स्मृतियाँ भी तो थकाती हैं कभी-कभी, जब वे ठाट की ठाट उमड़ती हुई बे-लगाम चली आती हैं उदासियों का वसंत हृषीकेश सुलभ ≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡≡ ज़िन्दगी…
आगे पढ़ें »हृषीकेष सुलभ बहीखाता (शब्दांकन उपस्तिथि) कहानी: हाँ मेरी बिट्टु कहानी: हलंत कहानी: उदासियों का वसंत कहानी: स्वप्न जैसे…
आगे पढ़ें »असली बात नासिरा शर्मा पीर–औलिया इनसानों में फ़र्क़ नहीं करते । यह दर सबके लिए खुला है - अमीर–ग़रीब, हिंदू–मुसलमान, छोटा–बड़ा । ख़बरदार, जो फिर…
आगे पढ़ें »जब भी खाने को दौड़ी है तन्हाइयाँ मेरी इमदाद को दौड़ी आती ग़ज़ल ग़मज़दा जब हुई, पास आती ग़ज़ल गुदगुदा कर है मुझक…
आगे पढ़ें »अशोक वाजपेयी को दूसरा पोलिश सम्मान हिन्दी कवि-आलोचक और संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी को पोलैण्ड सरकार के विदेश मंत्रालय ने अन्तरराष्ट्रीय क्षेत्…
आगे पढ़ें »मोदी और दलित तुलसी राम मोदी का संघ परिवार तर्क देता है कि दलितों के आरक्षण से सवर्णों के साथ अन्याय होता है. इसलिए आरक्षण समाप्त करके …
आगे पढ़ें »मैं दिल्ली नहीं छोड़ सकता अजित राय नसरुल्ला और उनके जैसे हजारों–लाखों लोग जो भारत से बेइंतहा प्यार करते हैं, हम उनके लिए और कुछ नहीं कर सकते …
आगे पढ़ें »संवेदना, प्रयोग और बिम्ब की अनुपम छटा अमिय बिन्दु कुमार अनुपम स्मृति के कवि हैं। स्मृतियों का समुच्चय उनके मन पर आघात करता है और फिर पककर कव…
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Vandana Rag
हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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