श्यामा प्रसाद मुखर्जी का राष्ट्रवाद — सुरेंद्र राजपूत | #WhatNationalism


Syama Prasad Mukherjee,Founder Of Bhartiya Jana Sangh;He Was Earlier Union Minister In Nehru’s Cabinet
Syama Prasad Mukherjee,Founder Of Bhartiya Jana Sangh;He Was Earlier Union Minister In Nehru’s Cabinet.
Dr Deepak Natarajan : Photos Taken By My Dad , Mr. K.Natarajan , MA.



सच्चे राष्ट्रवादियों को पहचाना जाना ज़रूरी है 

—  सुरेंद्र राजपूत

संघ, जनसंघ और भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक है श्यामा प्रसाद मुखर्जी आइये आज उनके बारे में जानते है।  
जो लोग चिल्ला चिल्ला कर राष्ट्रवाद के सर्टिफिकेट मांग रहें हैं उनके ही सारे के सारे नायक हमारे देश की आज़ादी के यज्ञ से कोसों दूर रहे हैं। 

जब जब बात राष्ट्रवाद की चलेगी तो क्षद्म राष्ट्रवाद चीखेगा, मगर यह भी सच है की उसकी चीख झूठ से सनी हुई होगी। हम आज एक ऐसे दौर में आ गए है जब सच पर वह ज्ञान दे रहा है जो सबसे बड़ा झूठा है। नैतिकता पर वह बोल रहा है जो ऊपर से नीचे तक अनैतिक है। धर्म पर वह तकरीर कर रहा जो पूरा का पूरा अधर्म में ही है। अब क्योंकि सच न कोई सुनना चाहता है और न समझना तो झूठ का परचम तो बुलंद ही रहेगा। आज जिस राष्ट्रवाद की दुहाई दी जा रही है और जो लोग चिल्ला चिल्ला कर राष्ट्रवाद के सर्टिफिकेट मांग रहें हैं उनके ही सारे के सारे नायक हमारे देश की आज़ादी के यज्ञ से कोसों दूर रहे हैं। जब राष्ट्र को उसकी सेवा और त्याग की ज़रूरत थी तब वह सिर्फ अपने उस मिशन में लगे रहे जो देश को कमज़ोर ही करता रहा।


आखिर क्यों श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल की विधान परिषद से इस्तीफा नहीं दिया। 

इस वक़्त सबको अपनी लाठी के जोर पर राष्ट्रवादी होने का सर्टिफिकेट देने वाली ताकतों के युगपुरुष श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जीवन इस मिशन और क्षद्म राष्ट्रवाद को समझने की एक बानगी भर है। इनकी सोच दर्शाती है की यह कितने राष्ट्रप्रेमी रहें हैं क्योंकि इतिहास में दर्ज है जब जब राष्ट्र को उनकी ज़रूरत थी तो वह अपने व्यक्तिगत मिशन में ज्यादा रहे और राष्ट्र कहीं बहुत पीछे छूटता रहा।

जिसने भी ज़रा सा इतिहास पढ़ा है उसे पता है यह शक्तियां छद्म राष्ट्रवादी रही हैं और इन्होंने सत्ता के लिए बहुत गिरकर हमारे दुश्मनों से भी समझौता किया है। 

कांग्रेस जब अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ रही थी और उसके नेता बुरी तरह परेशान किये जा रहे थे तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी और उनके साथी गुपचुप समझौतों से कांग्रेस की आज़ादी की लड़ाई को कमज़ोर कर रहे थे अगर ऐसा नही था तो आखिर क्यों श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल की विधान परिषद से इस्तीफा नहीं दिया। अंग्रेजों के रवय्ये और जनता पर हो रहे अत्याचार के विरुद्ध जब कांग्रेस ने बंगाल विधान परिषद से अपने सभी सदस्यों का इस्तीफा करवाया और अँगरेज़ शासन के विरुद्ध लड़ने को कहा तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कुर्सी का सुख रोग ऐसा लगा की उन्होंने कांग्रेस से ही इस्तीफा दे दिया और अपनी मौन ही नहीं बल्कि खुली स्वीकृति भी उस शासन को दे दी। इतने बड़े विश्वासघात से आन्दोलन के कुछ नेता ज़रूर टूटे मगर जनता के मिले भरपूर समर्थन से कांग्रेस अँगरेज़ शासन के विरुद्ध लडती रही। अजब हाल है की इस कद्र स्वाधीनता संग्राम को नुकसान पहुँचाने वालों की राजनैतिक पीढ़ी आज राष्ट्रवाद की दुहाई दे रही है। जबकि जिसने भी ज़रा सा इतिहास पढ़ा है उसे पता है यह शक्तियां छद्म राष्ट्रवादी रही हैं और इन्होंने सत्ता के लिए बहुत गिरकर हमारे दुश्मनों से भी समझौता किया है।

awaharlal Nehru with Syama Prasad Mookerjee and Jairamdas Doulatram in the rear are Govind Ballabh Pant and Jagjivan Ram
Jawaharlal Nehru with Syama Prasad Mookerjee and Jairamdas Doulatram in the rear are Govind Ballabh Pant and Jagjivan Ram


हिन्दू महासभा के अध्यक्ष रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी उसी बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ मिलकर सरकार चला चुके; सरकार चलाना क्या बल्कि सबसे महत्वपूर्ण वित्तमंत्री और उप मुख्यमंत्री तक रहे। मुस्लिम लीग की साम्प्रदायिक भावना के साथ जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भावना मिल गई तो उसका रंग सबने देखा। जब कांग्रेस एक मोर्चे पर अंग्रेजों से भिड़ी थी तो दुसरे मोर्चे पर श्री मुखर्जी और उनके सहयोगी अंग्रेजों के खिलाफ तो गए ही नहीं बल्कि मुस्लिम लीग के साथ मंत्रालय बाँटने में लग गए। देश का दुर्भाग्य था की दो विभाजनकारी ताकतें एक साथ बैठकर अंग्रेजों की मंशा की मोहरे बनकर राष्ट्र के लिए जूझने वालों की ताकतों को कमजोर कर रही थीं। आज़ादी के लम्बे समय बाद जब श्री मुखर्जी की राजनीतिक सोच की अगली पीढ़ी के ध्वजवाहक श्री लाल कृष्ण अडवाणी पाकिस्तान जाकर मुस्लिम लीग के संस्थापक जिन्ना की मजार पर सर झुकाकर उसको धर्मनिरपेक्ष कहते हैं और तारीफ करने में लहालोट हो जातें हैं तो इनकी इस सोच पर ज़रा भी बुरा नहीं लगता। जो मुस्लिम लीग के साथ सरकार में रहा हो; जिसने आज़ादी के आन्दोलनों से खुद को अलग ही न किया हो वरन उसे कमजोर किया हो तो उसके वारिस विभाजनकारी जिन्ना की तारीफ ही तो करेंगे।

यह समय इतिहास के उस समय को देखने का है जब हमारे देश के सच्चे सेनानी लड़ रहे थे तब श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसी शक्तियां किस क्षद्म राष्ट्रवाद की नीव डाल रहे थे। श्री मुखर्जी का इन आंदोलनों के लिए अपने पद से त्याग न करना आखिर कैसा राष्ट्रवाद था या देश को शुरू से बाँटने वाले ख्वाब संजोए मुस्लिम लीग की सरकार में उप मुख्यमंत्री बनना क्या था। अभी तो राजनीति के दो ही कदम पर चर्चा हुई है इतने में ही देश को गुमराह करने वाले क्षद्म राष्ट्रवादी चेहरे की परत उधड़ने लगी हैं। अभी तो विद्यार्थी जीवन से राजनैतिक छलांग तक के बहुत से सफ़र पर बात होगी तब देखियेगा आखिर यह चेहरे कैसे हैं और इनको अपना नायक मानने वाले कितने राष्ट्रवादी हैं। जो देश के लिए एक विधान परिषद का पद नहीं छोड़ सकता वह देश तोड़ने वाली ताकतों के साथ मिलकर उपमुख्यमंत्री जैसे पद का आनंद लेता रहता है। यही तो क्षद्म राष्ट्रवाद है जो अभी भी उनके राजनैतिक वारिसों के साथ बदस्तूर जारी है। यह हमारी आंखे खोलने का समय है ताकि हम सच्चे राष्ट्रवादियों को पहचान सके और क्षद्म राष्ट्रवादियों से बचकर देश को जोड़ने में लग सके ताकि हमारा भारत उनके ख्वाबों के जैसा भारत बना रहें जिन्होंने वास्तव में कुर्बानियां दी हैं।

सुरेंद्र राजपूत (ssrajput22@gmail.com)यूपी कांग्रेस के मुख्‍य प्रवक्‍ता हैं
सुरेंद्र राजपूत (ssrajput22@gmail.com)यूपी कांग्रेस के मुख्‍य प्रवक्‍ता हैं



(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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1 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (13-08-2017) को "आजादी के दीवाने और उनके व्यापारी" (चर्चा अंक 2695) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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