मेरे फिल्मी रिश्ते - राजेन्द्र यादव


मेरी तेरी उसकी बात

मेरे फिल्मी रिश्ते - राजेन्द्र यादव 

(सम्पादकीय, 'हंस' फरवरी 2013) 
     हम लोगों ने तय किया कि संजय सहाय की फिल्मी जानकारियों और अनुभवों का लाभ उठाते हुए भारतीय सिनेमा के सौ साल पर एक विशेषांक निकाल डाला जाए. हालांकि सैकड़ों पत्रिकाएं ऐसे विशेषांक निकाल रही हैं या निकालने की घोषणा कर चुकी हैं, लेकिन संजय चूंकि जगह-जगह देशी-विदेशी फिल्मों का फेसिटवल कराते रहे हैं, इसलिए वे जो निकालेंगे वो अपने ढंग का अलग ही होगा. स्वयं उनकी कहानी पर गौतम घोष ने ‘पतंग’ नाम से फिल्म बनार्इ थी और अनेक फिल्मी हसितयों से उनके व्यक्तिगत परिचय रहे हैं. विदेशी फिल्मों का तो विलक्षण संग्रह उनके अपने पास है. इस मामले में उनके दूसरे जोड़ीदार मेरी जानकारी में सिर्फ ओम थानवी हैं.
बासु मन्नू की कहानियों पर फिल्में और सीरियल बनाते रहे और उधर हमारी दोस्ती एक अलग ही धरातल पर चलती रही.

     यह आयोजन 'रजनीगंधा’ फिल्म के प्रदर्शन के सौ दिन पूरे होने पर किया गया था. फिल्म लगातार सिनेमा हाउसों में सौ दिन से चल रही थी और लोग दिल खोल कर तारीफ कर रहे थे. आयोजन बंबर्इ के जुहू बीच पर 'सन एंड सैंड होटल में समुद्र के सामने की ओर था. निर्माता सुरेश जिंदल के साथ बासु चटर्जी और लेखिका मन्नू इस आयोजन के मुख्य आकर्षण-केंद्र थे, इसलिए फिल्मी और गैर-फिल्मी लोगों से घिरे हुए थे. 'सारा आकाश के बाद यह बासु की दूसरी फिल्म थी. सुरेश जिंदल ने 'रजनीगंधा’ के बाद 'शतरंज के खिलाड़ी’ बनार्इ और एटनबरो की ‘गाँधी के निर्माण में सहयोग किया था. कमलेश्वर मुझे एक मेज़ पर बैठा कर खुद अपने जनसंपर्क अभियान में मिलजुल रहा था. हर तरफ लोग गिलास उठाए बहसों और चुटकुलों पर झूम रहे थे. अचानक मेरी मेज पर एक साहब आए और बोले कि क्या मैं यहां बैठ सकता हूं. मैंने देखा देवानंद थे. उन्होंने अपना परिचय देते हुए कहना शुरू किया कि राजेन जी, मैं एक बार जिससे मिल लेता हूं, उसे भूलता नहीं हूं. आप मुझे दस साल बाद भी फोन करेंगे तो मैं आपका नाम लेकर ही जवाब दूंगा. इसके बाद वे तरह- तरह की बातें बताते रहे. फिर अचानक उन्होंने अपने सिर के बाल खींचते हुए मुझसे पूछा कि ये बाल आपको नकली लगते हैं; क्या मैंने इन्हें काला रंग लिया है? आप गौर से देखकर बताइए. वे बार-बार मुझसे तस्दीक कराना चाहते थे कि उनके बाल असली हैं और रंगे नहीं गए हैं. मैं मजा ले रहा था. बैरा आ कर उनके गिलास को बार-बार भर जाता था. बातों-बातों में मैंने पूछा कि जिस तरह हम तीनों - यानी मैं, मोहन राकेश और कमलेश्वर - ने कथा-साहित्य को नया मुहावरा दिया है, उसी तरह आप तीनों - यानी देवानंद, राजकपूर और दिलीप कुमार - ने भी सिनेमा को नर्इ पहचान दी है. इस पर वे सोचते रहे, जवाब नहीं दिया. शायद वे साहित्य से उतने परिचित नहीं थे. उसके बाद कभी देवानंद से मेरी मुलाकात नहीं हुर्इ और न इस बात की पुषिट करने का मौका मिला कि वे मुझे भूल गए हैं या पहचानते हैं. हमलोग कमलेश्वर के यहां ठहरे थे. अगली ही शाम कमलेश्वर के यह बासु का खाना था. खाने के बाद मन्नू को गायत्री भाभी के जिम्मे छोड़ कर हमलोग कार से मटरगश्ती करने निकल पड़े. रात के ग्यारह- बारह बजे का समय रहा होगा. रास्ते भर बासु और कमलेश्वर मुझे समझाते रहे कि अब मैं बंबर्इ आ जाऊं और फिल्मों के लिए कहानियां लिखूं. वे दोनों मेरी भरपूर मदद करेंगे. यही नहीं, साल-भर के लिए मेरे रहने की व्यवस्था भी वे ही कर देंगे. न चले तो साल-भर बाद लौट जाऊं. वे इतने प्यार और आग्रह से मुझे समझा रहे थे कि एक बार तो मैं सचमुच ही विचलित होने लगा, लेकिन फिर तय किया कि यह मेरी दुनिया नहीं है. लौटते हुए उनसे कहा कि मैं सचमुच आप जैसे दोस्तों का आभारी हूं कि मुझे लेकर आप इस तरह सोचते हैं और इतना कुछ करना चाहते हैं, मगर मुझे लगता नहीं है कि मैं यहां आकर सफल हो पाऊंगा, इसलिए माफी चाहता हूं. वह रात आज भी मेरे दिमाग में खुदी हुर्इ है जब कमलेश्वर गाड़ी चला रहा था और बगल में मैं था, पीछे बासु. दोनों ही प्यार भरे आग्रह से मुझे अपनी दुनिया में शामिल करना चाहते थे और एक साल का सारा बोझ उठाने को तैयार थे.

     "फिल्मी दुनिया से मेरा सबसे पहला संपर्क 'सारा आकाश’ के दौरान हुआ. अरुण कौल, बासु इत्यादि ने एक फिल्म फोरम बनाया हुआ था और उसकी ओर से वे पूना के एनएफडीसी से 'सारा आकाश के लिए लोन स्वीकृत करवा चुके थे. बासु उसी सिलसिले में मुझसे मिलने शक्तिनगर में आए थे. वे दरियागंज के फ्लोरा होटल में रुके थे. 'सारा आकाश के अनुबंध की सारी बातें हमने शक्तिनगर में की. फिल्म छोटे बजट की थी, इसलिए मुझे केवल दस हजार रुपये कहानी के दिये गए. अब पटकथा का सवाल था. फ्लोरा होटल में शाम को मित्रों के साथ बैठे कमलेश्वर ने छाती ठोकते हुए कहा कि इस फिल्म की पटकथा मैं लिखूंगा. उसे टीवी में काम करने का अनुभव था और 'परिक्रमा वाला धारावाहिक अभी शुरू नहीं हुआ था. बाद में कमलेश्वर ने जो पटकथा भेजी उस पर बासु ने जगह-जगह अपनी टिप्पणियां दी थीं. उनका कहना था कि यह फिल्म की पटकथा नहीं है. सिर्फ उपन्यास को जगह-जगह से विस्तार दे दिया गया है. इसके बाद उन्होंने स्वयं पटकथा लिखी. कमलेश्वर की लिखी सिक्रप्ट आज भी मेरी फाइलों में सुरक्षित रखी है.


     'सारा आकाश’ में एकदम नर्इ अभिनेत्री मधुछंदा को बासु ने चुना. वस्तुत: वे पहले पूना फिल्म इंस्टीट्यूट की शबाना आज़मी को लेना चाहते थे, मगर कोर्स पूरा होने तक शबाना कहीं बाहर काम नहीं कर सकती थीं. नायक के लिए उन्होंने चुना मासूम से लगने वाले राकेश पांडे को. भाभी के रूप में तरला मेहता थीं और पिता की भूमिका कर रहे थे ए के हंगल. बासु ने लोकेशन के तौर पर राजामंडी वाला हमारा पुश्तैनी घर ही चुना था. और इस बात पर बहुत प्रसन्न थे कि उन्हें कोर्इ अतिरिक्त सेट नहीं लगाना पड़ा. फिल्म जब पूरी होकर मुझे दिखार्इ गर्इ तो पहली बार मुझे बिल्कुल ही पसंद नहीं आर्इ. क्योंकि मेरे दिमाग में उपन्यास था और वे जगहें थीं जहां वह घटित हुआ था. समर राजामंडी बाजार से निकलता और अचानक ही अगले सीन में सुभाष पार्क जा पहुंचता या जिस कमरे से प्रभा बाहर निकलती उसके बाद वास्तव में लोहे की जाली वाला एक खुला आंगन था. मगर वह जा पहुंचती हमारे नये बने मकान के ड्राइंगरूम में. ये झटके मुझे फिल्म को पूरी तरह समझने में बाधक थे. बासु मन्नू की कहानियों पर फिल्में और सीरियल बनाते रहे और उधर हमारी दोस्ती एक अलग ही धरातल पर चलती रही. 'सारा आकाश’ पर विस्तार से विचार-विनिमय के लिए वे एक बार शक्तिनगर में हमारे यहां ही ठहरे. छह-सात दिन रुके. हमलोग रोज शाम को बोतल निकाल कर बैठ जाते. शुरू के उत्साह में मन्नू ने पहले दो-एक दिन तो तरह-तरह के सलाद और नमकीन दिये. तीसरे या चौथे दिन हमलोग केवल भुने चने के साथ दारू पी रहे थे. मैंने बासु को बताया कि आपके लिहाज से मन्नू कुछ बोलती नहीं है मगर उसे घर में यह दारूबाजी बिल्कुल पसंद नहीं है. गर्मी के दिन थे. नंगे बदन लुंगी लपेटे बासु फर्श पर बैठे थे. प्रसन्न हो कर एकदम लेट गए और बोले, अहा अब मैं बिल्कुल ऐट होम महसूस कर रहा हूं. यानी उनके घर पर भी यही होता था. मूलत: उनका परिवार मथुरा का रहने वाला था और किशोर साहू आगरा में उनकी शिक्षा हुर्इ थी. कुछ लड़के मिलकर साइकिलों पर फिल्में देखने आगरा आते और वापस लौट जाते. चूंकि मेरे और उनके प्रारंभिक विकास की संस्कृति एक जैसी ही थी इसलिए बहुत जल्दी हमलोगों के तार आपस में जुड़ गए. वे मस्तमौला, खाने-पीने वाले जिंदादिल इंसान थे. जिन दिनों 'सारा आकाश की शूटिंग चल रही थी, हमलोग रोज ही शाम को कुछ दोस्तों के साथ बैठते थे. संयुक्ता के साथ हुर्इ घटना का जिक्र मैं पहले भी कर चुका हूं. संयुक्ता बेहद ही खूबसूरत और विदुषी लड़की थी. उसने संस्कृत और भाषा विज्ञान में एमए किया था और बाद में जर्मन डिप्लोमा भी किए बैठी थी. बाद में उसने लद्दाखी भाषा सीख कर लेह में वहां की लड़कियों के लिए अपने साधन से एक स्कूल भी खोला और वह अक्सर वहीं रहने लगी. डा. लोठार लुत्से के साथ मिल कर उसने ब्रेख्त के नाटक का अनुवाद भी किया था. पूरी तरह अंग्रेजी वातावरण में पली-बढ़ी संपन्न घराने की संयुक्ता बेहद नखरीली और चूजी लड़की थी. मेरी वह बहुत घनिष्ठ दोस्त हो गर्इ थी. भार्इ-भार्इ कह कर नि:संकोच मन्नू के सामने भी मुझसे लिपट जाती. मन्नू को वह दार्जिलिंग, शिमला और न जाने कहां-कहां घुमाने के लिए ले जाती. वह मुझसे अधिक मन्नू की घनिष्ठ बन गर्इ थी. जिन दिनों 'सारा आकाश की शूटिंग चल रही थी, मैं उसे लेकर आगरा गया. आगरा कैंट स्टेशन पर उतरते ही लोगों ने हमें घेर लिया कि फिल्म की हीरोइन आ गर्इ. उन दिनों आगरा के बच्चे-बच्चे की जबान पर इस फिल्म की शूटिंग के किस्से थे. बाद में जब वह बासु से मिली तो बासु ने खुद कहा कि अगर आपने पहले मिलाया होता तो मैं मधुछंदा को चुनता ही नहीं.

     बहरहाल, फिल्मी दुनिया के साथ मेरा दूसरा संपर्क किशोर साहू के माध्यम से हुआ. उन दिनों 'हंस शुरू नहीं हुआ था और हम अक्षर प्रकाशन से पुस्तकें छाप रहे थे. किशोर की आत्मकथा मुझे अच्छी लगी और मैंने उसे छापने का मन भी बना लिया. किशोर की फिल्मों का मैं पुराना भक्त था. 'राजा, 'कुंवारा बाप, 'आया सावन झूम के इत्यादि फिल्में मैं कर्इ-कर्इ बार देख चुका था. सबसे अंत में किशोर को मैंने 'गाइड में देखा. रमोला किशोर की प्रिय हीरोइन थी. नन्ही-मुन्नी सी चंचल, चुलबुली और समर्पित लड़की. कलकत्ते में मुझे पता लगा कि इकबालपुर रोड के जिस फ्लैट में मैं रहता हूं, उसके चार-पांच मकान बाद ही रमोला भी रहती है. एक रोज उस घर का दरवाजा खटखटाने पर निकली एक काली ठिगनी बुढि़या से जब मैंने रमोला का नाम लिया तो उसने धड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया. यह मेरे लिए भयंकर मोहभंग था. क्या इसी रमोला की तस्वीर मैं अपनी डायरी में लिए फिरता था और कविताएं लिखता था.

     किशोर साहू से मिलने से वषो पहले उनके पिता कन्हैयालाल साहू से मेरा लंबा पत्रा व्यवहार रहा है. वे नागपुर के पास रहते थे और सिर्फ किताबें पढ़ते थे. उनके हिसाब से हिंदी में एकमात्रा आधुनिक लेखक किशोर साहू थे. मैंने भी किशोर साहू के दो-तीन कहानी-संग्रह पढ़े थे और वे सचमुच मुझे बेहद बोल्ड और आधुनिक कहानीकार लगे थे. दुर्भाग्य से हिंदी कहानी में उनका जिक्र नहीं होता है वरना वे ऐसे उपेक्षणीय भी नहीं थे.

     आत्मकथा प्रकाशन के सिलसिले में किशोर ने मुझे बंबर्इ बुलाया. स्टेशन पर मुझे लेने आए थे किशोर के पिता कन्हैयालाल साहू. मैं ठहरा कमलेश्वर के यहां था. शाम को किशोर के यहां खाने पर उस परिवार से मेरी भेंट हुर्इ. अगले दिन किशोर मुझे अपने वार्सोवा वाले फ्लैट पर ले गए, जहां वे अपना पुराना बंगला छोड़कर शिफ्ट कर रहे थे. यहां बीयर पीते हुए हमने दिन भर उपन्यास के प्रकाशन पर बात की. वे इस आत्मकथा में दुनिया भर की तस्वीरें खूबसूरत ढंग से छपाना चाहते थे. लागत देखते हुए हमलोगों की सिथति उस ढंग से छापने की नहीं थी. उन्होंने शायद कुछ हिस्सा बंटाने की भी पेशकश की. मगर वह राशि इतनी कम थी कि आत्मकथा को अभिनंदन-ग्रंथ की तरह छाप सकना हमलोगों की सामथ्र्य के बाहर की बात थी. आखिर बात नहीं बनी और मुझे दिल्ली वापस आना पड़ा. वैसे किशोर में एक खास किस्म का आभिजात्य था और वह नपे-तुले ढंग से ही बातचीत या व्यवहार करते थे. शायद वे इस अहसास से मुक्त नहीं थे कि वे घर पर भी ऐसा व्यवहार करें जैसे फिल्म के किसी सेट पर हों. मैं आज भी किशोर साहू की इस आत्मकथा को 'हंस में प्रकाशित करने के लिए उत्सुक हूं.

     हां, तो अब ये विशेषांक आपके हाथों में है. इसमें जो भी अच्छा या महत्वपूर्ण है, उसका श्रेय चाहें तो थोड़ा-बहुत मुझे दे लें, बाकी के लिए संजय सहाय और संगम पांडेय ही जिम्मेदार हैं.

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. तिल-तिल जीती एक अभिव्यक्ति... सरस सुगम्य सहज और प्रवहमान...

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
कहानी ... प्लीज मम्मी, किल मी ! - प्रेम भारद्वाज