वाणी न्यास की स्थापना
वाणी प्रकाशन
इस मौके पर गुलज़ार ने कहा कि उनकी बाल साहित्य में विशेष रूचि है और उन्होंने स्वीकार किया की बच्चों के लिए भारतीय भाषाओँ में श्रेष्ठ साहित्य उपलब्ध ही नहीं है। माता पिता महंगे कपड़े, खिलौने व महंगी छुट्टियां तो बच्चों को देते हैं, पर महंगी किताबें देने से क्यों कतराते हैं? बाल साहित्य की मौजूदा खस्ता हालत को देखते हुए गुलज़ार ने वाणी न्यास की परिकल्पना में ज़मीनी सच्चाइयों को उत्तम रचनात्मक तरीके से बच्चों से शाया करने का आग्रह किया। गुलज़ार ने यह भी कहा कि मुक़ाबलातन दूसरी ज़ुबानों के हिंदी कोई छोटी ज़ुबान नहीं है। गड़बड़ सिर्फ निज़ाम / सिस्टम का मामला है। आज़ादी के बाद बाकी कुछ बदलने की कोशिश ही नहीं की। हिंदी को सिर्फ राजभाषा घोषित कर दिया गया। हमने तो पुलिस की वर्दी तक नहीं बदली। हम हिंदी को अवाम से जोड़ नहीं पाये। अंतः बच्चों की किताबों का सवाल आते ही दो बातें सामने आती हैं- हमारे पास वाकई बच्चों का नया साहित्य नहीं है। या तो हम विदेश से लाते हैं, अथवा महाभारत या रामायण को ही दोहराते रहते हैं। नयी उपज कही नज़र नहीं आती। दूसरा बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार किताबें बनायीं भी नहीं जाती। इन्ही कमियों को ख़त्म करने की पहल करने के लिए गुलज़ार ने वाणी न्यास को बधाई दी।
वाणी न्यास में बाल साहित्य की शोधवृत्ति चयन समिति में बाल साहित्य विशेषज्ञ पारो आनंद ने समस्या जताते हुए कहा की धारणा है कि बच्चे आज कल पढ़ते नहीं है। इसका जवाब है कि हम बच्चों को दे क्या रहे हैं? मीडिया और इंटरनेट की ड्राइविंग फ़ोर्स बच्चे ही हैं। पारो आनंद का मानना है कि बच्चों को ऐसी ही पुस्तकें देनी चाहिए जो उन विषयों पर रौशनी डालती हों जो कि वर्त्तमान परिपेक्ष में ज्वलंत हैं। पारो आनंद ने काश्मीर से कन्याकुमारी तक लगभग तीन लाख आदिवासी, गरीब तबके व शहरी बच्चों के साथ उन्ही के लिए कार्य किया है।
इस मौके पर हिंदी में नवाचार लेखन को बढ़ावा देने के लिए वाणी न्यास द्वारा 'डॉ. प्रेम चन्द्र 'महेश' फ़ेलोशिप' के समन्वयक सी.एस.डी.एस. के प्रोफेसर अभय कुमार दुबे ने सी.एस.डी.एस. में अपने शामिल होने से अब तक के सफरनामे को याद किया और हिंदी में समाज विज्ञान की गंभीर आवश्यकता बताई। हिंदी की समस्या को अंकित करते हुए कहा कि हिंदी भाषा में शोध अनुवाद के माधयम से आ रहा है न की मौलिक लेखन से। इसे मौलिक लेखन के रूप में लाने के लिए हिंदी में लेखन होना चाहिए। सी.एस.डी.एस व वाणी प्रकाशन ने मिलकर ऐसा मंच प्रदान किया है जो मौलिक कार्य प्रकाशित कर रहा है।
प्रसिद्ध कथाकार नमिता गोखले ने वाणी न्यास की ट्रस्टी अदिति माहेश्वरी के कार्य करने की दृढ़ संकल्पता को याद करते हुए कहा कि अनुवाद प्रणाली में बहुत अनुशासन चाहिए। वाणी न्यास द्वाया रेजीडेंसी प्रोग्राम आवश्यक इसलिए है कि अनुवाद की समृद्धता के लिए दो संस्कृतियों, भाषाओँ के लेखकों व अनुवादकों को आपसी सहयोग से अनुवाद करना चाहिए। हमें अनुवाद भी चाहिए और भाषाई समृद्धता भी। स्पेनिश लेखक गेब्रियल गार्सिया मारकेज़ तभी विश्व प्रसिद्ध हुए जब उनकी किताबों का अनुवाद हुआ। इसी उम्मीद के साथ कि भारतीय लेखक भी विश्व प्रसिद्ध होंगे, नमिता गोखले ने इस रेजीडेंसी प्रोग्राम से काफ़ी आशाएं जताई। साथ ही कार्यक्रम में इरशाद कामिल नें कहा कि वह सिनेमा में साहित्य का नमक घोलते आये हैं और इसीलिए अपनी अलग पहचान बना पाये हैं। कामिल खुद हिंदी में पीएच डी हैं और हिंदी से संवेदना पूर्ण सम्बन्ध रखते हैं।
न्यासी वरिष्ठ कवि व अनुवादक अशोक वाजपेयी ने न्यास की सजगता को ताक़िद किया कि न्यास की स्वतंत्रता व निष्पक्षता को बरकरार रखा जाए। उन्होंने पुस्तकों की उपलब्धता के लिए पूरे देश में मुहीम चलने की बात सामने राखी। संचालन करते हुए विनीत कुमार ने वाणी प्रकाशन के पाठक व लेखकों के संबंधों को भी याद किया गया कि बहुत से पाठक जो की अब सिर्फ पाठक ही नहीं बल्कि लेखक या और भी किसी बड़े मुकाम तक पहुंच गए हैं, के भी इस प्रकाशन से मधुर सम्बन्ध रहे।
इसके बाद साहित्य जगत और हिंदी भाषा पर खुली परिचर्चा शुरू हुई | वरिष्ठ कवि केदारनाथ सिंह ने बनारस के बहाने हिंदी भाषा की राजनितिक गलियारों में हुई उपेक्षा पर चिंता व्यक्त किया | उन्होंने अनुवाद के महत्व पर जोर देते हुए कहा की अनुवाद के द्वारा ही इस सांस्कृतिक विविधताओं से परिपूर्ण इस भारत देश में सेतु का निर्माण किया जा सकता है और गर्व की बात है की हिंदी इसमें सफल भी हो रही है |राजभाषा के रूप में हिंदी कितनी सफल हुई नहीं कहा जा सकता लेकिन सेतु भाषा बन चुकी है। भारतीय भाषाओँ का प्रतिबिम्बन जितना हिंदी में हुआ है वह सर्वश्रेष्ठ है।
वाणी न्यास के अध्यक्ष अरुण माहेश्वरी ने समरोह को संबोधित करते हुए कहा की वाणी परिवार का उद्देश्य केवल व्यवसाय करना न होकर सामाजिक दायित्व के साथ आगे बढ़ना है और इसी विचार के साथ आज वाणी न्यास की स्थापना की जा रही है | माहेश्वरी ने कहा कि इक्कीसवीं सदी अनंत संभावनाओं का समय है। भारत की संवैधानिक चौबीस भाषाएँ पर्याप्त समृद्ध और भाषा विज्ञान की दृष्टि से मजबूत हैं। यह भाषाएँ ऐतिहासिक दृष्टिकोण से संवेदनशील होने के साथ एक दूसरों को दृढ़ता प्रदान करती आयी हैं परन्तु पिछले दशकों से इन सभी भाषाओं की सांस्कृतिक दूरियाँ बढ़ी हैं। नतीजतन भारतीय भाषाओं व अंतर्राष्ट्रीय साहित्य को जानने व समझने के लिये भाषाओं की इच्छा शक्ति मजबूत तो है परन्तु फिर भी व्यावहारिक व व्यवस्थापरक दूरियाँ बनी हुई हैं और इन्ही दूरियों को ख़त्म करने के लिए वाणी न्यास संकल्पित है | वाणी न्यास की प्रेरणा वाणी प्रकाशन के संस्थापक डॉ प्रेमचन्द्र 'महेश' हैं।
वाणी न्यास के स्थापना के उपलक्ष्य पर आयोजित समारोह में कला समीक्षक विनोद भरद्वाज की पुस्तक सच्चा-झूठ, पत्रकार राकेश तिवारी की पुस्तक मुकुटधारी चूहा, गंगा प्रसाद विमल की कविता-संग्रह पचास कवितायेँ, रॉकस्टार, जब वी मेट व हाईवे जैसी फिल्मों के मशहूर गीतकार इरशाद कामिल का नया नाटक बोलती दीवारें, सुकृता पॉल कुमार की पुस्तक ड्रीम कैचर तथा नरेन्द्र कोहली की पुस्तक किताब देश के हित में का लोकार्पण किया गया।
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