हम से अब नादानियाँ होती नहीं - सोनरूपा विशाल
जीवंत भाषा जनता के कारखाने में ढलती है - राहुल सांकृत्यायन
पुराना मार्क्सवाद सेक्सुअलिटी नहीं समझने देता - अभय दुबे
ग्यारह रचना आभा की
रक्षा में हत्‍या -  मुंशी प्रेमचंद
लोकार्पण:  ‘ख़्वाब ख़याल और ख़्वाहिशें’ - कैप्टन नूर
नव समानान्तर सिनेमा - सुनील मिश्र
टेसू - संजय वर्मा "दृष्टि"
गोल्डी साहब के साथ होली - दिलीप तेतरवे

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ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
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कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
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