हज़ारों महफ़िलों की तू शमा था — #राजेंद्र_यादव_जयंती — भरत तिवारी


तिरे जाने का ग़म घटता नहीं है tire jaane ka gham ghat'ta nahi.n hai

तिरे जाने का ग़म घटता नहीं है

tire jaane ka gham ghat'ta nahi.n hai

—  भरत तिवारी

जन्मदिन मुबारक सर, आपके लिए कही मेरी एक ग़ज़ल...





तिरे जाने का ग़म घटता नहीं है
निशां पत्थर से ये मिटता नहीं है

गुज़रने भर को गुज़रे हैं ये लम्हे
उदासी का धुआं छँटता नहीं है

ख़ुशी का आशियाँ तेरी गली था
सिवा ग़म कुछ वहाँ दिखता नहीं है

हज़ारों महफ़िलों की तू शमा था
अंधेरा अब के जो मिटता नहीं है

जुबांनी जो सुनाया तूने क़िस्सा
किताबों में कहीं मिलता नहीं है

सलीक़ा सीख लेने से ही तेरा
‘भरत’ तुझ सा हमें लगता नहीं है

(राजेन्द्र यादव जी की याद में)





tere jaane ka gham ghat'ta nahi.n hai
nishaa.n patthr se ye mit'ta nahi.n hai

guzarne bhar ko ghuzre hai.n ye lamhe
udaasi ka dhua.n chhat'ta nahi.n hai

khushi ka aashiyaa.n teri gali thi
siva gham kuch vaha.n dikhta nahi.n hai

hazaaro.n mehfilo.n ki tu shama tha
andhera ab ke jo mit'ta nahi.n hai

zubani jo sunaya tuune qissa
kitabo,n me kahi,n milta nahi hai

saleeqa siikh lene se hi tera
'bharat' tujh sa hame lagta nahi.n hai

(In Rajendra Yadav's memory) 
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