काश कि पहले लिखी जातीं ये कविताएं
- प्रियदर्शन

एक
वह एक उजली नाव थी जो गहरे आसमान में तैर रही थी

चांदनी की झिलमिल पतवार लेकर कोई तारा उसे खे रहा था
आकाशगंगाएं गहरी नींद में थीं
अपनी सुदूर जमगग उपस्थिति से बेख़बर
रात इतनी चमकदार थी कि काला आईना बन गई थी
समय समय नहीं था एक सम्मोहन था जिसमें जड़ा हुआ था यह सारा दृश्य
यह प्रेम का पल था
जिसका जादू टूटा तो सारे आईने टूट गए।
इंद्रधनुष के रंग चुराकर सपने अपनी पोशाक सिला करते थे
कामनाओं के खौलते समुद्र उसके आगे मुंह छुपाते थे
एक-एक पल की चमक में न जाने कितने प्रकाश वर्षों का उजाला बसा होता था
जिस रेत पर चलते थे वह दोस्त हो जाती थी
जिस घास को मसलते थे, वह राज़दार बन जाती थी
कल्पनाएं जैसे चुकती ही नहीं थीं
सामर्थ्य जैसे संभलती ही नहीं थी
समय जैसे बीतता ही नहीं था
वह भी एक जीवन था जो हमने जिया था
══════════●══════════
दो
वह एक झील थी जो आंखों में बना करती थी
कामनाओं के खौलते समुद्र उसके आगे मुंह छुपाते थे
एक-एक पल की चमक में न जाने कितने प्रकाश वर्षों का उजाला बसा होता था
जिस रेत पर चलते थे वह दोस्त हो जाती थी
जिस घास को मसलते थे, वह राज़दार बन जाती थी
कल्पनाएं जैसे चुकती ही नहीं थीं
सामर्थ्य जैसे संभलती ही नहीं थी
समय जैसे बीतता ही नहीं था
वह भी एक जीवन था जो हमने जिया था
══════════●══════════
तीन
वह एक शहर था जो रोज़ नए रूप धरता था
हर गली में कुछ बदल जाता, कुछ नया हो जाता

लेकिन हमारी पहचान उससे इतनी पक्की थी
कि उसके तिलिस्म से बेख़बर हम चलते जाते थे
रास्ते बेलबूटों की तरह पांवों के आगे बिछते जाते
न कहीं खोने का अंदेशा न कुछ छूटने का डर
न कहीं पहुंचने की जल्दी न किसी मंज़िल का पता
वे आश्वस्ति भरे रास्ते कहीं खो गए
वे अपनेपन के घर खंडहर हो गए
हम भी न जाने कहां आ पहुंचे
कभी ख़ुद को पहचानने की कोशिश करते हैं
कभी इस शहर को।
कुछ वह बदल गया
कुछ हम बीत गए।
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wakai lajawab
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
जवाब देंहटाएंविवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 27/09/2013 को
जवाब देंहटाएंविवेकानंद जी का शिकागो संभाषण: भारत का वैश्विक परिचय - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः24 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर .... Darshan jangra
सुन्दर कवितायेँ। प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर .....
जवाब देंहटाएंअति सुंदर भावपूर्ण रचनाएँ !
जवाब देंहटाएंआती सुन्दर एवं भावपूर्ण रचनाएँ !
जवाब देंहटाएंसुन्दर.अच्छी रचना.रुचिकर प्रस्तुति .; हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ
जवाब देंहटाएंकभी इधर भी पधारिये ,
कविताएं पढ़ कर ऐसा लग रहा है, जैसे आपने मुझ पर लिखी है। मेरी पीड़ाओं को उड़ेला है। संवेदना का सजल संबल देने के लिए धन्यवाद। सौभाग्य से रांची विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में कक्षा के दरमियान छात्र के रूप में आपको सुनने का मौका मिला था। सहज व्यक्तित्व के धनी कोई ऐसा भी लिख सकता है, उक्त कविताएं पढ़ कर यकीन हो गया। कभी मेरे ब्लॉग पर भी पधारें।
जवाब देंहटाएंउजली नाव, झील और एक शहर...
जवाब देंहटाएंएक ऐसी भी ज़िन्दगी को हमने जिया था..
बहुत ही गम्भीर और मर्मवेधी कविताएँ।
शब्दांकन को मेरी बधाइयाँ।
सादर,
प्रांजल धर