Hindi Poems
Kamal Pandey
फिल्मों की कहानी लिखने वाले कमल पाण्डेय की पैदाइश चित्रकूट की है , इलाहबाद विश्वविद्यालय से साहित्य और इतिहास में स्नातक कमल मुंबई में हैं, जिन फिल्मों की पटकथा लिखी है उनमें रन, शागिर्द, 'साहेब बीवी और गैंगस्टर' और 'न आना इस देश में लाडो', 'गुनाहों का देवता' जैसे सुपरहिट टीवी सीरियल शामिल हैं. आजकल वो अपनी फिल्म के निर्देशन की तैयारी में लगे हैं.
प्रेम की कविता
आज की रात बहुत उदास है गीत
जिसे मैं लिख रहा हूँ तुम्हारी याद में
खिड़कियों से बाहर झरती चांदनी में भी
घुल रही है उदासी
और भीग रहा है वक़्त पीड़ा की ओस से लगातार
अजीब है बांस –वनों से आ रही हवाओं का संगीत
और अजीब है आज की यह रात
दुःख इतना निर्मम नहीं होता
स्मृतियाँ इतनी बेजोड़ नहीं
पर घाटों से बहता ही चला जाता है पानी
नहीं ठहरता कहीं भी कुछ
रुकने का नाम नहीं लेतीं धाराएँ
पर वसंत फिर भी उतरता है जिंदगी के बगीचों में
और लौट कर फिर आता है समय का अतिथि
और फिर बैठ जाता हूँ मैं लिखने कोई गीत
तुम्हारी याद में
जैसा की अभी इस पल लिख रहा हूँ मैं
और उदासी बढती ही जा रही है गीत के बोलों में
सबसे सुन्दर गीत भी हो सकता है सबसे ज्यादा उदास
यह जाकर अब जाना
बिलकुल वैसे ही जैसे आज की रात
एक बार फिर से मैंने तुम्हें पहचाना ...!
बहता ही जा रहा है नदी का पानी
गुनता–घाट के इसी शमशान पर
अग्नि को समर्पित की गई थी माँ
जीवन जीने के बाद जब शरीर से निकल गया था माँ का होना
इससे पहले पिता और उससे पहले मेरे अन्य पुरखे
इसी घाट के पानी में खड़े होकर तिलांजलि देते हुए मैंने
उनके लिए मोक्ष की प्रार्थना की
और अनजानी अनंत यात्राओं के पड़ावों के लिए किया था कुछ पिंड दान
और कुछ सवाल इस नदी से की बहता ही क्यों जा रहा है इसका पानी
डूबती रातों के धुंधलके में जब सो जाता है जंगल
पछुवा हवाओं की मार से पुराने दर्द में बिलबिलाते हैं बूढ़े शरीर
जब कोई परित्यक्ता रौशनी बुझाये अँधेरे में पोंछ रही होती है अपने आंसू
बुरे स्वप्न से जग रहा होता है जब कोई बच्चा
तब भी कहते हैं की कल-कल करके गाती है ये नदी
शताब्दियों से गवाह है ये नदी
जिंदगियों के आने और जाने की
इसके किनारे मंडराती अतृप्त आत्माओं के रुदन की
गवाह है ये नदी जन-जन के मन की
यही नदी कहीं हमारे भीतर है लगातार खदबदाती हुई
ओह बहता ही जा रहा है इसका पानी ...
जो न होना था
दुःख के आसमान में
चीख-चीख कर तारे कहते रहे की यह विलाप की रात है
पर मैंने मानने से इंकार कर दिया
जीवन के प्रश्नों के मैंने उदाहरणों के साथ उत्तर दिए
और खुश रहा यह सोच कर की कॉपी कभी न कभी जाँची ही जाएगी
नदियों के तट पुकारते रहे की संजो लो ये पानी
एक दिन सूखने का डर है
पर मैंने मानने से इंकार कर दिया
पृथ्वी के साथ अपने रिश्ते की दुहाई दी मैंने
और खुश रहा की संबंधों की डोर कभी टूट ही नहीं सकती
सजल आँखों से मौसमों ने कितने संकेत दिए
की अपने हिस्से की धूप हवा और ऋतुएं समेट लो
कभी भी आ सकते हैं ना चाहने वाले दिन
पर मैंने मानने से इंकार कर दिया
मेरा विश्वास अभी भी जिंदा है और यकीन मानो यह जिंदा रहेगा
सृष्टि के आखिरी चरण तक...
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