कविताये नज़में - गीतिका 'वेदिका'


बेहिसाब बारिश
 

तिस पर निर्दयी जाड़ा
जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा

इस कदर बरसा ये बादल
भीग गयी रूह पूरी
निचुड़ गया रोम-रोम
उठ गयी है यूँ फरुरी
डरते कांपते ही बीता
पिछला पूरा ही पखवाड़ा

देखना एक दिन ही
पूरा हमें डूब जाना है
कुछ नहीं जायेगा संग
सब यहीं छूट जाना है
दे रहा देखो बुलावा
काले बादल का नगाड़ा
बेहिसाब बारिश
तिस पर निर्दयी जाड़ा जाने हमने हाय
इसका क्या बिगाड़ा

आजाओ न कभी यूँ ही

आजाओ न कभी यूँ ही
चिट्ठी पत्री से एकदम से

फिर कुछ पूछो न नाम पता
फिर देहरी पर जम ही जाओ
फिर मै थामूं समझ अपना
आखर से आंगन भर जाओ

इक खुशियों भरी सूचना से
घर महका जाओ मद्धम से !

हाँ सबको संबोधन करना
कोई भी अपना छूटे न
स्नेह भी हो आदर भी हो
कोई भी परिजन रूठे न

लेकिन मुझसे ऐसे मिलना
जैसे इक प्रियतम, प्रियतम से !

शत बार प्राण पुकारते


शत बार प्राण पुकारते तेरी राह राह निहारते
जिस देश तेरा द्वार है
उस दिशा दिन भर देखती
मिलता है तम और उजाला
तुम भी मिलोगे सोचकर, ये नयन दवार बुहारते

ये दिन भी ढलता, ढल चुका
सूर्य रथ घर चल चुका
उर कब का जाने गल चुका
तुम इक बार ही देख लो फिर, उम्मीद फिर हम हारते

मेरा द्वार छोड़ के

बिखर गये आखर सारे
सब भाव भावना के मारे
रसहीन हुए सब कवित्त छंद
सुखों के सब द्वार बंद ....!

हंसी बेबसी हुयी
आह से फंसी हुयी
रुदन से कसी हुयी
बड़ी जटिल "आस-फंद"
सुखों के सब द्वार बंद ....!

कौन जी की पीर हरे
क्या लिखे कलम डरे
बिना जिए तुम मरे
मरण तरन का हाये द्वंद
सुखों के सब द्वार बंद ....!

"आओ प्रिये" टेर दी
साँझ दी सबेर दी
चांदनी बिखेर दी
मेरा द्वार छोड़ के
नन्द के हुए आनंद


कि तेरे दिल कि सदा फिर याद आई...


भूल न जाना कि मेरा क्या होगा
कि तेरे दिल कि सदा फिर याद आई

फिर मिलो फिर फिर मिलो मिलते रहो
क्यों ये खांमखां दुआ फिर याद आई

दूर तक संग मेरे फिर वो लौट आना
फिर मुड़े मुझको वफा फिर याद आई

हम गिरे थामा तुम्हारी बांहों ने
वो तेरी कमसिन अदा फिर याद आई

खुद को खूं में तर बतर कर दूँ


कैसे बता तुझे ए दिल मै दिल बदर कर दूँ
ये करूं तो खुद को खूं में तर बतर कर दूँ

फिर नजर फेरूँ तो ये आलम तेरे बिन क्या करूं
अपनी कायनात पर सब कुछ नजर कर दूँ

हाँ बिना तेरे न जीना, साथ भी न जी सकूं
किस तरह ये हाले दिल तुझको खबर कर दूँ

किन गुनाहों के ये बदले दूरियां मुझको मिलीं
क्या करूं कि दूरियों को बेअसर कर दूँ

मै जानूँ या मन ही जान


 
 जनम जनम के तप की मै
कोई बात करूं क्या
सच केवल इतना की
तुमको एक फसल की तरह पाया है

रात रात भर जाग जाग कर
देखा भाला है
हाथों हाथ दिया जल नैनन
और सम्भाला है
मेरा सच की
बोया काटा और उगाया है
तुमको एक फसल की तरह पाया है

आने दिया एक न आंसू
जग न जाने मन की थाहें
मै जानूँ या मन ही जाने
इक छन सौ सौ लाख लाख आँहें
न रोऊँ न मुस्का पाऊं
ऐसे विरहा गया है
तुमको एक फसल की तरह पाया है

पिया अश्रु पूर दिए रस्ते



मैंने पीहर की राह धरी
पिया अश्रु पूर दिए रस्ते
हिलके-सिसके नदियाँ भरभर
फिर फिर से बांहों में कसते...!

हाये कितने सजना भोले
पल पल हंसके पल पल रो ले
चुप चुप रहके पलकें खोले
छन बैरी वियोग डसते
फिर फिर से बांहों में कसते...!

वापस आना कह हाथ जोड़
ये विनती देती है झंझोड़
मै देश पिया के लौट चली
पिया भर उर कंठ लिए हँसते
फिर फिर से बांहों में कसते...!


गीतिका 'वेदिका'

शिक्षा - देवी अहिल्या वि.वि. इंदौर से प्रबन्धन स्नातकोत्तर, हिंदी साहित्य से स्नातकोत्तर
जन्मस्थान - टीकमगढ़ ( म.प्र. )
व्यवसाय - स्वतंत्र लेखन
प्रकाशन - विभिन्न समाचार पत्रों में कविता प्रकाशन
पुरस्कार व सम्मान - स्थानीय कवियों द्वारा अनुशंसा
पता - इंदौर ( म.प्र. )
ई मेल - bgitikavedika@gmail.com

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर रचनाएं...

    आभार
    अनु

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आभार अनु जी! रचना को 'सुंदर' शब्द से संज्ञा देने हेतु ....सादर गीतिका 'वेदिका'

      हटाएं
  2. सुन्दर शब्द चयन ....अतिमनभावन ...पावन...

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

काली-पीली सरसों | ज्योति श्रीवास्तव की हिंदी कहानी | Shabdankan
बारहमासा | लोक जीवन और ऋतु गीतों की कविताएं – डॉ. सोनी पाण्डेय
चित्तकोबरा क्या है? पढ़िए मृदुला गर्ग के उपन्यास का अंश - कुछ क्षण अँधेरा और पल सकता है | Chitkobra Upanyas - Mridula Garg
मैत्रेयी पुष्पा की कहानियाँ — 'पगला गई है भागवती!...'
Harvard, Columbia, Yale, Stanford, Tufts and other US university student & alumni STATEMENT ON POLICE BRUTALITY ON UNIVERSITY CAMPUSES
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
तू तौ वहां रह्यौ ऐ, कहानी सुनाय सकै जामिआ की — अशोक चक्रधर | #जामिया
चतुर्भुज स्थान की सबसे सुंदर और महंगी बाई आई है
अनामिका की कवितायेँ Poems of Anamika