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विरोध-के-तरीके का विरोध - भरत तिवारी #SaveIndia Sahitya Akademi #BeOne


जो विरोध करना चाहते हैं उनके अपने-अपने तरीके होते हैं

- भरत तिवारी

जो विरोध करना चाहते हैं उनके अपने-अपने तरीके होते हैं। यह भी देखना होता है कि बिल्ली के गले में घंटी बाँधी किसने-किसने... कोई ये कैसे तय कर सकता है कि विरोध का यह तरीका - अकादमी से मिले सम्मान को वापस करना – विरोध नहीं है ? सम्मान को वापस करना/ न लेना, हमेशा से विरोध जताने का एक तरीका रहा है... वियतनाम के राजनेता ली डुक थो ने नोबल शांति सम्मान लेने से इसलिए मना कर दिया था क्योंकि वियतनाम में असल शांति नहीं थी। बहरहाल हम बाहर क्यों देखें जब हमारे पास अपने महात्मा गांधी हैं जिनके विरोध का तरीका सिर्फ और सिर्फ इस सरीखे का रहा है...


सम्मान-वापसी के विरोधियों को एक बात तो साफ़ करनी होगी कि १. क्या वो सिर्फ तरीके का विरोध कर रहे हैं या फिर २. उसके पीछे लेखक द्वारा बताई गयी मंशा से भी वो असहमत हैं? क्योंकि जो कारण से ही सहमत नहीं हैं उनकी असहमति तो वह असहमति हुई जिसका की विरोध हो रहा है... अब रही बात उनकी जो तरीके को नापसंद कर रहे हैं, उनका यह कहना की जिन्हें अकादमी सम्मान नहीं मिला है वह कैसे विरोध जताएं – समझ नहीं आता, आप विरोध के पक्ष में खड़े हो कर भी विरोध जता सकते हैं, अपना ख़ुद का तरीका ईजाद कर सकते हैं, लेकिन सम्मान-वापसी की हंसी उड़ाना न सिर्फ सम्मान वापस करने वाले का अपमान है बल्कि हर-उस इन्सान का भी जो उनके विरोध के साथ खड़ा है... सनद रहे कि ऐसा करने से आप किसके हाथ मजबूत कर रहे हैं... 

यह तर्क भी हास्यास्पद लगता है – इसके पहले भी तो घटनाएं हुई हैं, तब क्यों नहीं ऐसा किया – मुझे तो यह पहले न किये गए विरोधों के पश्चाताप का बिलकुल उचित समय दिख पड़ता है... है न – देर आये दुरुस्त आये। 

यह समय यों बेवजह की बहस में न ज़ाया कीजिये, इससे पहले कि देर हो जाये हाथ-से-हाथ मिलाइये... विरोध के और तरीके भी निकालिए और मौजूद तरीकों के साथ खड़े रहिये .... वर्ना बोलने के साथ-साथ विरोध-के-तरीके के विरोध की जुबान भी ... ...      

लिखे से सहमत हों तो साझा करियेगा
#SaveIndia Sahitya Akademi #BeOne

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शशि देशपांडे ने साहित्य अकादमी जनरल काउंसिल से इस्तीफा दिया | Shashi Deshpande resigns from Sahitya Akademi General Council


पद्म श्री व साहित्य अकादमी पुरस्कार सम्मानित प्रसिद्घ लेखिका और उपन्यासकार शशि देशपांडे ने साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल से इस्तीफा दे दिया है

साहित्य अकादमी को लिखे उनके पत्र का अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद

शशि देशपांडे ने साहित्य अकादमी जनरल काउंसिल से इस्तीफा दिया | Shashi Deshpande resigns from Sahitya Akademi General Council

Dr Vishwanath Prasad Tiwari,
President,
Sahitya Akademi, New Delhi

Cc: Professor Chandrashekhar Kambar, Vice-President Sahitya Akademi, Dr K. Sreenivasarao, Secretary Sahitya Akademi

Dear Sir,
When I heard in November 2012 from the Sahitya Akademi that I had been nominated to the General Council of the Akademi in the individual category of writers, I felt honoured. I have always respected the Sahitya Akademi’s role as the single institution in India that brings together all the Indian languages under one umbrella, at the same time giving each language its rightful place and dignity.

Today, I am deeply distressed by the silence of the Akademi on the murder of Professor M. M. Kalburgi. Professor Kalburgi was a noted scholar, and a good and honest human being; he was also a Sahitya Akademi awardee and a member of its General Council until recently.

If the Akademi, the premier literary organisation in the country, cannot stand up against such an act of violence against a writer, if the Akademi remains silent about this attack on one of its own, what hope do we have of fighting the growing intolerance in our country? A few tame condolence meetings here and there for a member of our community cannot serve the purpose.

Sadly, it has become increasingly important to reaffirm that difference of opinion cannot be ended with a bullet; that discussion and debate are the only way a civilised society resolves issues. It has also become clear that writers, who are supposed to be the conscience-keepers of society, are no longer considered intellectual leaders; their voices no longer matter. Perhaps this is the right time for writers to reclaim their voices. But we need a community of voices, and this is where the Akademi could serve its purpose and play an important role. It could initiate and provide space for discussion and debate in public life. It could stand up for the rights of writers to speak and write without fear; this is a truth all political parties in a democracy are supposed to believe in. Silence is a form of abetment, and the Sahitya Akademi, which should speak for the large community of Indian writers, must stand up and protest the murder of Professor Kalburgi and all such acts of violent intolerance.

In view of the Akademi’s failure to stand up for its community of writers and scholars, I am, out of a sense of strong disappointment, offering my resignation from the General Council of the Sahitya Akademi. I do this with regret, and with the hope that the Akademi will go beyond organising programmes, and giving prizes, to being involved with crucial issues that affect Indian writers’ freedom to speak and write.

Shashi Deshpande
Bangalore
October 9, 2015
डॉ० विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
अध्यक्ष
साहित्य अकादमी, नयी दिल्ली

प्रति: प्रोफेसर चंद्रशेखर कंबर, उपाध्यक्ष साहित्य अकादमी, डॉ के. श्रीनिवास राव, सचिव साहित्य अकादमी

महोदय,

नवम्बर २०१२ में मैंने सम्मानित महसूस किया था - जब मैंने साहित्य अकादमी से सुना कि अकादमी की जनरल काउंसिल में लेखकों की व्यक्तिगत श्रेणी की लिए मेरा नाम मनोनीत हुआ है। मैंने हमेशा साहित्य अकादमी का सम्मान भारत की उस एकमात्र ऐसी संस्था के रूप में किया है - जो सारी भारतीय भाषाओं को एक छतरी के नीचे एकत्र करती है, साथ ही साथ हर भाषा को उसका उचित स्थान और गरिमा देती है।

नेक, ईमानदार विख्यात विद्वान प्रो० कलबुर्गी की हत्या पर अकादमी की चुप्पी से आज, मैं बहुत व्यथित महसूस कर रही हूँ; वो साहित्य अकादमी सम्मानित थे और हाल ही तक अकादमी की जनरल काउंसिल के सदस्य भी थे।

यदि अकादमी जो कि भारत की प्रमुख साहित्यिक संस्था है, लेखकों के साथ होने वाली ऐसी हिंसक घटना के विरुद्ध नहीं खड़ी हो सकती, अगर अकादमी अपने में से एक पर हुए हमले पर चुप रहती है, हम ऐसे में देश में बढती असहिष्णुता से लड़ने की क्या उम्मीद रखें ? हमारे समुदाय के सदस्य के लिए यहाँ-वहां की गयीं इन दो-चार शोक सभाओं से उद्देश्य पूरा नहीं हो सकता।

यह दुखद है कि इस बात की तसदीक करना आज बहुत ज़रूरी हो गया है कि विचारों में असहमति का अंत गोली से नहीं हो सकता; कि चर्चा और बहस ही किसी सभ्य समाज में समस्याओं के निराकरण का रास्ता हैं। यह बात भी साफ़ हो गयी है कि लेखक, जो समाज की अंतरात्मा के रखवाले समझे जाते हैं; उनकी आवाज़ का आज कोई महत्व नहीं रह गया है। शायद लेखकों का अपनी आवाज़ को वापस पाने का यही ठीक समय है। लेकिन, आज हमें आवाजों का समूह चाहिए, और यहीं अकादमी अपने उद्देश्य को पूरा कर, एक ज़रूरी भूमिका का निर्वाह कर सकती है। वो सार्वजनिक जीवन में चर्चा और बहस शुरू करने के लिए मंच प्रदान कर सकती है। अकादमी लेखकों के निडर हो कर बोलने और लिखने के अधिकार के लिए खड़ी हो सकती है; ये एक सच है और ऐसा माना जाता है कि प्रजातंत्र के हर राजनीतिक दल को यह सच स्वीकार्य है। चुप्पी, उकसाने का ही एक रूप है, और साहित्य अकादमी, जिसे लेखकों के एक वृहत समूह के लिए बोलना चाहिए, उसे अवश्य ही प्रो० कलबुर्गी की हत्या व ऐसी सारी हिंसक असहिष्णुता के विरोध में खड़े होना चाहिए।

अकादमी की अपने लेखकों और विद्वानों के समुदाय के लिए खड़े होने की असफलता को देखते हुए, मैं, भारी निराशा की भावना के चलते, साहित्य अकादमी की जनरल काउंसिल से अपने इस्तीफे की पेशकश करती हूँ। मुझे अफसोस के साथ ऐसा करना पड़ रहा है, इस उम्मीद के साथ कि अकादमी सम्मान देने व कार्यक्रमों के आयोजनों से ऊपर उठेगी, कि वह उन महत्वपूर्ण मुद्दों से जुड़ेगी जिनसे भारतीय लेखकों की लिखने-बोलने की आज़ादी प्रभावित होती है।


शशि देशपांडे
बैंगलोर
अक्तूबर 9, 2015

(अनुवाद - भरत तिवारी)
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सम्मान लौटाना विरोध का मानक न माना जाए - असग़र वजाहत | Award rendering shall not be treated as standard of protest - Asghar Wajahat


सम्मान लौटा देना मोदी - भाजापा विरोध का मानक या आधार न माना जाए

- असग़र वजाहत

Nayantara Sahgal, Ashok Vajpey,Dadri lynching, Uday Prakash,Sahitya Akademi, Asghar Wajahat

हिंदी और अंग्रेजी के तीन महत्वपूर्ण लेखकों ने साहित्य अकादमी सम्मान वापस कर दिया है. हो सकता है कुछ और भी करेँ या यह भी हो सकता है कि कुछ न करेँ.

सम्मान वापस करने वालों ने यह माहौल बना दिया है कि जो साहित्य अकादमी का सम्मान वापस नहीँ करेंगे या लेंगे वे वर्तमान मोदी सरकार के समर्थक या मौन समर्थक मान लिये जायेगे. यह शायद किसी भी या अधिकतर रचनाकारों को गवारा न होगा.

ऐसी स्थिति मेँ कुछ मुद्दों पर बात करना आवश्यक है. इसमेँ संदेह नहीँ की वर्तमान भाजापा - नरेंद्र मोदी सरकार देश को सांप्रदायिक फांसीवाद की ओर तेजी से ले जा रही है. राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए मोदी सरकार असहिष्णुता, एकाधिकार, धर्मांधता, अहिंसा, और बर्बरता को लगातार बढ़ावा दे रही है. देश के बहुलतावादी चरित्र पर लगातार हमले हो रहे हैँ. और अल्पसंख्यको तथा कमजोर वर्ग के प्रति अपराध बढ़ रहे हैँ जिंहेँ धर्म और संस्कृति के नाम पर गौरवांवित किया जा रहा है.

साहित्य अकादमी सम्मान वापस करने वाले साहित्यकारोँ ने वर्तमान सरकार के प्रति जो प्रतिरोध दर्ज कराया है उस से मैँ 100 प्रतिशत सहमत हूँ. यह कहने की बात नहीँ कि अन्य लेखकोँ के साथ मैंने भी हमेशा धार्मिक कट्टरता, सांप्रदायिकता, एकाधिकारवाद शोषण, अत्याचार का विरोध किया है. 

लेकिन क्या मोदी सरकार की नीतियों के प्रति विरोध दर्ज कराने का यही एक रास्ता बचा है कि जिन लेखकोँ को साहित्य अकादमी सम्मान मिला है वे उसे वापस कर दे? जिन्हें नहीँ मिला वो अपना विरोध कैसे दर्ज करेंगे? क्या किसी और ढंग से दर्ज किए जाने वाले विरोध को भी वही मान्यता मिलेगी जो सम्मान वापस कर के विरोध दर्ज करने वालो को मिल रही है?

महत्वपूर्ण यह है कि साहित्य अकादमी का सम्मान सरकार नहीँ देती. यदि यह सरकार ही देती है तो सम्मान उसी सरकार को लौटाना चाहिए जिसने दिया था. संदर्भित साहित्यकारों को कांग्रेस के शासन काल मेँ सम्मान मिला था इसलिए उचित यही होता कि सम्मान उसी को लौटाया जाता.

साहित्य अकादमी कहने के लिए ही सही एक स्वायत्तशासी संस्था है जिसमेँ लेखकों के माध्यम से लेखकों को सम्मान दिया जाता है. मतलब यह कि सरकार या अकादमी नहीँ बल्कि वरिष्ठ लेखकों का एक पैनल किसी लेखक को सम्मान देता है. इस प्रकार सम्मान लौटाने का अर्थ यह है कि उस पैनल को सम्मान लौटाया जा रहा है जिसने लेखक को सम्मान दिया था.

इस बात को कौन नहीँ जानता कि साहित्य अकादमी के कुछ पुरस्कार विवाद मेँ भी रहे हैँ और उनके साथ जोड़-तोड़ की अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैँ. यदि ऐसा सम्मान जो जोड़ - तोड़ से प्राप्त किया गया है तो उसे लौटना कहाँ तक किसी प्रतिरोध का सूचक बनता है?

यह कहा जा रहा है कि साहित्य अकादमी ने लेखको की हत्या और मौलिक अधिकारों के हनन पर कोई बयान नहीँ दिया. क्या इससे पहले साहित्य अकादमी या अन्य दूसरी अकादमियों ने ऐसे बयान दिए है? यदि नहीँ तो आज उन से यह आशा क्यों की जा रही है? 

मैँ उन लेखकों और उनकी भावनाओं का सम्मान करता हूँ और उनके साथ अपने को खड़ा पाता हूँ जिन्होंने सम्मान लौटा दिए हैँ लेकिन निवेदन यह है कि सम्मान लौटा देना मोदी - भाजापा विरोध का मानक या आधार न माना जाए.

असग़र वजाहत
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साहित्य अकादेमी आयोजित करेगा 'गोपीनाथ महांति' जन्मशती संगोष्ठी

साहित्य अकादमी सम्मान , नेहरु सम्मान, ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित ओड़िआ उपन्यासकार पद्मभूषण गोपीनाथ महांति  की जन्मशती आगामी १-२ फरवरी को साहित्य अकादमी, दिल्ली में मनायी जायेगी. 


विस्तृत जानकारी

विषयक जन्मशती संगोष्ठी : गोपीनाथ महांति व्यक्तित्व एवं कृतित्व


1-2 फ़रवरी 2015
साहित्य अकादेमी
रवीन्द भवन, 35, फ़ीरोज़ शाह मार्ग, नई दिल्ली 110 001

कार्यक्रम 

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

उद्घाटन सत्र: पूर्वाह्न 11.00 बजे-अपराह्न 1.00 बजे
स्वागत: के. श्रीनिवासराव
सचिव, साहित्य अकादेमी
आरंभिक व्याख्यान: गौरहरि दास
संयोजक, ओडिया परामर्श मंडल, साहित्य अकादेमी
उद्घाटन व्याख्यान: नामवर सिंह / प्रख्यात हिन्दी आलोचक
अध्यक्षीय व्याख्यान: विश्वनाथ प्रसाद तिवारी / अध्यक्ष, साहित्य अकादेमी
बीज-भाषण: सीताकांत महापात्र / साहित्य अकादेमी के महत्तर सदस्य एवं प्रख्यात ओडिया लेखक
विशिष्ट अतिथि: ओंकारनाथ महांति / संस्थापक, गोपीनाथ महांति फाउंडेशन ट्रस्ट
धन्यवाद ज्ञापन

भोजन

प्रथम सत्र: अपराह्न 2.00 बजे- 3.30 बजे
गोपीनाथ महांति कृत नाटक, निबंध और आत्मकथा
अध्यक्ष: जे. पी. दास
आलेख: के. के. महापात्र
संग्राम जेना
अरुण महांति

चाय

द्वितीय सत्र: अपराह्न 4.00 बजे - सायं 5.30 बजे
गोपीनाथ महांति और सरला दास
अध्यक्ष: सुमन्यु सत्पथी
आलेख: राजकिशोर मिश्र
बसंत कुमार पांडा
सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

तृतीय सत्र: पूर्वाह्न 10.00 बजे-11.30 बजे

गोपीनाथ महांति का कथा-संसार
अध्यक्ष: प्रतिभा राय
आलेख: विक्रम केशरी दास
गौरकिशोर दास
यशोधारा मिश्र

चाय

चतुर्थ सत्र: मध्याह्न 12.00 बजे- अपराह्न 1.30 बजे

स्वरों के रूपकार: गोपीनाथ महांति और जनजातीय संसार
अध्यक्ष: शांतनु कुमार आचार्य
आलेख: जतिन नायक
पी. सी. पटनायक
जयंत कुमार बिस्वाल
राजकुमार

भोजन

पंचम सत्र: अपराह्न 2.30 बजे-4.00 बजे

भारतीय साहित्य में गोपीनाथ महांति का स्थान
अध्यक्ष: रघुवीर चौधरी
आलेख: सायंतन दासगुप्ता
एन. मनु चक्रवर्ती
पी. पी. रवीन्द्रन
बी. एन. पटनायक

भाषांतर अनुभव

साहित्य अकादमी ने हाल ही में "भाषांतर अनुभव" नामक कार्यक्रम की एक नई श्रृंखला शुरू की है। इस कार्यक्रम के अंतर्गत, प्रख्यात भारतीय कवि अपनी कुछ कविताओं का पाठ करते हैं व साथ-साथ उसी कविता का अनुवाद उस विशेष क्षेत्र की अलग-अलग भाषाओं में पढ़ा जाता है। 

15-16 दिसम्बर 2014 को साहित्य अकादमी अपने सभागार में उत्तर भारतीय भाषाओं हिन्दी, उर्दू, कश्मीरी, राजस्थानी, पंजाबी आदि के कवियों के साथ ऐसे ही कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। 




कार्यक्रम

सोमवार, 15 दिसम्बर, 2014


उद्घाटन सत्र : पूर्वाहन 10:30 बजे
स्वागत : के श्रीनिवासराव (सचिव, साहित्य अकादमी)
अध्यक्षीय व्याख्यान : विश्वनाथ प्रसाद तिवारी (अध्यक्ष, साहित्य अकादमी)
उद्घाटन व्याख्यान : सत्यव्रत शास्त्री (प्रख्यात संस्कृत विद्वान)
धन्यवाद ज्ञापन

चाय

प्रथम सत्र : पूर्वाह्न 11:30 बजे – अपराह्न 1:00 बजे
अध्यक्ष : अर्जुन देव चारण
कविता पाठ : लीलाधर जगूड़ी
सुरजीत पातर

भोजन

द्वितीय सत्र : अपराह्न 2:00 बजे – अपराह्न 3:30 बजे
अध्यक्ष : केदारनाथ सिंह
कविता पाठ : वनीता
गुलाम नबी गौहर

चाय

तृतीय सत्र : अपराह्न 4:00 बजे – अपराह्न 5:30 बजे
अध्यक्ष : पद्मा सचदेव
कविता पाठ : राम करण शर्मा
चंद्रभान ख़याल

मंगलवार, 16 दिसम्बर, 2014


चतुर्थ सत्र : पूर्वाह्न 10:00 बजे – पूर्वाह्न 11:30 बजे
अध्यक्ष : सुरजीत पातर
कविता पाठ : सत्यव्रत शास्त्री
ख़लील मामून

चाय

पंचम सत्र : मध्याह्न 12:00 बजे – अपराह्न 1:30 बजे
अध्यक्ष : राम करण शर्मा
कविता पाठ : पद्मा सचदेव
मालचंद तिवारी

भोजन

षष्ठ सत्र : अपराह्न 2:30 बजे – अपराह्न 4:30 बजे
अध्यक्ष : चंद्रभान ख़याल
कविता पाठ : 
केदारनाथ सिंह
अर्जुन देव चारण
विजय वर्मा
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सर्वमंगला (अवधी) रचयिता आचार्य विश्वनाथ पाठक का निधन | Sarvamangala Author Acharya Vishwanath Pathak Passed Away

आचार्य विश्वनाथ पाठक पंचतत्व में विलीन

Sarvamangala Author Acharya Vishwanath Pathak Passed Away


फैजाबाद
सर्वमंगला और घर कै बात जैसी मार्मिक कृतियों के प्रणेता, साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त अवधी के सर्वप्रमुख रचनाकार आचार्य विश्वनाथ पाठक का पार्थिव शरीर विगत् मंगलवार को पंचतत्व में विलीन हो गया। वे 83 वर्ष के थे और विगत 3 नवम्बर 2014 की रात को उन्होंने इस दुनिया से विदा ली। स्थानीय जमथराघाट पर उनके ज्येष्ठ नाती वसु उपाध्याय ने मुखग्नि दी। इस अवसर पर शहर के अनेक साहित्यकार, कवि, पत्रकार आदि उपस्थित रहे। पालि प्राकृत और संस्कृत अवधी भाषा के उत्कृष्ट विद्वान के रुप में चर्चित  पाठक विगत 7 वर्षो से अपनी पुत्री के नैयर कालोनी स्थित घर में निवास कर रहे थे। लम्बे अरसे से बीमारी के कारण उनका लिखना, पढ़ना भी बन्द था। पाठक जी को उ.प्र. हिन्दी संस्थान और संस्कृत संस्थान ने पुरस्कृत किया था। वर्ष 2008-2009 में साहित्य अकादमी ने उन्हें अवधी भाषा में महत्वपूर्ण कार्य करने पर ‘सर्वमंगला’ पर भाषा सम्मान प्रदान किया। यद्यपि पाठक जी की सर्वाधिक ख्याति ‘सर्वमंगला’ के कारण है। तथापि उन्होने गाथा सप्तशती, वज्जालग्ग, तरंगलोला, देशीनाम माला कबीर शतकम् आदि रचनाओं का भी प्रणयन किया। अभी हाल ही में ही उनकी बहुप्रतीक्षित कृति ‘घर कै कथा’ प्रकाशित हुई है। आचार्य जी ने लम्बे अरसे तक होबर्ट इ. का. टाण्डा में संस्कृत का अध्यापन किया। उनकी विद्वता का प्रभाव था कि सेवानिवृत्त के बाद पाश्र्वनाथ शोधपीठ काशी में उन्होने शोध अधिकारी का कार्य किया। संस्कृत पालि, प्राकृत, अपभ्रंश में उनकी विद्वता उक्त क्षेत्रों में उनके गहन अध्ययन अनुशीलन का ही परिणाम था। पिछले 5-6 वर्षो में उनके करीबी रहे ‘आपस’ के निदेशक डाॅ. विन्ध्यमणि ने एक मुलाकात में बताया- सम्पूर्ण उत्तरी भारत में आचार्य विश्वनाथ पाठक जैसा पालि प्राकृत, अपभ्रंश, संस्कृत, अवधी का कोई और मर्मी विद्वान नहीं है। यह दूसरी बात है कि उनकी अवधी की विद्वता को ही यह साहित्यिक जगत जानता है किन्तु प्राकृत पालि का उनका ज्ञान साहित्य जगत कम जानता है। पाठक जी की अन्त्येष्टि में डाॅ. परेश पाण्डेय, डाॅ. रघुवंश मणि, स्वप्निल श्रीवास्तव, मिश्रीलाल वर्मा, डाॅ. सत्यनारायण पाण्डेय, दीपक मिश्र, आलोक कुमार गुप्ता, पंचमुखी हनुमान मंदिर के मिथिलेश नन्दिनी शरण, साकेत महा.वि. के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ. जनार्दन उपाध्याय, डाॅ. विन्ध्यमणि, जगदम्बा प्रसाद मिश्र आदि उपस्थित रहे। 

आचार्य विश्वनाथ पाठक शोध संस्थान (आपस) द्वारा आयोजित शोक गोष्ठी में वक्ताओं ने उनके अवदान और विद्वता की चर्चा की। साकेत महाविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ जनार्दन उपाध्याय ने कहा पाठक जी अवधी काव्य के ऐसे रचनाकार हैं जिनके भाषा प्रयोग में अवध क्षेत्र की अन्तरात्मा पूर्णतः मार्मिकता के साथ सजीव हुई है। उनके दोनों काव्य ‘सर्वमंगला’ और ‘घर कै कथा’ इसके जीवन्त साक्ष्य हैं। पाठक जी के अवसान से आधुनिक युग की अवधी काव्य परम्परा की अपूरणीय क्षति हुई है। आलोचक डाॅ. रघुवंशमणि ने कहा कि श्री विश्वनाथ पाठक जी अपने समय में अवधी भाषा के सबसे सशक्त रचनाकार रहे हैं। उन्होंने अवध क्षेत्र की जनता द्वारा बोली जाने वाली अवधी को अपनी रचनाधर्मिता का माध्यम बनाया। भाषा के चुनाव के संदर्भ में यह महत्वपूर्ण बात है कि उन्हें संस्कृत जैसी शास्त्रीय भाषा के साथ-साथ हिन्दी, प्राकृत और अपभ्रंश तक का ज्ञान था, मगर उन्होंने अवधी को ही अपनी सृजनात्मक अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने उन्हें लोकपक्ष का चितेरा कवि और शास्त्रीय विद्वान बताया। डाॅ. परेश पाण्डेय ने कहा विश्वनाथ पाठक जी अवधी के उन्नायक कवि थे। उन्हें अवध क्षेत्र की ग्रामीण जनता के लोक व्यवहार का अद्भुत ज्ञान था। यह बात कम लोग जानते है कि पाठक जी पालि प्राकृत और अपभ्रंश के भी प्रकाण्ड पण्डित थे। ‘आपस’ के निदेशक डाॅ. विन्ध्यमणि ने कहा - पाठक जी की विद्वता में प्राकृत अपभ्रंश अवधी का त्रिकोण समाया हुआ था। यह अलग बात है कि आज प्राकृत और अपभ्रंश समझने वाले कम ही लोग है। उनकी ध्वन्यात्मक विवक्षा अद्भुत है। दीपक मिश्र ने कहा पाठक जी के निधन से समकालीन अवधी कविता का मर्मी, गूढ विद्वान हमने खो दिया है। उनकी प्राकृत, अपभं्रश विद्वता को साहित्य जगत प्रयोग में न ला सका। राजकीय आश्रम पद्धति इं.का.बरवा, मसौधा के पूर्व प्रधानाचार्य डाॅ. ओंकार त्रिपाठी ने कहा वे जब कभी मेरे मिल्कीपुर आवास पर आते तो सर्वमंगला का छन्द अवश्य सुनाते। पालि, प्राकृत अवधी का ऐसा विद्वान अब मिलना असंभव है। शोक गोष्ठी में शामिल होने वालों में डाॅ. कोमल शास्त्री, डाॅ. कृष्णगोपाल त्रिपाठी, जगदम्बा प्रसाद, डाॅ. शिव प्रसाद मिश्र, आदि शामिल रहे।

साहित्य अकादेमी "युवा साहिति" युवाओं का एक राष्ट्रीय मंच | Sahitya Akademi "Yuva Sahiti" a national youth forum

युवा साहिति - साहित्योत्सव 2014


साहित्य अकादेमी ने युवाओं को एक राष्ट्रीय मंच देने के लिए यह कार्यक्रम विशेष तौर से शुरू किया है। - के. श्रीनिवासराव


नई दिल्ली 13 मार्च।

साहित्य अकादेमी के साहित्योत्सव के तीसरे दिन आज आयोजित युवा साहिति कार्यक्रम में पूरे देश से आए 24 भारतीय भाषाओं के युवा कवियों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं।

          उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लीलाधर मंडलोई ने कहा कि कविता की सबसे बड़ी उपलब्धि यह होनी चाहिए कि वह अपने समय में झूठी साबित न हो। नवे दशक से शुरु हुई कविता आज तक धुंधलके में घिरी है। उसके पास अपना कोई केंद्रीय रूपक नहीं है। वर्तमान कविता आज भी उत्तर ढूँढ़ रही है।

आगे उन्होंने कहा कि युवा कविता का अभी सम्यक मूल्यांकन होना हैं। अभी न ही उसके पास आलोचक हैं और न ही उन पर केंद्रित पत्रिकाएँ। लेकिन मैं फिर भी आश्वस्त हूँ कि युवा कवि अलिखित त्रासदियों की तह तक पहुँचने और भूमंड़लीकरण तथा तकनीक के प्रभाव के बीच प्रतिरोध की आवाज को जिंदा रखेंगे।

कार्यक्रम के आरंभ में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने सभी प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि साहित्य अकादेमी ने युवाओं को एक राष्ट्रीय मंच देने के लिए यह कार्यक्रम विशेष तौर से शुरू किया है।

          इस अवसर पर साहित्य अकादेमी की नवोदय योजना के अंतर्गत प्रकाशित सात पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इनमें दो हिंदी कवियों प्रभात (अपनों में नहीं रह पाने का गीत) और प्रांजल धर (अंतिम विदाई से तुरंत पहले) के कविता संग्रह भी शामिल हैं। अन्य विमोचित कविता-संग्रहों में दो अंग्रेज़ी तथा नेपाली, संताली, डोगरी के एक-एक संग्रह शामिल हैं।

इस अवसर पर मराठी-हिंदी के प्रख्यात अनुवादक प्रकाश भातंब्रेकर विशेष रूप से उपस्थित थे।

अगले तीन अन्य सत्रों में जिनकी अध्यक्षता क्रमशः जे.पी. दास, बलदेव वंशी, दिनेश कुमार शुक्ल ने की में 22 भाषाओं के युवा कवियों ने अपनी कविताएँ प्रस्तुत कीं।

कार्यक्रम का संचालन अकादेमी उपसचिव ब्रजेन्द्र त्रिपाठी ने किया।

साहित्य अकादमी सम्मान 2013 | Sahitya Akademi Award 2013

11 मार्च 2013, नई दिल्ली
साहित्य अकादमी ने जावेद अख्तर, सुबोध सरकार और मृदुला गर्ग समेत 24 जाने माने कवियों एवं साहित्यकारों को यहां अपने वाषिर्क उत्सव में सम्मानित किया.


साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने एक समारोह में कहा कि इन महान साहित्यकारों ने भारतीय साहित्य को जो विशाल योगदान दिया है, साहित्य अकादमी उसकी तुलना में उन्हें सम्मानित कर महज आभार व्यक्त रही है. साहित्य अकादमी ने कवियों, लेखकों, निबंधकारों एवं नाटककारों को अंग्रेजी समेत 24 मान्यता प्राप्त भारतीय भाषाओं में छपी उनकी कृतियों के लिए पुरस्कृत किया.
साहित्य अकादमी के सचिव के श्रीनिवासराव ने कहा कि यदि हम भारतीय लेखकों एवं दार्शनिकों द्वारा लिखी बेहतरीन पुस्तकों को पढ़ने और उन पर मनन करने के लिए थोड़ा अधिक समय दें तो हममें से प्रत्येक को उनके ज्ञान से लाभ होगा और हम आज जो हैं, उससे बेहतर इंसान बनेंगे. साहित्य अकादमी ने जावेद अख्तर (उर्दू), अंबिका दत्त (राजस्थानी) और सुबोध सरकार (बंगाली) जैसे कवियों तथा मृदुला गर्ग (हिंदी), मनमोहन (पंजाबी) और आरएनजोए डीक्रूज (तमिल) जैसे जाने माने उपन्यासकारों को पुरस्कृत किया.

इनके अलावा रबिंद्र सरकार (असमिया), अनिल बोरो (बोडो), सीता राम सपोलिया (डोगरी), तेमसुला एओ (अंग्रेजी), चीनू मोदी (गुजराती), सीएन रामचंद्रन (कन्नड़), मोहिउद्दीन रेशी (कश्मीरी), तुकाराम राम शेत (कोंकणी), सुरेश्वर झा (मैथिली), एम एन पालूर (मलयालम) और माखोनमणि मोंगसाबा (मणिपुरी) को सम्मानित किया गया.

इस दौरान सतीश कलसेकर (मराठी), मनबहादुर प्रधान (नेपाली), बिजय मिश्रा (ओड़िया), राधाकांत ठाकुर (संस्कृत), अजरुन चरण हेमबरन (संताली), नामदेव ताराचंदानी (सिंधी) और कात्यायनी विद्माहे (तेलुगू) को भी पुरस्कृत किया गया.

Sahitya Akademi Award Winners 2013

Rabindra Sarkar (Assamese), Subodh Sarkar (Bengali) Anil Boro (Bodo), Sita Ram Sapolia (Dogri) , Temsula Ao (English) Chinu Modi (Gujarati), Mridula Garg (Hindi), C.N. Ramachandran (Kannada), Mohi-ud-Din Reshi (Kashmiri), Tukaram Rama Shet (Konkani), Sureshwar Jha (Maithili)
M.N. Paloor (Malayalam), Makhonmani Mongsaba (Manipuri), Satish Kalsekar (Marathi), Manbahadur Pradhan (Nepali), Bijay Mishra (Odia), Manmohan (Punjabi), Ambika Dutt (Rajasthani), Radhakant Thakur (Sanskrit), Arjun Charan Hembram (Santali), Namdev Tarachandani (Sindhi), R.N. Joe D’ Cruz (Tamil), Katyayani Vidmahe (Telugu), Javed Akhtar (Urdu).

Welcome Address : K. Sreenivasarao (Secretary, Sahitya Akademi)
Presidential Address : Vishwanath Prasad Tiwari (President, Sahitya Akademi)
Citation and Presentation of Awards
Address by Chief Guest : Ramakant Rath (Eminent Odia Poet & Fellow, Sahitya Akademi)
Vote of Thanks : Chandrashekhar Kambar (Vice-President, Sahitya Akademi)