‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान’ 2013, तृतीय स्थान ‘तृष्णा’ को उज्जैन, 2. ‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान’ – 2016 नागदा में ‘अभिव्यक्ति विचार मंच’ 2015-16, 3. ‘हेमंत स्मृति सम्मान’ 2017 ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को ‘हेमंत फाउंडेशन’ की ओर से, 4. ‘शब्द मधुकर सम्मान-2018’ मधुकर शोध संस्थान दतिया, मध्यप्रदेश, द्वारा ‘गीली मिट्टी के रूपाकार’ को राष्ट्र स्तरीय सम्मान, 5. साहित्य के लिए ‘आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान’ 2019, मुंगेर, बिहार, 6. ‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ द्वारा ‘महिला रचनाकार सम्मान’ 2021
पता: 34/603, एच॰ पी॰ नगर पूर्व, वासीनाका, चेंबूर, मुंबई – 400074. / मो: 09619209272. ई मेल: reeta.r.ram@gmail.com 

 
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        |  जीवन तो एक ही है, बस यही ...

हद है कि अनाचार होता रहा है 
हद है कि अनाचार हो रहा है 
हद है कि अनाचार देख रहे हैं 
हद है कि ख़ामोश हैं 
हद है कि सोचना मुल्तवी है 
सभी आस लगाये देख रहे हैं क़ानून की ओर 
सभी को विश्वास है क़ानून पर 
प्रतीक्षा है के हों न्याय 
वह भी आशा के अनुरूप 

क़ानून कर रहा है न्याय 
सभी देख रहे हैं 
हो रहा है सब कुछ 
अपनी हद में रह कर 
नहीं जानता कोई  
क़ानून की हद 
उसका कारण 
क्या है क़ानून ?
कितना है ?
कैसा है ?
सबके लिए है ?
सही है ?
इसका उत्तर मिलेगा ?
कहाँ मिलेगा ?
कैसे मिलेगा ?
कब मिलेगा ?

जीवन तो एक ही है, बस यही ...
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        |  आवाज़ एक शोर 

एक शोर है जो 
अपनी वाजिब पहचान के साथ 
आवाज़ बनना चाहती है 

व्याख्यानों और वक्ताओं के बीच की खाईयां 
रीढ़ के चटख जाने का हादसा हो भी तो 
आवाज़ ने अपनी परिभाषा बदल दी है 

बदले गए है आईने और उसकी तस्वीर भी 
कि संशय और भ्रम की अपनी जगह गुम हो 

अर्थ और शब्दों के तय किए फासले से 
कब क्या कितना कुछ कहा जा सकता है 
गौण है जो गुणात्मक हो सकता था 

रूप गुण सूत्र परिणाम मात्र है 
जिसके सम्भाव्य और होने के मतलब का अंतर 
अज्ञात है 

वर्तमान एक अंदरुनी घटना सादृश्य है 
जहाँ आवाज़ में आवाज़ का होना एक प्रश्न है 
और उत्तर प्रतीक्षित है।
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        |  सपने 

बंजर भूमि में भी 
उगते है सपने

बोए जाते 
बीच समुद्र 

तूफ़ानों में 
नहीं उखड़ती सांसे उनकी 

अटकलें उन्हें 
ख़ारिज नहीं करती 

इच्छाओं से नमी ले 
बढ़ते है मदमस्त 

दिन और रात की आस 
खंडहरों की दीवार पर उगाती है शैवाल 

पूरे मनोयोग से 
पाते बीजांकुरण 

विचारों का तारतम्य 
सपनों के लिए भविष्य की गढ़ता है धरोहर 

पालता है 
पोसता है छोर तक नहीं पर अनंत 

सपने नहीं होते बेईमान
छलते नहीं, धोखा नहीं देते 

प्रताड़ित नहीं होता आदमी 
सपनों की छांव तले 

सपनों की फेहरिस्त 
मन की मौसमी चालों की साजिश है 

सपने मरतों को
धड़कनों का एहसास कराते हैं 

तृप्ति की आस के इंतजार में 
ख्वाहिश की पैरवी का जश्न है स्वप्न 

सपने देखना है साध रचना 
खोलना है बंद मुट्ठी रोशनी की ओर। 
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        |  पृथ्वी 

रंगों में वार्तालाप करती 
सुबह, दोपहर, शाम इन आभायुक्त स्वरों में 
संवाद रचती है पृथ्वी 

वर्षा, शीत, ग्रीष्म, पतझड़ मौसम सी सुंदर नैसर्गिक भाषा में 
पहरों के बदलते रूपों और महकते विचारों से 
संजोती है वह मंतव्य 

रोशनी है पलकें उसकी 
लरजते साज सी सुंदर संध्या को छिपाती, 
अंधकार की साजिश ही सही, सुबह का अप्रतिम इंतजार रचती है 

आकाश पाताल के रहस्यों की साक्ष्य 
रूप की भिन्नता संवेदनशील भीतरी छंदों का अक्स 
स्थिरता में नहीं होती परिभाषित जाने किस साध में ध्यानस्थ है पृथ्वी 

धड़कती है दुनिया उसकी 
चाँद, सूरज, गैलेक्सी के मध्य
भीतर पनपते जीव जगत उसकी विशेष सारगर्भित पहचान के साथ 

अद्भुत अलौकिक अथाह शांत वह 
गर्भस्थ घटनाओं से काँपती है जब भी 
आश्रितों पर बरपा क़हर देखती मूक रह जाती पृथ्वी 

हवाओं में लिपटी 
धूप से सराबोर 
मिट्टी पानी और आग में सनी 
प्राकृतिक आपदाओं के साथ धधकती है पृथ्वी। 
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        |  समकाल की यथार्थ भूमि का मानदेय

पूछने के पहले और पूछ लेने के बाद 
अगले पर होता असर देखकर अफसोस हुआ कि पूछना बेकार था 

तात्पर्य कम बोलने या सटीक बोलने से नहीं 
बल्कि बोलने का मतलब कैसे और कितना लिया जाएगा यह महत्वपूर्ण था 

सारी शब्दों की राजनीति का खेल खेल रहे थे 
जहां लेन-देन कुछ और और समझाया कुछ और ही जा रहा था 

इक्के को बचाने की जुगत में सारे पत्ते उलट दिए गए थे 
अपना, पराया, झूठ, सच, वैमनस्य, भेद, व्यवस्था, अर्थ, परमार्थ सब दांव पर लगे थे 

इंसान को इंसान समझा जाए इस ज़रूरत की कदर कम थी 
जिसका बोलबाला था सर्वसामान्य इससे अनभिज्ञ था 

राज का मतलब राज सत्ता का मतलब सत्ता 
और ग़रीब के हक़ का मतलब समझना क्या जुर्म है ?... समझना अभिशाप था 

ये समाज था 
इसमें जीने की कीमत चुकानी ज़रूरी थी 
निस्वार्थ जीना मुश्किल था 
यही समकाल की यथार्थ भूमि का मानदेय था 

बाकी जो बचा था आने वाला कल था। 

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