लंबी कहानी अंधेरों से आती आवाज़ें प्रेमचंद गांधी मेरी आदत है कि मैं आम तौर पर अंजान नंबरों से आने वाले फोन नहीं उठाता हूं। लेकिन फोन जब सरका…
आगे पढ़ें »वर्तमान साहित्य "अगस्त-सितम्बर 2014" सलाहकार संपादक: रवीन्द्र कालिया | संपादक: विभूति नारायण राय | कार्यकारी संपादक: भारत भारद्…
आगे पढ़ें »फिल्म समीक्षा इस फिल्म का लुत्फ लेना है तो कहानी पर ज्यादा ध्यान मत दीजिए ऋतिक ही रोशन रोशन दिव्यचक्षु बैंग बैंग निर्देशक-सिद्धार्थ…
आगे पढ़ें »उधड़ा हुआ स्वेटर सुधा अरोड़ा यों तो उस पार्क को लवर्स पार्क कहा जाता था पर उसमें टहलने वाले ज्यादातर लोगों की गिनती वरिष्ठ नागरिकों में की जा सक…
आगे पढ़ें »Prem Bhardwaj on Muktibodh & Fascism पार्टनर, बस अब फासिज्म आ जाएगा प्रेम भारद्वाज वह चलता रहा। उसका चलना एक अंधेरे से दूसरे अंधेरे तक का…
आगे पढ़ें »Sudha Om Dhingra's Conversation with Devi Nangrani ग़ज़ल अब हमारी तहज़ीब की आबरू बन गई है - देवी नागरानी दर्द नहीं दामन में जिनके ख़ाक वो जी…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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