
दिनेश कुमार शुक्ल की तीन कवितायें
खिलखिलाहट
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तुम से बात करना

अब और कठिन
तुम्हारा बेटा अब नाराज़ हो सकता है
कहा तुमने
और सच ही कहा
फोन काटते-काटते
तुमने फुसफुसा कर कहा
जल्दी से लिख डालो समीक्षा अब
महीनों से टालते जा रहे हो
देखती हूँ आलसी बहुत हो गए हो
झूठे कहीं के
और फिर से तुम्हारी आवाज़
निर्भय हो गई
तुम्हारी नाराजगी के बाद आने वाली
खिलखिलाहट में
बिल्कुल वही पुरानी वाली नदी
अब भी कल-कल करती
बह रही थी
मैं चमत्कृत था
तुम्हारी कविताओं मे
छुपा तुम्हारा डर
कहीं था ही नहीं
कविता मे नदी अब भी थी
हाँ अब वह बहुत शांत
और विस्तार भर कर बह रही थी
उसमे सिर्फ बहा जा सकता था
उस पर कुछ भी लिखना
संभव नहीं था
वर्ण माला गले से उतार कर
कोई नदी मे फेंक
चला गया था.... अवाक
माला बहती चली जा रही थी......
दूसरा सीन
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लुप्त हो गया था

पथरचटा
नामोनिशान नहीं दूर तक
वह
जो चट्टानें फोड़ कर
पनपता चला जाता था
हरी-लाल धमनियों सी बेल
गोल-गोल हरे सिक्कों जैसे
पत्ते कुछ-कुछ खटास लिए,
आप उनसे सीटी बना सकते थे
या टिकुली या
अपनी तख्ती पर पुराना लिखा
मिटा सकते थे उसकी लुगदी से...
वो पथरचटा
लुप्त ऐसा हुआ
कि भाषा से भी गायब हो गया
पूछो गाँव में किसी युवक से
उसने सुना ही नहीं ये नाम
एक दिन
सुबह-सुबह
दिखा एक चैनल पर अचानक
पहले से अधिक सरसब्ज
योगिराज उसका
परिचय करा रहे थे
हाँ ,नाम अब उसका बदल चुका था
अब था वह पुनर्नवा
मुझे देख पहले तो मुसकाया
फिर जाने क्या हुआ कि अचानक
देखते-देखते उसकी पत्तियाँ -डंठल
मुरझा कर झूल गए
फिर टीवी पर दूसरा सीन आ गया
हरक लाल हरक लाल
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हरक लाल हरक लाल

अब तुम्हारी बकरियाँ
चोरी-चोरी मेरी मेड़ की घास
क्यों नहीं चर जातीं
हरक लाल हरक लाल
अब तुम लोग कटाई के वक़्त
सीला बीनने क्यों नहीं आते
और हाँ
बहुत दिन हुए
त्योहार लेने भी नहीं आए तुम
न तुम्हारी घरवाली,
पुरानी उतरन भी नहीं ले गए
तुम कैसे गुजारते हो जाड़ा
दिनेश कुमार शुक्ल
संपर्कए-201, इरवो क्लासिक अपार्टमेन्ट्स, सेक्टर - 57, गुड़गाँव - 122003 (हरियाणा)
मोबाईल : +91-9810004446
ईमेल : dkshukla9@yahoo.com
देखो तुम तो मेरे सहपाठी हो
मैंने तो हमेशा तुमको
अकेले में अपने बराबर बैठाया
सभा सुसाइटी की बात अलग
छूआछूत मानी भला मैंने कभी
अब तुम जाने क्यों
कन्नी सी काटते हो
सबके सामने जोहार तक नहीं
ऊसर वाला खेत भी
कबसे नहीं मांगा तुमने बटाई पर
कर्ज़ भी नहीं मांगते
तुम तो सहपाठी हो मेरे
सुना है तुम्हारा लड़का
मेरी खिलाफत करेगा अबकी
प्रधानी मे
हरक लाल
ये हो क्या गया है तुम लोगों को
और फिर
तुम तो मेरे सहपाठी रहे हो !