भूपेश भंडारी सर ले लीजिए विनम्र श्रद्धांजलि



सत्येंद्र प्रताप सिंह

बिजनेस स्टैंडर्ड के सीनियर एसोसिएट एडिटर और हिंदी संस्करण के संस्थापक संपादक भूपेश भंडारी जी का रविवार को हृदय गति रुकने से निधन हो गया। करीब 8 माह से वह किडनी की समस्या से जूझ रहे थे। पहला ट्रांसप्लांट सफल नही हो सका तो दोबारा कराना पड़ा था।

भूपेश भंडारी
भूपेश भंडारी


पिछले 10 दिन से मैं मुम्बई के इगतपुरी में विपश्यना कर रहा था। इसमें मोबाइल पठन सामग्री सब कुछ जमा करा लिया जाता है। आज मोबाइल मिला तो पत्नी से बात हुई और उन्होंने यह बताया तो हतप्रभ था। यकीन नही हो रहा था। सहकर्मी नीलकमल जी को फोन कर पुष्ट किया ।

सत्येंद्र प्रताप सिंह
सत्येंद्र प्रताप सिंह


विपश्यना में शरीर की अनुभूतियों से राग द्वेष, प्रिय अप्रिय, जीवन मृत्यु को तटस्थ भाव से देखने का अनुभव कराया जाता है।

यह तप पूरा होने के एक दिन पहले यह हादसा सामने आया।

आज के करीब 10 साल पहले दिसम्बर 2007 में मेरे पास भूपेश जी का फोन आया। उस समय मैं नौकरी के संघर्ष से ही गुजर रहा था। एक नए नवेले अखबार आज समाज को 3 माह पहले ज्वाइन किया था। भूपेश जी ने कहा कि आप बिजनेस स्टैंडर्ड से जुड़ना चाहेंगे ?


बगैर किसी बायोडाटा, परिचय के वह फोन कॉल मेरे लिए अजूबा थी। खुद एक स्थानीय संपादक का अखबार के रिसेप्शन तक आना और प्रबन्ध संपादक के सामने साक्षात्कार के लिए बिठाना। एक एक दृश्य हूबहू याद है।

अंग्रेजी मूल के पत्रकार भूपेश जी शायरी के बहुत शौक़ीन थे। ऑफिस की एक पार्टी से लौटते समय अपनी कार ड्राइव करते ग़ालिब, मीर, जौक को सुनाते मेरे घर तक लाए। मैं खूब शराब पिए हुए था। उन्होंने कहा कि आप तो फिराक के शहर के हैं!

मैं इतना भावुक था कि उनके पैर छू लिए।

बाद में मुझे लगा कि पता नही क्या सोचे होंगे कि चमचागीरी कर रहा है! मुझे याद नहीं कि उसके कितने साल पहले और कितने साल बाद मैंने किसी का पैर छुआ हो!

जब भी मैं किसी व्यक्तिगत मुसीबत में पड़ा तो उन्होंने अभिभावक की तरह हाथ थामा। रिपोर्टिंग का खूब मौका दिया। लिखकर जब कॉपी दिखाता तो थोड़े फेरबदल से कॉपी में जान डाल देते थे। कभी किसी रिपोर्ट को न बुरा कहा और न हतोत्साहित किया।

मुझे याद है कि पहली बार जब उन्होंने रिपोर्टिंग के लिए मेवात भेजा और जब रिपोर्ट दी तो बोले कि बहुत अच्छी कॉपी है, आपने पहले रिपोर्टिंग की है क्या ?

मैं गदगद था। उन्हें बताया कि करीब 5 साल रिपोर्टिंग की है तो वह रिपोर्ट लिखने के लिए खूब प्रोत्साहित करने लगे। मैंने पटना से रिपोर्टिंग के लिए आग्रह किया, उन्होंने ट्रांसफर की मंजूरी दे दी। हालांकि व्यक्तिगत कारणों से मैं नही जा पाया।

मुझे जब कैंसर हुआ तो भूपेश जी मेरे अभिभावक बन गए। मेरे पास 3000 रुपये भी नहीं थे कि किसी प्राइवेट अस्पताल में चेक करा सकू कि कैंसर है या कुछ और समस्या। मुफ्त में चेक हो जाए इसलिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल गया था, जहां कैंसर पुष्ट हुआ।


मैं सदमें में था कि इलाज के बगैर मरना है ! लेकिन आप्रेशन के पहले ऑफिस की ओर से बीमा की अग्रिम धनराशि दिलाने से लेकर आफिस कर्मियों से क्राउड फंडिंग कराकर उन्होंने इलाज शुरू करा दिया। उसके बाद देश विदेश के फेसबुक साथियों ने इलाज के लिए धन मुहैया कराया। कुल मिलाकर समाज ने मुझे जीने के लिए साँसे दीं। जीने का हौसला दिया। भयावह बिमारी से लड़ने की ताकत दी।

करीब 5 साल पहले गुल ए नग्मा खरीदी थी, भूपेश जी को देने के लिए। कई बार आफिस लेकर भी गया। संकोच वश नही दे पाया कि पता नहीं क्या सोचेंगे। सुनकर बहुत खुश था कि किडनी मिल गई है और अबकी सब ठीक ठाक है। सोचा था कि आफिस आएँगे तो उन्हें गुल ए नग्मा थमा दूंगा या वो जब केबिन में नही होंगे तो रख आऊंगा।

एक बात यह भी उनसे पूछनी रह गई कि मेरे लिए अजनवी शहर दिल्ली में उन्हें मेरा फोन नम्बर किससे मिला था जो मुझे बुलाकर नौकरी दी थी। जब जब नौकरी बदलने को सोचता था तो यह सब दृश्य मन में घूम जाता था।
आज विपश्यना में जीवन मरण, राग द्वेष, मान अपमान, अपने पराए की भावना से तटस्थ रहने का आखिरी प्रवचन सुनते हुए मैं खूब रोया। शायद मेरी विपश्यना की तपस्या बुरी तरह फेल रही।

भूपेश जी ने कई साल पहले जौक का एक शेर सुनाया था
कम होंगे इस बिसात पर हम जैसे बद किमार
जो चाल हम चले निहायत बुरी चले।

आपको अभी नहीं जाना था भूपेश सर। आप निहायत बुरी चाल चले। जिंदगी की बिसात पर आप बहुत कच्चे जुआरी निकले ।

विनम्र श्रद्धांजलि कहना एक औपचारिकता है, ले लीजिए विनम्र श्रद्धांजलि ।

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3 टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (21-08-2017) को "बच्चे होते स्वयं खिलौने" (चर्चा अंक 2703) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    शत्-शत् नमन।।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत ही व्यथित कर देने वाली बात है ---- हालाँकि मैं भूपेश जी के नाम से वाकिफ नहीं पर अच्छे इन्सान होने के नाते उन्हें विनम्र श्रधान्जली ----------

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