कैसे बीते
दिवस हमारे
हम जाने या राम!
*
सहती रही
सब कुछ काया,
मलिन हुआ
परिवेश,
सूख चला
नदिया का पानी,
सारा जीवन
रेत,
उगे काँस
मन के कूलों पर
उजड़ा रूप ललाम.
**
प्यार हमारा
ज्यों इकतारा ,
गूँज-गूँज
मर जाय,
जैसे निपट
बावला जोगी
रो-रो
चित उडाय ,
बात पीपल
घर-द्वार-सिवाने
सबको किया प्रणाम .
***
आँगन की
तुलसी मुरझाई,
क्षीण हुए
सब पात,
सायंकाल
डोलता सर पर,
बूढा नीम
उदास,
हाय रे! वह
बचपन का घरवा
बिना दिए की शाम.
****
सुन रे जल
सुन री ओ माटी
सुन रे
ओ आकाश,
सुन रे ओ
प्राणों के दियना,
सुन रे
ओ वातास,
दुःख की
इस तीरथ याश में
पल न मिला विश्राम.
प्रेम शर्मा
('कादम्बिनी', फरवरी, १९९६)
दिवस हमारे
हम जाने या राम!
*
सहती रही
सब कुछ काया,
मलिन हुआ
परिवेश,
सूख चला
नदिया का पानी,
सारा जीवन
रेत,
उगे काँस
मन के कूलों पर
उजड़ा रूप ललाम.
**
प्यार हमारा
ज्यों इकतारा ,
गूँज-गूँज
मर जाय,
जैसे निपट
बावला जोगी
रो-रो
चित उडाय ,
बात पीपल
घर-द्वार-सिवाने
सबको किया प्रणाम .
***
आँगन की
तुलसी मुरझाई,
क्षीण हुए
सब पात,
सायंकाल
डोलता सर पर,
बूढा नीम
उदास,
हाय रे! वह
बचपन का घरवा
बिना दिए की शाम.
****
सुन रे जल
सुन री ओ माटी
सुन रे
ओ आकाश,
सुन रे ओ
प्राणों के दियना,
सुन रे
ओ वातास,
दुःख की
इस तीरथ याश में
पल न मिला विश्राम.
प्रेम शर्मा
('कादम्बिनी', फरवरी, १९९६)
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