घूरना
- आँचल

थोड़ी देर तक ऋचा कुछ समझ ही नहीं पायी..हालांकि ऐसी स्थितियां पहले भी हुई थी, लेकिन तब लेडीज कोच नहीं था.. लेडीज कोच की सुविधा होने के बाद से ऋचा ने हमेशा उसी में सफ़र किया. जब तक की साथ में कोई मेल ना हो..

ऋचा ने बीच में टोका, " लेकिन यार, अभी अभी दिसम्बर में जो कुछ भी हुआ उसके बाद इस तरह की हरकतो को लेकर इतनी चर्चाएँ हुई है, लेकिन कहीं कुछ भी बदलता हुआ नहीं दिख रहा..पीपल जस्ट कांट चेंज देयर mentality.."
अनीता अब अपने पूरे तेवर में थी, झुंझलाते हुए बोली, "अब रहने भी दे यार! ये भी तो सोंच कि जब हम सारे दोस्त एक साथ होते है और जनरल कोच में सफ़र करते है तब इन्ही में से कुछ बंदे कितनी विनम्रता से हमें सीट देते है..अभी लास्ट वीकेंड की ही बात ले ले..तुझे ही एक लड़के ने सीट दी थी न. अब क्या करें, कुछ लोग अच्छे है तो कुछ बुरे भी. आज मेरी एक बात समझ ले, 'घूरना' एक राष्ट्रीय आदत है और अगर मैं ये कहूं कि अब ये एक 'बीमारी' बन चुकी है तो भी गलत नहीं होगा. तू ही बता लेडीज कोच आ जाने से कौन सा फायदा हुआ है..उल्टा ऐसे मर्द इकठ्ठे इतनी लडकियों को ताड़ते है. जहां लेडीज कोच ख़त्म होती है वहाँ देखी है कभी भेडियो की तरह उनकी नज़रें..हाँ इन्ही में से कुछ अच्छे पुरुष ऐसे लोगो समझाते भी नज़र आते है कि भैया उधर क्या देखे जा रहे हो! मैंने सुना है यार ऋचा, एक बार एक अंकल ऐसे कुछ लडको को डांट रहे थे.. और अब तो stalking/voyaging को लेकर इतने सारे क़ानून भी बन गए है. धीरे-धीरे सब बदलेगा..”
ऋचा अब थोड़ी नार्मल थी..अब दोनों धीरे-धीरे स्टेशन से नीचे उतरने लगी ...अनीता अब कुछ हल्की बातचीत कर रही थी.. लेकिन ऋचा के मन में एक ही सवाल घूम रहा था कि "आखिर कब बदलेगी हर एक इंसान की मनोवृति…..”
आँचलस्नातक दिल्ली विश्वविद्यालयसंपर्क: avidaanchal@gmail.com
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