अनुभूत मनोदशाओं का एक दस्तावेज़ 'पराया देश’ -देवी नागरानी | Review of Pran Sharma's Book by Devi Nangrani

अनुभूत मनोदशाओं का एक दस्तावेज़ "पराया देश"

देवी नागरानी 

प्राण शर्मा हिंदी के लोकप्रिय कवि और लेखक हैं, गीत एवम ग़ज़ल के जाने माने हस्ताक्षर, ग़ज़ल के शास्त्र की अनगिनत बारीकियों के माहिर उस्ताद व दक्षता से नए रचनकरों को दिशा दिखाने वाले मार्गदर्शक, अपनी सोच को शब्दों में अभिव्यक्त करते हुए परिपक्वता से भाव मिश्रण की चाशनी से हमें अपने जिये हुए यथार्थ से परीचित करा कर रहे हैं...
सोच की भट्टी में सौ-सौ बार दहता है
तब कहीं जाके कोई इक शेर बनता है
        रचनात्मकता में ढलने के लिये लेखक को जीवन पथ पर उम्र के मौसमों से गुज़रना होता है और जो अनुभव हासिल होते हैं, उनकी प्राणजी के पास कोई कमी नहीं है। जिंदगी की हर राह पर जो देखा, जाना, पहचाना, महसूस किया, उसे परख कर सरल शब्दों में बुनकर गध्य या पध्य के तानों-बानों में गूँथ लिया... ! इस दिशा में उनका विशिष्ट रचनात्मक हस्तक्षेप हमें उनके पक्ष में सोचने के लिए बाध्य करता है।

  साहित्य और समाज का आपस में गहरा संबंध है, जिनको एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, क्योंकि साहित्य अपने काल का प्रतिबिंब है, इसीलिए जिस समाज के दायरे में हम रहते है, उसीका हिस्सा बन जाते हैं। समाज के आसपास की समस्याओं को, विडंबनाओं को कथा या कहानी की विषय वस्तु बनाकर, पात्रों के अनुकूल उनके विचारों को शब्द-शिल्पी की तरह तराश कर मनोभावों को कलात्मक ढंग से हमारे सामने रखते हैं।

  एक कहानीकार का असली कथ्य उसकी कहानियां ही होती हैं, जो मानवीय संवेदनाओं, जीवन तथा मूल्यों का दर्पण भी होती हैं। कहानी कच्ची मिटटी सी होती है जो किरदारों के माध्यम से अपनी खुशबू मन के आँगन में बिखेरती है। यही महक प्राण शर्मा जी के गध्यात्मक-संग्रह “पराया देश और बड़ी-छोटी कहानियाँ” में पाई जाती है, जिसमें कुल 6 कहानियाँ और 46 लघुकथाएँ संग्रहित हैं।

प्राण शर्मा भारत के संस्कारों को अपने सीने में सँजोये, यू. के. में बस गये हैं। भारतीय प्रवासी लेखक और लेखिकाएं दो राष्ट्र के नागरिक बने हैं और उसी बुनियाद पर उनकी रचनाओं में मातृभूमि से दूर होकर नए परिवेश में रहते हुए तहज़ीब और तमीज़ के नए तजुर्बों से साक्षातकार होता है। तहज़ीब और तमीज़ सिर्फ़ शब्द ही नहीं है, वे जीवन जीने के तत्व है जिनके बीज हमारी संस्कृति से, परिवार और परिवेश से मिलते हैं। और यही वजह है कि उनकी कहानियों में मिली-जुली भावनाओं, नई परिस्थितियों से जूझने और सामना करने का विवरण पढ़ने को मिलता है। इस उखड़ने और फिर से बस जाने के कठिन दौर में अपने आप को स्थापित करने की मुठभेड़ में अपने देश की भाषा, साहित्य और संस्कृति को आराध्य स्थान देना एक उपलब्द्धि है, जिसमें भारतीय प्रवासी साहित्यकार पहल करने में पीछे नहीं हटे हैं।

इस संग्रह में उनकी पहली कहानी ‘पराया देश’ मर्मस्पर्शी कहानी है, सच जीवन की बुनियाद है जिसपर रिश्तों के निर्माण की नींव रक्खी जाती है। दो देशों की सभ्यता और संस्कारों के द्वंद्व में कल और आज की पीढ़ी की कश्मकश बखूबी दर्शाते हुए, प्राणजी ने भारतीयता का पलड़ा ऊपर ही रखा है- उनके भीतर की पीढ़ा इस कहानी में शब्दों में समाधान न पाकर कह उठती है "हम प्रवास में हज़ारों साल रह लें मगर रंग से भारतीय ही रहेंगे, अंग्रेज़ हम कभी न बन पाएंगे। हम प्रवासी ही कहलाएँगे।"

  ऐसी ही प्रसव पीड़ा की गहराई और गीराई उनकी एक रचना में महसूस की जाती है जब देश के बाहर रहने वाले भारतीय सहित्यकार को प्रवासी के नाम से अलंक्रित किया जाता है. इस वेदना को शब्दों का पैरहन पहनाते हुए वे भारत माँ की सन्तान को निम्मलिखित कविता में एक संदेश दे रहे है....

साहित्य के उपासको, ए सच्चे साधको
मुझको हमेशा कह लो प्रवासी भले ही तुम
कविता को या कथा को प्रवासी नहीं कहो
साहित्य के उपासको, ए सच्चे साधको
कविता को या कथा को प्रवासी नहीं कहो!!

इस युग की सबसे बड़ी विडम्बना यह है कि आदमी का नैसर्गिक स्वभाव कहीं गायब हो गया है। बहुआयामी यथार्थ सामने आ रहे हैं जिन को नकारा नहीं जा सकता। इस संकलन की उनकी कहानियाँ ख्वाइश, तीन लंगोटिया यार, फिर मिलेंगे, समाज परिवेश, परिवार, के अनेक पक्ष अमानवीयता, छल-कपट, अकेलापन, स्वार्थ आदि प्रवर्तियों को उजगार करने में सफ़ल हुई हैं। दर्द तो दर्द होता है, पीढ़ा देता है, इसी पीढ़ा वर्णन एक कवि के इस काव्यान्श में पाया जाता है, जिसे शब्दों में महसूस किया जा सकता है -

खूटियों पर टांग दी हमने तमीज़ें / रक्त में डूबी हुई पहनी कमीज़ें /
ज़िंदगी का कथानक हम कह नहीं पाये / वक़्त ने हर बार हस्ताक्षर बदलवाए। 

       कहानियों में भी ऐसे कई संवाद है जहां पल भर के लिए सोच ठिठककर, रुककर, फिर से पठन का सफ़र ज़ारी रखने की मांग करती है। कहानियों व लघुकहानियों के कुछ ऐसे मिसाल भी हैं -

नई पीड़ी की न कोई भाषा है न कोई लिबास (पराया देश)
भारत में लूट भी ज़ोरों से है और फूट भी, वहाँ आदमी आदमी को लूट रहा है (पति, पत्नि और संतान)
भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे हैं, बेईमानी का बोलबाला है, चिंता वाली बात यह है कि नौजवान भी भ्रष्टाचार की गिरफ़्त में है। (पति, पत्नि और संतान)
फूलों की खुशबू इतनी दूर नहीं जाती जितनी दूर धन की ख़ुशबू (ख्वाइश)
आंधियों के बहने से क्या पहाड़ भी डोलते हैं? (तीन लंगोटिया यार)
तुम दोनों की बातों से रंग-भेद की बू आ रही है (तीन लंगोटिया यार)
बाबूजी मुझे मुंबई का जलवायु रास नहीं आया, मैं आपके बिज़नस में आपका हाथ बंटाऊंगा (फिर मिलेंगे)
तान्या के चहरे पर सच का भाव था और हमारे चहरों पर झूठ का (सच झूठ)
यहाँ पर हीरोइन को पारदर्शी कपड़े पहनने पड़ते हैं, कभी-कभी तो उसे निर्वस्त्र भी.....! (वक़्त-वक़्त की बात)
आप सुरक्षाकर्मी है, आपको सुरक्षा की क्या आवश्यकता है (सुरक्षाकर्मी)

       प्राणजी के कथ्य में लोक-चेतना और यथार्थानुभाव दमकते दिखाई देते हैं। अभिव्यक्ति में भाषा की सच्चाई और यथार्थ अनुभूति के साथ-साथ अतीत के तीखे गहरे व्यंग भी शामिल रहते हैं...!!

  कहानियाँ अपने कथ्य और शिल्प के द्वारा, सामाजिक परिस्थितियों से गुज़रते हुए कुछ अनुभवों को एक सूत्र से बांधती हुई मानवता का प्रतीक लगती हैं। उनकी कहानियों के तत्व जीवंकहीं त अनुभव के रूप में, कहीं संवाद के तौर पर हमसे जुड़ते हैं। वैसे भी मानवीय रिश्तों के राग-अनुराग और विराग को अलग करके नहीं देखा जा सकता, यहाँ तक कि आदमी का स्वतंत्र अस्तित्व भी कुल मिलाकर मानवीय सम्बब्धों का संगठन है। कहीं पैसे कमाने की धुन, कहीं लड़की की पैदाइश पर खुश होने पर, कहीं न कहीं दिल के किसी कोने में बेटे की ललक, वतन लौट जाने की तड़प, संतान की सफ़लता की खुशी, ऐसे अनेक अनकहे, अनछुए पहलुओं को उन्होने ज़बान दी है।

  उनकी लघुकथाएँ समाज, मानव, और जीवन के पहुलुओं से हमारी बातचीत कराती है। वैसे लघुकथा सिर्फ़ शीर्षक नहीं एक सूत्र भी है 'ब्रह्म’ वाक़्य भी है। जय प्रकाश मानस के शब्दों में ‘लघु और कथा एक दूसरे के पूरक है लघुता ही उसकी पूर्णता है, लघुता ही उसकी प्रभुता है. लघुकथा जीवन का साक्षात्कार है’।

       इसी संग्रह में श्री रूपचंद चंदेल जी ने प्राण जी की लघुकथाओं के संदर्भ में कहा है –“प्राण जी ने जीवन के अनछुए और अनुपयोगी समझे जाने वाले विषयों पर उल्लेखनीय लघुकथाएँ लिखी है जो हमारे समय के हस्ताक्षर हैं,” यू॰ के॰ के हमारे पथ-प्रदर्शक स्व॰ श्री महावीर शर्मा जी ने एक खास बात की ओर इशारा करते हुए लिखा था –“प्राण जी की लघुकथाओं में यह विशेषता है कि उनकी लिखी अंतिम पंक्ति मस्तिष्क पर गहरी छाप छोड़ जाती है।

  उनकी लिखी हुई लघुकथा 'सच झूठ' आज के व्यावसायिक वर्तन के डंक की लघुकथा है, जहां कोई बेनकाब नहीं। 'वक़्त-वक़्त की बात' में एक माँ अपनी सुंदर बेटी को रोशनी की दुनिया में खुद दाखिल करने ले आती है, सुरक्षाकर्मी' में एक करोड़ धन राशि हर साल चंदे में देने वाले महोदय को धमकियों भरे पत्र और फोन आने पर भी, उसे सरकारी सुरक्षा का मिलना नामंज़ूर हुआ, यह कहते हुए कि-- “आप सुरक्षाकर्मी है, आपको सुरक्षा की क्या आवश्यकता है?” ऐसी अनेक कथाएँ है जो देश की , समाज की, आर्थिक, नैतिक, स्थिति को उजगार करती हैं।

दुष्कर्मी , हिपोक्रीट आदि लघुकथाओं में समाज की कुरूपता, और स्वार्थी मनोदिशा को दर्शाती है। 'दुष्कर्मी' में यही आदर्श प्रत्यक्ष हुआ है कि एक पापी दूसरे पापी को पत्थर न मारे। सज़ा के लिये पहला पत्थर वही मारे जिसने कभी पाप न किया हो। समाज में कुकर्म तो सामने आ जाते हैं, पर समाधान के लिए कोई अंकुश नहीं। हिपोक्रसी नंगी होकर भी नंगी नहीं होती!!

कहते हैं जुआ में जो हारा उसका मुंह काला, और जो जीता उसका भी आधा मुंह काला!! वाह री लक्ष्मी में लक्ष्मी के पति सुरेश का भी यही हाल हुआ। पत्नि, पति की इस आदत के कारण खीजती है, हमेशा ताने देती, और जुआ को ज़िंदगी का अभिशाप मानती है। उम्मीद से नाउम्मीद न होकर आखिर एक दिन सुरेश जब लाटरी जीत जाता है तो जुआ को अभिशाप समझने वाली पत्नि लक्ष्मी भी उसकी खुशी में शामिल हो जाती है ..वाह रे लक्ष्मी तेरी माया भी अजब है!!! संभवता यही कारण है कि उनकी कथाएँ और लघुकथाएँ संभावनाओं की नयी दिशायें उजगार करती हुई सकारात्मक रूप से पहचानी जाती हैं।

जिस साहित्य में चिंतन हो, सौन्दर्य हो, सृजन की कलात्मक ऊर्जा हो, समाज में होने वाली सच्चाइयों का प्रकाश हो तो वह लिखा हुआ सच खरा लगता है विदेशों में रचा हुआ साहित्य विस्मित करता है, देश से दूर अपने वतन से आती सौंधी महक से अपनी भावनाओं को ओत-प्रोत करके रचनाकार अपनी सोच सामने रखता है। यह संग्रह पराया देश और छोटी-बड़ी कहानियाँ भी अपने अछूते अहसासों के कारण हिंदी साहित्य की समृध करेगा।

साहित्य सृजन की इस संकल्पशील तपस्या को एक यज्ञ मानते हुए मैं यही मंगलकामना करती हूँ कि हर पड़ाव पर प्राण जी अपने अनुभवों की टकसाल से हिन्दी साहित्य को मालामाल करते रहें। शुभकामनाओं के साथ।

देवी नागरानी, न्यू जर्सी, यू. एस. ए.

पराया देश

लेखक: प्राण शर्मा,

पन्ने: 128,
मूल्य: रु. 200,
प्रकाशकः मेधा बुक्स ,
 X -11, नवीन शाहदरा, दिल्ली-110032 

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. प्राण शर्मा जी,
    देवी नागरानी जी ने 'पराया देश' की बहुत अच्छी समीक्षा की है. समीक्षा पढ़कर इस कहानी संग्रह को पढने की उत्कंठा बढ़ गई है. यूँ आपके ग़ज़लों को पढ़ना सदैव सुखद लगता है क्योंकि अनुभव की परिपक्वता से ज़िन्दगी की समझ आती है. निःसंदेह इन कहानियों में ऐसे ही एहसास होंगे जो पराये देश से निकल कर हम तक पहुचेंगे. आपको और देवी नागरानी जी को बधाई और आभार.

    जवाब देंहटाएं
  2. जबरदस्त समीक्षा ... पढ़ने की उत्सुकता जगा दी है मन में इन कहानियों को ...

    जवाब देंहटाएं
  3. प्रिय भाई प्राण शर्मा जी
    आपकी रचनाओं से तो मैं पहले से ही जुडा रहा हूँ.आपकी पुस्तक "पराया देश" पर देवी नागरानी जी की समीक्षा ने आपकी रचनाओं से फिर एक बार गुजरने की मन में उत्सुकता जगा दी है.सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा