ये मॉडल है कि पहले आपको अंधकार में रखना, फिर आपको चुनाव के समय जागरुक घोषित कर आपकी प्रतिक्रियाओं से उस अंधेरे का विस्तार करना। अभी नहीं तो बीस साल बात ज़रूर समझ आएगा। आप चुनाव के बहाने फिल्ड में बहुत से पत्रकारों को घूमते तो देखेंगे लेकिन उनसे रिपोर्टिंग नहीं दिखेगी। बहुत कम मात्रा में दिखेगी। ~ रवीश कुमार
Abhisar Sharma लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Abhisar Sharma लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
रवीश कुमार - अख़बार फाड़ो और चैनल सुधारो आंदोलन | और अभिसार शर्मा का वीडियो
अभिसार शर्मा ने अब यह पर्दाफाश किया...

लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं
— अभिसार शर्मा
अभिसार शर्मा अपने फेसबुक से पर्दाफाश करते हैं:
मानो सामूहिक सम्मोहन किया गया हो. आज सुबह एक शो किया अपने चैनल पर जिसमे भारतीय रेल का पर्दाफाश किया था. मुद्दा ये था कि जो खाना आप खाते हैं, उसमे शौच के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और ये पहली बार नहीं, खुद मैंने इसका expose कुछ दिनों पहले किया था जिसमे शौच के पानी से लोगों को चाय कॉफी पिलायी जा रही थी. जब इसका प्रसारण हुआ तब कई ऐसे लोग सामने आए जो इसमे भी सरकार की तरफदारी करते दिखे. मैंने यही मुद्दा उठाया कि जो लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं, क्या उन्हे सिर्फ फाइन करके छोड़ा जा सकता है? क्या उनपर पाबंदी नहीं लगायी जानी चाहिए? और ऐसे मे सरकार का रवैय्या इतना ढीला क्यों है?
आप विश्वास नहीं करेंगे कि कुछ लोग इस मुद्दे पर भी रेलवे मंत्रालय के पक्ष मे दिखाई दिए. आप कुछ लोगों के tweets पढ़ सकते हैं. ध्यान से देखिए इन्हें. विश्वास नहीं होगा. उनका मानना था कि इससे ज़्यादा और क्या किया जा सकता है. ये भी कि आर्थिक दंड तो बगैर टिकिट की यात्रा के लिए भी होता है और इसके लिए भी सिर्फ यही होना चाहिए.
सरकार ने अच्छा किया. यानी कि वही शौच परोसने वाले कांट्रेक्टर हमारे बीच फिर एक्टिव हो गए हैं, न जाने अब क्या परोसेगे, उन्हे इस बात की कोई चिंता नहीं है. मल मूत्र खा लेंगे मगर मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं करेंगे. कुछ लोगों ने तो सीधा ठीकरा जनता पर फोड़ डाला कि ये जनता अपने गिरेबां मे झांक कर देखे. इसकी ज़िम्मेदारी रेल्वे मंत्रालय की नहीं हो सकती. यानी कि ट्रेन लेट हो, एक्सिडेंट होते रहें, खाने मे शौच परोसा जाते रहे, मगर मोदी सरकार से कोई सवाल नहीं! हम "गू" खा लेंगे, मगर ये सरकार कुछ गलत नहीं कर सकती. क्या लोगों के ज़हन मे इस कदर सियासी गू भर दी गयी है? कि हम सवाल ही नहीं करेंगे और जो करेगा उसे ना सिर्फ खामोश करेंगे बल्कि उसके खिलाफ हर किस्म का झूठा और घटिया प्रोपोगंडा चलाएंगे?
क्या सत्तासीन लोगों को आभास है कि घृणा और नफरत की सियासत ने हमें किस मोड़ पर ला दिया है?
कठुआ और उन्नाव मे रेप पर हम आरोपी के पक्ष मे खड़े हो जाते हैं. ऐसा पहले होता देखा है कभी? न सिर्फ उसके पक्ष मे बल्कि बीजेपी नेताओं की शर्मनाक हरकत को जायज़ ठहराने का ज़रिया ढूंढते हैं? पोस्टमोर्टेम रिपोर्ट को गलत ढंग से पेश किया जाता है? सच सामने आए. ज़रूर आए. मगर झूठ का सहारा क्यों? उन्नाव मे गैंग रेप मे विधायक के पक्ष मे जिस तरह योगी सरकार ने सार्वजानिक तौर पर और अदालत के सामने अपनी नाक कटवाई है, ये तो अप्रत्याशित है! ऐसा कब हुआ है जब सरकार रेपिस्ट के साथ खड़ी दिखाई देती है? और जनता मे इस बात का कोई आक्रोश नहीं? और ये सब नफरत के चलते? माफ कीजिए ये भक्ति नहीं है. ये एक श्राप है. एक ऐसा काला श्राप जो आपको आने वाले वक़्त मे भुगतना होगा. जब आपने नाकाम सरकार से सवाल करना बंद कर दिया था.
मुझे ताज्जुब नहीं के लोग खाने मे शौच बर्दाश्त कर सकते हैं, धर्म के नाम पर खुला खेल खेल रही सरकार से सवाल नहीं कर सकते! क्योंकि यही शौच पिछले कुछ अर्से से उन्हे हर जगह परोसा जा रहा है. टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर घृणा और दोहराव पैदा करना, लोगों के खिलाफ, धर्म विशेष के खिलाफ माहौल बनाना. दंगा तक भड़काने से परहेज़ ना रखना और जो समझदारी की बात करे, उसे खामोश कर देना. सूचना प्रसारण मंत्रालय से अदृश्य फरमान जारी करके लोगों की ज़ुबान पर अंकुश लगाना? तो जब नफरत परोसी जाएगी तो दिमाग मे तो गोबर ही तो भरेगा ना? तब लोगों को शौच युक्त खाना खाने मे क्या दिक्कत होगी, जब आए दिन उन्हे news चैनल के ज़रिए यही परोसा जा रहा हो, जब चुनावी मंचों पर श्मशान, कब्रिस्तान जैसी बातें की जाती हो! जब देश के प्रधानमंत्री विदेश जाकर कहते हों कि रेप पर सियासत नहीं होनी चाहिए और कुछ दिनों बाद यानी एक हफ्ते के अंदर उसे भूल कर, कर्नाटक की सियासी भूमि मे उसी बात का गला घोंट देते हों?
जिन्ना मर गए. उनकी एक तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय मे होगी, मगर उस मुद्दे को दोबारा उठा कर हमने लाखों जिन्ना अपने टीवी स्टूडियो के ज़रिए देश भर मे जन्म दे दिए!
किसी ने ये नहीं पूछा कि बीजेपी सांसद सतीश गौतम इस मुद्दे को अब क्यों उठा रहे हैं? क्योंकि आज़ादी के इतने साल बाद भी मोदी सरकार आपको पीड़ित बने रहने का पाठ पढ़ा रही है. कि बेचारा हिंदू अब भी मुगल काल की तरह इन अत्याचारी मुसलमानों के हाथ मे बंधक है. और जब हम सरकारी propaganda जिसे कुछ news चैनल के ज़रिए प्रसारित किया जाता है, पर विश्वास करते हैं, तो इसी तरह हम अपने भोजन मे भी मल मूत्र बर्दाश्त कर लेते हैं. ये बना दिया है भक्ति ने आपको. जो व्यक्ति हमारा नायक होता है, वो हमें प्रेरित करता है, बेहतर बनने के लिए, मगर हम तो और भी रसातल मे जा रहे हैं. गलत बयानी, झूठ मानो अब उपलब्धियां हो गयी हैं! किसी के बारे मे कुछ भी बोल दो, बगैर प्रमाण के उस पर विश्वास करके इंसान को सूली पर लटका दिया जाता है. त्वरित सियासी फायदे के लिए बीजेपी इस देश को कहां ढकेल रही है क्या अंदाज़ा है आपको? क्या अंदाज़ा है पार्टी के नेताओं को? वो भी क्या करेंगे जब घृणा की गंगोत्री ऊपर से बहती हो तो! दुखद है. और मुझे दुख मौजूदा पीढ़ी का नहीं, चिंता अपने बच्चों की है कि विरासत मे उन्हे क्या दिए जा रहा हूं!
मानो सामूहिक सम्मोहन किया गया हो. आज सुबह एक शो किया अपने चैनल पर जिसमे भारतीय रेल का पर्दाफाश किया था. मुद्दा ये था कि जो खाना आप खाते हैं, उसमे शौच के पानी का इस्तेमाल हो रहा है और ये पहली बार नहीं, खुद मैंने इसका expose कुछ दिनों पहले किया था जिसमे शौच के पानी से लोगों को चाय कॉफी पिलायी जा रही थी. जब इसका प्रसारण हुआ तब कई ऐसे लोग सामने आए जो इसमे भी सरकार की तरफदारी करते दिखे. मैंने यही मुद्दा उठाया कि जो लोग आपके खाने मे शौच मिला रहे हैं, क्या उन्हे सिर्फ फाइन करके छोड़ा जा सकता है? क्या उनपर पाबंदी नहीं लगायी जानी चाहिए? और ऐसे मे सरकार का रवैय्या इतना ढीला क्यों है?
![]() |

सरकार ने अच्छा किया. यानी कि वही शौच परोसने वाले कांट्रेक्टर हमारे बीच फिर एक्टिव हो गए हैं, न जाने अब क्या परोसेगे, उन्हे इस बात की कोई चिंता नहीं है. मल मूत्र खा लेंगे मगर मोदी सरकार की आलोचना बर्दाश्त नहीं करेंगे. कुछ लोगों ने तो सीधा ठीकरा जनता पर फोड़ डाला कि ये जनता अपने गिरेबां मे झांक कर देखे. इसकी ज़िम्मेदारी रेल्वे मंत्रालय की नहीं हो सकती. यानी कि ट्रेन लेट हो, एक्सिडेंट होते रहें, खाने मे शौच परोसा जाते रहे, मगर मोदी सरकार से कोई सवाल नहीं! हम "गू" खा लेंगे, मगर ये सरकार कुछ गलत नहीं कर सकती. क्या लोगों के ज़हन मे इस कदर सियासी गू भर दी गयी है? कि हम सवाल ही नहीं करेंगे और जो करेगा उसे ना सिर्फ खामोश करेंगे बल्कि उसके खिलाफ हर किस्म का झूठा और घटिया प्रोपोगंडा चलाएंगे?
क्या सत्तासीन लोगों को आभास है कि घृणा और नफरत की सियासत ने हमें किस मोड़ पर ला दिया है?
कठुआ और उन्नाव मे रेप पर हम आरोपी के पक्ष मे खड़े हो जाते हैं. ऐसा पहले होता देखा है कभी? न सिर्फ उसके पक्ष मे बल्कि बीजेपी नेताओं की शर्मनाक हरकत को जायज़ ठहराने का ज़रिया ढूंढते हैं? पोस्टमोर्टेम रिपोर्ट को गलत ढंग से पेश किया जाता है? सच सामने आए. ज़रूर आए. मगर झूठ का सहारा क्यों? उन्नाव मे गैंग रेप मे विधायक के पक्ष मे जिस तरह योगी सरकार ने सार्वजानिक तौर पर और अदालत के सामने अपनी नाक कटवाई है, ये तो अप्रत्याशित है! ऐसा कब हुआ है जब सरकार रेपिस्ट के साथ खड़ी दिखाई देती है? और जनता मे इस बात का कोई आक्रोश नहीं? और ये सब नफरत के चलते? माफ कीजिए ये भक्ति नहीं है. ये एक श्राप है. एक ऐसा काला श्राप जो आपको आने वाले वक़्त मे भुगतना होगा. जब आपने नाकाम सरकार से सवाल करना बंद कर दिया था.
हिंदी की बड़ी लेखिका ने ऐसा क्यों कहा...

मुझे ताज्जुब नहीं के लोग खाने मे शौच बर्दाश्त कर सकते हैं, धर्म के नाम पर खुला खेल खेल रही सरकार से सवाल नहीं कर सकते! क्योंकि यही शौच पिछले कुछ अर्से से उन्हे हर जगह परोसा जा रहा है. टीवी चैनलों पर खबरों के नाम पर घृणा और दोहराव पैदा करना, लोगों के खिलाफ, धर्म विशेष के खिलाफ माहौल बनाना. दंगा तक भड़काने से परहेज़ ना रखना और जो समझदारी की बात करे, उसे खामोश कर देना. सूचना प्रसारण मंत्रालय से अदृश्य फरमान जारी करके लोगों की ज़ुबान पर अंकुश लगाना? तो जब नफरत परोसी जाएगी तो दिमाग मे तो गोबर ही तो भरेगा ना? तब लोगों को शौच युक्त खाना खाने मे क्या दिक्कत होगी, जब आए दिन उन्हे news चैनल के ज़रिए यही परोसा जा रहा हो, जब चुनावी मंचों पर श्मशान, कब्रिस्तान जैसी बातें की जाती हो! जब देश के प्रधानमंत्री विदेश जाकर कहते हों कि रेप पर सियासत नहीं होनी चाहिए और कुछ दिनों बाद यानी एक हफ्ते के अंदर उसे भूल कर, कर्नाटक की सियासी भूमि मे उसी बात का गला घोंट देते हों?

जिन्ना मर गए. उनकी एक तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय मे होगी, मगर उस मुद्दे को दोबारा उठा कर हमने लाखों जिन्ना अपने टीवी स्टूडियो के ज़रिए देश भर मे जन्म दे दिए!
बीजेपी का नारी सम्मान और त्रासदी! — अभिसार शर्मा #Asifa
कोई सियासी पार्टी बलात्कारियों का धर्म या उनकी जाति देखकर साथ खड़ी होती?

बीजेपी का नारी सम्मान और त्रासदी!
— अभिसार शर्मा
मैं चाहूंगा के मोदीजी जब उपवास में हों, भावनाओं के उफनते समुद्र में आसिफा की झलक उन्हे दिखाई दे. 2022 तक उत्तर प्रदेश में रामराज्य लाने का वादा और उसकी बिखरती नीव की चिंता भी जगह पाए. मैं उम्मीद करता हूं...
संस्कार और नारी सम्मान को शायद ही किसी पार्टी ने इतना बड़ा मुद्दा बनाया था. मगर आचरण और कथनी का फ़र्क़ बहुत हैरतअंगेज है. जम्मू की आठ साल की आसिफा का निरंतर कई दिनों तक बलात्कार. बेहोशी की दवा देकर कई दिनों तक रेप. एक मंदिर जैसी पूजनीय जगह पर रेप. रिश्तेदारों को बुला बुला कर उस मासूम को छलनी किया गया. मेरी गुड्डी, मेरी बिटिया ना जाने किस नर्क गुज़री तू उन आख़िरी लम्हों में . मेरी ईश्वर से प्रार्थना है (अगर वो है) के तू इस वक़्त एक बेहतर माहौल में होगी. सुरक्षित होगी तू, मेरी प्यारी गुड़िया. ये राक्षस ही तो थे जिन्होंने इसे अंजाम दिया. कलयुग के राक्षस. हमारे बीच विचरण करते हुए. और जानते हो? ये हमारे कितना करीब थे?
मैंने ख्वाहिश की कि आसिफा एक खुशनुमा माहौल में होगी, मगर जानते हो? वो आज भी तड़प रही है. क्यों? क्योंकि पहले तो उसे छलनी किया गया और अब उसके जाने के बाद उसकी आत्मा को, उसकी याद को छलनी किया जा रहा है. आसिफा के पक्ष में आकर खड़ी है इस देश में संस्कारी बर्ताव की विरासत संभालने वाली जम्मू कश्मीर सरकार में भागीदार... बीजेपी. इसके दो मंत्री बेशर्मी से उस मार्च में शरीक हुए जिसमे हत्यारों और बलात्कारियों की जय जयकार हुई! क्यों? क्योंकि बलात्कारी हिंदू थे? और पीड़ित एक मासूम 8 साल की मुस्लिम लड़की? क्या जानते हो तुम, के कितने कम अर्से में इंसान से वहशी हो गए हो तुम? तुम क्यों? मुझे हम बोलना चाहिए. हम. हम देश चला रहे हैं. बहुमत हैं. है ना? हिन्दुत्व और इस नारे के नाम पर तो हम कुछ भी करने को तैयार हैं? अपनी आत्मा, अपनी ईमानदारी अपनी इंसानियत.. सब कुछ! कुछ लोग तर्क ये दे रहे हैं के ये हिंदुओं का जम्मू मे गुस्सा था जो सामने उभरा है. सालों का अत्याचार, जिसकी प्रतिक्रिया है! बहुत बढ़िया. एक लम्हे, सिर्फ एक लम्हे के लिए, अपनी हवस, अपनी कायरता पर गौर करना. देखो तुम क्या बन गए हो! और ये किस सियासी सोच के संस्कार हैं. सोचो कुछ देर के लिए यही तर्क निर्भया के गैंग रेप में कोई बदतमीज़ देता, सोचो! कोई सियासी पार्टी बलात्कारियों का धर्म या उनकी जाति देखकर साथ खड़ी होती? सोच कर भी सिहरन पैदा होती है ना? ऐसे ही राक्षस बनते जा रहे हैं हम!
देखो उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है. और देखो कैसे अब तक विधायक कुलदीप सेंगर से पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की. इस लेख के लिखे जाने तक तो बिल्कुल भी नहीं... भेज दिया बीवी को. योगी जी को भी नहीं लगा के विधायक से जवाब तलब होना चाहिए... नहीं! वो मुस्कुरा रहा है. अदालत तक को दखल देना पड़ा. कोई जवाब है इस बात का? इतना घमंड? इतना हठ? कोई जवाबदेही नहीं? राजधर्म कहाँ है भई? जानता हूं के मौजूदा बीजेपी की कमान जिनके हाथों में है, जिनके हाथों में इसका भाग्य है, राजधर्म उनकी कमज़ोरी रही है. एक पूर्व प्रधानमंत्री ने भी इस बात को महसूस किया था. मगर ये?
मैं चाहूंगा के मोदीजी जब उपवास में हों, भावनाओं के उफनते समुद्र में आसिफा की झलक उन्हे दिखाई दे. 2022 तक उत्तर प्रदेश में रामराज्य लाने का वादा और उसकी बिखरती नीव की चिंता भी जगह पाए. मैं उम्मीद करता हूं...
मुश्किल है. मगर आसिफा के बारे में ज़रूर सोचें और जानें के हम इंसानियत को कितना पीछे छोड़ गए हैं.
मैं नहीं भुला पा रहा आसिफा को. मैं उसके हँसते हुए मासूम चेहरे को ही याद रखना चाहूंगा, क्योंकि मौत के बाद उसका चेहरा मुझे अपने वहशीपन की याद दिला रहा है. मैं राक्षस नहीं हूं और कोई भी मौकापरस्त सियासी सोच मुझे राक्षस नहीं बना सकती
बीजेपी. इसके दो मंत्री बेशर्मी से उस मार्च में शरीक हुए जिसमे हत्यारों और बलात्कारियों की जय जयकार हुई!
मैंने ख्वाहिश की कि आसिफा एक खुशनुमा माहौल में होगी, मगर जानते हो? वो आज भी तड़प रही है. क्यों? क्योंकि पहले तो उसे छलनी किया गया और अब उसके जाने के बाद उसकी आत्मा को, उसकी याद को छलनी किया जा रहा है. आसिफा के पक्ष में आकर खड़ी है इस देश में संस्कारी बर्ताव की विरासत संभालने वाली जम्मू कश्मीर सरकार में भागीदार... बीजेपी. इसके दो मंत्री बेशर्मी से उस मार्च में शरीक हुए जिसमे हत्यारों और बलात्कारियों की जय जयकार हुई! क्यों? क्योंकि बलात्कारी हिंदू थे? और पीड़ित एक मासूम 8 साल की मुस्लिम लड़की? क्या जानते हो तुम, के कितने कम अर्से में इंसान से वहशी हो गए हो तुम? तुम क्यों? मुझे हम बोलना चाहिए. हम. हम देश चला रहे हैं. बहुमत हैं. है ना? हिन्दुत्व और इस नारे के नाम पर तो हम कुछ भी करने को तैयार हैं? अपनी आत्मा, अपनी ईमानदारी अपनी इंसानियत.. सब कुछ! कुछ लोग तर्क ये दे रहे हैं के ये हिंदुओं का जम्मू मे गुस्सा था जो सामने उभरा है. सालों का अत्याचार, जिसकी प्रतिक्रिया है! बहुत बढ़िया. एक लम्हे, सिर्फ एक लम्हे के लिए, अपनी हवस, अपनी कायरता पर गौर करना. देखो तुम क्या बन गए हो! और ये किस सियासी सोच के संस्कार हैं. सोचो कुछ देर के लिए यही तर्क निर्भया के गैंग रेप में कोई बदतमीज़ देता, सोचो! कोई सियासी पार्टी बलात्कारियों का धर्म या उनकी जाति देखकर साथ खड़ी होती? सोच कर भी सिहरन पैदा होती है ना? ऐसे ही राक्षस बनते जा रहे हैं हम!
देखो उत्तर प्रदेश में क्या हो रहा है. और देखो कैसे अब तक विधायक कुलदीप सेंगर से पुलिस ने पूछताछ तक नहीं की. इस लेख के लिखे जाने तक तो बिल्कुल भी नहीं... भेज दिया बीवी को. योगी जी को भी नहीं लगा के विधायक से जवाब तलब होना चाहिए... नहीं! वो मुस्कुरा रहा है. अदालत तक को दखल देना पड़ा. कोई जवाब है इस बात का? इतना घमंड? इतना हठ? कोई जवाबदेही नहीं? राजधर्म कहाँ है भई? जानता हूं के मौजूदा बीजेपी की कमान जिनके हाथों में है, जिनके हाथों में इसका भाग्य है, राजधर्म उनकी कमज़ोरी रही है. एक पूर्व प्रधानमंत्री ने भी इस बात को महसूस किया था. मगर ये?
मैं चाहूंगा के मोदीजी जब उपवास में हों, भावनाओं के उफनते समुद्र में आसिफा की झलक उन्हे दिखाई दे. 2022 तक उत्तर प्रदेश में रामराज्य लाने का वादा और उसकी बिखरती नीव की चिंता भी जगह पाए. मैं उम्मीद करता हूं...
मुश्किल है. मगर आसिफा के बारे में ज़रूर सोचें और जानें के हम इंसानियत को कितना पीछे छोड़ गए हैं.
मैं नहीं भुला पा रहा आसिफा को. मैं उसके हँसते हुए मासूम चेहरे को ही याद रखना चाहूंगा, क्योंकि मौत के बाद उसका चेहरा मुझे अपने वहशीपन की याद दिला रहा है. मैं राक्षस नहीं हूं और कोई भी मौकापरस्त सियासी सोच मुझे राक्षस नहीं बना सकती
मैं विपक्ष हूँ!!! ......... #FakeNews
![]() |
EDITORIALCARTOONISTS.COM Dated 11/18/2016 (ID = 155946) |
क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है? नहीं!
— अभिसार शर्मा
क्या ये बताने की ज़रुरत है कि देश में फर्ज़ी-न्यूज़ यानी फेक-न्यूज़ का सबसे ज्यादा फायदा किसको हुआ है? क्या ये बताने की ज़रुरत है कि कासगंज में किस दंगाई पत्रकार ने गलत बयानी और झूठ अपने शो में प्रसारित किया था...और उसके झूठ से खुद उसकी संस्था इतनी परेशान हो गई कि उन्हें मामले को संभालने के लिए एक अदद पत्रकार को जमीन पर भेजना पड़ा। मकसद था कि कासगंज के सहारे ऐसा दोहराव पैदा हो, ऐसा ध्रुवीकरण हो कि वोटर खुद हिंदू-मुसलमान के आधार पर बंट जाए। और क्या ये बताने की ज़रुरत है कि इसका फायदा सिर्फ और सिर्फ बीजेपी को होता है? दंगा हो सो हो... तनाव हो सो हो... भाड़ में जाए देश का सुख-चैन। क्या मेरी ये चिंता बेमानी है? बताइए न बिहार में क्या हो रहा है। कैसे नियम-कानून की धज्जियां उड़ा कर यात्राएं निकाली गई, माहौल को भड़काया गया और नतीजा आपके सामने है। वो बिहार जिसमें साम्प्रदायिक दंगे न के बराबर होते थे, वहां मानो दंगों की झड़ी लग गई। और क्या ये कहना गलत होगा कि बीजेपी का प्रौपगैंडा वार... या जंग जो वो इन पत्रकारों और फर्ज़ी भड़काऊ वेबसाईट्स के जरिए करती है, उसका असर सीधा सियासी तौर पर वोट के बंट जाने के तौर पर सामने आता है?
Postcard और 'दैनिक भारत' नाम की दो दंगा भड़काऊ ऐजेंसियां, इन्हें न सिर्फ बीजेपी की बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है, अलबत्ता जब Postcard से जुड़े दंगाबाज विक्रम हेगड़े की गिरफ्तारी हुई, तब न सिर्फ पूरी मोदी भक्त मंडली बल्कि कई बीजेपी नेता औऱ सासंद उसके पक्ष में उतर आए। यहां तक कि बीजेपी के सांसद के पैसे से खड़े हुए चैनल ने तो हेगड़े को पत्रकार तक बता दिया। सूचना और प्रसारण मंत्री फेक न्यूज़ में जो क्रान्ति लाने वाली थीं, जिसे प्रधानमंत्री ने पत्रकारों में आक्रोश देख कर धराशाई कर दिया और स्मृति ईरानी का सपना अधूरा रह गया। पत्रकारों पर लगाम लगाने का यही प्रयास बीजेपी की राजस्थान सरकार ने किया था, वो भी चुनावी साल में। उसमें बड़े अधिकारियों पर रिपोर्ट करने पर कई बंदिशें लगाई जा रही थीं। स्मृतिजी भी यही हरकत चुनावी साल में ही कर रही थीं।

मकसद साफ है कि जो झुका नहीं है उसे बरगलाओ। एक शिकायत के आधार पर आपकी मान्यता (accredition) 15 दिन तक लटक जाए। बाद में एनबीए और प्रेस काउंसिल फैसला करती रहेगी। सवाल ये नहीं कि फैसला तो पत्रकारों की इकाई को करना है, सवाल ये कि आप संदेश क्या देना चाह रहे हैं। सवाल ये कि इन हरकतों से सत्ता के खिलाफ रिपोर्ट करने वाले, कठिन सवाल करने वालों पर इसका क्या असर पड़ेगा। आधार में कमियां बताने वाली रिपोर्ट के पत्रकार के खिलाफ आप एफआईआर दर्ज करवा देते हैं और कुछ ही दिनों में सम्पादक हरीश खरे को इस्तीफा तक देना पड़ता है।
क्या ये बताने की ज़रुरत है कि मौजूदा सरकार में पत्रकार को कैसे-कैसे दबावों से गुज़रना पड़ रहा है। और उसे कैसे कैसे फोन काल्स आते हैं? एक एक शब्द एक एक बोली पर निगाह! अगर ये सब न हो रहा होता तो स्मृतिजी की पहल पर विश्वास किया जा सकता था।
क्या ये फरमान उस पत्रकार के लिया था जो टीवी पर दंगा भड़काने का काम करता है? नहीं!
क्या ये फरमान उन फर्ज़ी दंगा भड़काऊ एजेंसियों के लिए है जो कथित तौर पर बीजेपी और सहयोग संस्थाओं की मदद से चल रही है, जिन्हें उनके नेता खुले आम समर्थन करते हैं? नहीं!
आप TRUEPICTURE. IN नाम की वेबसाईट को ही ले लीजिए। ये वो वेबसाईट है जिसका हवाला अखबारों और टीवी चैनल्स की खबरों को गलत साबित करने के लिए सूचना प्रसारण मंत्री देती रहती है। बड़े बड़े मंत्री मसलन पीयूष गोयल, एमजे अकबर इसका हवाला देते हैं। क्या आप जानते हैं कि जब आप कनाट प्लेस में इसके दफ्तर पहुंचते हैं तो वहां बैठे लोग कहते हैं कि ऐसी कोई वेबसाईट यहां से ऑपरेट नहीं करती। वेबसाईट के मालिक राजेश जैन जिन्होंने 2014 में मोदी के सोशल मीडिया अभियान को संभाला था, वो इस सवाल का जवाब नहीं देते? बड़ी रहस्यमयी है इनकी दुनिया। और इसी रहस्यमयी दुनिया वाले, अब मीडिया पर अंकुश लगाने का काम करेंगे।
मेरा एक सीधा सा सवाल है कि जब आपके हितों को कुछ पत्रकार बाकायदा प्राईम टाईम में प्रसारित कर रहे हैं, जब आपने आपसे सवाल करने वाले पत्रकारों के लिए हालात मुश्किल कर दिए हैं तो आपको ऐसे फरमानों की ज़रुरत क्या है?
मुद्दा नीयत का है। आपकी नीयत साफ नहीं है। आप वो हैं जो सवाल करने पर शिकायत कर देते हैं, आपके जवाब पर मुस्कुराने पर शिकायत कर देते हैं, लिहाज़ा आपके हर कदम पर शक पैदा होता है। इस अविश्वास की खाई को पाटने के गम्भीर प्रयास कीजिए। जो आपके चाटुकार हैं वो आपके सत्ता से बाहर होने के बाद आपका साथ छोड़ देंगे। आप जब विपक्ष में थे... तब पत्रकारिता के मानचित्र पर ये चाटुकार कहां थे? बोलिए?
पत्रकार विपक्ष होता है। और मैं आज भी विपक्ष में हूं और उस वक्त भी विपक्ष में था, जब आप विपक्ष में थे ...और तब भी विपक्ष में ही रहूंगा, जब आप सत्ता से बाहर होंगे।
अबकी बार बेदिल सरकार | मंत्रियों के विभाग और मंत्रियों की प्राथमिकता — अभिसार शर्मा #CBSE
बच्चे रो रहे हैं...उनकी मेहनत और प्लानिंग बर्बाद हो गई, मगर ये नाकारा सरकार हमें लोगों को बांटने वाली सियासत के रास्ते पर चलाना चाहती है...अबकी बार बेदिल सरकार...
क्या मोदी सरकार के दिल में बच्चों की फ़िक्र है ?
— अभिसार शर्मा

एक ऐसे दिन जब सीबीएससी का पेपर लीक हो गया हो और जब दसवीं के गणित और बारहवीं के अर्थशास्त्र का पेपर WhatsAPP पर आ गया हो, देश के शिक्षामंत्री श्री प्रकाश जावड़ेकर प्रेस कांफ्रेस करते हैं बंगाल की साम्प्रदायिक हिंसा पर। बच्चे रो रहे हैं...उनकी मेहनत और प्लानिंग बर्बाद हो गई, मगर ये नाकारा सरकार हमें लोगों को बांटने वाली सियासत के रास्ते पर चलाना चाहती है। गज़ब की प्राथमिकता है इस सरकार की, बच्चों के आंसू भी इनके लिए मायने नहीं रखते।
यही हुआ था उस दिन जब एलओसी पर गोलाबारी में 3 मासूम बच्चे मारे गए थे (पता नहीं आप तक खबर पहुँचने पायी या नहीं) उस दिन भी रक्षा मंत्री सामने आई थीं, मगर प्राथमिकता थी राहुल गांधी पर हमला। देश को सूचना प्रसारण मंत्री भी मिला है...मैडम भी अपनी सारी ऊर्जा राहुल गांधी पर केंन्द्रित रखती हैं।
मगर क्या प्रकाश जावड़ेकरजी की इस संवेदनहीनता को किसी भी सूरत में जायज़ ठहरा सकते हैं? बच्चों के आंसू मायने रखते है आपके लिए? अगर बंगाल के दंगे मायने रखते हैं तो फिर बिहार पर खामोशी क्यों? और बिहार में तो हद ही हो गई है न? वहां पर अबतक चार-चार जिलों में दंगे भड़क चुके हैं? ऐसा पहले तो कभी नही हुआ! बिहार तो दंगों से अछूता था ना? वहां पर तो आपके मंत्री खुले आम अपनी ही सरकार यानि नीतीश सरकार की बखिया उधेड़ रहे हैं। भागलपुर से जो दंगे शुरू हुए, उसकी वजह तो मंत्री श्री अश्विनी चौबे के होनहार बेटे अर्जित थे, जिन्होंने नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए यात्रा कर डाली और नतीजा आपके सामने है .
इसी तरह बंगाल में भी जहां ममता बनर्जी सरकार की नाकामी है, ये भी तो देखिए कि आपके मंत्री कैसे कैसे बयान दे रहे हैं ?
ये हर तरफ दंगें जैसे माहौल आपको बेशक सियासी फायदा पहुंचा दें, मगर आप एक आम भारतीय परिवार के लिए कैसा माहौल कायम कर रहे हैं, बताईये? और उसी परिवार में बच्चे भी आते हैं, क्या उनकी चिंता है आपको? देश में अगर नियमित रूप से दंगे होते रहे, तो पेपर लीक होना तो दूर की बात है, पेपर हो पाएंगे? क्या इसलिए शिक्षा मंत्री होते हुए भी, आप जब देश के सामने आते हैं तो दंगों पर अपना आंशिक दर्द बयान करते हैं लेकिन ये नहीं बताते कि बिहार में आपकी पार्टी के नेता खुलेआम भड़काऊ बयान दे रहे हैं?
क्या यही वजह है कि आप इस कदर उदासीन और बेपरवाह हो गए हैं कि सीबीएससी पेपर लीक आपके लिए दोयम दर्जे की बात हो जाती है?
मेरे बच्चे, मेरा मज़हब हैं, मेरा जुनून हैं। लिहाज़ा मैं उनके बारे में बहुत इमोशनल हूं। यही वजह है कि जब मैं ऐसी सरकार देखता हूं जिसके लिए मेरे बच्चे उसकी प्राथमिकता में दूसरे नम्बर पर हैं, तो मुझे हैरत ही नहीं होती, गुस्सा भी आता है। बोर्ड की परीक्षा आसान बात नहीं जावड़ेकर साहब। आप भी जानते हैं। कम से कम दो जगहों से खबर मिली है, मेरे जानकार हैं। पेपर लीक होने की वजह से उनके बच्चों का रो रो कर बुरा हाल है। सारी की सारी प्लानिंग चौपट हो गई है। भविष्य की रूपरेखा बिगड़ गई है इन बच्चों की। कम से कम आज, देश के सामने आकर, आपको सबसे पहले और सबसे पहले ही नहीं सिर्फ इसी मुद्दे पर, उन बच्चों का हौसला बढाना चाहिए था...मगर अफसोस...इसीलिए दुखी मन से कहना पड़ रहा है: अबकी बार बेदिल सरकार!
यही हुआ था उस दिन जब एलओसी पर गोलाबारी में 3 मासूम बच्चे मारे गए थे (पता नहीं आप तक खबर पहुँचने पायी या नहीं) उस दिन भी रक्षा मंत्री सामने आई थीं, मगर प्राथमिकता थी राहुल गांधी पर हमला। देश को सूचना प्रसारण मंत्री भी मिला है...मैडम भी अपनी सारी ऊर्जा राहुल गांधी पर केंन्द्रित रखती हैं।
मगर क्या प्रकाश जावड़ेकरजी की इस संवेदनहीनता को किसी भी सूरत में जायज़ ठहरा सकते हैं? बच्चों के आंसू मायने रखते है आपके लिए? अगर बंगाल के दंगे मायने रखते हैं तो फिर बिहार पर खामोशी क्यों? और बिहार में तो हद ही हो गई है न? वहां पर अबतक चार-चार जिलों में दंगे भड़क चुके हैं? ऐसा पहले तो कभी नही हुआ! बिहार तो दंगों से अछूता था ना? वहां पर तो आपके मंत्री खुले आम अपनी ही सरकार यानि नीतीश सरकार की बखिया उधेड़ रहे हैं। भागलपुर से जो दंगे शुरू हुए, उसकी वजह तो मंत्री श्री अश्विनी चौबे के होनहार बेटे अर्जित थे, जिन्होंने नियम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए यात्रा कर डाली और नतीजा आपके सामने है .
इसी तरह बंगाल में भी जहां ममता बनर्जी सरकार की नाकामी है, ये भी तो देखिए कि आपके मंत्री कैसे कैसे बयान दे रहे हैं ?
ये हर तरफ दंगें जैसे माहौल आपको बेशक सियासी फायदा पहुंचा दें, मगर आप एक आम भारतीय परिवार के लिए कैसा माहौल कायम कर रहे हैं, बताईये? और उसी परिवार में बच्चे भी आते हैं, क्या उनकी चिंता है आपको? देश में अगर नियमित रूप से दंगे होते रहे, तो पेपर लीक होना तो दूर की बात है, पेपर हो पाएंगे? क्या इसलिए शिक्षा मंत्री होते हुए भी, आप जब देश के सामने आते हैं तो दंगों पर अपना आंशिक दर्द बयान करते हैं लेकिन ये नहीं बताते कि बिहार में आपकी पार्टी के नेता खुलेआम भड़काऊ बयान दे रहे हैं?
क्या यही वजह है कि आप इस कदर उदासीन और बेपरवाह हो गए हैं कि सीबीएससी पेपर लीक आपके लिए दोयम दर्जे की बात हो जाती है?
मेरे बच्चे, मेरा मज़हब हैं, मेरा जुनून हैं। लिहाज़ा मैं उनके बारे में बहुत इमोशनल हूं। यही वजह है कि जब मैं ऐसी सरकार देखता हूं जिसके लिए मेरे बच्चे उसकी प्राथमिकता में दूसरे नम्बर पर हैं, तो मुझे हैरत ही नहीं होती, गुस्सा भी आता है। बोर्ड की परीक्षा आसान बात नहीं जावड़ेकर साहब। आप भी जानते हैं। कम से कम दो जगहों से खबर मिली है, मेरे जानकार हैं। पेपर लीक होने की वजह से उनके बच्चों का रो रो कर बुरा हाल है। सारी की सारी प्लानिंग चौपट हो गई है। भविष्य की रूपरेखा बिगड़ गई है इन बच्चों की। कम से कम आज, देश के सामने आकर, आपको सबसे पहले और सबसे पहले ही नहीं सिर्फ इसी मुद्दे पर, उन बच्चों का हौसला बढाना चाहिए था...मगर अफसोस...इसीलिए दुखी मन से कहना पड़ रहा है: अबकी बार बेदिल सरकार!
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक की फेसबुक वाल से लिए गए यह लेखक के अपने विचार हैं ))
००००००००००००००००
मोदीजी और चीन की लाल आँखें — अभिसार शर्मा
चीन को लाल आंख दिखाने की नसीहत देने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी क्या ये बताने की कृपा करेंगे कि वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्या मशविरा देंगे?
![]() |
Photo: Peter Hapak for TIME |
अभिसार शर्मा का ब्लॉग
अगर डोकलाम के बिल्कुल करीब चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने ना सिर्फ सुरक्षा चौकियों बना ली, बल्कि हेलीपैड भी बना लिए हैं तो ये बात किसी के लिए चिंता का सबब क्यों नहीं? ये बात किसी और ने नहीं बल्कि संसद में खुद रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमन ने कही है. निर्मलाजी कहती हैं के — भारत के आसपास के समुद्री इलाके में भी भारत चीन की महत्वाकांक्षाओं से परिचित है. परिचित है? और उसके बाद क्या?

क्या भारत सरकार ये उम्मीद कर रही है के चीन सिर्फ चौकियां और हेली पैड बना कर खामोश रहेगा? क्या वो नहीं जानता के एक बार शीतकाल ख़त्म होने के बाद सर्दियाँ ख़त्म होने के बाद, चाइना अपनी ताज़ा सामरिक और सैन्य शक्ति के साथ फिर धावा बोलेगा? ड्रैगन पर ऐतबार किया जा सकता है क्या?
क्या भारत सरकार को अंदाज़ा है के ये बस चंद दिनों की बात है. चीन को लाल आंख दिखाने की नसीहत देने वाले गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी क्या ये बताने की कृपा करेंगे कि वो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्या मशविरा देंगे? लाल आंख ज़रूर, मगर ये लाल आंख उस अदृश्य मुक्के का नतीजा है जो चीन हमें मार चुका है और हम कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं. इसका प्रमाण है कैबिनेट सेक्रेटरी का वो नोट जो विदेश सचिव विक्रम गोखले से मशविरा के बाद जारी किया गया है. इस नोट का परिणाम ये हुआ के तिब्बत का Thank you India आयोजन अब दिल्ली के बजाय, धर्मशाला में होगा. क्योंकि भारत सरकार चीन के साथ तनाव को बढ़ाना नहीं चाहती. जो सही भी है. क्योंकि आप देश के बाहर कई मोर्चे नहीं खोल सकते. ये हमारी सुरक्षा के लिए घातक है. साफ शब्दों में कहा जाए के आप डर गए, आपने वो समझौता कर डाला जो आपने पहले कभी नहीं किया. तिब्बत आंदोलन को चुपचाप धर्मशाला रवाना कर दिया और चाइना के सामने नमस्ते कर दिया. गज़ब है यानी के!

और अभिसार के लिए क्लिक कीजिये
मगर दिक्कत ये है जब देश की सियासत, उसकी कूटनीति, उसकी रक्षा नीति एक व्यक्ति यानी मोदीजी के व्यक्तित्व को निखारने के लिए इस्तेमाल हो रही है, तब ऐसे हादसे होते हैं. क्योंकि तेवर आपने दिखा दिए. चीन से लेकर पाकिस्तान से लेकर नेपाल से लेकर मालदीव में. मगर आप ये भूल गए के इतने मोर्चे खोलकर आप इलाके में अलग-थलग पढ़ जाएंगे. सियासत और असलियत या तर्क में फ़र्क़ होता है! पाकिस्तान से तनाव लगातार बढ़ाकर आपने देश के अंदर जयकारे तो लगवा दिया, चुनाव भी जीत लिए, मगर आप भूल गए के अब चीन और पाकिस्तान के सामरिक हित पहले से कहीं अधिक जुड़े हुए हैं. चाइना खुलेआम सैन्य बेस से लेकर सामरिक ठिकानों का निर्माण कर रहा है. पाकिस्तानी आतंकियों को भारत की पकड़ से दूर रख रहा है, उन पर अंतरराष्ट्रीय तौर पर अंकुश लगाने के भारत के प्रयासों में रोड़े अटका रहा है.यानी पाकिस्तान को भी घेरना इतना आसान नहीं. सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद पाकिस्तान अपनी बेशर्मी पर लगाम नहीं लगा रहा है. देश के सैनिकों की शहादत का सिलसिला थम नहीं रहा है. हमारे सैनिक बेस पहले से कहीं अधिक असुरक्षित हैं. आतंकी जब चाहे हमला कर रहे हैं, लिहाज़ा इस उग्र नीति पर पुनर्विचार की ज़रूरत है.
चुनावी भाषण में लाल आंख दिखाने की बात करना नालायक भक्तों और वफादार पत्रकारों के पेट भरने के लिए तो ठीक हैं, मगर देश का इससे कोई भला नहीं होगा. क्योंकि देश अलग-थलग होकर अस्तित्व में नहीं बने रह सकता. सच तो ये है कि यह भारत की विदेश नीति का सबसे दिशाहीन काल है. और ये सिर्फ इसलिए क्योंकि इसका इस्तेमाल सत्तारूढ़ बीजेपी के सियासी हितों को साधने के लिए किया जा रहा है.
जितनी जल्दी हम इसके दुष्परिणामों को समझें तो बेहतर होगा. मगर जब चुनाव में एक साल रह गया हो और मोदीजी हमेशा चुनावी टशन में हों तो कौन समझाए और कौन समझे!
और अभिसार के लिए क्लिक कीजिये
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक की फेसबुक वाल से लिए गए यह लेखक के अपने विचार हैं )
००००००००००००००००चल भइयों आज मोदीजी की इज्जत का सवाल है! — अभिसार शर्मा
इनकम टैक्स विभाग, वित्त मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है ना? बनाना रिपब्लिक है क्या? लेफ्ट हाथ को नहीं पता के राइट हाथ क्या कर रहा है? गज़ब है यानी के!
#नीरव_मोदी_काण्ड पर #अभिसार_शर्मा

केसरिया बंसती और बीजेपी के धन्नों
अभिसार शर्मा
शोले फ़िल्म का वो सीन वो डायलाग याद कीजिये… बसंती के पीछे गब्बर सिंह के डाकू पड़े होते हैं और बसंती अपनी घोड़ी से गुहार लगाती!!! चल धन्नो, आज तेरी बसंती की इज्जत का सवाल है!
खुद आयकर विभाग कहता है के पीएनबी घोटाला 20,000 करोड़ का है, मगर BJP और उसके नेता इसे 1000 करोड़ का बताने में जी-जान लगे हुए हैं। सबसे हास्यास्पद बात ये कि खुद वित्त मंत्रालय अपने ही विभाग की रिपोर्ट को गलत बता रहा है। ऐसा सुना है कभी? कि वित्त मंत्रालय अपने नीचे आने वाले इनकम-टैक्स विभाग की रिपोर्ट को गलत बता रहा हो!

गौर कीजिए क्या कहता है इनकम टैक्स विभाग का ये लिखित दस्तावेज़ और क्या जवाब है वित्त मंत्रालय का ।
बकौल इनकम टैक्स विभाग नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने 13,066 करोड़ का लोन लिया, मगर गारंटी सिर्फ 4000 करोड़ की दी। आखिरकार बैंक को करीब 20,000 करोड़ की मार पड़ सकती है!
जवाब में अपनी-ही रिपोर्ट के बारे में वित्त मंत्रालय लिखता है
"News appearing in certain section of media that Tax Department has estimated that Indian banks could take a hit of more than $3 bn due to alleged fraud at PNB, is false & factually incorrect। @IncomeTaxIndia has NOT made any such prediction। @adhia03 @ReutersIndia @PTI_News"
यानी के अपनी ही रिपोर्ट को, अपने ही विभाग को गलत और तथ्यहीन बता दिया! अच्छा? इनकम टैक्स विभाग, वित्त मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है ना? बनाना रिपब्लिक है क्या? लेफ्ट हाथ को नहीं पता के राइट हाथ क्या कर रहा है? गज़ब है यानी के!
असली मुद्दा तो यह है कि सारी कवायद मोदीजी की छवि को बेदाग रखने की है। BJP के नेता मुझे बताते हैं के अगर कोई बड़ा आंकड़ा जनता के दिमाग में समा जाता है तो चुनाव में उसी आंकड़े के साथ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल BJP की धुलाई करेंगे। जैसे 2G SCAM! अब विनोद राय का आंकड़ा बेशक गलत रहा हो, मगर कांग्रेस के साथ तो चिपक गया था ना? यही कोशिश अब मोदीजी के सिलसिले में दोनों पक्षों की तरफ से हो रही है। मनमोहन तो कम से कम बीच बीच में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भी देते थे, मगर मौन रहने में मोदीजी ने तो अगले-पिछले तमाम रिकॉर्ड तोड़ डाले। मोदीजी बोलते हैं, मगर अपनी शर्तों पर। मन की बात। जय हो।
लेकिन मोदीजी दिक्कत ये है कि आपने खुद को देश का चौकीदार बताया था। कांग्रेस ने नहीं। अब पीएनबी घोटाले ने साफ कर दिया है के चौकीदारी फेल, नाकाम हो गयी। यह संदेश जा रहा है। कुछ एक आध चैनल और सोशल मीडिया में तो ज़ोरदार तरीके से! मोदीजी के बारे में Jokes और मज़ाक की तो मानो सुनामी है इस वक़्त और BJP को यही डर सता रहा है कि जनता में ठीक संदेश नहीं जा रहा।
हैरत की बात ये पूर्व CAG प्रमुख विनोद राय खामोश हैं। बिल्कुल चुप। वही, 2G घोटाले मे 1।76 लाख करोड़ की रकम बताने वाले। माना पदों की बरसात कर दी मोदीजी ने आप पर, मगर रीढ़ नाम की चीज़ बाक़ी है के नहीं सर ? आपने तो यानी गज़ब ढ़ा दिया।
खैर जनता में संदेश तो जा रहा है, मगर देखना ये है के इसे भटकाने के लिए बीजेपी और कौन सा खेल खेलती है। घरेलू चाणक्य कब काम आएंगे?
खुद आयकर विभाग कहता है के पीएनबी घोटाला 20,000 करोड़ का है, मगर BJP और उसके नेता इसे 1000 करोड़ का बताने में जी-जान लगे हुए हैं। सबसे हास्यास्पद बात ये कि खुद वित्त मंत्रालय अपने ही विभाग की रिपोर्ट को गलत बता रहा है। ऐसा सुना है कभी? कि वित्त मंत्रालय अपने नीचे आने वाले इनकम-टैक्स विभाग की रिपोर्ट को गलत बता रहा हो!
मोदीजी दिक्कत ये है कि आपने खुद को देश का चौकीदार बताया था। कांग्रेस ने नहीं। अब पीएनबी घोटाले ने साफ कर दिया है के चौकीदारी फेल, नाकाम हो गयी। #नीरव_मोदी_काण्ड पर #अभिसार_शर्मा

गौर कीजिए क्या कहता है इनकम टैक्स विभाग का ये लिखित दस्तावेज़ और क्या जवाब है वित्त मंत्रालय का ।
बकौल इनकम टैक्स विभाग नीरव मोदी और मेहुल चोकसी ने 13,066 करोड़ का लोन लिया, मगर गारंटी सिर्फ 4000 करोड़ की दी। आखिरकार बैंक को करीब 20,000 करोड़ की मार पड़ सकती है!
जवाब में अपनी-ही रिपोर्ट के बारे में वित्त मंत्रालय लिखता है
News appearing in certain section of media that Tax Department has estimated that Indian banks could take a hit of more than $3 bn due to alleged fraud at PNB, is false & factually incorrect. @IncomeTaxIndia has NOT made any such prediction. @adhia03 @ReutersIndia @PTI_News— Ministry of Finance (@FinMinIndia) February 19, 2018
"News appearing in certain section of media that Tax Department has estimated that Indian banks could take a hit of more than $3 bn due to alleged fraud at PNB, is false & factually incorrect। @IncomeTaxIndia has NOT made any such prediction। @adhia03 @ReutersIndia @PTI_News"
यानी के अपनी ही रिपोर्ट को, अपने ही विभाग को गलत और तथ्यहीन बता दिया! अच्छा? इनकम टैक्स विभाग, वित्त मंत्रालय के अंतर्गत ही आता है ना? बनाना रिपब्लिक है क्या? लेफ्ट हाथ को नहीं पता के राइट हाथ क्या कर रहा है? गज़ब है यानी के!
और अभिसार के लिए क्लिक कीजिये
सारी कवायद मोदीजी की छवि को बेदाग रखने की हैअसली मुद्दा तो यह है कि सारी कवायद मोदीजी की छवि को बेदाग रखने की है। BJP के नेता मुझे बताते हैं के अगर कोई बड़ा आंकड़ा जनता के दिमाग में समा जाता है तो चुनाव में उसी आंकड़े के साथ कांग्रेस और अन्य विपक्षी दल BJP की धुलाई करेंगे। जैसे 2G SCAM! अब विनोद राय का आंकड़ा बेशक गलत रहा हो, मगर कांग्रेस के साथ तो चिपक गया था ना? यही कोशिश अब मोदीजी के सिलसिले में दोनों पक्षों की तरफ से हो रही है। मनमोहन तो कम से कम बीच बीच में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भी देते थे, मगर मौन रहने में मोदीजी ने तो अगले-पिछले तमाम रिकॉर्ड तोड़ डाले। मोदीजी बोलते हैं, मगर अपनी शर्तों पर। मन की बात। जय हो।
लेकिन मोदीजी दिक्कत ये है कि आपने खुद को देश का चौकीदार बताया था। कांग्रेस ने नहीं। अब पीएनबी घोटाले ने साफ कर दिया है के चौकीदारी फेल, नाकाम हो गयी। यह संदेश जा रहा है। कुछ एक आध चैनल और सोशल मीडिया में तो ज़ोरदार तरीके से! मोदीजी के बारे में Jokes और मज़ाक की तो मानो सुनामी है इस वक़्त और BJP को यही डर सता रहा है कि जनता में ठीक संदेश नहीं जा रहा।
और अभिसार के लिए क्लिक कीजिये
हैरत की बात ये पूर्व CAG प्रमुख विनोद राय खामोश हैं। बिल्कुल चुप। वही, 2G घोटाले मे 1।76 लाख करोड़ की रकम बताने वाले। माना पदों की बरसात कर दी मोदीजी ने आप पर, मगर रीढ़ नाम की चीज़ बाक़ी है के नहीं सर ? आपने तो यानी गज़ब ढ़ा दिया।
खैर जनता में संदेश तो जा रहा है, मगर देखना ये है के इसे भटकाने के लिए बीजेपी और कौन सा खेल खेलती है। घरेलू चाणक्य कब काम आएंगे?
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक की फेसबुक वाल से लिए गए यह लेखक के अपने विचार हैं )
००००००००००००००००मोदीजी के राज्यसभा भाषण पर अभिसार शर्मा का खुला पत्र #AbhisarSharma
पटेल ने पूरे देश को जोड़ने का काम किया था मोदीजी, वो किसी भी सूरत मे संघ के Mascot या आदर्श नहीं हो सकते
— अभिसार शर्मा

मोदीजी के आज के भाषण पर मेरा खुला पत्र
जयहिंद मोदीजी!
सबसे पहले तो काम की बात। आपको तुरंत अपने भाषण के लिए तथ्य मुहैया कराने वाले व्यक्ति को बरखास्त करना चाहिए। हद है मतलब! ‘अगर पटेल पहले प्रधानमंत्री होते तो पूरा कश्मीर हमारा होता’? वाकई? क्या आप जानते हैं के पटेल जूनागढ़ और हैदराबाद के बदले पूरा कश्मीर पाकिस्तान को देने को तैयार थे? बकौल पटेल और यहां मैं उन्हें quote करना चाहूंगा, यह बात उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से कही थी, —
“तुम जूनागढ़ और कश्मीर की बात क्यों करते हो? तुम हैदराबाद की बात करो तो कश्मीर पर चर्चा की जा सकती है”
11 नवंबर, 1947 को पटेल ने कहा था, ”हम कश्मीर पर मान सकते हैं बशर्ते वो हैदराबाद पर सहमति दिखाएं"
नेहरू की तरह पटेल भी मानते थे कि कश्मीर का विभाजन एक स्थायी समाधान हो सकता है हालांकि पाकिस्तान ने इसे खारिज कर दिया।
पटेल ने पूरे देश को जोड़ने का काम किया था मोदीजी, वो किसी भी सूरत मे संघ के Mascot या आदर्श नहीं हो सकते, क्योंकि Rashtriya Swayamsevak Sangh पर अंकुश लगाने का सबसे कड़ा कदम जिस व्यक्ति ने उठाया था उसका नाम सरदार पटेल था। वो के हीरो कैसे हुए भला? ये आपकी बौखलाहट है कि देश के स्वतंत्रता सेनानियों का विभाजन करके RSS के लिए ज़मीन तलाशी जाए जो की संभव नहीं है।
कांग्रेस को विभाजन का दोषी मानना इसलिए जायज़ नहीं क्योंकि जिन्ना से पहले Two Nation Theory की बात सबसे पहले तो सावरकर ने की थी! तो उस वक़्त की कांग्रेस को खलनायक क्यों बना रहे हैं आप?
अगर मौजूदा कांग्रेस गाँधी परिवार या सोनिया गांधी की भक्ति में लगी है, तो वो विषय तो बिल्कुल भिन्न है। दोनों को मिला क्यों रहे हैं?
बतौर चुनावी भाषण आपने बेशक झंडा गाड़ दिया, मगर एक प्रधानमंत्री के नाते मुझे इसमें बहुत दिक्कतें दिखाई दी। आपने ये तक बोल दिया कि शिमला समझौता इन्दिरा गांधी और बेनज़ीर भुट्टो के बीच हुआ? बेनज़ीर तो उस वक़्त बहुत छोटी थीं! उनके वालिद जुल्फिकार अली भुट्टो थे शिमला में!
हो सकता है के गलती से आपके मुंह से निकल गया हो, मगर एक देश के प्रधानमंत्री जब बोलते हैं तो उनका एक-एक शब्द मायने रखता है! या तो आप नर्वस थे या दबाव में! या फिर ध्यान कहीं और था!
आपके भाषण की सबसे Shocking बात वो थी जिसमें आपने दावा कर दिया कि Non-Performing Assets के लिए UPA सरकार ज़िम्मेदार थी। आप आगे कहते हैं और यह गौर करने लायक बात है कि कांग्रेस सरकार ने 82 फीसदी के बजाय 36 फीसदी NPA घोषित किया। आपने कहा के 2014 में जब हम सत्ता में आए तो NPA की कुल लागत थी 52 लाख करोड़!
अब आपके ऊपर दिए गए बयान से खुद आपकी पार्टी भागती फिर रही है, क्योंकि उन्होंने आपके इस बयान की ट्वीट को डिलीट कर दिया है, गायब कर दिया है। क्योंकि बयान देने के बाद आप खुद अपनी भूल समझ गए हैं। और इस बात पर गौर कीजिएगा
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक साल 2014 में NPA का प्रतिशत सिर्फ 3।8 फीसदी था! और PSUs यानी पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग बैंक को करीब 52 लाख करोड़ दिए गए थे।
तो क्या आप PSUs को दिए गए पैसे की बात कर रहे थे? तो मोदीजी आपने इसे NPA की कुल लागत क्यों बताया?
यहां मोदीजी आप एडवांस को NPA की कुल लागत बता बैठे हैं जो चौंकाने वाली बात है!
आपके इस बयान को BJP के ट्विटर हैंडल ने तो डिलीट कर दिया है, मगर आपका बयान जो संसद में दर्ज है, उसे कैसे डिलीट करेंगे? Screenshot मैंने नीचे दिया हुआ है। देख लें!
रेणुका चौधरी, कांग्रेस नेता को आपने रावण बताया? गज़ब है यानी के! मैं जानता हूं कि वो वाकई बेकाबू होकर हंस रही थीं, मगर जब आप प्रधानमंत्री होकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो आपके भक्त और भी ज़्यादा निम्न-स्तरीय भाषा का प्रयोग करने लगते हैं! इसका प्रमाण आपको देने की ज़रूरत नहीं है मुझे!
बतौर चुनावी भाषण आपके संबोधन में पूरा ड्रामा था, दमदार था, मगर एक प्रधानमंत्री के तौर पर मुझे आपका अंदाज कुछ विचित्र लगा। आपकी बातें खटकती रहीं क्योंकि सत्य के पैमाने पर उसमें कई कमियां दिखीं!
दोहराव संवाद नहीं हो सकता। क्योंकि यही दोहराव हम बाकी तमाम क्षेत्रों में देख रहे हैं। अब आखिरी साल है। उम्मीद है आप देश को जोड़ने में अहम पहल करेंगे।
आपका
अभिसार शर्मा
जिन्ना से पहले Two Nation Theory की बात सबसे पहले तो सावरकर ने की थी! तो उस वक़्त की कांग्रेस को खलनायक क्यों बना रहे हैं आप?
जयहिंद मोदीजी!
सबसे पहले तो काम की बात। आपको तुरंत अपने भाषण के लिए तथ्य मुहैया कराने वाले व्यक्ति को बरखास्त करना चाहिए। हद है मतलब! ‘अगर पटेल पहले प्रधानमंत्री होते तो पूरा कश्मीर हमारा होता’? वाकई? क्या आप जानते हैं के पटेल जूनागढ़ और हैदराबाद के बदले पूरा कश्मीर पाकिस्तान को देने को तैयार थे? बकौल पटेल और यहां मैं उन्हें quote करना चाहूंगा, यह बात उन्होंने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली खान से कही थी, —
“तुम जूनागढ़ और कश्मीर की बात क्यों करते हो? तुम हैदराबाद की बात करो तो कश्मीर पर चर्चा की जा सकती है”
11 नवंबर, 1947 को पटेल ने कहा था, ”हम कश्मीर पर मान सकते हैं बशर्ते वो हैदराबाद पर सहमति दिखाएं"
ये आपकी बौखलाहट है कि देश के स्वतंत्रता सेनानियों का विभाजन करके RSS के लिए ज़मीन तलाशी जाए जो की संभव नहीं है।
नेहरू की तरह पटेल भी मानते थे कि कश्मीर का विभाजन एक स्थायी समाधान हो सकता है हालांकि पाकिस्तान ने इसे खारिज कर दिया।
पटेल ने पूरे देश को जोड़ने का काम किया था मोदीजी, वो किसी भी सूरत मे संघ के Mascot या आदर्श नहीं हो सकते, क्योंकि Rashtriya Swayamsevak Sangh पर अंकुश लगाने का सबसे कड़ा कदम जिस व्यक्ति ने उठाया था उसका नाम सरदार पटेल था। वो के हीरो कैसे हुए भला? ये आपकी बौखलाहट है कि देश के स्वतंत्रता सेनानियों का विभाजन करके RSS के लिए ज़मीन तलाशी जाए जो की संभव नहीं है।
कांग्रेस को विभाजन का दोषी मानना इसलिए जायज़ नहीं क्योंकि जिन्ना से पहले Two Nation Theory की बात सबसे पहले तो सावरकर ने की थी! तो उस वक़्त की कांग्रेस को खलनायक क्यों बना रहे हैं आप?
अगर मौजूदा कांग्रेस गाँधी परिवार या सोनिया गांधी की भक्ति में लगी है, तो वो विषय तो बिल्कुल भिन्न है। दोनों को मिला क्यों रहे हैं?
बतौर चुनावी भाषण आपने बेशक झंडा गाड़ दिया, मगर एक प्रधानमंत्री के नाते मुझे इसमें बहुत दिक्कतें दिखाई दी। आपने ये तक बोल दिया कि शिमला समझौता इन्दिरा गांधी और बेनज़ीर भुट्टो के बीच हुआ? बेनज़ीर तो उस वक़्त बहुत छोटी थीं! उनके वालिद जुल्फिकार अली भुट्टो थे शिमला में!
हो सकता है के गलती से आपके मुंह से निकल गया हो, मगर एक देश के प्रधानमंत्री जब बोलते हैं तो उनका एक-एक शब्द मायने रखता है! या तो आप नर्वस थे या दबाव में! या फिर ध्यान कहीं और था!
और अभिसार के लिए क्लिक कीजिये
आपके भाषण की सबसे Shocking बात वो थी जिसमें आपने दावा कर दिया कि Non-Performing Assets के लिए UPA सरकार ज़िम्मेदार थी। आप आगे कहते हैं और यह गौर करने लायक बात है कि कांग्रेस सरकार ने 82 फीसदी के बजाय 36 फीसदी NPA घोषित किया। आपने कहा के 2014 में जब हम सत्ता में आए तो NPA की कुल लागत थी 52 लाख करोड़!
अब आपके ऊपर दिए गए बयान से खुद आपकी पार्टी भागती फिर रही है, क्योंकि उन्होंने आपके इस बयान की ट्वीट को डिलीट कर दिया है, गायब कर दिया है। क्योंकि बयान देने के बाद आप खुद अपनी भूल समझ गए हैं। और इस बात पर गौर कीजिएगा
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के मुताबिक साल 2014 में NPA का प्रतिशत सिर्फ 3।8 फीसदी था! और PSUs यानी पब्लिक सैक्टर अंडरटेकिंग बैंक को करीब 52 लाख करोड़ दिए गए थे।
तो क्या आप PSUs को दिए गए पैसे की बात कर रहे थे? तो मोदीजी आपने इसे NPA की कुल लागत क्यों बताया?
यहां मोदीजी आप एडवांस को NPA की कुल लागत बता बैठे हैं जो चौंकाने वाली बात है!
आपके इस बयान को BJP के ट्विटर हैंडल ने तो डिलीट कर दिया है, मगर आपका बयान जो संसद में दर्ज है, उसे कैसे डिलीट करेंगे? Screenshot मैंने नीचे दिया हुआ है। देख लें!

रेणुका चौधरी, कांग्रेस नेता को आपने रावण बताया? गज़ब है यानी के! मैं जानता हूं कि वो वाकई बेकाबू होकर हंस रही थीं, मगर जब आप प्रधानमंत्री होकर ऐसे शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो आपके भक्त और भी ज़्यादा निम्न-स्तरीय भाषा का प्रयोग करने लगते हैं! इसका प्रमाण आपको देने की ज़रूरत नहीं है मुझे!
बतौर चुनावी भाषण आपके संबोधन में पूरा ड्रामा था, दमदार था, मगर एक प्रधानमंत्री के तौर पर मुझे आपका अंदाज कुछ विचित्र लगा। आपकी बातें खटकती रहीं क्योंकि सत्य के पैमाने पर उसमें कई कमियां दिखीं!
दोहराव संवाद नहीं हो सकता। क्योंकि यही दोहराव हम बाकी तमाम क्षेत्रों में देख रहे हैं। अब आखिरी साल है। उम्मीद है आप देश को जोड़ने में अहम पहल करेंगे।
आपका
अभिसार शर्मा
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक की फेसबुक वाल से लिए गए यह लेखक के अपने विचार हैं )
००००००००००००००००डर को ममता की चादर क्यों पहनायी जा रही है — अभिसार शर्मा | @abhisar_sharma
अभिसार लिख रहे हैं, लगातार बोल रहे हैं, मगर क्या आप उन्हें पढ़, समझ भी रहे हैं?
अपनी अक्ल को ख़ुद ठिकाने लगाना अक्लमंदी होती है साहब, यह रहा उनका नया ब्लॉग — कुकुर झौं-झौं से फुर्सत मिले तो पढ़ लीजियेगा
— भरत तिवारी
बीजेपी के गब्बर सिंह
— अभिसार शर्मा
ये डराने वाले, इतना डरते क्यों हैं? और उससे भी बड़ी बात, जिनके नाम पर ये डर फैलाया जा रहा है, वो खामोश क्यों?

बिहार में बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय ने कहा के जो भी हाथ या ऊँगली नरेंद्र मोदी के खिलाफ उठेगी, उसे काट दिया जायेगा। सवाल ये नहीं के राय साहब ने क्या कहा। इससे बुरा, इससे बदतर गिरिराज सिंह कह चुके हैं, जब उन्होंने कहा था के मोदी का विरोध करने वाले पाकिस्तान चले जाएँ। ये प्रजातंत्र के लिए और भी खतरनाक है और महाशय अब केंद्र में मंत्री हैं। मगर नित्यानंद राय की खतरनाक बात मुझे वो लगती है जो उन्होंने उसके बाद कही। वो कहते हैं, और गौर से पढियेगा —
'जिनकी मां खाना परोसती थी, मोदी को खाना खिलाने बैठती थी, आज उस थाली के सामने मां को बेटा दिखाई नहीं देता। ऐसे हालात से उठकर एक गरीब का बेटा पीएम बना है। एक-एक व्यक्ति को उनका सम्मान करना चाहिए।'
कौन सी माँ इस बात को लेकर खुश होगी के उसके बेटे के नाम पर लोगों के हाथ काट दिए जाएँ?
गौर किया आपने? हिंसा के साथ साथ, राय साहब ने ममता का भी ज़िक्र कर डाला। कौन सी माँ इस बात को लेकर खुश होगी के उसके बेटे के नाम पर लोगों के हाथ काट दिए जाएँ? बताइये? नित्यानंदजी को ज़रा भी शर्म नहीं आयी, ये कहने से पहले। उन्होंने प्रधानमंत्री की तौहीन तो की ही है, बल्कि पूरी ममता को कटघरे में लाकर खड़ा कर दिया है? ममता और हिंसा एक साथ? ये कैसी वीभत्स, कैसी अश्लील सोच है? आप देख रहे हैं, ये लोग क्या कर रहे हैं? ये हमें अन्दर से ख़त्म कर रहे हैं। हमारी इंसानियत को ख़त्म कर रहे हैं। दुनिया के सबसे मासूम और पवित्र जज़्बे को इन्होने हिंसा के समकक्ष, साथ लाकर खड़ा कर दिया है।
खामोश क्यों
और बात सिर्फ नित्यानंद राय की नहीं है। क्या कहा था हरियाणा में बीजेपी नेता सूरज पाल अमु ने? दीपिका पादुकोण का सर काट दिया जायेगा। और ये बात महाशय ने एक और पवित्र नारी पद्मावती के पक्ष में कही। देख रहे हैं आप? एक महिला सम्मान में, दूसरी महिला की इज़्ज़त तार तार कर दो ... उस मारने के धमकी दे दो। ये बिलकुल वैसे है, जैसे प्रधानमंत्री की माता की बात करना और उस ममता की आड़ में लोगों के हाथ काट देने की धमकी दे डालना। ये कैसी वाहियात सोच है? अब क्या लोगों की संवेदनाओं को ख़त्म कर दीजियेगा? क्या ममता और नारी सम्मान जैसे जज़्बों को तार तार कीजियेगा?
डर को ममता की चादर क्यों पहनायी जा रही है? ताकि डर हमारी ज़िन्दगी का अभिन्न अंग हो जाये और हम अपने हुक्मरानों के डर में जीते रहें?
और सबसे बड़ी बात ... ये डराने वाले, इतना डरते क्यों हैं? और उससे भी बड़ी बात, जिनके नाम पर ये डर फैलाया जा रहा है, वो खामोश क्यों?
आखिर क्यों दीपिका पर इस अश्लील हमले पर स्मृति ईरानी, देश की सूचना प्रसारण मंत्री, खामोश हैं? ये बात मैं अपने कल के ब्लॉग में बोल चुका हूँ।
मगर गौर कीजियेगा हर तरफ क्या हो रहा है । मोदीजी के नाम पर हिंसा की धमकी और उसमे भी उनकी माँ का ज़िक्र करना। पद्मावती की अस्मिता की रक्षा के नाम पर एक और महिला की इज़्ज़त को तार तार कर देना। ये इस देश का नया सामान्य है क्या? मैं बस सवाल पूछ रहा हूँ ! जहाँ हिंसा के खौफ को बर्दाश्त किया जा रहा है, उसे मुख्यधारा में जगह दे दी गयी है। ये सब इतनी जल्दी हो रहा है के अब इसमें कोई हैरत भी नहीं होती। इस देश की जनता, इस सोच की बंधक है और हमें कोई तकलीफ भी नहीं। मज़ा आ रहा है। क्यों? मज़ा आ रहा है न? और सबसे दुखद बात यह कि कुछ पत्रकार इस सोच को अपनी लेखनी और अपनी टीवी की बहसों में जगह दे रहे हैं?
बार बार ऐसी मिसालें सामने आ रही हैं के कोई सुरक्षित नहीं है। कारवां पत्रिका की कहानी पढ़ी होगी आपने? मैं "इंडिया संवाद" के अनुवाद को आपके सामने रख रहा हूँ। कैसे एक जज की संदेहास्पद हालत में मौत हो जाती है और कोई सवाल भी नहीं पूछता। कुछ नहीं कहूंगा। बस पढ़िए ...
26 मई 2014 को दिल्ली में मोदी सरकार स्थापित हो चुकी थी और चार महीने बाद महाराष्ट्र में भी बीजेपी के हाथ सत्ता आ चुकी थी। पूरे देश में भगवा परचम लहरा रहा था लेकिन मुंबई की सीबीआई अदालत में सोहराबुद्दीन हत्याकांड के मामले में अब भी बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह के सर पर इन्साफ की तलवार लटक रही थी। इसी बीच महीने भर के अंदर यानी 30 नवंबर 2014 को सोहराबुद्दीन हत्याकांड की सुनवाई कर रहे जज बृजगोपाल हरिकृष्ण लोया की संदिग्ध हालात में मौत हो गयी।
जज लोया की मौत को सरकार से लेकर मीडिया ने दबा दिया। अगले 30 दिन बाद यानी 30 दिसंबर 2014 को जज लोया की जगह दूसरे जज एमबी गोसावी ने अमित शाह को सोहराबुद्दीन हत्याकांड के इस चर्चित कांड से बरी कर दिया।
जज लोया के परिवार ने अब इस समूचे घटनाक्रम पर गंभीर सवाल उठाए हैं। परिवार का कहना है कि जज की मौत के पीछे गहरी साज़िश है। उनके कपड़ों पर खून के छींटे थे, लेकिन गुनाहों के ये दाग हमेशा के लिए मिटा दिए गए और पूरे परिवार को अंधेरे में रखा गया।
48 वर्षीय जज बृजगोपाल की संदिग्ध मौत के तीन साल बाद उनके परिवार ने डरते-डरते जुबान खोली है। जस्टिस लोया सीबीआई अदालत में सोहराबुद्दीन शेख, पत्नी कौसर के फर्जी मुठभेड़ में हत्या के ट्रायल की सुनवाई कर रहे थे। इस हत्याकांड के केंद्र में गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह थे।
परिवार का कहना है — संदेहास्पद परिस्थितियों में जस्टिस लोया का शव नागपुर के सरकारी गेस्टहाउस में मिला था। इस मामले को तत्कालीन भाजपा सरकार ने हार्टफेलियर का रूप दिया। लेकिन कई अनसुलझे सवाल इस मौत पर आज भी जवाब मांग रहे हैं। जस्टिस लोया सुनवाई के जिस निर्णायक मोड़ पर थे, निर्णय देने वाले थे, उसकी हम हकीकत में बाद में बताएंगे। पहले जानते हैं कि उनके परिवार ने इस संदिग्ध मौत पर कौन-कौन से सवाल उठाए हैं।
परिवार के सात सवाल
1-जस्टिस लोया की मौत कब हुई, इस पर अफसर से लेकर डॉक्टर अब तक खामोश क्यों हैं। तमाम छानबीन के बाद भी अब तक मौत की टाइमिंग का खुलासा क्यों नहीं हुआ
2-48 वर्षीय जस्टिस लोया की हार्ट अटैक से जुड़ी कोई भी मेडिकल हिस्ट्री नहीं थी, फिर मौत का हार्टअटैक से कनेक्शन कैसे
3- उन्हें वीआइपी गेस्ट हाउस से सुबह के वक्त आटोरिक्शा से अस्पताल क्यों ले जाया गया
4-हार्टअटैक होने पर परिवार को तत्काल क्यों नहीं सूचना दी गई। हार्टअटैक से नेचुरल डेथ के इस मामले में अगर पोस्टमार्टम जरूरी था तो फिर परिवार से क्यों नहीं पूछा गया
5-पोस्टमार्टम की रिपोर्ट के हर पेज पर एक रहस्मय दस्तख्वत हैं, ये दस्तख्वत जस्टिस लोया के कथित ममेरे भाई का बताया गया है। परिवार का कहना है-संबंधित हस्ताक्षर वाला जस्टिस का कोई ममेरा भाई नहीं है
6-अगर इस रहस्यमय मौत के पीछे कोई साजिश नहीं थी तो फिर मोबाइल के सारे डेटा मिटाकर उनके परिवार को 'डिलीटेड डेटा' वाला फोन क्यों दिया गया
7-अगर मौत हार्टअटैक से हुई फिर कपड़ों पर खून के छींटे कैसे लगे।
संघ कार्यकर्ता की भूमिका पर सवाल
जज का परिवार इस पूरे मामले में एक संघ कार्यकर्ता की भूमिका को संदेहास्पद मानता है। इसी संघ कार्यकर्ता ने सबसे पहले परिवार को हादसे की जानकारी दी। इसी कार्यकर्ता ने बाद में डिलीट किए डेटा वाला जज का मोबाइल भी परिवार को सौंपा।
ये सवाल भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की नींद उड़ाने के लिए भले काफी हों, मगर इससे बड़ा सवाल पूरी व्यवस्था की नींद उड़ाने वाला है। सवाल यह है-मौत के 30 दिन बाद नए जज ने अमित शाह को इस सनसनीखेज मामले से बरी कैसे कर दिया। यही नहीं जांच एजेंसी सीबीआई ने अमित शाह के केस में डिस्चार्ज होने के बाद चुप्पी क्यों साध ली। केस की अपील उच्च न्यायालय में क्यों नहीं की।
जस्टिस लोया की मौत का घटनाक्रम
अंग्रेजी पत्रिका कारवां से बात करते हुए जस्टिस लोया की बहन अनुराधा, भांजी नुपूर और पिता हरकिशन का कहना है- यकीन नहीं होता कि जज बृजगोपाल की हृदयगति रुक जाने से मौत हुई। परिवार का कहना है-30 नवंबर 2014 को जस्टिस लोया साथी जज स्वप्ना जोशी की बेटी की शादी में शरीक होने नागपुर आए थे। उनके रहने का इंतजाम वीआइपी गेस्ट हाउस में हुआ था। अगले दिन परिवार को बताया गया जस्टिस लोया की हार्टअटैक से मौत हो गई।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
#केला_गणराज्य और बहन पद्मावती — अभिसार शर्मा | #Padmavati @abhisar_sharma

केला गणराज्य
भारत वाकई एक केला गणराज्य बनने की ओर अग्रसर है। केला गणराज्य? यानी कि, ये क्या होता है जी ?
दरअसल आज से कई साल पहले बीबीसी के स्टूडियो का एक वाकया याद आ गया। जब मेरे एक पुराने साथी ने BANANA REPUBLIC का तर्जुमा यानि अनुवाद केला गणराज्य कर दिया था। मगर एक पल के लिए सोचिये न। हम केला गणराज्य ही तो हैं। केला। पद्मावती की इज़्ज़त के नाम पर एक और लड़की की इज़्ज़त को तार तार करने की बात की जा रही है। उसकी नाक काट देने की बात हो रही है। उसका सर कलम करने की बात हो रही है। मगर " बहुत हुआ नारी पर वार, अबकी बार मोदी सरकार " वाली पार्टी चुप है। न सूचना प्रसारण मंत्री कुछ बोल रही हैं। स्मृति जी खामोश। क्योंकि ये मामला अब करनी सेना तक सीमित नहीं रहा न। अब तो हरियाणा में बीजेपी के एक नवरत्न केला गणराज्य के आधार कार्ड होल्डर श्री श्री सूरज पल अमु ने तो घोषणा कर डाली है कि जो शख़्स संजय लीला भंसाली और दीपिका पादुकोण का सर काट कर लाएगा, उसे १० करोड़ का इनाम दिया जायेगा। यह केला गणराज्य निवासी तो संस्कारी पार्टी से भी हैं न?
तो महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्माजी, जब शशि थरूर को मिस वर्ल्ड बनी मानुषी छिल्लर पर व्यंग्य के लिए हाज़िर होने के लिए कहा जा रहा है, तो सूरज पाल अमु, किस नज़रिये से नारी सम्मान कर रहे हैं ? हैंजी? खैर आप क्या बोलेंगी रेखाजी ? जब संस्कारी सरकार की स्मृति, रेखा, उमा और सुषमा, सब खामोश हैं, तो आपका सुविधावादी गुस्सा क्या मायने रखता है।
भारत की एक जानी मानी अभिनेत्री के सर कलम करने के इनाम की घोषणा कर दी जाए और सरकार की सशक्त महिला नेता और मंत्री खामोश रहें, ये तो केला गणराज्य की आदर्श मिसाल है। क्यों? और विडम्बना देखिये, आज ही आरएसएस प्रमुख का बयान भी आया है कि महिलाएं देश की आधी आबादी हैं, इन्हे सशक्त, मज़बूत किया जाना चाहिए। कितना सशक्त हो रही हैं महिलाएं न ? केला गणराज्य !
उत्तर प्रदेश के उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्या कहते हैं कि जब तक पद्मावती फिल्म से आपत्तिजनक अंश नहीं हट जाते, वो फिल्म को रिलीज़ नहीं होने देंगे। उनकी सरकार पहले ये भी कह चुकी है के ऐसी फ़िल्में समाज में सौहार्द के लिए खतरा हैं। और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती। और ये सब, बगैर फिल्म देखे। अरे मौर्या जी, अर्नब, रजतजी और वेद प्रताप वैदिक देख चुके हैं और इनमे से सभी का कहना है कि फिल्म में राजपूतों का पूरा सम्मान हुआ है। उनकी शान में कसीदे पढ़े गए हैं। तो क्या करनी वीरों इस बात पर आपत्ति है ? हैंजी? फिर बोलोगे कि मैं भारत को केला गणराज्य क्यों बोल रहा हूँ ?
फिल्म देखी नहीं किसी ने और लगे हैं ब्लड प्रेशर बढ़ाने, अपना भी और पूरे देश का। और ये मत समझिये कि मामला सिर्फ करनी सेना या संस्कारी पार्टी तक सीमित है। कुछ संस्कारी पत्रकार भी हैं, जो अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए इसे हिन्दू मुस्लिम का भी रंग दे रहे हैं। है न बिलकुल केला गणराज्य वाली बात ?
बीजेपी तो चलो समझ आ गया कि गुजरात का चुनाव है, बौखलाई हुई है, जीतना है... किसी भी कीमत पर।मगर पत्रकार ?
महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया का मश्वरा तो और भी कमाल का है। कहती हैं कि इतिहासकारों, जानकारों, राजपूतों की एक समिति बनायीं जाए और ये फिल्म उन्हें दिखाई जाए, फिर वो फैसला करेंगे कि फिल्म, कितनी और कहाँ से कटनी है। गजब है भैय्या।
अगली बार से कोई फिल्म जिसमे मुसलमान पात्र हो, उसे भी मदरसे के, मस्जिदों के मौलवियों के सामने रखा जाए। कि भाई इसे जनता को दिखाया जा सकता है कि नहीं ? कल्पना कीजिये, मुल्लाओं, मौलवियों का एक गुट, "अल्लाह बचाये मेरी जान, रज़िया गुंडों में फँस गयी " गाने की स्क्रीनिंग देख रहे हैं. इसमें तो अल्लाह भी है और रज़िया भी। तो देखना चाहिए न उन्हें भी ? हे भगवान् ! मैंने ये क्या कर दिया। पता चला कि मेरा ये लेख पढ़ने के बाद कुछ लोग इस गाने के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने पहुँच गए ? कहा था न, केला गणराज्य !
और सबसे बड़ी बात। माननीय मोदीजी अब भी खामोश हैं। अरे सरजी, संजय लीला भंसाली या दीपिका पादुकोण की इज़्ज़त के लिए न सही, इस फिल्म के पीछे जो प्रोडक्शन हॉउस है, उसके चलते ही कुछ बोल दीजिये। आपके "मित्रों" में से एक हैं वो।
मगर एक औरत के सर कलम करने की बात प्रधानसेवक जी की पार्टी से हो रही है और कोई जवाब तलब नहीं ...ये केला गणराज्य नहीं तो क्या है।
और अंत में मित्रों, मेरी बात का बुरा मत मानियेगा। मैंने केला गणराज्य शब्द का प्रयोग सिर्फ व्यंग्य केलिए किया था। मैं भी इसी केला गणराज्य का निवासी हूँ। बाहर से नहीं बोल रहा हूँ। I am after all a Proud citizen of India. मेरा अब भी मानना है के मेरा भारत महान है। इसे एक संपूर्ण केला गणराज्य बनाने के काफी मेहनत लगेगी। कुछ भाई लोग हैं, जो लगे हुए हैं। उनकी दुनिया अब भी उम्मीद पर कायम है। जय हो।
जब संस्कारी सरकार की स्मृति, रेखा, उमा और सुषमा, सब खामोश हैं, तो आपका सुविधावादी गुस्सा क्या मायने रखता है। #केला_गणराज्य
तो महिला आयोग की अध्यक्ष रेखा शर्माजी, जब शशि थरूर को मिस वर्ल्ड बनी मानुषी छिल्लर पर व्यंग्य के लिए हाज़िर होने के लिए कहा जा रहा है, तो सूरज पाल अमु, किस नज़रिये से नारी सम्मान कर रहे हैं ? हैंजी? खैर आप क्या बोलेंगी रेखाजी ? जब संस्कारी सरकार की स्मृति, रेखा, उमा और सुषमा, सब खामोश हैं, तो आपका सुविधावादी गुस्सा क्या मायने रखता है।
भारत की एक जानी मानी अभिनेत्री के सर कलम करने के इनाम की घोषणा कर दी जाए और सरकार की सशक्त महिला नेता और मंत्री खामोश रहें, ये तो केला गणराज्य की आदर्श मिसाल है। क्यों? और विडम्बना देखिये, आज ही आरएसएस प्रमुख का बयान भी आया है कि महिलाएं देश की आधी आबादी हैं, इन्हे सशक्त, मज़बूत किया जाना चाहिए। कितना सशक्त हो रही हैं महिलाएं न ? केला गणराज्य !
अरे मौर्या जी, अर्नब, रजतजी और वेद प्रताप वैदिक देख चुके हैं और इनमे से सभी का कहना है कि फिल्म में राजपूतों का पूरा सम्मान हुआ है। उनकी शान में कसीदे पढ़े गए हैं। तो क्या करनी वीरों इस बात पर आपत्ति है ? हैंजी? फिर बोलोगे कि मैं भारत को केला गणराज्य क्यों बोल रहा हूँ ? #केला_गणराज्य
उत्तर प्रदेश के उप मुख्य मंत्री केशव प्रसाद मौर्या कहते हैं कि जब तक पद्मावती फिल्म से आपत्तिजनक अंश नहीं हट जाते, वो फिल्म को रिलीज़ नहीं होने देंगे। उनकी सरकार पहले ये भी कह चुकी है के ऐसी फ़िल्में समाज में सौहार्द के लिए खतरा हैं। और कानून व्यवस्था के लिए चुनौती। और ये सब, बगैर फिल्म देखे। अरे मौर्या जी, अर्नब, रजतजी और वेद प्रताप वैदिक देख चुके हैं और इनमे से सभी का कहना है कि फिल्म में राजपूतों का पूरा सम्मान हुआ है। उनकी शान में कसीदे पढ़े गए हैं। तो क्या करनी वीरों इस बात पर आपत्ति है ? हैंजी? फिर बोलोगे कि मैं भारत को केला गणराज्य क्यों बोल रहा हूँ ?
फिल्म देखी नहीं किसी ने और लगे हैं ब्लड प्रेशर बढ़ाने, अपना भी और पूरे देश का। और ये मत समझिये कि मामला सिर्फ करनी सेना या संस्कारी पार्टी तक सीमित है। कुछ संस्कारी पत्रकार भी हैं, जो अपनी नैतिक ज़िम्मेदारी निभाते हुए इसे हिन्दू मुस्लिम का भी रंग दे रहे हैं। है न बिलकुल केला गणराज्य वाली बात ?
बीजेपी तो चलो समझ आ गया कि गुजरात का चुनाव है, बौखलाई हुई है, जीतना है... किसी भी कीमत पर।मगर पत्रकार ?
महारानी वसुंधरा राजे सिंधिया का मश्वरा तो और भी कमाल का है। कहती हैं कि इतिहासकारों, जानकारों, राजपूतों की एक समिति बनायीं जाए और ये फिल्म उन्हें दिखाई जाए, फिर वो फैसला करेंगे कि फिल्म, कितनी और कहाँ से कटनी है। गजब है भैय्या।
अगली बार से कोई फिल्म जिसमे मुसलमान पात्र हो, उसे भी मदरसे के, मस्जिदों के मौलवियों के सामने रखा जाए। कि भाई इसे जनता को दिखाया जा सकता है कि नहीं ? कल्पना कीजिये, मुल्लाओं, मौलवियों का एक गुट, "अल्लाह बचाये मेरी जान, रज़िया गुंडों में फँस गयी " गाने की स्क्रीनिंग देख रहे हैं. इसमें तो अल्लाह भी है और रज़िया भी। तो देखना चाहिए न उन्हें भी ? हे भगवान् ! मैंने ये क्या कर दिया। पता चला कि मेरा ये लेख पढ़ने के बाद कुछ लोग इस गाने के खिलाफ आवाज़ बुलंद करने पहुँच गए ? कहा था न, केला गणराज्य !
और सबसे बड़ी बात। माननीय मोदीजी अब भी खामोश हैं। अरे सरजी, संजय लीला भंसाली या दीपिका पादुकोण की इज़्ज़त के लिए न सही, इस फिल्म के पीछे जो प्रोडक्शन हॉउस है, उसके चलते ही कुछ बोल दीजिये। आपके "मित्रों" में से एक हैं वो।
मगर एक औरत के सर कलम करने की बात प्रधानसेवक जी की पार्टी से हो रही है और कोई जवाब तलब नहीं ...ये केला गणराज्य नहीं तो क्या है।
और अंत में मित्रों, मेरी बात का बुरा मत मानियेगा। मैंने केला गणराज्य शब्द का प्रयोग सिर्फ व्यंग्य केलिए किया था। मैं भी इसी केला गणराज्य का निवासी हूँ। बाहर से नहीं बोल रहा हूँ। I am after all a Proud citizen of India. मेरा अब भी मानना है के मेरा भारत महान है। इसे एक संपूर्ण केला गणराज्य बनाने के काफी मेहनत लगेगी। कुछ भाई लोग हैं, जो लगे हुए हैं। उनकी दुनिया अब भी उम्मीद पर कायम है। जय हो।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
▲▲लाइक कीजिये अपडेट रहिये
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००
रानी पद्मावती, योगी सरकार और #भक्ति_का_चरसकाल — अभिसार शर्मा | #Padmavati

योगी, रानी पद्मावती पर मेरा नया ब्लॉग
— अभिसार शर्मा
एक सरकार, हिंसा करने वाली किसी संस्था का ज़िक्र कर रही है, अपनी बेबसी और नाकामी को जायज़ ठहराने के लिए।
सोच रहा था वीडियो ब्लॉग करूँ...मगर मन नहीं किया। फिर भी, खुद को लिखने से नहीं रोक पाया। आज अखबारों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार का सूचना और प्रसारण मंत्रालय के नाम खत देखा। एक निर्वाचित, ताक़तवर, सशक्त सरकार लिखती है, क्योंकि राज्य सरकार एक मुस्लिम त्यौहार और मेयर चुनाव की मतगणना में व्यस्त होगी, लिहाज़ा संजय लीला भंसाली की फिल्म की रिलीज़ को मुल्तवी किया जाए। कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए उत्तर प्रदेश सरकार लिखती है और गौर कीजिये —
"कई सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थाओं ने ये कहकर, इसके ट्रेलर की रिलीज़ के खिलाफ प्रदर्शन किया था, क्योंकि इसमें रानी पद्मावती को घूमर नृत्य करते हुए दिखाया गया है, अलाउद्दीन खिलजी के साथ प्रेम प्रसंग दिखाया गया है, जिसका ज़िक्र इतिहास की किसी किताब में नहीं है।"
एक सरकार, हिंसा करने वाली किसी संस्था का ज़िक्र कर रही है, अपनी बेबसी और नाकामी को जायज़ ठहराने के लिए। मलिक मोहम्मद जायसी की इस प्रेम कथा को इतिहास बताना एक अलग विषय है, क्योंकि जायसी की इस अमर कथा के सिवाय इतिहास मे रानी पद्मिनी का कहीं ज़िक्र नहीं है। मुद्दा वो है ही नहीं। मुद्दा ये है कि अपनी मजबूरी की इस दास्ताँ में उत्तर प्रदेश सरकार न सिर्फ लगातार धमकी देने वाली संस्थाओं का पक्ष रखती है, यहाँ तक कि उनके तर्कों को सही ठहराने का प्रयास भी करती है। योगी सरकार का कहना है कि —
" तथ्यों और सकारात्मक सन्देश देने वाली फ़िल्में जहाँ समाज को प्रेरित, सही रास्ता दिखाती हैं, वहीं गलत ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित फ़िल्में, समाज और देश में नफरत और व्यवस्था के लिए चुनौती पैदा करती हैं"
यानी कि योगीजी ने बगैर फिल्म देखे मान ही लिया है कि पद्मावती झूठ पर आधारित फिल्म है और इससे समाज में नफरत पैदा होगी।
गज़ब है, यानी !
ये सरकार हिंसा फैलाने वाली संस्थाओं की हिमायती बनकर क्यों बोल रही है ? मानता हूँ कि केंद्र मंत्रियों से लेकर पार्टी के तमाम नेता पद्मावती फिल्म के खिलाफ झंडा बुलंद किये हुए हैं, मगर कम से कम, अपनी नाकामी और बेबसी के लिए तर्क तो सलीके से रखिये ? अगर आप कानून व्यवस्था का हवाला देते तो ठीक भी था। आप हिंसा मचाने वाली संस्थाओं के प्रवक्ता बन गए हैं ? आपकी यही बेबसी मुझे कुछ दिनों पहले लखनऊ में भी दिखाई दी थी, जब ABVP और हिन्दू युवा वाहिनी द्वारा लखनऊ लिटररी फेस्टिवल में JNU छात्र कन्हैया के सत्र में हंगामा मचाने के बाद, आपने फेस्टिवल को ही रद्द कर दिया था। लखनऊ के इतिहास में पहली बार हुआ है, जब एक साहित्यिक आयोजन को कुछ तत्वों की गुंडई के चलते रद्द किया गया हो।
एक हफ्ते के भीतर मिसालें साबित करती हैं कि योगी सरकार की क्या प्राथमिकताएं हैं और वो किसके साथ खड़ी है। जब सरकार खुद बेबस और निरीह दिखाई देती हैं हिंसा के सामने, तो आप आम इंसान के साथ क्या खड़े होंगे ? उसकी मिसाल हम गोरखपुर के BRD अस्पताल में देख चुके हैं। जहाँ बच्चे अब भी मर रहे हैं, मगर आपके पास हिमाचल प्रदेश चुनाव और गुजरात चुनाव जैसे 'ज़्यादा ज़रूरी' काम हैं। दिमागी बुखार से लगातार मर रहे बच्चों के लिए आपके आस कोई योजना नहीं है और न आपसे कोई जवाब ही मांग रहा है। सुना है अब आप फरवरी से राम मंदिर की पांच महीने लम्बी यात्रा पर निकल रहे हैं।
उम्मीद करता हूँ, कि कम से कम ऐसे ही राम राज्य आ जायेगा।
अब मेरी दो टूक।
1. सरकार को सिर्फ कथनी के ज़रिये ही नहीं, बल्कि अपनी करनी के ज़रिये भी आम इंसान की सुरक्षा, उसकी हिफाज़त में खड़े रहते हुए दिखाई देना चाहिए।
2. हिंसा की धमकी देने वाली संस्थाएं किसी भी सूरत में सहानुभूति की हकदार नहीं हो सकती, खासकर जब वो सार्वजनिक स्थलों में अराजकता करती दिख रही हैं। क्योंकि ऐसी जगहों में औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग आते हैं। उनकी हिफाज़त से बड़ा सरकार का कोई दायित्व नहीं हो सकता।
3. सरकार को सिर्फ और सिर्फ तथ्यों पर बात करनी चाहिए। पद्मावती की दास्ताँ एक कथा है। इतिहास में इसका कहीं ज़िक्र नहीं है। ऐसे में इस फिल्म के खिलाफ खड़े लोगों के तर्कों को आप एक आधिकारिक खत का हिस्सा नहीं बना सकते।
4. उनके साथ संवाद ज़रूर कीजिये , उन्हें समझाइये। मगर प्रदेश का अमन, मुट्ठी भर लोगों की ज़िद के भेंट नहीं चढ़ सकती।
और सबसे बड़ी बात। जनता। ये सवाल हमें करने होंगे। अपनी सरकार और उसकी नाकामी को लेकर उनकी जवाबदेही तय करनी होगी। ये सोचना होगा कि ये कैसे माहौल को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ चन्द मुट्ठी भर लोग हमारे जीने के तरीके को बदल सकते हैं और सरकार न सिर्फ तमाशा देखती हैं, बल्कि उसे बढ़ावा भी देती हैं।
मगर जैसा कि मैं कई बार कह चूका हूँ। मस्त रहिये भक्ति के इस चरस काल में।
"कई सामाजिक, सांस्कृतिक और अन्य संस्थाओं ने ये कहकर, इसके ट्रेलर की रिलीज़ के खिलाफ प्रदर्शन किया था, क्योंकि इसमें रानी पद्मावती को घूमर नृत्य करते हुए दिखाया गया है, अलाउद्दीन खिलजी के साथ प्रेम प्रसंग दिखाया गया है, जिसका ज़िक्र इतिहास की किसी किताब में नहीं है।"
एक सरकार, हिंसा करने वाली किसी संस्था का ज़िक्र कर रही है, अपनी बेबसी और नाकामी को जायज़ ठहराने के लिए। मलिक मोहम्मद जायसी की इस प्रेम कथा को इतिहास बताना एक अलग विषय है, क्योंकि जायसी की इस अमर कथा के सिवाय इतिहास मे रानी पद्मिनी का कहीं ज़िक्र नहीं है। मुद्दा वो है ही नहीं। मुद्दा ये है कि अपनी मजबूरी की इस दास्ताँ में उत्तर प्रदेश सरकार न सिर्फ लगातार धमकी देने वाली संस्थाओं का पक्ष रखती है, यहाँ तक कि उनके तर्कों को सही ठहराने का प्रयास भी करती है। योगी सरकार का कहना है कि —
" तथ्यों और सकारात्मक सन्देश देने वाली फ़िल्में जहाँ समाज को प्रेरित, सही रास्ता दिखाती हैं, वहीं गलत ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित फ़िल्में, समाज और देश में नफरत और व्यवस्था के लिए चुनौती पैदा करती हैं"
यानी कि योगीजी ने बगैर फिल्म देखे मान ही लिया है कि पद्मावती झूठ पर आधारित फिल्म है और इससे समाज में नफरत पैदा होगी।
गज़ब है, यानी !
ये सरकार हिंसा फैलाने वाली संस्थाओं की हिमायती बनकर क्यों बोल रही है ? मानता हूँ कि केंद्र मंत्रियों से लेकर पार्टी के तमाम नेता पद्मावती फिल्म के खिलाफ झंडा बुलंद किये हुए हैं, मगर कम से कम, अपनी नाकामी और बेबसी के लिए तर्क तो सलीके से रखिये ? अगर आप कानून व्यवस्था का हवाला देते तो ठीक भी था। आप हिंसा मचाने वाली संस्थाओं के प्रवक्ता बन गए हैं ? आपकी यही बेबसी मुझे कुछ दिनों पहले लखनऊ में भी दिखाई दी थी, जब ABVP और हिन्दू युवा वाहिनी द्वारा लखनऊ लिटररी फेस्टिवल में JNU छात्र कन्हैया के सत्र में हंगामा मचाने के बाद, आपने फेस्टिवल को ही रद्द कर दिया था। लखनऊ के इतिहास में पहली बार हुआ है, जब एक साहित्यिक आयोजन को कुछ तत्वों की गुंडई के चलते रद्द किया गया हो।
एक हफ्ते के भीतर मिसालें साबित करती हैं कि योगी सरकार की क्या प्राथमिकताएं हैं और वो किसके साथ खड़ी है। जब सरकार खुद बेबस और निरीह दिखाई देती हैं हिंसा के सामने, तो आप आम इंसान के साथ क्या खड़े होंगे ? उसकी मिसाल हम गोरखपुर के BRD अस्पताल में देख चुके हैं। जहाँ बच्चे अब भी मर रहे हैं, मगर आपके पास हिमाचल प्रदेश चुनाव और गुजरात चुनाव जैसे 'ज़्यादा ज़रूरी' काम हैं। दिमागी बुखार से लगातार मर रहे बच्चों के लिए आपके आस कोई योजना नहीं है और न आपसे कोई जवाब ही मांग रहा है। सुना है अब आप फरवरी से राम मंदिर की पांच महीने लम्बी यात्रा पर निकल रहे हैं।
उम्मीद करता हूँ, कि कम से कम ऐसे ही राम राज्य आ जायेगा।
अब मेरी दो टूक।
1. सरकार को सिर्फ कथनी के ज़रिये ही नहीं, बल्कि अपनी करनी के ज़रिये भी आम इंसान की सुरक्षा, उसकी हिफाज़त में खड़े रहते हुए दिखाई देना चाहिए।
2. हिंसा की धमकी देने वाली संस्थाएं किसी भी सूरत में सहानुभूति की हकदार नहीं हो सकती, खासकर जब वो सार्वजनिक स्थलों में अराजकता करती दिख रही हैं। क्योंकि ऐसी जगहों में औरतें, बच्चे, बुज़ुर्ग आते हैं। उनकी हिफाज़त से बड़ा सरकार का कोई दायित्व नहीं हो सकता।
3. सरकार को सिर्फ और सिर्फ तथ्यों पर बात करनी चाहिए। पद्मावती की दास्ताँ एक कथा है। इतिहास में इसका कहीं ज़िक्र नहीं है। ऐसे में इस फिल्म के खिलाफ खड़े लोगों के तर्कों को आप एक आधिकारिक खत का हिस्सा नहीं बना सकते।
4. उनके साथ संवाद ज़रूर कीजिये , उन्हें समझाइये। मगर प्रदेश का अमन, मुट्ठी भर लोगों की ज़िद के भेंट नहीं चढ़ सकती।
और सबसे बड़ी बात। जनता। ये सवाल हमें करने होंगे। अपनी सरकार और उसकी नाकामी को लेकर उनकी जवाबदेही तय करनी होगी। ये सोचना होगा कि ये कैसे माहौल को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ चन्द मुट्ठी भर लोग हमारे जीने के तरीके को बदल सकते हैं और सरकार न सिर्फ तमाशा देखती हैं, बल्कि उसे बढ़ावा भी देती हैं।
मगर जैसा कि मैं कई बार कह चूका हूँ। मस्त रहिये भक्ति के इस चरस काल में।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
बच्चों की मौत और #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक — अभिसार शर्मा

गुजरात मॉडल तो ठीक है, मगर गुजरात के बच्चे ?
नो उल्लू बनाविंग
— अभिसार शर्मा
जो समाज अपने बच्चों की रक्षा नहीं कर सकता, वो खोखला है। और जो समाज अपने बच्चों के दर्द, तकलीफ पर अपनी नाकामी की चादर चढ़ाता है, वो समाज, वो सरकार कमज़ोर है। और जब हम अपने बच्चों के स्वास्थ्य को अपनी प्राथमिकता के सबसे निचले पायदान पर रखते हैं, तब प्रोपेगंडा के ज़रिये हासिल सुर्खियों और उसके ज़रिये बनाये गए एक गुजरात मॉडल के आडम्बर के क्या मायने हैं, इस पर गंभीर बहस नहीं होती!??! मगर अपने बच्चों के खातिर, उनके भविष्य के खातिर, हम अपनी आँखें ज़्यादा दिनों तक नहीं मूँद रख सकते?![]() |
The Civil Hospital in Ahmedabad, on Sunday. (Express Photo: Javed Raja) |
रोज़ाना चार-पांच बच्चों की मौत सामान्य बात है और अगर एक दिन में नौ बच्चों की मौत हो गयी है, तो ये महज एक मामूली बढ़ोतरी है — #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक
अहमदाबाद के असरवा स्थित सिविल अस्पताल में 18 शिशुओं की मौत हो जाती है, वह अस्पताल जिसका मुकाम भारत नहीं बल्कि एशिया में है। पहले तो अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट डॉ एम् एम् प्रभाकर ऐसी मौतों से ही इंकार करते हैं, फिर अपनी नाकामी को स्वीकार करना पड़ता है। प्रभाकर कहते हैं के रोज़ाना चार-पांच बच्चों की मौत सामान्य बात है और अगर एक दिन में नौ बच्चों की मौत हो गयी है, तो ये महज एक मामूली बढ़ोतरी है। डॉ आर के दीक्षित की अध्यक्षता में इन मौतों पर बनी समिति के पहले मसौदे में अस्पताल की कोई आलोचना नहीं है, अलबत्ता ये ज़रूर कहा गया है के स्टाफ की संख्या, जिसमें रेजिडेंट डॉक्टर्स और नर्सें शामिल हैं, उन्हें बढ़ाने की ज़रूरत है। हैरत की बात ये है के अहमदाबाद मिरर की खबर के मुताबिक ये भी कहा गया है के सीनियर डॉक्टर्स को भी समय समय पर अपनी राय देने की ज़रूरत है।
अगर इन बच्चों की मौत दवाई और डॉक्टर्स की कमी की वजह से नहीं हुई, तो फिर ऐसा कहने की ज़रूरत क्यों पड़ी? — #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक
तो अगर इन बच्चों की मौत दवाई और डॉक्टर्स की कमी की वजह से नहीं हुई, तो फिर ऐसा कहने की ज़रूरत क्यों पड़ी? ये न भूलें के अहमदाबाद सिविल अस्पताल जहाँ ये मौतें हुई हैं, एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है, देश के कथित सबसे विकसित राज्य में। इस अस्पताल में गोरखपुर के बी आर डी अस्पताल की बेबसी भी नहीं है जहाँ ये अस्पताल 300 किलोमीटर के दायरे में दिमागी ज्वर के लिए एकमात्र अस्पताल है, न देश के सबसे ज़्यादा आबादी वाले, पिछड़े क्षेत्र का दंश है, श्राप है। फिर कैसे हो गईं ये मौतें ? ये गुजरात मॉडल तो अमिट, अजेय हैं न ?
जिस राज्य के मॉडल का अनुसरण करने की हिदायत मोदीजी पूरे देश में देते हैं, उसी राज्य के बच्चे कम वज़न हैं, कुपोषण के शिकार हैं और उन्हें पूरा पोषण नहीं मिल रहा है। — #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक
![]() |
41.6% of Gujarat's kids stunted, finds Unicef study (TOI) |
साल 2016 में केंद्र सरकार ने एक रिपोर्ट स्वीकृत की थी, और ये रिपोर्ट थी यूनिसेफ की। जिसका कहना था के गुजरात में 10.1 फीसदी बच्चे सामान्य वज़न से कम हैं (गंभीर श्रेणी) और करीब 41.6 फीसदी बच्चों की बढ़ोतरी रुकी हुई या अंग्रेजी में कहते हैं STUNTED है। जिस राज्य के मॉडल का अनुसरण करने की हिदायत मोदीजी पूरे देश में देते हैं, उसी राज्य के बच्चे कम वज़न हैं, कुपोषण के शिकार हैं और उन्हें पूरा पोषण नहीं मिल रहा है। और उस वक़्त की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल ने जैसी उम्मीद थी इस रिपोर्ट को ही ख़ारिज कर दिया।
यही तो करती हैं ज़िम्मेदार सरकारें। कोई भी सवाल, जो राज्य की इज़्ज़त उसकी अस्मिता पर वार करे, उससवाल को ही खारिज कर दो। — #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक
गौर करें के कम वज़न बच्चों का राष्ट्रीय औसत 29.40 फीसदी गुजरात से बेहतर है, जबकि गुजरात में ये आंकड़ा 33.50 फीसदी है (गंभीर तौर पर कम वज़नी बच्चों का आंकड़ा, 10.1 फीसदी है)। और जिन बच्चों की बढ़त रुकी हुई है (Stunted Growth), उसका राष्ट्रीय आंकड़ा 38.40 फीसदी है जबकि गुजरात में ये आंकड़ा 41.6 फीसदी है।
यही तो करती हैं ज़िम्मेदार सरकारें। कोई भी सवाल, जो राज्य की इज़्ज़त उसकी अस्मिता पर वार करे, उससवाल को ही खारिज कर दो। बेशक वो आपके बच्चों के भविष्य के बारे में ही क्यों न हो।
गुजरात अपने बच्चों को पोषण देने में कितना नाकाम रहा है, उसकी मिसालें 2013 में भी मिली थी जब CAG और खुद सरकार की रिपोर्ट ने कुछ चौंकाने वाले दावे किये थे। गौर कीजिये
CAG:
1. 2007 से 2012 के बीच सप्लीमेंटरी पोषण देने के बावजूद, गुजरात में हर तीसरा बच्चा कुपोषण का शिकार है।
2. करीब 1.87 करोड़ लोग एकीकृत बच्चा विकास सेवा ( Integrated Child Development Services, ICDS) से महरूम हैं।
अब देखिये खुद राज्य की उस वक़्त की महिला और बाल विकास मंत्री वसुबेन त्रिवेदी ने क्या कहा था
1. 14 ज़िलों के 6.13 लाख बच्चे कुपोषण का शिकार हैं, और बाक़ी 12 ज़िलों में तो आंकड़े मौजूद ही नहीं थे।
2. अहमदाबाद जिले में करीब 85, 000 हज़ार कुपोषित बच्चे हैं, वह अहमदाबाद जो गुजरात मॉडल की नब्ज है।
3. सबसे हैरत में डाल देने वाली बात ये के कुपोषण की समस्या सिर्फ किसी ख़ास ज़िले या इलाके तक सीमित नहीं है बनासकांठा के आदिवासी ज़िलों (78, 421 बच्चे) से लेकर मध्य गुजरात के दाहोद (73, 384 बच्चे) , जूनागढ़ और पश्चिमी सौराष्ट्र के अन्य ज़िलों में भी कुपोषित बच्चों का आंकड़ा (17, 263 बच्चे) सकते में डाल देने वाला है
सवाल ये के आप इसे कैसे सम्बोधित कीजियेगा? जब राज्य सरकार भी उदासीन है और मीडिया का ध्यान ही नहीं है। मगर फिर आपको याद होगा के कैसे स्वाइन फ़्लू से हुई 343 मौतों पर गज़ब की चुप्पी छा गयी थी। राज्य सरकार इतना बौखला गयी थी के उसे केंद्र सरकार से मदद के अपील करनी पड़ी थी।
बहरहाल, बच्चों में कुपोषण के मुद्दे पर वापस आते हैं। गुजरात के मुख्यमंत्री और देश के प्रधान सेवक नरेंद्र मोदी ने तो वाल स्ट्रीट जर्नल को एक इंटरव्यू में ये तक कह दिया था के अगर बच्चों के वज़न काम हैं, कुपोषित हैं, तो इसके पीछे उनका शाकाहारी खाना और उनका अपने फिगर को लेकर चिंतित होना है। मोदीजी ने ये भी कहा था के निरंतर प्रयास कर रहे हैं।
जाने माने अर्थशास्त्री ज़्यों ड्रेज़ और रितिका खेरा ने एक शोध में कहा था कि मानव विकास सूचकांक ( Human Development Index) में 20 राज्यों में गुजरात का स्थान नौवें नंबर पर था। इस सूचकांक में शुमार है: उनका भरण पोषण, उनका स्वास्थ्य, शिक्षा और टीका करण जैसे पहलू।
नीति आयोग से पहले योजना आयोग ने भी 2012 का जो गरीबी आंकड़ा पेश किया था, उसमें गुजरात 10वे नंबर पर था। इस समग्र सूचकांक में गुजरात से बेहतर, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्यों की थी।
यानी के ज्यों द्रेज़ की मानें तो, अगर गुजरात "मॉडल" है तो ये राज्य "सुपर मॉडल" हुए! — #गुजरात_मॉडल_की_कैटवाक
और सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा। मातृ मृत्यु दर यानि के प्रति 1000 औरतों में कितनी औरतों की मृत्यु होती है प्रति वर्ष। इसमें भी पिछले दिनों बढ़ोतरी हुई है। यह दर 2013 -14 में 72 थी जो 2016 में बढ़कर 85 हो गयी है। शिशु मृत्यु दर में ज़रूर कमी आयी है, मगर दूसरे राज्यों की तुलना में यह फिर भी अधिक है। क्या आप जानते हैं के शिशु मृत्यु दर में गिरावट का जो आंकड़ा है वो बिहार राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में गुजरात की तुलना में कहीं बेहतर है। और ये कहने को बीमारू राज्य थे या हैं।
देखिये भारत जैसे पेचीदा मुल्क में इन समस्याओं का हल किसी अलादीन के चिराग से नहीं होगा। मगर जनता को "नो उल्लू बनाविंग"। कम से कम गुजरात मॉडल के नाम पर तो बिलकुल भी नहीं। अब और नहीं ! और वक़्त आ गया है के गुजरात के, खासकर बच्चों के स्वास्थ्य पर, जो हालत हैं, उसपर खामोशी टूटे और इसकी गूँज सुनाई दे। मगर गुजराती अस्मिता के नाम पर पहले भी मुद्दों को दफन किया जाता है और आगे भी शायद यही होता रहेगा…बच्चे मरते रहेंगे और मॉडल रैंप पर कैटवाक करते रहेंगे।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
बेतुके-काल में मोदीजी की #ज़हरखुरानी — अभिसार शर्मा #AbhisarSharma

ये बेतुका मौसम है #ज़हरखुरानी
ये वाहियात काल है, देश का। कुछ भी कह दो, कुछ भी कर दो, फिर उसे सही ठहराने के लिए कुछ भी तर्क दे दो। कुछ मिसालें पेश करना चाहूँगा आपके सामने। आग़ाज़, मोदीजी के दर्द- ए-दिल से। उन पर हुए अत्याचार से। गौर कीजिये वडनगर की अपनी हाल की यात्रा में उन्होंने क्या कहा था। #ज़हरखुरानी
पहले तो ऐसे हालात पैदा करो के इंसान परेशान हो जाए, फिर वापस पहले जैसे हालात कर दो। और सामान्य हालात को दिवाली का नाम दे दो। #ज़हरखुरानी
"भोले बाबा के आशीर्वाद ने मुझे जहर पीने और उसे पचाने की शक्ति दी। इसी क्षमता के कारण मैं 2001 से अपने खिलाफ विष वमन करने वाले सभी लोगों से निपट सका। इस क्षमता ने मुझे इन वर्षों में समर्पण के साथ मातृभूमि की सेवा करने की शक्ति दी। ’’ मोदी आगे ये भी कहते हैं, ‘‘मैंने अपनी यात्रा वडनगर से शुरू की और अब काशी पहुंच गया हूं। "
आपने खुद को अपने समर्थकों के सामने पीड़ित के तौर पर पेश किया। आप पीड़ित तब होते अगर आप अपनी इस लड़ाई में अकेले होते। अगर आपको हर तरफ से निशाना बनाया जा रहा होता। आपको एक पूरी पार्टी का सहयोग हासिल था। जिस अडवाणी को अपने मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया, वह भी आपके पक्ष में थे। #ज़हरखुरानी
क्या ज़हर पिया है मोदीजी आपने
ज़हर पीने की शक्ति दी ? क्या ज़हर पिया है मोदीजी आपने ? 2002 के दंगों ने आपको हिन्दू हृदय सम्राट के तौर पर स्थापित किया। अपना राजधर्म न निभाने के बावजूद, आप मुख्यमंत्री बने रहे। ये मेरे शब्द नहीं, किसके हैं, आप भी जानते हैं। आपके समर्थक वर्ग का एक बहुत बड़ा तबका, आपको सर आंखों पर 2001 के इन्हीं दंगों की वजह से रखता है। 2014 की ज़मीन, कहीं न कहीं 2002 में तैयार होनी शुरू हुई थी। क्योंकि आपने खुद को अपने समर्थकों के सामने पीड़ित के तौर पर पेश किया। आप पीड़ित तब होते अगर आप अपनी इस लड़ाई में अकेले होते। अगर आपको हर तरफ से निशाना बनाया जा रहा होता। आपको एक पूरी पार्टी का सहयोग हासिल था। जिस अडवाणी को अपने मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया, वह भी आपके पक्ष में थे।
आप पीड़ित कैसे हो गए ?
आपने गुजरात में अपनी प्रशासनिक नाकामी को अपने सियासी फायदे में तब्दील कर दिया। आप पीड़ित कैसे हो गए ? पीड़ित तो गोधरा में मारे गए हिन्दुओं के परिवार हैं, या उसके परिणाम में मारे गए मुसलमान हैं, जो अब भी इनसाफ़ का इंतज़ार कर रहे हैं। आपका मुकाम तो लगातार बढ़ता रहा। और आप ही के शब्द दोहराता हूँ, क्या कहा था आपने
"‘मैंने अपनी यात्रा वडनगर से शुरू की और अब काशी पहुंच गया हूं।"
बिलकुल सही!
अब आप गुजरात से काशी पहुंच गए हैं। या ये कहा जाए दिल्ली पहुँच गए हैं,
जिस दिल्ली के इंतेज़ामिया को आप पानी पी पी कर कोसते थे।
अब आप उसी लुट्येन्स में ढल गए हैं।
वादे 2014 के सब ख़ाक हो गए हैं।
अच्छे दिन फुर्र हो गए हैं। #ज़हरखुरानी
नौकरियों से निकाला जाना कब से शुभ संकेत हो गया
दरअसल सवाल सिर्फ मोदीजी के इस बयान का नहीं। बेतुकी और तर्कहीन और कभी कभी जो संवेदनहीन बयानबाज़ी मोदी सरकार के मंत्री करते हैं वो तमाम रिकॉर्ड तोड़ रही है। नौकरियों के नाम पर अच्छे दिन लाने का वादा करने वाली मोदी सरकार के रेल मंत्री पीयूष गोयल के मुख से निकले ब्रह्मवाक्य पर गौर कीजिये। कहते हैं,
"अगर उद्योग नौकरियों में कटौतियां कर रहे हैं, तो यह एक शुभ संकेत है !" #ज़हरखुरानी
शुभ संकेत ? वाकई गोयल साहब ? नौकरियों से निकाला जाना कब से शुभ संकेत हो गया ? गोयल साहब आगे कहते हैं, "आज का युवा सिर्फ रोज़गार हासिल करने वाला नहीं बनना चाहता, वो रोज़गार मुहैय्या कराने वाला बनना चाहता है। "
मजे की बात ये है कि
वाह! यानी के मोदी सरकार के तीन सालों में आज का युवा रोज़गार मुहैय्या करवा रहा है। गज़ब बोले हैं सरजी! गोयल साहब के इस बयान को तर्क और तथ्य की ज़मीन पर परखते हैं, खुद उन्ही के, यानी सरकारी आंकड़ों से। इंडियन एक्सप्रेस के आंकड़ों के आधार पर जो जानकारी अर्जित की है, उसके मुताबिक, रोज़गार पैदा करने या स्टार्टअप्स को लेकर दिन-ब-दिन हालात बदतर होते जा रहे हैं। 2015 की तुलना में 50 फीसदी अधिक, करीब 212 स्टार्ट अप्स बंद हुए। 2017 में दो बड़े स्टार्ट अप्स, stayzilla और taskbob बंद हो गए। 2017 के पहले 9 महीनों में सिर्फ 800 स्टार्ट अप्स शुरू हुए 2016 में ये आंकड़ा 6000 था। यानी ढलान जारी है। और गोयल साहब फिर भी आशावादी हैं, जो एक अच्छी चीज़ हैं। क्योंकि वर्तमान हालात में जब युवा के पास नौकरी नहीं, तब एक आशावादी रवैय्या ही उसे बिखरने से बचा सकता है। और मजे की बात ये है कि आपके भक्त इसे निगल भी लेते हैं। बिलकुल वैसे, जैसे मोदीजी ने, पिछले 16 सालों में भोले बाबा की तरह विष पिया।
यानि के मोदी सरकार आपको लगतार प्रेरणा दे रही है। ... अगर रोटी नहीं है तो क्या हुआ, आलू के पराठे खाओ और वह भी घी से लबालब। #ज़हरखुरानी
अरे अब तो अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष ने भी भारत की विकास दर को घटकर 6.7 कर दिया । जीएसटी को लेकर व्यापारियों में हाहाकार है, मगर बकौल वित्त मंत्री अरुण जेटली, जीएसटी में तब्दीली बेहद सुखद और सुचारु रही है। यानी कि जो हाहाकार मचा हुआ है, उसे ही नकार दो?
भक्तिरस का नशा
ये बात यहाँ नहीं थमती, जब जीएसटी से मचे हाहाकार के बाद कुछ संशोधन किये गए थे, जिसमे गुजरात चुनावों, मद्देनज़र खाखरा पर टैक्स काम कर दिया गया था, तब याद है आपको मोदीजी ने द्वारका में क्या था ? याद है, के भूल गए ? के व्यापारियों की दिवाली 15 दिन पहले आ गयी। यानी के पहले तो ऐसे हालात पैदा करो के इंसान परेशान हो जाए, फिर वापस पहले जैसे हालात कर दो। और सामान्य हालात को दिवाली का नाम दे दो। वाह! समझ रहे हैं न आप? ये है अच्छे दिन। नोटबंदी हो या जीएसटी, पहले तो ये सरकार मानती ही नहीं के हालात बिगड़े हुए हैं, फिर चुनावों के दबाव में कुछ संशोधन कर दो और उसे दिवाली या अच्छे दिनों का नाम दे दो। और आप, यानी जनता भी खुश ! #ज़हरखुरानी
यही बेतुका काल जारी है देश में। और जनता, यानी आप प्रसन्न हैं। मुझे इंतज़ार है आपके भक्तिरस का नशा उतरने का, तब तक रहिये मस्त।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
सदस्यता लें
संदेश (Atom)