धर्मद्र की बेवफाई मीना कुमारी की मौत #MeenaKumari



शराब की कुछ घूंट गले के नीचे उतर जाने दो





मीना कुमारी ने हिन्दी सिनेमा में जिस मुकाम को हासिल किया वो आज भी अस्पर्शनीय है.


थका थका सा बदन,
आह! रूह बोझिल बोझिल,
कहाँ पे हाथ से,
कुछ छूट गया याद नहीं....
आज उसी खूबसूरत अदाकारा की आज 45वीं पुण्यतिथि है. मीना कुमारी ने बॉलीवुड इंडस्ट्री में 40साल तक राज किया और इनकी अधिकतर फिल्मों के दुखांत की वजह से इन्हें बॉलीवुड की ट्रैजिडी क्वीन का खिताब दिया गया था.

अपने दिली जज्बात को उन्होंने जिस तरह कलमबंद किया उन्हें पढ़ कर ऐसा लगता है कि मानो कोई नसों में चुपके -चुपके हजारों सुईयाँ चुभो रहा हो.

गम के रिश्तों को उन्होंने जो जज्बाती शक्ल अपनी शायरी में दी, वह बहुत कम कलमकारों के बूते की बात होती है.

चाँद तन्हा है,आस्मां तन्हा
दिल मिला है कहाँ -कहाँ तन्हां

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हां
मीना कुमारी का जन्म 1 अगस्त 1932 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता अली बख्स भी पारसी रंगमंच के कलाकार थे और उनकी मां थियेटर की मशहूर अदाकारा और नृत्यांगना थीं, जिनका ताल्लुक रवीन्द्रनाथ टैगोर के परिवार से था.

पैदा होते ही अब्बा अली बख्श ने रुपये के तंगी और पहले से दो बेटियों के बोझ से घबरा कर इन्हे एक मुस्लिम अनाथ आश्रम में छोड़ आए. अम्मी के काफी रोने -धोने पर वे इन्हे वापस ले आए.परिवार हो या वैवाहिक जीवन मीना जो को तन्हाईयाँ हीं मिली.

मीना कुमारी उर्फ महजबीं की दो और बहनें थीं खुर्शीद और महलका. जब मीना कुमारी छोटी थीं तब उनके पिता का चक्कर उनकी नौकरानी के साथ चल रहा था और फिर धीरे धीरे घर के हालात खराब होते गए. अंत में मीना कुमारी को मात्र चार साल की उम्र में फिल्मकार विजय भट्ट के सामने पेश कर दिया था और फिर बाल कलाकर के रुप में मीना कुमारी ने बीस फिल्में कीं.

मीना कुमारी को अपने पिता के स्वार्थी स्वभाव के चलते उनसे नफरत सी हो गई थी और ये उनके जीवन में स्वार्थी पुरुष की शुरुआत थी.

सभी किरदारों को बाखूबी निभाया


वह कोई साधारण अभिनेत्री नहीं थी, उनके जीवन की त्रासदी, पीडा, और वो रहस्य जो उनकी शायरी में अक्सर झाँका करता था, वो उन सभी किरदारों में जो उन्होंने निभाया बाखूबी झलकता रहा. फिल्म "साहब बीबी और गुलाम" में छोटी बहु के किरदार को भला कौन भूल सकता है.

"न जाओ सैया छुडाके बैयाँ..." गाती उस नायिका की छवि कभी जेहन से उतरती ही नहीं. 1962 में मीना कुमारी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए तीन नामांकन मिले एक साथ. "साहब बीबी और गुलाम", मैं चुप रहूंगी" और "आरती".

यानी कि मीना कुमारी का मुकाबला सिर्फ मीना कुमारी ही कर सकी. सुंदर चाँद सा नूरानी चेहरा और उस पर आवाज़ में ऐसा मादक दर्द, सचमुच एक दुर्लभ उपलब्धि का नाम था मीना कुमारी. इन्हें ट्रेजेडी क्वीन यानी दर्द की देवी जैसे खिताब दिए गए. पर यदि उनके सपूर्ण अभिनय संसार की पड़ताल करें तो इस तरह की "छवि बंदी" उनके सिनेमाई व्यक्तित्व के साथ नाइंसाफी ही होगी.

होंठों तक आते -आते, जाने कितने रूप भरे
जलती -बुझती आंखों में, सदा-सी जो बात मिली

फिल्मकार कमाल अमरोही से प्यार

मीना कुमारी के साथ काम करने वाले लगभग सभी कलाकार मीना की खूबसूरती के कायल थे. लेकिन मीना कुमारी को मशहूर फिल्मकार कमाल अमरोही में अपने प्रति प्यार की भावना नज़र आई और पहली बार अपनी जिंदगी में किसी निस्वार्थ प्यार को पाकर वो इतनी खुश हुईं कि उन्होने कमाल से निकाह कर लिया. यहां भी उन्हें कमाल की दूसरी पत्नी का दर्जा मिला. लेकिन इसके बावजूद कमाल के साथ उन्होने अपनी जिंदगी के खूबसूरत 10 साल बिताए.

10 साल के बाद धीरे धीरे मीना कुमारी और कमाल के बीच दूरियां बढ़ने लगीं और फिर 1964 में मीना कुमारी अपने पति से अलग हो गईं. इस अलगाव की वजह बने थे एक्टर धर्मेंद्र जिन्होंने उसी समय अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी.

धर्मेंद्र तीसरे स्वार्थी पुरुष

एक धर्मेन्द्र को छोड़ के मीना कुमारी के बारे में उनके तमाम सहयोगी कलाकार बात करते हैं

धर्मेंद्र मीना कुमारी की जिंदगी में आने वाले तीसरे स्वार्थी पुरुष थे. उस समय धर्मेंद्र का करियर कुछ खास नहीं चल रहा था और मीना कुमारी की फिल्में एक के बाद एक हिट हो रही थीं. मीना कुमारी बॉलीवुड के आसमां को वो सितारा थीं जिसे छूने भर के लिए हर कोई बेताब था.

धर्मेंद्र के साथ जिंदगी की तन्हाईंयां बांटते बांटते मीना उनके करीब आनें लगीं. दोनों के बारे में काफी गॉसिप और खबरें आने लगीं. धर्मेंद्र के कैरिएर की डूबती नैया को जैसे किनारा मिल गया और धीरे धीरे धर्मेंद्र का करियर भी ऊंचाईंयों को छूने लगा. अपनी शोहरत के बल पर मीना कुमारी ने धर्मेंद्र के करियर को ऊंचाईयों तक ले जाने की पूरी कोशिश की. लेकिन फिल्म फूल और कांटे की सफलता के बाद धर्मेंद्र ने मीना कुमारी से दूरियां बनानी शुरु कर दीं. और एक बार फिर से मीना कुमारी अपनी जिंदगी की राह में तन्हा रह गईं.

धर्मद्र की बेवफाई

धर्मद्र की बेवफाई को मीना झेल ना सकीं और हद से ज्यादा शराब पीने की वजह से उन्हें लीवर सिरोसिस की बीमारी हो गई. कहते हैं कि दादा मुनि अशोक कुमार जिनके साथ मीना कुमारी ने बहुत सी फिल्में की थीं, से मीना कुमारी की यह हालत देखी नहीं गई और वो होमियोपैथी की गोलियां लेकर मीना कुमारी के पास गए तब मीना ने यह कहकर दवा लेने से इंकार कर दिया "दवा खाकर भी मैं जीउंगी नहीं, यह जानती हूं मैं. इसलिए कुछ तम्बाकू खा लेने दो. शराब की कुछ घूंट गले के नीचे उतर जाने दो."

टुकडे -टुकडे दिन बिता, धज्जी -धज्जी रात मिली
जितना -जितना आँचल था, उतनी हीं सौगात मिली

बॉलीवुड की इस महान और खूबसूरत अदकारा मीना कुमारी ने 1972 में अपना दम तोड़ दिया. 1972 में ही फिल्म पाकीजा भी रिलीज हुई. शुरुआत में इस फिल्म को कामयाबी नहीं मिली लेकिन मीना की मौत ने इस फिल्म को सुपरहिट कर दिया. फिल्म को बनने में कुल सत्रह साल लगे थे. मीना कुमारी की मौत जिस अस्पताल में हुई उस अस्पताल का बिल तक चुकाने के पैसे नहीं थे मीना के पास उस अस्पताल का बिल वहीं के एक डॉक्टर ने चुकाया जो मीना कुमारी का बहुत बड़ा फैन था.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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