मुकेश पोपली की कविताएं



सुनो राजा: एक

सुनो राजा
तुम ही थे
जो उछल-उछल कर
पहुंच जाते थे
सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर
चिढ़ाते थे सबको यह कहकर
तुम सब हार गए
मैं जीत गया
मैं राजा तुम प्रजा

तुम बेवकूफ़ थे
तुम निष्ठुर थे
तुम दानव थे
तुम जानते ही नहीं थे
एक राजा की गरिमा
इंसानी फितरत
विजेता होने का अर्थ
तुमने हिटलर को पढ़ा
गांधी को नहीं
तुमको विदेशी पसंद
स्वदेशी नहीं

तुम फस चुके हो
शीशे की इमारतों के बीच
अब जिस दिन
हवा लेगी तूफान का रूप
चकनाचूर हो जाएंगे
सारे घमंडी शीशे
वो सबसे ऊपर वाली सीढ़ी
गिर पड़ेगी नीचे
धड़ाम से।

मुकेश पोपली की कविताएं 

सुनो राजा: दो

सुनो राजा
तुम अभी बच्चे हो
अक्ल के कच्चे हो
तुम भटका रहे हो
सयानों को
उजाड़ रहे हो
गरीबखानों को
पाल रहे हो
धनवानों को
डरते हो सच कहने वालों से
बहा रहे हो झूठ के
दरिया में इंसानों को
तुम्हारी जिद तुम्हें
घायल करेगी एक दिन
जैसे रोशनी हरा देती है
हैवानों को
सत्ता की भूख में
अपनों को खो चुके
अपने घर में बसाते हो
अनजानों को
तुम कुछ करने के
काबिल नहीं रहे अब
तुम हटा चुके हो गलियारों से
रोशनदानों को।



महाभारत

इतिहास गवाह है
युद्ध हुए हैं सारे
जर जोरू और
जमीन के लिए
महाभारत नाम बहुत पुराना है
सदियों से यह धारावाहिक
जारी है अभी भी निरंतर
   किसान की ज़मीन
   नई द्रौपदी के रूप में
   मुख्य पात्र है
सत्ताधारी हुए हैं भ्रष्टाचारी 
और विपक्ष है खामोश
दोनों ही खलनायक बने हैं
   और एक गरीब किसान
   जिस पर है जमीन बेचने का दबाव
   अपना किरदार
    बखूबी निभाने की
कोशिश कर रहा है।



जायदाद

हम लड़ रहे हैं
वो अड़ रहे हैं
हम भूखे सो रहे हैं
वो तृप्त हो रहे हैं
हम उजड़ रहे हैं
वो उजाड़ रहे हैं
हम रो रहे हैं
वो छीनकर हंस रहे हैं
हम विरोध कर रहे हैं
वो खुशी मना रहे हैं।

यह कैसा लोकतंत्र है
जहां मुट्ठी भर
ताकतवर लोग
जमा रहे हैं अपनी धौंस
निरंकुशता के चाबुक के साथ
लाखों लोगों पर
और वंचित कर रहे हैं हमें
हमारी पुश्तैनी जायदाद से
अपनी आने वाली नस्लों को
जायदाद देने के लिए। 



ज़मीर

जब
नहीं मिलती ज़मीन
बेच डालते हैं
ज़मीर अपना
किसी और के हक का
टुकड़ा हासिल करने के लिए

फेंकते हैं
धन के कागज़ उसके सामने
ज़मीन के कागज पर
अंगूठा लगवाने के लिए

एक हाथ लो हमारा ज़मीर
दूसरे हाथ दो अपनी ज़मीन।


मुकेश पोपली
भारतीय स्टेट बैंक में राजभाषा अधिकारी
जन्म :  11 मार्च 1959, बीकानेर
एम कॉम, एम ए (हिंदी), जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातकोत्तर।
आकाशवाणी बीकानेर से रचनाओं का प्रसारण; कहीं जरा सा…(कहानी संग्रह) (राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर), विभिन्न समाचार-पत्रों और साहित्यिक पत्रिकाओं में और ऑनलाइन पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित; भारतीय स्टेट बैंक की गृह पत्रिकाओं का संपादन और रचनात्मक सहयोग, भारतीय रिज़र्व बैंक एवं अन्य बैंकों से बैंकिंग विषयों पर आलेख पुरस्कृत

मोबाईल: 7073888126
ईमेल: mukesh11popli@gmail.com


००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ

  1. मुकेश पोपली की कविताएं सामयिक हैं, सामाजिक सरोकार वाले विषयों पर हैं और बहुत प्रभावी हैं।

    जवाब देंहटाएं

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
 प्रेमचंद के फटे जूते — हरिशंकर परसाई Premchand ke phate joote hindi premchand ki kahani
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
ऐ लड़की: एक बुजुर्ग पर आधुनिकतम स्त्री की कहानी — कविता
अखिलेश की कहानी 'अँधेरा' | Hindi Kahani 'Andhera' by Akhilesh
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh