अभी कुछ ही दिन पहले हमारे सामने एक परिदृश्य था जिसमें आसाराम बापू के चारों ओर उनके भक्तों का कवच इतना अभेद्य था, मानो वह कवच ही अपने में एक समग्र संरचना हो, हालांकि आसाराम की बदचलनी की गंध बरसों से हवा में थी, लेकिन एहसास के बावज़ूद वह नगण्य थी. इस एक कांड के बाद, जिसने आसाराम को सलाखों के पीछे भेज दिया, एक के बाद एक कारनामों का उजागर होना शुरू हो गया. वह अभेद्य प्रतीत होने वाला कवच भुरभुरा गया और पता चलने लगा कि इस घृणित अनैतिक कारोबार में उनके परिवार के सभी सदस्य शामिल हैं. यानी कि, ये विविध आश्रम एक एक दुर्ग थे जिनके परकोटों में अनगिनत कुकृत्य दफ़न थे और आसाराम की आतंककारी सत्ता किसी को चूँ करने का भी साहस नहीं देती थी. अब वह कारावासी हुए तो बहुतों की जुबान खुली, हो सकता है कि उनके स्वर्गवासी(?) होने के बाद सभी बंद दरवाज़े खुद-ब-खुद खुल जाएँ.
यहां एक बात सोचने को विवश करती है. आसाराम पुरुष हैं और उनके कुकृत्य, उनकी निरंकुश पौरुषेय ग्रंथि के आवेग के कारण हैं. उनका बेटा भी पुरुष है. इसलिये किसी रणनीति के तहत अगर आसाराम ने अपने बेटे को भी अपने इस ‘यौनिक’ खेल में शामिल कर लिया, तो बहुत आश्चर्य की बात नहीं है. यह निर्णय उनके पौरुषेय विवेक की एक बानगी है, जिसके आगे उनका आपस में बाप-बेटा होना अर्थहीन हो गया. ठीक. लेकिन जो बात हजम नहीं होती वह यह है कि आसाराम की पत्नी ने कैसे इस गिरोह का एक पुर्जा होना स्वीकार कर लिया..? कोई पत्नी कैसे अपने पति के हाथों अपना एकाधिकार लुटते देख-सह सकती है ? यह केवल, और केवल आसाराम के अपने परिवार पर हावी आतंक के कारण संभव है. इसे एक व्यभिचारी पति की अपने परिवार पर जारी तानाशाही की तरह समझा जा सकता है, जिसे तोड़ कर बाहर आना अब तक आसाराम की पत्नी और बेटी के लिये संभव नहीं था.
अब, जब आसाराम बे-नकाब हो कर जेल में हैं और उनके कारनामे अनेक रास्तों से बाहर आते जा रहे हैं, तो बहुत संभव है, कि एक दिन वह निरीह गूंगी स्त्री, जो श्रीमती आसाराम कहलाती है, वह भी सामने आये और अपने यातनादायक अनुभवों का खुलासा करे. शायद, उसे इस महाभारत की पूर्णाहुति कहा जाय. आखिर हर निरंकुश और अनीतिकारी तानाशाह का किसी न किसी दिन अंत होता है.
इसी क्रम में मैं एक और संभावना सामने रखना चाहता हूँ. यह समय का वह दौर है जब नरेंद्र मोदी के समर्थकों का तुमुल कोलाहल हवा में गूंज रहा है. वह भी मंच पर फूलों से सज कर नर्तन गर्जन कर रहे हैं, हालांकि उनका भी तानाशाही चरित्र खुले आम सामने आया है और गुजरात में उनका, सरकारी तंत्र के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर किया गया खूनी दमन बहुतों ने देखा है. इसे वह ‘हिंदुत्व’ के नाम पर उसी तरह ढक सके हैं, जैसे आसाराम ने अपने ‘करम’ भक्ति के नाम पर ढके हैं. लेकिन अगर हम यहां ‘अल्पसंखयकों’ की जगह ‘विरोधी’ पढ़ते हुए उस रील को पुनः अपनी आँखों के आगे से गुज़ारें तो लगेगा कि यह उसी टक्कर की विरोधी दमन की राजनीति है, जैसी 1984 में कॉंग्रेस ने सिक्खों पर उतारी थी. इस तरह मोदी भी किसी माने में आसाराम से कम तानाशाह, निरंकुश और इन्द्रियलोलुप नहीं हैं, बस फर्क यह है कि मोदी की प्यास राजनैतिक सत्ता की है, और वह इसके लिये रक्तपात की हद तक जा सकते हैं.
जैसे आसाराम को लेकर उनके भक्तों का न सिर्फ मोहभंग हुआ दीखता है बल्कि उनके ‘पाप गर्भित कलश ’ एक एक कर के फूट रहे हैं उसी तरह मोदी के भी वह कवच भुरभुरा जायेंगे जिनके तले उनके कुकृत्यों के साक्ष्य ढके पड़े हैं. जितनी जल्दी उनके भयभीत और लोलुप समर्थक, सच उजागर करने पर आ जायं उतना अच्छा, वर्ना देर सबेर तो यह होना ही है.
किसने सोचा था कि आसाराम बापू का एक दिन यह हश्र होगा और उनके दुर्ग की दीवारें एक दिन स्वयं उनके कारनामों की गवाह बन जाएंगी.

अब, जब आसाराम बे-नकाब हो कर जेल में हैं और उनके कारनामे अनेक रास्तों से बाहर आते जा रहे हैं, तो बहुत संभव है, कि एक दिन वह निरीह गूंगी स्त्री, जो श्रीमती आसाराम कहलाती है, वह भी सामने आये और अपने यातनादायक अनुभवों का खुलासा करे. शायद, उसे इस महाभारत की पूर्णाहुति कहा जाय. आखिर हर निरंकुश और अनीतिकारी तानाशाह का किसी न किसी दिन अंत होता है.
इसी क्रम में मैं एक और संभावना सामने रखना चाहता हूँ. यह समय का वह दौर है जब नरेंद्र मोदी के समर्थकों का तुमुल कोलाहल हवा में गूंज रहा है. वह भी मंच पर फूलों से सज कर नर्तन गर्जन कर रहे हैं, हालांकि उनका भी तानाशाही चरित्र खुले आम सामने आया है और गुजरात में उनका, सरकारी तंत्र के माध्यम से अल्पसंख्यकों पर किया गया खूनी दमन बहुतों ने देखा है. इसे वह ‘हिंदुत्व’ के नाम पर उसी तरह ढक सके हैं, जैसे आसाराम ने अपने ‘करम’ भक्ति के नाम पर ढके हैं. लेकिन अगर हम यहां ‘अल्पसंखयकों’ की जगह ‘विरोधी’ पढ़ते हुए उस रील को पुनः अपनी आँखों के आगे से गुज़ारें तो लगेगा कि यह उसी टक्कर की विरोधी दमन की राजनीति है, जैसी 1984 में कॉंग्रेस ने सिक्खों पर उतारी थी. इस तरह मोदी भी किसी माने में आसाराम से कम तानाशाह, निरंकुश और इन्द्रियलोलुप नहीं हैं, बस फर्क यह है कि मोदी की प्यास राजनैतिक सत्ता की है, और वह इसके लिये रक्तपात की हद तक जा सकते हैं.
जैसे आसाराम को लेकर उनके भक्तों का न सिर्फ मोहभंग हुआ दीखता है बल्कि उनके ‘पाप गर्भित कलश ’ एक एक कर के फूट रहे हैं उसी तरह मोदी के भी वह कवच भुरभुरा जायेंगे जिनके तले उनके कुकृत्यों के साक्ष्य ढके पड़े हैं. जितनी जल्दी उनके भयभीत और लोलुप समर्थक, सच उजागर करने पर आ जायं उतना अच्छा, वर्ना देर सबेर तो यह होना ही है.
किसने सोचा था कि आसाराम बापू का एक दिन यह हश्र होगा और उनके दुर्ग की दीवारें एक दिन स्वयं उनके कारनामों की गवाह बन जाएंगी.
अशोक गुप्ता
305 हिमालय टॉवर.
अहिंसा खंड 2.
इंदिरापुरम.
गाज़ियाबाद 201014
मो० 09871187875
ई० ashok267@gmail.com
2 टिप्पणियाँ
मैं मानती हूँ कि आसाराम बापू के कुकृत्यों का भांडा फूटा और उस भांडे से निकली भोंड़ी सच्चाई हम सबके सामने हैं। लेकिन आप द्वारा मैं मोदी से आसाराम की तुलना को सही मानती। क्योंकि आसाराम ने धर्म को बेंचा है, जबकि मोदी विकास की राजनीति करते हैं। और मैं मान लेती हूँ कि मोदी बुरे ही हैं तो उनके विकल्प में अच्छा नेता बताइये? कौन आज दूध का धुला और गंगा का नहाया है? मनमोहन जो गूँगा, सोनिया जो भारत की भाषा नहीं समझ सकी तो भारत को क्या समझेगी? राहुल जो आज भी बाल्यावस्था में जी रहा? प्रणव मुखर्जी जिन्हें राजनीतिक वनवास दिया गया है? चिदम्बरम जिनके ऊपर टू जी का दाग है? दिग्विजय जिन्हें बोलने की तमीज नहीं मालूम है? मुलायम सिंह जिन्होंने उत्तर प्रदेश की शिक्षण व्यवस्था का चौपट कर दिया और माफिया के भरोसे शासन चला रहे हैं? अखिलेश जिन्हें 2साल के कार्यकाल में 100 से अधिक दंगे हो चुके हैं? मायावती जो एक जाति विशेष की राजनीति करती हैं? लालू जो पशुओं का चारा तक खा जाते हैं? इत्यादि इत्यादि आप किसे दूध का धुला मान रहे हैं? यदि आपकी नजर में कोई मोदी से अच्छा विकल्प है तो जरूर साझा करियेगा।
जवाब देंहटाएंvinay ji aapki baat me dum hai
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