वीना करमचन्दाणी की कवितायेँ Veena Karamchandani Ki Kavitayen


वीना करमचन्दाणी की कवितायेँ Veena Karamchandani Ki Kavitayen

Veena Karamchandani Ki Kavitayen

ईश्वर माँ नहीं 


इतनी मार्मिक प्रार्थनाएं-अभ्यर्थनाएं
बज रहीं हैं घंटियां
फूंके जा रहे हैं शंख
दुखी हैं - कष्ट में हैं भक्त
पर सुनता ही नहीं है ईश्वर




क्या सो रहा है ईश्वर ?
सो भी रहा है तो इतनी गहरी तन्द्रा में है
कि पता ही नहीं पड़ता उसे
कि चारों ओर हो रहा है क्या
मां को तो गहरी नींद में भी मालूम होता है
पास में सोए बच्चे की दशा
शायद इसीलिए
ईश्वर को मां नहीं पिता कहा जाता है ...


दूरी 


घर छोड़ पढ़ने को हॉस्टल जाते
बच्चे की माँ
सहेज कर रखती है
उसका पूरा सामान
साथ ही दुलारती है
खिलाती है उसकी
पसंद का खाना

बच्चे के पूछने पर
कब आओगी मिलने

माँ की आँखों में
तिरने लगते हैं आँसू
मुस्कुराती है हलके से
और घर के किसी
कोने में छिपकर
रोती है जार -जार

बच्चे से अलग होना
कितना मुश्किल है
इसे नहीं जानता बच्चा अभी

बड़ा होगा तो
जान ही जाएगा


गुलाबी रंग 


गुलाबी मेरे घर का काम करती है

पतली-दुबली जीर्ण शीर्ण
काया है उसकी सांवली सी
गुलाबी रंग तो उसका कभी रहा ही नहीं

गुलाबी मोहल्ले के कई घरों में
बर्तन मांजते, झाड़ू लगाते
छोटे-बड़े कई काम करते
पूछती हमारा हाल चाल
गृहस्वामी की सेहत से लेकर
मोतियाबिंद से पकी
अम्मा की आँख के बारे में
रिश्तेदारों के सुख दुःख का भी
पूछती रहती है गुलाबी

जब
अंगूठाछाप गुलाबी
कौतुकता से देखती
पढाई करते बच्चों को
और पूछती है उनकी पढ़ाई के बारे में

तो लगता है
दूर तक बिखर गई है रोशनी
दमक उठा है उसका चेहरा
"गुलाबी"
सच में लगने लगती है गुलाबी .




सोलह बरस की लड़कियां 


सोलह बरस की लड़कियां
अपने आपको न जाने क्या समझती हैं
माँ बाप के लाख समझने के बाद भी
दुपट्टे को हवा में खुला छोड़ देती हैं
यह अलग बात है
दुपट्टे को कोई हाथ भी लगा दे तो बांह मरोड़ देती हैं
ये सोलह बरस की लड़कियां
धूप सी खिलती हैं
फूल सी महकती हैं
पायल सी खनकती हैं
चिड़ियाँ सी चहकती हैं
सपने गुनती हैं - बुनती हैं

ये सोलह बरस की लड़कियां
दाल क्यों नहीं चुनती हैं
स्वेटर क्यों नहीं बुनती हैं
हमारी बात क्यों नहीं सुनती हैं
गीता क्यों नहीं पढ़ती हैं
व्रत उपवास क्यों नहीं करती हैं

ये सोलह बरस की लड़कियां
थोड़े से लम्हों में
अपनी ज़िंदगी जीती हैं
मन से जीती हैं
पूरी की पूरी जीती हैं
इन्ही लम्हों के सहारे ताउम्र जीती हैं .



वीना करमचन्दाणी

सूचना एवं जन संपर्क विभाग राजस्थान सरकार में जन संपर्क अधिकारी के पद पर कार्यरत. लगभग 25 वर्षो से सिंधी एवं हिंदी में कविता, कहानी एवं लघु कथा लेखन. सिंधी में प्रकाशित काव्य संकलन "खोले खम्भुड़ाम " को राज्यस्तरीय नारायण श्याम पुरस्कार प्राप्त. समकालीन भारतीय साहित्य, हंस, समय माजरा, राजस्थान पत्रिका, डेली न्यूज़ सहित अनेक पत्र पत्रिकाओं में कविताएँ एवं लघु कथाएँ प्रकाशित. दूरदर्शन केंद्र जयपुर में 15 वर्षों तक रोजगार समाचार वाचन. अनेक राष्ट्रीय एवं राज्य स्तरीय कार्यक्रमों सहित स्वाधीनता दिवस, गणतंत्र दिवस के राजकीय कार्यक्रम का लगातार 15 वर्षों तक संचालन .

संपर्क: 9 /913 मालवीय नगर, जयपुर 302017
ईमेल:  karamchandani.veena@gmail.com


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ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل