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श्यामा प्रसाद मुखर्जी का राष्ट्रवाद — सुरेंद्र राजपूत | #WhatNationalism


Syama Prasad Mukherjee,Founder Of Bhartiya Jana Sangh;He Was Earlier Union Minister In Nehru’s Cabinet
Syama Prasad Mukherjee,Founder Of Bhartiya Jana Sangh;He Was Earlier Union Minister In Nehru’s Cabinet.
Dr Deepak Natarajan : Photos Taken By My Dad , Mr. K.Natarajan , MA.



सच्चे राष्ट्रवादियों को पहचाना जाना ज़रूरी है 

—  सुरेंद्र राजपूत

संघ, जनसंघ और भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक है श्यामा प्रसाद मुखर्जी आइये आज उनके बारे में जानते है।  
जो लोग चिल्ला चिल्ला कर राष्ट्रवाद के सर्टिफिकेट मांग रहें हैं उनके ही सारे के सारे नायक हमारे देश की आज़ादी के यज्ञ से कोसों दूर रहे हैं। 

जब जब बात राष्ट्रवाद की चलेगी तो क्षद्म राष्ट्रवाद चीखेगा, मगर यह भी सच है की उसकी चीख झूठ से सनी हुई होगी। हम आज एक ऐसे दौर में आ गए है जब सच पर वह ज्ञान दे रहा है जो सबसे बड़ा झूठा है। नैतिकता पर वह बोल रहा है जो ऊपर से नीचे तक अनैतिक है। धर्म पर वह तकरीर कर रहा जो पूरा का पूरा अधर्म में ही है। अब क्योंकि सच न कोई सुनना चाहता है और न समझना तो झूठ का परचम तो बुलंद ही रहेगा। आज जिस राष्ट्रवाद की दुहाई दी जा रही है और जो लोग चिल्ला चिल्ला कर राष्ट्रवाद के सर्टिफिकेट मांग रहें हैं उनके ही सारे के सारे नायक हमारे देश की आज़ादी के यज्ञ से कोसों दूर रहे हैं। जब राष्ट्र को उसकी सेवा और त्याग की ज़रूरत थी तब वह सिर्फ अपने उस मिशन में लगे रहे जो देश को कमज़ोर ही करता रहा।


आखिर क्यों श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल की विधान परिषद से इस्तीफा नहीं दिया। 

इस वक़्त सबको अपनी लाठी के जोर पर राष्ट्रवादी होने का सर्टिफिकेट देने वाली ताकतों के युगपुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन इस मिशन और क्षद्म राष्ट्रवाद को समझने की एक बानगी भर है। इनकी सोच दर्शाती है की यह कितने राष्ट्रप्रेमी रहें हैं क्योंकि इतिहास में दर्ज है जब जब राष्ट्र को उनकी ज़रूरत थी तो वह अपने व्यक्तिगत मिशन में ज्यादा रहे और राष्ट्र कहीं बहुत पीछे छूटता रहा।

जिसने भी ज़रा सा इतिहास पढ़ा है उसे पता है यह शक्तियां छद्म राष्ट्रवादी रही हैं और इन्होंने सत्ता के लिए बहुत गिरकर हमारे दुश्मनों से भी समझौता किया है। 

कांग्रेस जब अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रही थी और उसके नेता बुरी तरह परेशान किये जा रहे थे तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके साथी गुपचुप समझौतों से कांग्रेस की आज़ादी की लड़ाई को कमज़ोर कर रहे थे अगर ऐसा नही था तो आखिर क्यों श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल की विधान परिषद से इस्तीफा नहीं दिया। अंग्रेजों के रवय्ये और जनता पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध जब कांग्रेस ने बंगाल विधान परिषद से अपने सभी सदस्यों का इस्तीफा करवाया और अँगरेज़ शासन के विरुद्ध लड़ने को कहा तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कुर्सी का सुख रोग ऐसा लगा की उन्होंने कांग्रेस से ही इस्तीफा दे दिया और अपनी मौन ही नहीं बल्कि खुली स्वीकृति भी उस शासन को दे दी। इतने बड़े विश्वासघात से आन्दोलन के कुछ नेता ज़रूर टूटे मगर जनता के मिले भरपूर समर्थन से कांग्रेस अँगरेज़ शासन के विरुद्ध लडती रही। अजब हाल है की इस कद्र स्वाधीनता संग्राम को नुकसान पहुँचाने वालों की राजनैतिक पीढ़ी आज राष्ट्रवाद की दुहाई दे रही है। जबकि जिसने भी ज़रा सा इतिहास पढ़ा है उसे पता है यह शक्तियां छद्म राष्ट्रवादी रही हैं और इन्होंने सत्ता के लिए बहुत गिरकर हमारे दुश्मनों से भी समझौता किया है।

awaharlal Nehru with Syama Prasad Mookerjee and Jairamdas Doulatram in the rear are Govind Ballabh Pant and Jagjivan Ram
Jawaharlal Nehru with Syama Prasad Mookerjee and Jairamdas Doulatram in the rear are Govind Ballabh Pant and Jagjivan Ram


हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी उसी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चला चुके; सरकार चलाना क्या बल्कि सबसे महत्वपूर्ण वित्तमंत्री और उप मुख्यमंत्री तक रहे। मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिक भावना के साथ जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भावना मिल गई तो उसका रंग सबने देखा। जब कांग्रेस एक मोर्चे पर अंग्रेजों से भिड़ी थी तो दुसरे मोर्चे पर श्री मुखर्जी और उनके सहयोगी अंग्रेजों के खिलाफ तो गए ही नहीं बल्कि मुस्लिम लीग के साथ मंत्रालय बाँटने में लग गए। देश का दुर्भाग्य था की दो विभाजनकारी ताकतें एक साथ बैठकर अंग्रेजों की मंशा की मोहरे बनकर राष्ट्र के लिए जूझने वालों की ताकतों को कमजोर कर रही थीं। आज़ादी के लम्बे समय बाद जब श्री मुखर्जी की राजनीतिक सोच की अगली पीढ़ी के ध्वजवाहक श्री लाल कृष्ण अडवाणी पाकिस्तान जाकर मुस्लिम लीग के संस्थापक जिन्ना की मजार पर सर झुकाकर उसको धर्मनिरपेक्ष कहते हैं और तारीफ करने में लहालोट हो जातें हैं तो इनकी इस सोच पर ज़रा भी बुरा नहीं लगता। जो मुस्लिम लीग के साथ सरकार में रहा हो; जिसने आज़ादी के आन्दोलनों से खुद को अलग ही न किया हो वरन उसे कमजोर किया हो तो उसके वारिस विभाजनकारी जिन्ना की तारीफ ही तो करेंगे।

यह समय इतिहास के उस समय को देखने का है जब हमारे देश के सच्चे सेनानी लड़ रहे थे तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसी शक्तियां किस क्षद्म राष्ट्रवाद की नीव डाल रहे थे। श्री मुखर्जी का इन आंदोलनों के लिए अपने पद से त्याग न करना आखिर कैसा राष्ट्रवाद था या देश को शुरू से बाँटने वाले ख्वाब संजोए मुस्लिम लीग की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनना क्या था। अभी तो राजनीति के दो ही कदम पर चर्चा हुई है इतने में ही देश को गुमराह करने वाले क्षद्म राष्ट्रवादी चेहरे की परत उधड़ने लगी हैं। अभी तो विद्यार्थी जीवन से राजनैतिक छलांग तक के बहुत से सफ़र पर बात होगी तब देखियेगा आखिर यह चेहरे कैसे हैं और इनको अपना नायक मानने वाले कितने राष्ट्रवादी हैं। जो देश के लिए एक विधान परिषद का पद नहीं छोड़ सकता वह देश तोड़ने वाली ताकतों के साथ मिलकर उपमुख्यमंत्री जैसे पद का आनंद लेता रहता है। यही तो क्षद्म राष्ट्रवाद है जो अभी भी उनके राजनैतिक वारिसों के साथ बदस्तूर जारी है। यह हमारी आंखे खोलने का समय है ताकि हम सच्चे राष्ट्रवादियों को पहचान सके और क्षद्म राष्ट्रवादियों से बचकर देश को जोड़ने में लग सके ताकि हमारा भारत उनके ख्वाबों के जैसा भारत बना रहें जिन्होंने वास्तव में कुर्बानियां दी हैं।

सुरेंद्र राजपूत (ssrajput22@gmail.com)यूपी कांग्रेस के मुख्‍य प्रवक्‍ता हैं
सुरेंद्र राजपूत (ssrajput22@gmail.com)यूपी कांग्रेस के मुख्‍य प्रवक्‍ता हैं



(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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जो राष्ट्रवाद लोगों में अलगाव पैदा करे, उसके क्या मायने हैं — अभिसार @abhisar_sharma


Cartoon courtesy : R Prasad

जो राष्ट्रवाद लोगों में अलगाव पैदा करे, उसके क्या मायने हैं 

— अभिसार 


एक और विडियो, जिसमें कुछ लोगों को गौरक्षा के नाम पर पीटा जा रहा है। उसमें एक विकलांग को भी देखा जा सकता है। ये सिलसिला लगातार जारी हैं। एक दूसरा विडियो, जिसमें एक शख़्स कुछ लोगों को जय श्री राम के नारे लगाने के लिए लगातार ज़लील कर रहा है, बेरहमी से पीट रहा है। खुद को कल का नेता बता रहा है। उना मैं नहीं भूला हूँ। मंदसौर में दो महिलाओं को जिस तरह दुत्कारा और पीटा जा रहा है, वो सब सामने है। सब या तो गौरक्षा के नाम पर या फिर खुद को बेहतरीन राष्ट्रवादी साबित करने का वहशीपन। और अब मोदी सरकार अपने नागरिकों में देशभक्ति की लौ को बनाये रखने के लिए, देशव्यापी अभियान चलने जा रही है। नाम दिया गया है, ‘70 साल आज़ादी, याद करो कुर्बानी’। कहते हैं इसका मकसद देश की जनता में देशभक्ति के जज्बे को फिर से जगाना है।

जब राष्ट्रवाद एक व्यक्ति के करिश्मे से जुड़ जाए और जब उसके अस्तित्व को चुनौती को देशद्रोह से जोड़ कर देखा जाए, तब राष्ट्रवाद का एक निहायत ही बेढंगा और विकृत रूप सामने आता है

फिर से जगाना ? सचमुच? अरे भाई, अब तो इस तरह की ‘देशभक्ति’ नथुनों से बह रही है। अति हो गयी है। मैं अगर मान भी लूँ कि इस सरकार की मंशा साफ़ है, मगर ज़मीन पर क्या ? ज़मीन पर इसका सन्देश कुछ तबकों में कुछ और ही जा रहा है या दिया जा रहा है। 15 से 22 अगस्त के बीच हर बीजेपी सांसद एक एक विधानसभा सीट में रैली निकालेगा और सरकार की ओर से देशभक्ति का सन्देश दिया जायेगा। मगर आपकी भली मंशा के बावजूद सन्देश जा क्या रहा है ? जो राष्ट्रवाद लोगों में अलगाव पैदा करे, उसके क्या मायने हैं ? क्योंकि जब राष्ट्रवाद एक व्यक्ति के करिश्मे से जुड़ जाए और जब उसके अस्तित्व को चुनौती को देशद्रोह से जोड़ कर देखा जाए, तब राष्ट्रवाद का एक निहायत ही बेढंगा और विकृत रूप सामने आता है। इस राष्ट्रवाद के मायने तब तय कर दिए गए थे, जब कहा गया कि मोदी विरोध पाकिस्तान-परस्ती है। जब अपनी पत्नी की चिंता ज़ाहिर करने के लिए न सिर्फ आमिर खान, बल्कि स्नैपडील को भी सबक सिखाया जाता है, एक “टीम” द्वारा। इस टीम का खुलासा स्वयं देश के रक्षा मंत्री ने किया और अगर बीजेपी की एक पूर्व समर्थक साध्वी खोसला की मानें तो ये टीम कोई और नहीं बल्कि बीजेपी सोशल मीडिया विंग द्वारा संचालित की जाती है। (पढ़ें अभिसार का ब्लॉग रक्षा मंत्री परिकर का आमिर खान पर कमांडो अटैक)



दिक्कत ये है देश में इस वक़्त दो किस्म की चीज़ें चल रही हैं, एक राष्ट्रवाद और दूसरा COW राष्ट्रवाद और ये दोनों ही आपस में मिल गए हैं। अखलाक को भीड़ गौ हत्या के नाम पर मार देती है, मगर खुद सत्ताधारी पार्टी के कुछ नेताओं द्वारा चिंता गाय की कथित हत्या पर की जाती हैं। प्रधानमंत्री इसपर चुप्पी अवश्य तोड़ते हैं, मगर साथ ही ये भी कह देते हैं कि इसमें केंद्र सरकार का क्या किरदार है। सौ फीसदी सच! इसमें बीजेपी का कोई रोल नहीं। मगर इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा आपत्तिजनक बयान देने का काम अगर किसी ने किया तो बीजेपी नेताओं ने। विपक्षी दल होने के नाते, आपको अखिलेश यादव सरकार की ये कहकर बखिया उधेड़ देनी चाहिए थी कि आप एक शख़्स की सुरक्षा तय नहीं कर पाए और वो भी आदर्श शहर नोएडा से कुछ दूर ? मगर पार्टी के कुछ नेताओं ने बहाने ढूंढें, इस हत्या में किन्तु परन्तु लगाये। और अब भी हर घटना के बाद यही हो रहा है। किन्तु परन्तु! ये सन्देश दिया जा रहा है कि गौ रक्षा सर्वोपरि है, इंसानी जान की कोई कीमत नहीं। वरना इन दलों की हिम्मत कैसा बढ़ रही है ? समाज कल्याण मंत्री थावर चंद गहलोत ने तो गौ रक्षा दलों को सामाजिक कल्याण संस्था तक बता डाला। और ये भी कह दिया कि इन सामाजिक कल्याण संस्थाओं को अफवाह की पुष्टि के बाद ही कोई कार्यवाही करनी चाहिए। कार्यवाही ? उना वाली? मंदसौर वाली? ये कहिये कि चाहे उत्तेजना कोई भी हो, आपको किसी भी तरह की कोई कार्यवाही करने का हक नहीं है ! कानून हाथ मे ना लें! नतीजा आप देख रहे हैं। जिन विडियो का ज़िक्र मैंने इस लेख के शुरू में किया वो इसी सोच को आगे बढ़ा रहे है।

यही वजह है कि मेरे मन में मोदी सरकार द्वारा देशभक्ति की लौ “फिर से” जलाने के कार्यक्रम को लेकर आशंकाएं हैं। मैं नहीं जानता कि आप इस कार्यक्रम के ज़रिये सार्थक सन्देश दे पाएंगे, खासकर देश जो में चल रहा है, उसे देखते हुए।

मुझे याद है JNU प्रकरण के दौरान जब INTOLERANCE या असहिष्णुता के बहस चल रही थी, तब कई भक्त और भक्त पत्रकारों ने कहा था कि ये बहस सिर्फ दिल्ली के कुछ पेड पत्रकारों अथवा PRESSTITUTES तक सीमित हैं। अफज़ल प्रेमी गैंग! आपकी इसी बात को ये तमाम विडियो सही साबित कर रहे हैं। है न ? देश के छोटे छोटे कस्बों से सामने आ रहे ये विडियो क्या कहते हैं ? अरे, कहीं ये राजनीतिक साज़िश तो नहीं ? हो भी सकते हैं! आखिरकार बुलंदशहर बलात्कार के बारे में आज़म खान ने भी तो यही कहा? अब आज़म खान की सोच के साथ खड़े दिखाई देना किसी भी भक्त के लिए कितनी बड़ी तौहीन है। है न ?

किसी ज़माने में सारांश जैसे सार्थक किरदार निभाने वाले अनुपम खेर क्यों नहीं मोर्चा निकालते अमरीकी दूतावास के खिलाफ ? आखिर अमरीका ने इन हमलों पर चिंता ज़ाहिर की है ? क्यों आये दिन NGO को टारगेट करने वाली, फोर्ड फाउंडेशन पर कड़ा रुख अपनाने वाली राष्ट्रवादी सरकार अचानक प्रधानमंत्री की अमरीका यात्रा से ठीक पहले, फोर्ड फाउंडेशन पर तमाम बंदिशें हटा देती है।

देशभक्ति की अलख ज़रूर जलाइए। मगर देशभक्ति, COW राष्ट्रवाद कतई नहीं हो सकती । देशभक्ति का अर्थ हिन्दू राष्ट्र तो कतई नहीं है। क्योंकि वो शक्स जो हमारी मृत गौ माता को ‘ठिकाने‘ लगाता है, वो आपकी गंदगी भी साफ़ करे और आपकी मार भी खाए, ये संभव नहीं। ये गौ माता का प्रताप है कि मृत्यु के बाद उसकी चमड़ी भी कुछ लोगों के काम आ रही है, मगर इसके लिए आप किसी की चमड़ी नहीं उधेड़ेंगे।

ये तस्वीर निहायत ही भयानक है, सिर्फ इसलिए नहीं क्योंकि इससे देश की अंतर्राष्ट्रीय तौर छवि धूमिल हो रही है, जिसकी चिंता मोदीजी को है, मगर सामाजिक समरसता एक तरफा ट्रैफिक नहीं हो सकता। अगर आपकी ऊंची बिल्डिंग के सामने बसने वाली झुग्गी में रहना वाला शख़्स, आपकी नाली साफ़ करने वाला व्यक्ति, आपकी गंदगी ढोने वाला इंसान नाराज़ है, तो उसकी तपिश आपको कभी न कभी ज़रूर महसूस ज़रूर होगी।

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महबूबा मुफ़्ती के बयान पे खामोशी — अभिसार @abhisar_sharma #Shabdankan


बुरहान वानी क्या वाकई मौके का हक़दार था? क्या वाकई उसे मौत के घाट उतारने से पहले बात करनी चाहिए थी, जैसे जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती दावा कर रही हैं?
मोदीजी की विरासत — अभिसार

अवसरवाद तुम्हें बर्दाश्त है, क्योंकि तुम्हारा खुद का वजूद उसपे निर्भर है

— अभिसार 



जो लोग सत्ता की सुविधावादी राजनीति को राष्ट्रवाद का नाम देते हैं, वो असल राष्ट्रवाद को बदनाम कर रहे हैं

तो ये तुम्हारा राष्ट्रवाद है? बेबस ! निरीह ! सत्ता पे आसीन राजनीतिक पार्टी पे निर्भर। तुम्हारा राष्ट्रवाद भी हर उस प्रोडक्ट के विज्ञापन की तरह है जहाँ बड़े बड़े दावे किये जाते हैं, फिर हलके से, बिलकुल महीन अक्षरों मे लिख दिया जाता है “शर्तें लागू”। क्या हुआ तुम्हारे खून के उबाल को? बुरहान वानी क्या वाकई मौके का हक़दार था? क्या वाकई उसे मौत के घाट उतारने से पहले बात करनी चाहिए थी, जैसे जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ़्ती दावा कर रही हैं? क्या वो कश्मीर और बाकी देश में इस्लामिक राज नहीं चाहता था, जिसका दावा तुम कर रहे थे? फिर क्यों महबूबा के बयान पे तुम्हारी बोलती बंद है? तुम्हारा राष्ट्रवाद तब अठखेलियाँ करता है जब प्रशांत भूषण कश्मीर पे विवादित बयान देते हैं। उनकी पिटाई करने पहुँच जाते हो और उस कृत्य को तमगे की तरह पहनते हो! अगर केजरीवाल मुस्लिम टोपी पहन ले या दिग्विजय सिंह ओसामा को ओसमाजी कह दे तो खून खौलता है। मगर सत्ता में किसी भी कीमत पर बने रहने की “कायरता” को लेकर तुम दूसरी तरफ मुंह मोड़ लेते हो। अवसरवाद तुम्हें बर्दाश्त है, क्योंकि तुम्हारा खुद का वजूद उसपे निर्भर है।

The Hindu PDP president Mehbooba Mufti. File photo (courtesy The Hindu)


केजरीवाल मुस्लिम टोपी पहन ले तो तुम्हारा खून खौलता है

मुझे इन देश भक्त पत्रकारों की जुबां से इस अवसरवाद को लेकर एक शब्द नहीं सुनाई पड़ रहा है। कल्पना कीजिये अगर राहुल गाँधी, केजरीवाल या किसी “देशद्रोही” पत्रकार ने बुरहान वानी को एक और मौका दिए जाने की बात कही होती। सिर्फ कल्पना कीजिये। फिर देखना था आपको बीजेपी के प्रवक्ताओं के चेहरे का नूर, मेरी बिरादरी के सुविधावादी पत्रकारों की दहाड़। मजाल है कोई बच पाता इनसे? अभी दो दिन हुए हैं जब सुविधावादी राष्ट्रवादी पत्रकार ने देशद्रोही पत्रकारों और विशेषज्ञों को सार्वजनिक तौर पे निशाना बनाये जाने की बात की थी। वकालत की थी के सरकार को ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए। कहा था न? अब महबूबा मुफ़्ती के बयान पे इनकी खामोशी ग़ज़ब है। लोगों को एक खास वर्ग के प्रति भड़काना तुम्हारे लिए देशभक्ति होगी, मेरे लिए सिर्फ अराजकता है।



मैं व्यक्तिगत तौर पे मानता हूँ के महबूबा एक मुश्किल राज्य की मुख्यमंत्री हैं। वो ऐसा इसलिए भी कह रही हैं क्योंकि वो चाहती हैं के हालात काबू में आयें। शायद उनका ऐसा कहना व्यावहारिक भी है। इसे मैं देश भक्ति या फिर सियासत के पैमाने पे नहीं तोलना चाहूँगा। ऊपर से इस बार पेलेट गन्स से घायल बच्चों की तस्वीरों भी इस खबर का मार्मिक पहलू हैं। इन राष्ट्रवादियों ने पेलेट गन्स के प्रयोग को सही ठहराया है। मगर महबूबा मुफ़्ती के बयान पे खामोशी?

तुम्हारा राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद न होकर अवसरवाद है

जो लोग JNU में देश की बरबादी तक जंग छेड़ने के नारे लगा गए, उन्हें अब तक गिरफ्तार नहीं किया गया। तुमने कन्हैया को सूली पे चढ़ा दिया, उसके और उमर खालिद के बहाने एक पूरे संस्थान को बदनाम करने की कोई कसर नहीं छोड़ी, मगर नारे लगाने वालों में से एक भी शख्स क्यों नहीं पकड़ा गया, अपनी सरकार से तुम एक भी सवाल नहीं करते हो। डी रजा की बेटी के खिलाफ लोगों को भड़काने का काम एक सांसद ने किया, बगैर किसी सुबूत के। ये एक ज़िम्मेदार शख्स का आचरण है?

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कायरता मेरी बिरादरी के कुछ पत्रकारों की — अभिसार


अब ज़रा राजनाथ सिंह की प्रस्तावित पाकिस्तान यात्रा की बात करते हैं। गृह मंत्री न सिर्फ वहां सार्क सम्मेलन के लिए जा रहे हैं, बल्कि अपने काउंटरपार्ट पाकिस्तानी गृह मंत्री को हाल में गिरफ्तार पाकिस्तानी आतंकवादी के बारे में डोसियर भी सौंपेंगे। सबसे पहले स्पष्ट कर दूँ के मैं मानता हूँ पाकिस्तान से संवाद मजबूरी है। मैं ये भी मानता हूँ के पाकिस्तान भारत के तमाम डोसियर पेश करने के बावजूद कुछ नहीं करने वाला। आप लाख कोशिश कर लें, जिस देश की संस्थाओं (पाकिस्तानी सेना और ISI) के संविधान में भारत को हज़ार घाव देने के बात कही गयी हो, उसकी सोच में परिवर्तन नहीं आ सकता। पाकिस्तान के साथ क्या किया जाना चाहिए वो एक अलग विषय है, उसपर चर्चा फिर कभी। क्योंकि जो “देशभक्त” पाकिस्तान की बरबादी और बिखराव की ख्वाहिश जताते हैं, वो ये भूल जाते हैं के उसका विकल्प या तो पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान का शरिया राज है या ISIS का परचम। और ये दोनों ही विकल्प भारत के हित में नहीं हैं। लिहाजा बेहतर है के पाकिस्तान में या तो छद्म प्रजातन्त्र हो या सेना का शासन हो।


खैर, राजनाथ सिंह की डोसियर कूटनीति की बात करते हैं। ऐसे ही एक राष्ट्रवादी पत्रकार ने इस मुद्दे पे चर्चा अवश्य की, मगर लहजे पे गौर कीजिये। “क्या राजनाथ की डोसियर कूटनीति काम करेगी?” चलिए सरकार बदलने के बाद आपने कम से कम संवाद और डोसियर डिप्लोमेसी के दूसरे पहलू को समझने और उसे सिरे से न नकारने का “साहस” तो दिखाया। आपने उसकी प्रासंगिकता तो समझी। अब ज़रा कुछ पहले चलते हैं। कल्पना कीजिये के चिदंबरम ऐसे ही माहौल में पाकिस्तान जाते या फिर डोसियर सौंपते। फिर देखिये कैसे राष्ट्रवादी खून उबाल मारता है। देखिये कैसे चैनल का प्राइम टाइम और twitter का टाइमलाइन सरफरोशी की तमन्ना से सन्ना जाता है। मुझे आपत्ति इसी दोहरे मापदंड पे है। क्योंकि तुम्हारा राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद न होकर अवसरवाद है।

मैं अब भी मानता हूँ के राष्ट्रवाद ज़रूरी है। मगर जो लोग सत्ता की सुविधावादी राजनीति को राष्ट्रवाद का नाम देते हैं, वो असल राष्ट्रवाद को बदनाम कर रहे हैं। ये राष्ट्रवाद के खिलाफ उनकी साज़िश है। मगर तुम्हें मैं फिर भी देशद्रोही नहीं कहूँगा। क्योंकि किसी के खिलाफ लोगों को भड़काना, उसे सरेआम पेश करके ज़लील करना “देशभक्ति” का मेरा आइडिया नहीं है। क्योंकि मैं जानता हूँ के तुम एक निरीह, बेबस व्यक्ति हो जो किसी तरह से अपना वजूद बनाये रखना चाहता है। तुम असली मुद्दे और सवाल उठाने से बचना चाहते हो ताकि तुम पर दबाव न हो। तुम उस “दबाव” से बचना चाहते हो।

दरअसल ये लोग दो किस्म की श्रेणियों मे बांटे जा सकते हैं एक वो जो पार्टी पत्रकार हैं, जिन्हें वैसे भी पत्रकार नहीं माना जा सकता और एक वो जो दबाव बर्दाश्त नहीं कर सकते, जिनकी मजबूरियाँ होती हैं। इसलिए इस मजबूरी को जज्बा या पत्रकारिता का नाम मत दो। इस देश में कई लोगों की ऐसी ही दुकानदारियाँ चल रही हैं, आप भी चलाइये ।

Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

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from abhisar sharma's facebook wall

कायरता मेरी बिरादरी के कुछ पत्रकारों की — अभिसार @abhisar_sharma


मैं सोचता हूँ के मोदीजी जब 5, 10 या 15 साल बाद देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तो उनकी विरासत क्या होगी ? देशभक्ति, विकास, "सबका साथ" सबका विकास के साथ साथ, दो और शब्द ज़ेहन में आते हैं । कायरता और डर — अभिसार

मित्र अभिसार को उनकी निडर-पत्रकारिता पर मैं हमेशा शुक्रिया और बधाई देता रहा हूँ और साथ ही उनसे लिखने का आग्रह भी करता रहा हूँ ... आज ख़ुश हूँ कि उन्होंने मेरी बात सुन ली है... बहुत ज़रुरी है आपकी 'यह' आवाज़ अभिसार, दुआ है कि बुलंद रहे .
भरत तिवारी 


मोदीजी की विरासत — अभिसार

मोदीजी की विरासत 

— अभिसार 



उस राष्ट्रवादी पत्रकार ने अंग्रेजी में दहाड़ते हुए कहा, "तो कहिये दोस्तों ऐसे पाकिस्तान प्रेमियों, आईएसआई परस्तों के साथ क्या सुलूक किया जाए ? क्या वक़्त नहीं आ गया है के उन्हें एक एक करके एक्सपोस किया जाए ?" मैंने सोचा के वाकई, क्या किया जाए ? क्या इन तमाम छद्म उदारवादियों को चौराहे पे लटका दिया जाए ? क्या उन्हें और उनके परिवारों को चिन्हित करके शर्मसार किया जाए ? क्या? कुछ दिनों पहले एक अन्य चैनल ने एक प्रोपेगंडा चलाया था जिसे "अफ़ज़ल प्रेमी गैंग" का नाम दिया गया। इन्हें देश विरोधी बताया गया। इन तथाकथित अफ़ज़ल प्रेमियो में से एक वैज्ञानिक गौहर रज़ा की मानें तो इसके ठीक बाद उन्हें धमकियाँ भी मिलने लगी। तब मुझे याद आया के सत्ता पे तो एक राष्ट्रवादी सरकार आसीन है. क्यों न इन आईएसआई फंडेड उदारवादियों और पत्रकार को देश द्रोह के आरोप में जेल भेजा जाए। बिलकुल वैसे, जैसे JNU में "भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी जंग रहेगी" नारा लगाने वाले, मुँह छिपाये, कश्मीरी लहजे में बोलने वाले लोग जेल में हैं। नहीं हैं न ? अरे ? मुझे तो लगा के के सत्ता में आसीन ताक़तवर सरकार के मज़बूत बाज़ुओं से कोई बच नहीं सकता। फिर मेरे देश को गाली देने वाले वह लोग आज़ाद क्यों घूम रहे हैं ? खैर छोड़िये, हमारे राष्ट्रवादी पत्रकार ये मुद्दे नहीं उठाएंगे।

उन्हें कुछ और मुद्दों से भी परहेज़ है। मसलन, जबसे कश्मीर में नए सिरे से अराजकता का आग़ाज़ हुआ है, तबसे देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने एक बार भी, एक बार भी, कश्मीर पे कोई टिपण्णी नहीं की. सोनिया गांधी के अंदाज़ में, उनके दुःख और अफ़सोस की खबरें हम गृह मंत्री राजनाथ सिंह से तो सुनते रहते हैं, मगर लोगों से संपर्क साधने के धनी मोदीजी ने एक बार भी कश्मीर में मारे गए लोगों या सुरक्षाकर्मियों पे वक्तव्य नहीं दिया। मान लिया कश्मीर में इस वक़्त चुनाव नहीं हैं, मगर गुजरात में दलितों पे शर्मनाक हमला भी आपको झकझोर नहीं पाया ? म्युनिक पे हुए हमले पे आपकी व्यथा को पूरे देश ने महसूस किया, मगर कश्मीर और दलितों पे आये दिन हमले आपको विचलित नहीं कर पाए ? और सबसे बड़ी बात। .. क्या इन राष्ट्रवाद से ओतप्रोत पत्रकारों ने एक बार भी मोदीजी की ख़ामोशी का मुद्दा उठाया ? एक बार भी ? क्या मोदीजी को बोलने से कोई रोक रहा है ? कौन कर रहा है ये साज़िश ? और किसने हमारे गौरवशाली पत्रकारों का ध्यान इस ओर नहीं खींचा ?



आये दिन देश के उदारवादियों और धर्मनिरपेक्ष लोगों के खिलाफ चैनल्स पर मुहीम देखने को मिलती रहती है। एक और ट्रेंड से परिचय हुआ। ‪#‎PROPAKDOVES‬ यानी पाक समर्थित परिंदे। कभी एक आध बार इन न्यूज़ शोज को देखने का मौका मिलता है तो देशभक्ति की ऐसी गज़ब की ऊर्जा का संचार होने लगता है के पूछो मत। लगता है के बस, उठाओ बन्दूक और दौड़ पड़ो LOC की तरफ। आखिर देश के दुश्मन पाकिस्तान की सरपरस्ती कौन कर सकता है और उससे भी बुरी बात, हमारी राष्ट्रवादी सरकार खामोश क्यों है ? आखिर क्यों देशप्रेम के जज़्बे में डूबे जा रहे इन भक्त पत्रकारों की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है ?

फिर मुझे कुछ याद आया। बात दरसल उस वक़्त की है जब मनमोहन सिंह देश के प्रधानमंत्री हुआ करते थे। तब UPA की सरकार ने दो चीज़ें की थी. पहला पाकिस्तान के साथ साझा टेरर मैकेनिज्म बनाया और दूसरा, पहली बार किसी साझा बयान में बलोचिस्तान को स्थान मिला। और ये शर्मनाक काम हुआ था शर्म अल शेख में। बतौर पत्रकार मैंने और मेरी तरह बाक़ी सभी राष्ट्रवादी पत्रकारों ने इसके आलोचना की थी। मेरा मानना था के जो देश भारत में आतंक फैला रहा है, उसके साथ साझा आतंकी सहयोग कैसे? आखिर क्यों भारत ने एक साझा बयान में बलोचिस्तान को जगह दे दी, जो एक करारी शिकस्त है ? खैर नयी सरकार आयी। मोदीजी के नेतृत्व में ये स्पष्ट किया गया के अगर पाकिस्तान पृथकतावादियों के साथ बात करेगा, तो हमसे बात न करे। देश को आखिरकार एक ऐसे प्रधानमंत्री मिल गया जिसके ज़ेहन में पाकिस्तान नीति बिलकुल स्पष्ट थी। मोदीजी ने एक लक्ष्मण रेखा खींच दी थी, और खबरदार जो किसी ने इसे पार किया। मगर फिर अचानक, पठानकोट हुआ। इसमें सरकार की किस तरह से छीछालेदर हुई वह चर्चा का अलग विषय है। मगर फिर जो हुआ वह कल्पना से भी विचित्र है। एक ऐसी संस्था को हमने पठानकोट में आमन्त्रित किया जिसके घोषणा पत्र में भारत को सौ घाव देकर काट देने का ज़िक्र है। वह संस्था जो निर्विवाद रूप से देश में सभी आतंकी समस्याओं की जड़ है। आईएसआई। जी हाँ। ये वही आईएसआई, जो इस देश के कुछ पत्रकारों और #PROPAKDOVES को "फण्ड" कर रही है। कितना खौला था हमारे राष्ट्रवादी पत्रकारों का खून इसकी मिसालें सामने हैं। या नहीं हैं ? और फिर हम कैसे भूल सकते हैं के विदेश मंत्रालय को ताक पर रखकर प्रधानमंत्री पाकिस्तान पहुँच गए। और वो भी नवाज़ शरिफ पारिवारिक समारोह में। मैंने खुद इसे मास्टरस्ट्रोक बताया था। मगर मैं तो मान लिया जाए देशद्रोही हूँ, मगर हमारे राष्ट्रवादी पत्रकार ? इस अपमान के घूँट को कैसे पी गए ?

सच तो ये है मोदी की विदेश नीति में असमंजस झलकता है । मगर इस असमंजस की समीक्षा को न्यूज़ चैनल्स में जगह नहीं मिलती। जनरल बक्शी और अन्य जांबाज़ विशेषज्ञ जिन्हें आप सावरकर की तारीफ करते तो सुन सकते हैं, यहाँ उनकी खामोशी चौंकाने वाली है। प्रधानमंत्री की कश्मीर और दलितों पे खामोशी और पाकिस्तान पे बेतुके तजुर्बे चिंतित वाले हैं, मगर हम इसपर खामोश रहेंगे।

पत्रकारों को गाली देने वाले, ज़रा छत्तीसगढ़ के पत्रकार संतोष यादव की पत्नी से भी मिलकर आएं। जब मैं बस्तर गया था, तब उन्होंने मुझसे कहा था के मेरे पति एक अच्छा काम कर रहे हैं और मैं चाहूंगी के वह पत्रकार बने रहें। वो शब्द मैं कभी नहीं भूलूंगा। मगर वो शक़्स अब भी जेल में बंद है और अब खबर ये है के उसकी जान पे बन आयी है। बेल भाटिया अकेले एक गाँव के छोटे से घर में रहती हैं। बगैर किसी सुरक्षा के। मगर यह राष्ट्रवादी ऐसे लोगों को नक्ससली समर्थक, देशद्रोही बताते हैं। बस्तर सुपरकॉप कल्लूरी के काम करने के तरीकों से खुद प्रशासन असहज है, मगर ऐसे बेकाबू लोगों पे कोई सवाल नहीं उठाता। ये देशभक्त हैं. राष्ट्र की धरोहर हैं। इन्हें मोदीजी का पूरा समर्थन हासिल है और ये आधिकारिक है।

कश्मीर पे अगर कुछ पत्रकार सवाल उठा रहे हैं, तो उसका ताल्लुक उन बच्चों से है, जो सुरक्षा बालों के पेलेट्स का शिकार हो रहे हैं और चूंकि कश्मीर देश का अभिन्न अंग है, लिहाज़ा उसके बच्चे भी मेरे बहन हैं। क्या उनकी बात करना देश द्रोह है ? अच्छा लगा था जब प्रधानमंत्री ने दिवाली श्रीनगर में बिताई थी, मगर सच तो ये है के अब सब कुछ एक "जुमला" सा लगने लगा है। उस कश्मीर की व्यथा पे आपकी खामोशी चौंकाने वाली है। और मैं जानता हूँ के किसी भी तरह की टिपण्णी करने में आपको असुविधा हो सकती है। क्योंकि चुनाव सर पर हैं। उत्तर प्रदेश के चुनाव। जहाँ सामजिक भाईचारे की मिसाल आपकी पार्टी के होनहार संगीत सोम पेश कर ही रहे हैं।

इस लेख को लिखते समय मेरी निगाह ट्विटर पर एक सरकारी हैंडल पर गयी है, जिसका ताल्लुक मेक इन इंडियाइस हैंडल ने दो ऐसे ट्वीट्स को रिट्वीट किया जिसमे पत्रकारों को मौत देने का इशारा किया गया था।

Courtesy: Pratik Sinha


मुझे हैरत नहीं है अगर यही मेक इन इंडिया का स्वरुप है। क्योंकि हाल में एक और राष्ट्रवादी पत्रकार के ट्विटर हैंडल पे मैंने पत्रकारों को मौत देने की वकालत करने वाला ट्वीट देखा। हम उस काल में जी रहे हैं जब एक आतंकवादी की बात पर हम अपने देश की एक पत्रकार के खिलाफ गन्दा प्रोपेगंडा चलाते हैं, फिर मौत की वकालत करना तो आम बात है। भक्तगण ये भूल गए के बोलने वाला शक़्स एक आतंकवादी तो था ही, उसे इंटरव्यू करने वाला अहमद कुरैशी भी घोर भारत विरोधी था। उनका मक़सद साफ़ था, जिसे कामयाब बनाने में कुछ देशभक्तों ने पूरी मदद की. well done मित्रों! हम ये भूल रहे हैं के हम बार बार उत्तेजना का एक माहौल पैदा कर रहे हैं, जिसका खामियाज़ा आज नहीं तो कल हमें भुगतना पड़ेगा।

अपनी ही बात करता हूँ। पिछले एक साल में मुझे दो बार सुरक्षा लेनी पड़ी है. पहला जब मैंने सनातन संस्था पे एक शो किया था जिसमे हिन्दू सेना के एक अति उत्साही ने मुझे मारने की धमकी दी थी और दूसरा बिहार से मेरी एक रिपोर्ट, ज्सिके वजह से 67 साल बाद, पहली बार १० गाँव के लोग वोट दे पाए थे। इस रिपोर्ट में दिक्कत ये थी के ये nda द्वारा समर्थित प्रत्याशी राहुल शर्मा के नाजायज़ वर्चस्व को चुनौती दे रहा था। और नतीजा भी सुख हुआ जब पहली बार, इस रिपोर्ट के चलते राहुल शर्मा को हार का सामना करना पड़ा, क्योंकि उनके पिता जगदीश शर्मा यहाँ के बेताज बादशाह थे। इस रिपोर्ट की वजह से मुझे और मेरे परिवार को जितनी धमकियाँ और गंदे फ़ोन कॉल्स हुए, उससे मेरे दोस्त वाकिफ हैं। मेरी पत्नी ने मुझे मॉर्निंग वाक करने से रोक दिया है, क्योंकि ज़हन में आशंका है। क्या करें।

मैं सोचता हूँ के मोदीजी जब 5, 10 या 15 साल बाद देश के प्रधानमंत्री नहीं रहेंगे तो उनकी विरासत क्या होगी ? देशभक्ति, विकास, "सबका साथ" सबका विकास के साथ साथ, दो और शब्द ज़ेहन में आते हैं । कायरता और डर। कायरता मेरी बिरादरी के कुछ पत्रकारों की, जो सुविधावादी पत्रकारिता कर रहे हैं और डर। डर तो बनाया जा रहा है के तुम्हे आलोचना करने का कोई अधिकार नहीं है। वरना!

खामोश तो आप रहते ही हैं और जब आप ऐसे लोगों का अनुमोदन करते हैं मोदीजी, जो नफरत फैलाते हैं, तब आप नफरत और हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। और इसमें हम सब भागीदार हैं। आये दिन न्यूज़ चैनल्स पे किसी कट्टर मुसलमान की स्पेशल रिपोर्ट्स देखने को मिलती हैं। ..ज़ाकिर नाइक का ड्रामा देख ही रहे हैं आप. अभी कुछ हुआ भी नहीं है, मगर नाइक को आतंक के सरगना और डॉक्टर टेरर जैसे जुमलों से नवाज़ जाने लगा है। क्यों?

मैं ये कहने का साहस करना चाहता हूँ के क्या इस वक़्त यानी उत्तर प्रदेश के चुनावों से ठीक पहले ध्रुवीकरण का प्रयास है ? या मुसलमान को नए सिरे से खलनायक पेश करने की कोशिश है ? क्या मक़सद पश्चिमी उत्तर प्रदेश है ? उसकी कोशिश तो भक्त पत्रकारों को करनी भी नहीं चाहिए। क्योंकि भक्त सेना का बस चले सभी मुसलमान और छद्म उदारवादियों को पाकिस्तान छोड़ के आएंगे।

ये एक संकट काल है। मुझे ये कहने में कोई असमंजस नहीं है। हम सब जानते हैं के परदे के पीछे किस तरह से कुछ पत्रकारों और बुद्दिजीवियों को निशाना बनाया जा रहा है। कैसे दावा किया जाता है के मैंने तो उस पत्रकार को ठिकाने लगा दिया। और मैं ये भी जानता हूँ के आप और विवरण चाहते हैं। मेरा मक़सद ये है भी नहीं। इशारा ही करना था सिर्फ। .और आप लोग तो समझदार हैं। क्यों?

Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
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