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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा : समीक्षा: मृदुला गर्ग : अमर उजाला |
देवदत्त पटनायक एक प्रासंगिक और उपयोगी काम कर रहे हैं
एक सटीक अनुवादः भरत तिवारी की मेरी हनुमान चालीसा
— मृदुला गर्ग
आजकल जब हमारा युवा वर्ग इस हालत में है कि उसे भारतीय दर्शन ही नहीं, मामूली से मामूली उक्ति भी अंग्रेज़ी के माधयम से समझ में आती है तो निश्चित ही, देवदत्त पटनायक एक प्रासंगिक और उपयोगी काम कर रहे हैं। — मृदुला गर्ग
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साभार: अमर उजाला (20 मई 2018) |
शान्ति देती है तो देती है, बात खत्म
माई हनुमान चालीसा ऐसी क़िताब की अनुवाद सहित व्याख्या है, जो मूलतः अत्यन्त सरल-सहज हैः करोड़ों लोगों को मुँहज़बानी याद है। जैसा ख़ुद पटनायक कहते हैं, उसका पाठ उनके विचलित या भयभीत मन को सुकून पहुँचाता है। ज़ाहिर है उसका धार्मिक क्रिया होना या न होना बेमानी है। शान्ति देती है तो देती है, बात खत्म। कोई भी लय-ताल, संगीत, कविता यह काम कर सकती है; ज़रूरत इतनी भर है कि मन में पक्का यक़ीन हो कि वह ऐसा कर सकती है।
भरत तिवारी ने पटनायक की इस सहज व्याख्या का, हिन्दी में सटीक अनुवाद किया गया है। उसके लिए उन्हें साधुवाद। पुस्तक के गद्य भाग के अनुवाद में रवानी भी है और रस भी। लालित्य और सहजता उसके गुण है, जो इस पुस्तक के लिए अनिवार्य भी थे। — मृदुला गर्ग
इसके साथ यह भी तय है कि हर कविता (यहाँ दोहा) के कुछ अर्थ होंते हैं, जिनकी पड़ताल या व्याख्या हर व्यक्ति अपने मन मुताबिक कर सकता है। देवदत्त पटनायक ने हनुमान चालीसा के दोहों की एक अत्यन्त सहज स्वीकार्य व्याख्या की है, जिससे किसी का कोई विरोध नहीं हो सकता। यह अपने में एक सुखद स्थिति है। और सुकून पहुँचाने का वह काम ज़ारी रखती है जो हनुमान चालीसा का पाठ करता आया है।
रवानी भी है और रस भी
भरत तिवारी ने पटनायक की इस सहज व्याख्या का, हिन्दी में सटीक अनुवाद किया गया है। उसके लिए उन्हें साधुवाद। पुस्तक के गद्य भाग के अनुवाद में रवानी भी है और रस भी। लालित्य और सहजता उसके गुण है, जो इस पुस्तक के लिए अनिवार्य भी थे। जहाँ तक दोहों का सवाल है, जिन्हें इस पुस्तक में छन्द कहा गया है और वे छन्द में ही हैं; दिक्कत यह है कि उनका अनुवाद भी अंग्रेज़ी से किया गया है, अवधी से नहीं। सो अंग्रेज़ी मूल और आधुनिक कविता की प्रवृत्ति के अनुरूप, वे मुक्तछन्द में हैं या लय मुक्त हैं। विचलित मन पर क़ाबू पाने के लिए शायद ही कोई उनका फ़ौरी पाठ कर सके या करना अभीष्ट माने। उनकी व्याख्या पढ़ कर अलबत्ता वह विश्वास कर सकता है कि वह मात्र वही नहीं दुहरा रहा, जो रट रखा है; बल्कि उसे पढ़ गुन कर मस्तिष्क में संजो भी रहा है। यही पटनायक की व्याख्या का अभीष्ट है।और यही भरत तिवारी का उसे हिन्दी में अनुवाद के लिए चुनने का भी। आज के युग में जब भावावेग, दुहराव और हिस्टीरिया यानी निम्न स्तरीय पिष्टोक्ति, वायरल हो हो कर, हमारी वैचारिकता को बर्बाद कर रही है; समझ-बूझ कर कुछ करना या उसे विचार में संजोना, काफ़ी अर्थ रखता है। इस नज़र से केवल सहज हिन्दी का ज्ञान रखने वाले असंख्य हिन्दी भाषियों के लिए व्याख्या का यह हिन्दी अनुवाद, मूल्यवान साबित होगा। अलबत्ता दोहे वे अवधी छन्द में ही गुनगुनाएंगे, आख़िर अवधी हमारी उतनी ही अपनी है जितनी हिन्दी; बल्कि स्मृति में सुरक्षित होने के कारण, शायद ज़्यादा करीबी तौर पर।
मेरी हनुमान चालीसा, देवदत्त पटनायक, अंग्रेजी से अनुवाद : भरत तिवारी, रूपा पब्लिकेशंस, मंजुल प्रकाशन, मूल्य : 195 रुपये।
मृदुला गर्ग
ई 421(भूतल) जी के-2, नई दिल्ली 110048
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