तो अब मौसम है बजटियाना! - क़मर वहीद नक़वी/ Qamar Waheed Naqvi on upcoming Budget of Modi

राग देश 

इस बजट को बताना चाहिए कि अगले पाँच साल देश किस आर्थिक राजमार्ग पर चलनेवाला है! 


तो अब मौसम है बजटियाना! - क़मर वहीद नक़वी 


अच्छा या बुरा चाहे जैसा भी हो, इस बजट को एक 'विज़न डाक्यूमेंट' होना चाहिए! मोदी के आर्थिक दर्शन का सम्पूर्ण वाङमय हम इसमें देखना चाहेंगे! मोदी भी कह चुके हैं और वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कि अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारनी है तो लोगों को कुछ कड़ुवी दवा पीने को तैयार रहना चाहिए! ठीक है. पी लेंगे! और नहीं पियेंगे तो जायेंगे कहाँ? लेकिन अर्थव्यवस्था की बीमारी क्या है, डायग्नोसिस क्या है, इलाज क्या है और अगले दो-तीन साल कड़ुवी दवा पीने के बाद अर्थव्यवस्था कितनी तंदुरुस्त, कितनी हट्टी-कट्टी हो जायेगी, एक अच्छे डाक्टर की तरह यह साफ़-साफ़ बता दीजिए तो लोग ख़ुशी-ख़ुशी कड़ुवी दवा भी पी लेंगे, परहेज़ी खाना भी खा लेंगे, और बाद में डाक्टर को दुआएँ भी देंगे! इसलिए मोदी जी, जो करिश्माई संजीवनी बूटी इतने दिनों से आप अपनी सदरी की जेब में रखे घूम रहे हैं, इस बजट में हम उसी की झलक देखना चाहते हैं.
तो अब मौसम है बजटियाना! बजट आना है. टकटकी लगी है. बजट आयेगा, क्या लायेगा? भई मोदी जी का बजट है. और पहला बजट है. इसलिए यह कोई मामूली बजट नहीं है कि आया और चला गया! कुछ सस्ता हुआ, कुछ महँगा हुआ, कोई टैक्स बढ़ा, कोई घटा, कोई हटा, कोई हँसा, कोई रोया और बस हो गया बजट! इस बार मामला अलग छे!

क्यों मामला अलग है? इसलिए कि अगर यह आम बजट की तरह सिर्फ़ साल के ख़र्चे, घाटे, योजनाओं की जोड़-काट और टैक्सों की क़तर-ब्योंत तक ही रह गया, तो कम से कम मुझे तो बड़ी निराशा होगी! क्योंकि इस बार के बजट को हम रूटीन की इन छोटी-छोटी चीज़ों के लिए नहीं देखेंगे. नाम तो इसका आम बजट है, लेकिन इस बार यह आम बजट नहीं, ख़ास बजट होगा! दरअसल, इस बजट को बताना चाहिए कि अगले पाँच साल देश किस आर्थिक राजमार्ग पर चलनेवाला है! वह रास्ता यूपीए सरकार से कितना अलग होगा और क्यों? दस साल से हम जिस रास्ते चल रहे थे, उससे कहाँ पहुँचे हैं, यह सब को पता है. मुद्दा इस बार उससे थोड़ा उन्नीस-बीस, थोड़ा ऊपर-नीचे होने का नहीं है. मुद्दा उन सपनों को पाने का है, जो 'ड्रीमब्वाय' मोदी ने अपनी चुनाव सभाओं में बहुत चमका-चमका कर बेचे थे.

अच्छा या बुरा चाहे जैसा भी हो, इस बजट को एक 'विज़न डाक्यूमेंट' होना चाहिए! मोदी के आर्थिक दर्शन का सम्पूर्ण वाङमय हम इसमें देखना चाहेंगे! मोदी भी कह चुके हैं और वित्तमंत्री अरुण जेटली भी कि अर्थव्यवस्था की सेहत सुधारनी है तो लोगों को कुछ कड़ुवी दवा पीने को तैयार रहना चाहिए! ठीक है. पी लेंगे! और नहीं पियेंगे तो जायेंगे कहाँ? लेकिन अर्थव्यवस्था की बीमारी क्या है, डायग्नोसिस क्या है, इलाज क्या है और अगले दो-तीन साल कड़ुवी दवा पीने के बाद अर्थव्यवस्था कितनी तंदुरुस्त, कितनी हट्टी-कट्टी हो जायेगी, एक अच्छे डाक्टर की तरह यह साफ़-साफ़ बता दीजिए तो लोग ख़ुशी-ख़ुशी कड़ुवी दवा भी पी लेंगे, परहेज़ी खाना भी खा लेंगे, और बाद में डाक्टर को दुआएँ भी देंगे! इसलिए मोदी जी, जो करिश्माई संजीवनी बूटी इतने दिनों से आप अपनी सदरी की जेब में रखे घूम रहे हैं, इस बजट में हम उसी की झलक देखना चाहते हैं.

गुड गवर्नेन्स, बेहतर कर- ढाँचा, काले धन का ख़ात्मा, महँगाई पर नियंत्रण, पूँजी को आमंत्रण, उद्योगों के लिए अनुकूल माहौल, जीएसटी, संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल, विकास और पर्यावरण में क़दमताल, संघ और राज्यों में तालमेल, अवसरों का बढ़ना और कौशलों का गढ़ना, सब्सिडी के बजाय ग़रीबों को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाना, इन्फ़्रास्ट्रक्चर, मैन्यूफ़ैक्चरिंग व कृषि को बढ़ावा, सौर ऊर्जा के ज़रिए विकास की नयी रोशनी लाना, युवाओं व महिलाओं पर विशेष ज़ोर, समावेशी विकास जैसी बातों पर सरकार अगले पाँच साल कैसे चलेगी, कहाँ पहुँचेगी-- इस सबके लिए इस बजट को तौला जायेगा!

यही नहीं, 'ब्रांड इंडिया' बनाने के मोदी मंत्र के पंचतत्व यानी पाँच 'टी' यानी ट्रेडिशन (परम्परा), टैलेंट (प्रतिभा), टूरिज़्म (पर्यटन), ट्रेड (व्यापार) और टेक्नालाजी की प्राण-प्रतिष्ठा कैसे की जानी है, यह भी अभी तक पता नहीं चल सका है. क्या बजट इस बारे में कोई बात करेगा? देश के हर राज्य में आईआईटी, आईआईएम और एम्स जैसे संस्थान और सौ स्मार्ट शहर बनाने की बात भी धूम-धड़ाके के साथ कही गयी थी. अब यह अलग बात है कि अभी हाल में ही एक अख़बार में शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू का इंटरव्यू पढ़ रहा था. वह कह रहे थे कि यह कहाँ कहा गया कि  नये 'स्मार्ट' शहर बनेंगे? मौजूदा शहरों को भी तो 'स्मार्ट' बनाया जा सकता है! वाह भई वाह! ख़ूब कही! इतनी जल्दी पलटी मार गये! पुराने शहरों को 'स्मार्ट' कैसे करेंगे? रंग-रोग़न लीप पोत कर? पतली सड़कें चौड़ी करके? गलियाँ-वलियाँ, झुग्गी-वुग्गी तोड़ताड़ कर? कुछ नये शापिंग माल बना कर? शीशे के कुछ चमकीले वाले आफ़िस काम्प्लेक्स बना कर? कुछ नालेज पार्क, आईटी पार्क बना कर, वग़ैरह-वग़ैरह! माफ़ कीजिएगा वेंकैया जी, जहाँ तक इस भोंदू की समझ है, ऐसे जोड़-पैबंद से 'स्मार्ट' शहर तो नहीं ही बन सकते हैं! 

बहरहाल, यह तो सब जानते हैं कि मोदी जी ने विकास का जो सब्ज़बाग़ दिखाया है, वह सारा काम रातोंरात नहीं हो सकता, पाँच साल में भी नहीं हो सकता. लेकिन इसका कोई ख़ाका, कोई योजना, कोई रोडमैप तो इतने दिनों में पेश किया ही जा सकता है. और शायद वह बन कर रखा भी हो, क्योंकि चुनाव प्रचार में इसे एक बड़े 'सेलेबल आइटम' के तौर पर बेचा गया था! इसलिए बजट से यह उम्मीद लगाना ग़लत नहीं होगा कि वह लोगों को बताये कि इस दिशा में कैसे आगे बढ़ा जायेगा और अगले पाँच, दस या पन्द्रह बरसों में इनमें से क्या-क्या पा लिया जायेगा!

इसीलिए मेरी नज़र में इस बार का बजट आम नहीं, बहुत-बहुत ख़ास है! वैसे भी कम से कम मेरा तो मानना है कि हर साल इतनी धूमधाम से बजट पेश ही क्यों होना चाहिए? हर साल बजट पेश करने से नीतिगत निरन्तरता बनी रह नहीं पाती. इस बार किसी टैक्स में छूट दे दी, अगली बार उसे बढ़ा दिया! वित्त मंत्री बदल गया तो अगले बजट की दिशा ही बदल गयी. किसी राज्य में विधानसभा चुनाव होनेवाले हैं तो वैसे लालीपाप बाँट दिये! कोई राजनीतिक ज़रूरत आ गयी तो किसी राज्य को विशेष पैकेज दे दिया. दिक़्कत यह है कि हर साल पेश होनेवाले बजट में हर साल नीतियाँ ऊपर-नीचे होती रहती हैं, हर साल कोई नया टैक्स स्लैब आ जाता है, हर साल कुछ नियम बदल जाते हैं, कुछ जुड़ जाते हैं. इससे हासिल क्या होता है? हर साल इतनी बड़ी क़वायद क्यों, जिसमें पिछले बजट की बहुत सी बातें डस्टबिन में डाल दी जाएँ, वित्तमंत्री बजट को 'आकर्षक' बनाने और अपना चेहरा चमकाने के लिए कुछ नये तोहफ़े लायें, सरकार वाहवाही लूटने के नये तरीक़े ढूँढे, जबकि सच यह है कि देश की आवश्यकताओं, समस्याओं और स्थितियों में हर साल ऐसा कोई बड़ा बदलाव तो आता नहीं है! 

आप हर साल बजट बनाते हैं, किसी साल इसको ख़ुश करने की कोशिश करते हैं, किसी साल उसको, हर साल बजट बना कर अपनी छाती ठोंकते है, हर साल विपक्ष की वही एक रस्मी प्रतिक्रिया होती है! मेरे ख़याल से बजट कम से कम पाँच साल का आर्थिक विज़न डाक्यूमेंट होना चाहिए, नयी सरकार बनते ही वह अपना यह दस्तावेज़ पेश करे, फिर हर साल एक तय समय पर  हिसाब-किताब, क़र्ज़े, घाटे, विकास दर आदि-आदि का ब्योरा संसद के सामने रख दे, कहीं कोई बड़ी ज़रूरत आ पड़ी हो किसी इक्का- दुक्का बदलाव की, किसी 'कोर्स करेक्शन' की तो कर दीजिए और पाँच साल बाद नयी सरकार आये तो अपना नया पंचवर्षीय बजट पेश करे.

मोदी जी ने बातें तो ख़ूब कीं, नयी-नयी, नये-नये विचारों की. हालाँकि अभी कुछ वैसा नयापन देखने को मिला नहीं. अब बजट का इन्तज़ार है. रेल बजट का भी. वैसे किराया तो पहले ही बढ़ चुका है. अब देखते हैं कि बजट और रेल बजट में क्या आता है. रेल बजट भी रेल के लिए नहीं, राजनीति के लिए ही इस्तेमाल होता रहा है. तो 'गुड गवर्नेन्स' का तक़ाज़ा है कि बजट और रेल बजट जैसी परम्पराओं की समीक्षा भी की जाये, जो जिस काम के लिए बनी हैं, उसका 'गुड' करने के बजाय गुड़-गोबर ही ज़्यादा करती हैं! तो मोदी जी, इस बजट सीज़न में हो जाये कुछ ऐसा कि देखे सारा ज़माना!

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