वीरेन डंगवाल - विनोद भारदवाज संस्मरणनामा

लेखकों, कलाकारों, पत्रकारों, फिल्मकारों की दुर्लभ स्मृतियाँ
संस्मरण 14
कवि, उपन्यासकार, फिल्म और कला समीक्षक विनोद भारदवाज का जन्म लखनऊ में हुआ था और टाइम्स ऑफ़ इंडिया की नौकरी क़े सिलसिले में तत्कालीन बॉम्बे में एक साल ट्रेनिंग क़े बाद उन्होंने दिल्ली में दिनमान और नवभारत टाइम्स में करीब 25 साल नौकरी की और अब दिल्ली में ही फ्रीलांसिंग करते हैं.कला की दुनिया पर उनका बहुचर्चित उपन्यास सेप्पुकु वाणी प्रकाशन से आया था जिसका अंग्रेजी अनुवाद हाल में हार्परकॉलिंस ने प्रकाशित किया है.इस उपन्यास त्रयी का दूसरा हिस्सा सच्चा झूठ भी वाणी से छपने की बाद हार्परकॉलिंस से ही अंग्रेजी में आ रहा है.इस त्रयी क़े तीसरे उपन्यास एक सेक्स मरीज़ का रोगनामचा को वे आजकल लिख रहे हैं.जलता मकान और होशियारपुर इन दो कविता संग्रहों क़े अलावा उनका एक कहानी संग्रह चितेरी और कला और सिनेमा पर कई किताबें छप चुकी हैं.कविता का प्रतिष्ठित भारतभूषण अग्रवाल पुरस्कार क़े अलावा आपको संस्कृति सम्मान भी मिल चुका है.वे हिंदी क़े अकेले फिल्म समीक्षक हैं जो किसी अंतर्राष्ट्रीय फिल्म जूरी में बुलाये गए.1989 में उन्हें रूस क़े लेनिनग्राद फिल्म समारोह की जूरी में चुना गया था. संस्मरणनामा में विनोद भारद्धाज चर्चित लेखकों,कलाकारों,फिल्मकारों और पत्रकारों क़े संस्मरण एक खास सिनेमाई शैली में लिख रहे हैं.इस शैली में किसी को भी उसके सम्पूर्ण जीवन और कृतित्व को ध्यान में रख कर नहीं याद किया गया है.कुछ बातें,कुछ यादें,कुछ फ्लैशबैक,कुछ रोचक प्रसंग.
संपर्क:
एफ 16 ,प्रेस एन्क्लेव ,साकेत नई दिल्ली 110017
ईमेल:bhardwajvinodk@gmail.com
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वीरेन डंगवाल को मैं बरसों से जानता था, 1969 से. वे मुझसे एक साल ही बड़े थे. आरम्भ कला कविता की लघु पत्रिका मैं, नरेश सक्सेना और जयकृष्ण आदि मिल कर निकालते थे. कई बड़े साहित्यकार हमें बिना कहे भी आत्मीय सहयोग देते थे. आरम्भ का इतना आतंक हो गया था की कमलेश्वर जैसे बड़े लेखक ने सारिका में अनिलकुमार घई के नाम से आरम्भ पर एक लेख में हमला किया, बड़े लेखकों की छोटी पत्रिका शीर्षक से.
लेकिन आरम्भ में बहुत से अच्छे नए लेखक, कवि छपे थे. इलाहाबाद से दूधनाथ सिंह ने मुझे खुद गिरधर राठी, अजय सिंह, वीरेन डंगवाल की कवितायेँ भिजवायीं थीं. अजय सिंह ने मुझे अपने बाल सुलभ प्रेम पर गुलाबी कागजों में चार पेज की विवादास्पद चिठ्ठी भी भिजवाई थी यह कर कि मैं उसका सार्वजनिक पाठ कर सकता हूँ. पर आज मैं उसे सार्वजनिक कर दूँ तो मेरी खैर नहीं दोस्तों. वैसे अजय आज भी बड़ा प्यारा इंसान है.
आरम्भ के आखिरी अंक मैं वीरेन की कविता भूगोलरहित छपी थी. बहुत मार्मिक कविता थी.
इधर कैंसर हो जाने के बाद मैं वीरेन से कभी नहीं मिला था. मेरी पत्नी का कैंसर से निधन हुआ था और दिवाली के दिनों मैं उसका भयंकर दर्द देख कर आज तक मैं दिवाली नहीं मना पाया हूँ. वीरेन से बस एक बार फ़ोन पर बात करने का ही साहस हुआ था.
लेकिन जिस वीरेन को मैं आज भी याद करना चाहता हूँ वो अनोखी मस्ती से भरा वीरेन है. मैं बरेली अपने बड़े भाई के घर जाता था तो वीरेन के साथ अद्भुत शामें बीतती थीं. एक बार हम दोनों एक बड़े वीरान पार्क के बीच नशे मैं मस्त अपने निजी इश्किया किस्से शेयर करते रहे. मेरा कोई भी दोस्त इतना मस्त और खिलंदड़ नहीं कहा जा सकता था. उसकी हंसी और ठहाके नहीं भूलते हैं.
पत्रकार के रूप में वो गंभीर हो जाता था. मैं बरेली एक कला पर लेक्चर देने गया तो उसने अमर उजाला के इंटरव्यू के लिए किसी योग्य शिष्य को भेज दिया और अगले दिन अख़बार में एक दिन का स्टार बना दिया.
दिल्ली मैं नीलाभ जब ईस्ट कैलाश मैं रहते थे तो मैंने नीलाभ, मंगलेश और वीरेन के साथ एक अद्भुत शाम बितायी थी. किसी तरह से शाम का अंत हुआ, तो हम सब बाहर आये. वीरेन अपनी मस्ती के चरम पर था. एक कार की छत पर उछल कर बैठ गया और हमसे बतियाने लगा. शायद पडोसी शरीफ थे. किसीने पुलिस नहीं बुलाई.
तो ऐसे मस्त वीरेन को कैंसर जैसी बीमारी कमज़ोर और सुस्त कर दे तो इसे किसका अन्याय कहें?
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2 टिप्पणियाँ
श्रद्धाँजलि !
जवाब देंहटाएंyah anyaye hai, lekin yah jeevan bhi hai, dard bhi iska ek hisaa hota hai
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