तीन फिल्मों की समीक्षायें: फैंटम / बांके की क्रेजी बारात / कौन कितने पानी में | Movie Review: Phantom / Baankey Ki Crazy Baraat / Kaun Kitne Paani Mein दिव्यचक्षु


तीन फिल्मों की समीक्षायें: फैंटम / बांके की क्रेजी बारात / कौन कितने पानी में  | Movie Review: Phantom / Baankey Ki Crazy Baraat / Kaun Kitne Paani Mein दिव्यचक्षु

तीन फिल्मों की समीक्षायें: 

फैंटम / बांके की क्रेजी बारात / कौन कितने पानी में

फैंटम

निर्देशक - कबीर खान
कलाकार  -सैफ अली खान, कैटरीना कैफ, सोहेला कपूर, सव्यसाची मुखर्जी

जिसे भारत में 26/11 कहा जाता है (यानी 2008 का वो हादसा जब पाकिस्तानी आतंकवादियों ने मुंबई के ताज होटल सहित कुछ ठिकानों पर हमला किया था और जिसमें कई लोगों के अलावा पुलिस अधिकारी भी मारे गए थे) की चर्चा अक्सर होती है और भारत-पाकिस्तान के बीच बातचीत की हर संभावना-आशंका के बीच वो मसला उठता है। अक्सर ये सुनने को आता है कि उस हमले में मारे गए लोगों को इंसाफ नहीं मिला है। वो इंसाफ क्या होगा ये बहसतलब है, लेकिन फिलहाल उसका फिल्मी इंसाफ हो गया है। कबीर खान की फिल्म `फैंटम’ एक तरह से फिल्मी पर्दे पर भारत के खिलाफ पाकिस्तान की उस आतंकवादी कार्रवाई का बदला है। हुसैन जैदी कि किताब `मुंबई अवेंजर्स’ पर बनी फिल्म का ताना बाना ह़ॉलीवुड की `मिसन इंपॉसिबल’ श्रृंखला की फिल्मों जैसी है। हालांकि कई फर्क है। सबसे बड़ा तो यही कि टाम क्रूज (मिशन इंपॉसिबल के नायक की भूमिका निभानेवालो) जैसा दम सैफ अली खान में नहीं है। 

सैफ ने दानियाल खान के नाम के एक शख्स का किरदार निभाया है जो भारतीय गुप्तचर एजेंसी रॉ की तरफ से अमेरिका जाकर डेविन कोलमेन हेडली को खत्म कर देता है और लंदन में एक अन्य पाकिस्तानी को भी, जो 26/11 की साजिश में शामिल था। इसमें उसका साथ देती है नवाज (कैटरीना कैफ)। आखिर में दानियल के निशाने पर हैं हैरिस सईद (ये किरदार हाफिज सईद की तरह है)  और उमवी (जखीउर्रहमान लखवी जैसा)। दानियल और नवाज की जोड़ी उन दोनों को खत्म कर देती है। ये सब इतना सरल लगता है कि दर्शक को महसूस होता है कि आखिर हकीकत में भारतीय खुफिया एजंसियां इतना सरल काम क्यों नहीं कर देती? जाहिर है कि फिल्म में कई तरह के सरल नुस्खे  हैं। हालांकि फिल्म में पाकिस्तान की स्टीरियोटाइपिंग नहीं है जैसा `गदर’ जैसी फिल्म में दिखाया गया था। इसमें सोहेला कपूर ने ऐसी पाकिस्तानी मां का किरदार निभाया है जिसका जवान बेटा आतंकवादियों (लश्कर ए तैयबा) के साथ रहने की वजह से मारा गया। वो दानियाल और नवाज का साथ देती है और फिल्म के लगभग अंत में जब पाकिस्तानी सैनिक उससे पूछते हैं तुमने ऐसा क्यों किया तो वो कहती है- `पाकिस्तान की खातिर’। यानी ऐसे पाकिस्तानी भी यहां दिखाए गए हैं तो आतंकवाद के खिलाफ हैं।

फिल्म दर्शक को लंदन और शिकागो के अलावा सीरिया और पाकिस्तान की सैर करा देती है। दानियल और नवाज का पाकिस्तान जाना तो समझ में आता है क्योंकि वो कहानी की मांग है लेकिन सीरिया किसलिए? क्या सिर्फ इसलिए कि वहां के गृहयुद्ध के कुछ दृश्य दिखा सके?  इससे कहानी लंबी जरूर होती है लेकिन उसका कोई सकारात्मक प्रभाव  नहीं पड़ता है। फिल्म में दानियल और नवाज के बीच रोमांटिक रिश्ता बनता है लेकिन उसके दृश्य ज्यादा नहीं है। सैफ अली खान के एक्शन वाले दृश्य भी सामान्य है और अगर निर्देशक ने उन पर खास काम किया होता तो शायद ये और बेहतर हो जाती। जिनको 26/11 को लेकर पाकिस्तान से मलाल है उनको ये थोड़ी मनोवैज्ञानिक संतोष देगी कि चलो न सही वास्तविक रूप से लेकिन फिल्मी तरीके से बदला तो ले लिया गया।


बांके की क्रेजी बारात


निर्देशक- एजाज खान 
कलाकार-राजपाल यादव, टिया वाजपेयी, सत्यजीत दुबे, संजय मिश्रा, विजय राज

ये एक कॉमेडी है । फिल्म का नाम मजेदार है और कहानी भी। दर्शक को हंसने के लिए काफी मसाला पेश किया गया है।

खैर, सबसे पहले जान लीजिए कि निर्देशक ने कहना क्या चाहा है। आजकल प्राक्सी यानी छद्म का जमाना है। जो चीज जैसी है वैसी दिखती नहीं है। फिल्म में बांके (राजपाल यादव) नाम का एक शख्स है। उसकी शादी होनेवाली है। लेकिन उसकी कुंडली में कोई दोष निकल आता है। अब मामले को कैसे सटलाया जाए? आखिर उसे कुंवारा तो ऱखा नहीं जा सकता? तो परिवार वाले तय करते हैं कि दूल्हा के वेष मे किसी और भेज दिया जाए और शादी के बाद दुल्हन बांके की हो जाए। इसलिए विराट (सत्यजीत) नाम के नौजवान को ढूंढा जाता है जो पैसे के एवज मे ये काम करने को तैयार हो जाता है। शादी हो भी जाती है। लेकिन शादी के बाद दुल्हन अंजलि (टिया वाजपेयी) को इस सबसे बडा धक्का लगता है। वो विराट को काफी बुरा भला कहती है। विराट अपनी मजबूरी बताता है। और फिर अंजलि  एक ऐसा खेल खेलती है कि बांके मुंह ताकता रह जाता है।

फिल्म में संजय मिश्रा और विजय राज में काफी अच्छा काम किया है। लेकिन जबसे ज्यादा जमे राजपाल यादव। फिल्म में व्यंग्य थोड़ा कमजोर हो गया है। पर खिलखिलाने के अवसर काफी हैं। 


कौन कितने पानी में 

निर्दशक –नीला माधव पांडा
कलाकार- राधिका आप्टे, कुणाल कपूर,  सौरभ शुक्ला, गुलशन ग्रोवर

कह सकते हैं कि इसमें पानी की समस्या को राजनीति और सामंतवाद में मिलाया गया है। और जब इतनी मिलावट को क्या बनेगा?  अनुमान लगाइए।

सौऱभ शुक्ला ने एक ऐसे राजा साहब का किरदार निभाया हो जो काफी खस्ता हाल है। उनका महल अब गिरा तब गिरा की हालत में है। गांव में (जिसका नाम ऊपरी गांव है) में रहनेवाले राजा साहब के यहां पानी की समस्या है किंतु पास के गांव में पानी बहुत है। राजा साहब का बेटा राजेश (कुँणाल कपूर) विदेश जाना चाहता है लेकिन राजा साहब पैसा कहां से लाएं? कोई जमीन भी खरीदने के तैयार नहीं है। फिर राजेश सुझाव देता है कि साथ वाले गांव खारू पहलवान (गुलशन ग्रोवर) की बेटी जाह्नवी (राधिका आप्टे) से शादी करने के लिए पटा लें तो पैसा मिल जाएगा। जाह्नवी पढ़ी लिखी है और अपने गांव की तरक्की के लिए काम कर रही है। राजेश उसे पटा तो लेता है लेकिन ऐसे में उसे उससे प्रेम हो जाता है और वो सच में उससे शादी करना चाहता है। राजा साहब को ये स्वीकार नहीं। और न ही जाह्नवी के पिता को। दोनों तरफ से तलवारे निकल जाती हैं और लेकिन तभी एक चमस्कार होता है और सब कुछ ठीक हो जाता है।

 फिल्म में सामंतवाद का उत्पीड़क रूप भी दिखाया है। और उस ध्वस्त रूप भी। लेकिन चमत्कार की वजह से फिल्म का अंत कमजोर हो जाता है। सौरभ शुक्ला और राधिका का काम बहुत अच्छा है। लेकिन निर्देशक नीला माधव पांडा के लिहाज से ये बहुत अच्छी फिल्म नहीं कही जाएगी।



००००००००००००००००
nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
एक स्त्री हलफनामा | उर्मिला शिरीष | हिन्दी कहानी
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy