![रवीन्द्र कालिया ने नयी पीढ़ी को स्टार की तरह पालापोसा - चित्रा मुद्गल #शब्दांकन](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjE-wogaC0eMGJUGFOwsvKmYRq-VLv6hF9xV8ha2TcDNp_I3rkkO6wFyyO9BmOqP-_FdsfdEIUueoe3JCHA0VPTFZ577uW71rhDiL1DGWO1kwC6SsEukC25UmIAyxicNHcptyXqfbaZ1J4F/s1600-rw/ravindra-kalia-chitra-mudgal.jpg)
रवीन्द्र कालिया का जाना एक अपूर्णीय क्षति है,
क्योंकि वो ऐसे लेखक थे जिन्होंने 'ख़ुदा सही सलामत' जैसा उपन्यास दिया, जबकि उनके समकालीन ज्ञानरंजन उपन्यास नहीं दे पाए - चित्रा मुद्गल
मुझे लगता है कि वो हिंदी साहित्य के ऐसे संपादक थे जिन्होंने नयी पीढ़ी को स्टार की तरह पालापोसा और उनके क़द को मनवाया और उसके साथ-साथ सबसे महत्वपूर्ण बात है कि उनके अन्दर सृजन की नयी पीढ़ी के सृजनकारों को अभिव्यक्ति की वही स्वतंत्रता प्रदान की जो वो स्वयं के लिए चाहते रहे थे, यही वजह थी कि उन्होंने कभी भी चाहे वो - 'धर्मयुग' हो, चाहे 'वागर्थ', चाहे 'नया ज्ञानोदय' - से जुड़े रहे थे उन्होंने अपनी दृष्टि को आरोपित नहीं किया न उन्होंने फार्मूले परोसे कि तुम इस तरह लिखो...
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