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गीता चंद्रन के भरतनाट्यम में भक्ति प्रवाह — भरत तिवारी #ClassicalMusic #Bharatnatyam




भक्ति भारतीय शास्त्रीय नृत्य के मूल में है

— भरत तिवारी

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श्रुती कोटि समं जप्यम
जप कोटि समं हविः
हविः कोटि समम गेयं
गेयं गेयः समं विदुह
         — स्कन्द पुराण में शिव
इसका अर्थ जो मैं निकाल सका — मंत्र-जप दस लाख वेदिक अध्ययन के बराबर हैं,  यज्ञ दस-लाख मंत्र-जप के बराबर हैं, और दस-लाख यज्ञ के बराबर हैं, गीत गाना, यह समझदार जानते हैं।

(आज के नवोदय टाइम्स में प्रकाशित)
http://epaper.navodayatimes.in/1360288/The-Navodaya-Times-Main/Navodaya-Times-Main#page/7/2




भक्ति भारतीय शास्त्रीय नृत्य के मूल में है। नृत्य, भारतीय परंपरा में, प्रारंभ ही ईश्वर के प्रति लगाव को दर्शाने के लिए होता है। वैदिक काल से शुरू हुआ यह उपक्रम, पुराणों में नृत्य-संगीत का वर्णन, भरत मुनि का नाट्यशास्त्र रचना अकारण नहीं बल्कि समाज को धर्म से जोड़ने और निराशा जैसी भावनाओं से दूर रखे जाने के लिए किया गया। आज का समाज नृत्य के इन मूल्यों से अनभिज्ञ है, भक्ति को आज अजीबोगरीब रूप दिया जाना धर्म के लिए कितने धर्म की बात है, यह सोच का विषय है। हजारों वर्षों से धर्म के सिद्धांतों को जनमानस तक सफल रूप से पहुँचाने में यदि नृत्य जरिया रहा है, तब क्यों आज शास्त्रीय-नृत्य के इस पहलू को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है? मुख्यतः यह काम राज्य की जिम्मेदारी है; लेकिन जैसा सुखद इतिहास है कि संस्कृति को बढ़ावा, राज्य की खानापूर्ति से इतर, व्यक्तिगत रूप से होता आया है। ऐसा कार्य करने वालों में नृत्यांगना गीता चंद्रन अग्रिम पंक्ति में हैं।

पद्मश्री सम्मानित गीता चंद्रन को कुछ रोज़ पहले ‘डांस इन एजुकेशन’ (शिक्षा में नृत्य) विषय पर वक्तव्य देते सुना था, जिस तरह उन्होंने नृत्य की आवश्यकता के  सामाजिक पहलुओं को समझाया, वह ‘आवश्यक’ लगा। शनिवार को चिन्मया मिशन ने 'भक्ति प्रवाह' श्रृंखला की शुरुआत मिशन के प्रमुख स्वामी स्वामी प्रकाशानन्द ने की। और उसके बाद नर्तक-दिन की शाम शुरू हुई, जिसमें अपनी प्रस्तुति ‘हरी भक्ति विलास’, में इस वर्ष की संगीत नाटक अकादमी सम्मनित नृत्यांगना ने, स्कंध पुराण के शिव की सलाह वाले पौराणिक सत्य को, २१वीं सदी में, भरतनाट्यम नृत्य के द्वारा, वर्णन और अनावर्णन के माध्यम से, प्रदर्शित किया और आध्यात्म की तलाश के  प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों रास्तों को अपने बेहद संजीदा नृत्य से, दर्शकों को समझा दिया।




नृत्य प्रदर्शन, शिक्षण, सञ्चालन, गायन, सहयोग, आयोजन, लेखन के साथ युवाओं से वार्ता की ज़रिये जुडी रहने वाली गीता चंद्रन, दर्शको को ऊपर लिखित सफ़र और उसके अंजाम पर पर नृत्य के इन ठिकानो से होते हुए ले गयीं —


  • सबसे पहले विष्णु के रूप को दर्शाता ‘गोविन्द वंदना’ पर नृत्य ।
  • दास्य भाव को दर्शाता उनका अगला नृत्य एम.एस.सुब्बालक्ष्मी के जन्मदिवस पर समर्पित उनका गाया मीरा भजन ‘मने चाकर राखो जी’ पर था।
  • वात्सल्य रस में डूबा उनका नृत्य ‘ठुमक चलत राम चन्द्र’ अद्भुत था।
  • साख्य और श्रृंगार रस समाहित नृत्य, अब बार-बार अद्भुत ही कहना होगा, अद्भुत रास था, हित हरिवंश जी की रास आधारित कविता, माध्यम बनी भक्ति से मोक्ष के रास्ते के इस ठिकाने तक पहुँचने का।
  • कार्यक्रम का समापन हनुमान, जिनसे बड़ा भक्त कौन होगा, के ‘मंगलम’ पर नृत्य से हुआ।





गीता चंद्रन भारतीय संस्कृति को बढ़ाने के अपने उपक्रम में भरतनाट्यम के अलावा कर्नाटक संगीत —  जिसकी वह एक निपुण गायक हैं —  टेलीविजन, वीडियो और फिल्म, थियेटर, कोरियोग्राफी, नृत्य शिक्षा, नृत्य-एक्टिविज्म से भी सहयोग दे रही हैं। आज कार्यक्रम में उनके साथ नट्टवंगाम  पर गुरु एस शंकर; गायन  सुधा रघुरामन; मृदंगम पर मनोहर बलचंद्रिरेन; बांसुरी पर रोहित प्रसन्ना, वायलिन पर राघवेंद्र प्रसाद तकनीकी निर्देशक: मिलिंद श्रीवास्तव मेक-अप: ब्रज का था।

चिन्मय  मिशन की इस श्रंखला में 9-10 नवंबर को रमा वैद्यनाथन और टी एम कृष्णा के कार्यक्रम होने हैं।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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