‘सडांध’, माने बास | मनदीप पूनिया की नाटक पड़ताल



क से भय

'क से भय' नाटक 26 मई को जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के कन्वेंशन सेंटर में मैत्रैयी कॉलेज की थियेटर सोसायटी ‘अभिव्यक्ति’ की छात्राओं द्वारा खेला गया... उस पर मनदीप पूनिया की रपट



हिंदी में अभी अच्छे नाटक नहीं लिखे जा रहे, कोई ढंग का नाटककार अब हिंदी में नहीं बचा है या हिंदी नाटक में अच्छा काम करने वाले लोग बॉलीवुड चले गए हैं…आदि आदि। अब ये सब वाक्य अक्सर सुनने को मिलते हैं। मगर ये सच नहीं है। मौजूदा हालातों पर लोग नाटक लिख भी रहे हैं और उन्हें खेल भी रहे हैं। मौजूदा हालातों पर तीखे कटाक्ष करता हुआ 'क से भय' नाटक 26 मई को जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी के कन्वेंशन सेंटर में मैत्रैयी कॉलेज की थियेटर सोसायटी ‘अभिव्यक्ति’ की छात्राओं द्वारा खेला गया। नाटक महिलाओं और दलित-अल्पसंख्यकों, उनके मुद्दों पर लिखने और काम करने वाले लोगों और साधन संपन्न बहुसंख्यक आबादी के बीच चल रहे संघर्षों पर एक नज़र पेश करता है।

मनदीप पूनिया
नाटक की नायिका दुर्गा तिवारी की किताब का नाम है ‘सडांध’, माने बास। अरे नहीं समझे, तो शब्दकोश का इस्तेमाल करो ना। जब दुर्गा कुछ भी लिखती है तो उसकी सीनियर एडिटर भी उसको बार-बार शब्दकोश इस्तेमाल करने की ही बात कहती है। वो शब्दकोश दुर्गा को सच्चाई लिखने से रोकता है।  उसकी किताब का नाम घटिया मालूम होता है। अपनी किताब के नामांकरण के लिए तथाकथित इतने नीचे दर्जे के शब्द का चुनाव दुर्गा ने इसलिए किया है क्योंकि उसने इस किताब में बहुसंख्यक समाज और हमारी महान संस्कृति द्वारा हाशिये पर धकेल दिए लोगों के बारे में और अपने जिस्म को बेचकर सड़ांध भरी कोठरियों में रह रही औरतों के बारे में लिखा है। और इन सब तबकों को हमारा मुख्यधारा का समाज “निचले दर्जे” का इंसान ही तो समझता है। इस वास्तविकता की पहचान करके सच्चाई लिखने की कोशिश की है दुर्गा ने।


पर हुआ यूं कि किताब तो छप ही नहीं पाई। छपने से पहले ही उस किताब का काम तमाम कर दिया। उसकी किताब को छपने से पहले ही तथाकथित संस्कृति रक्षकों ने उसके सामने फाड़ दिया।

जिस पत्रिका में वह काम करती थी उसका मालिक उसे हमेशा सत्तापक्ष की तारीफ करते लेख छापने को कहता था जो उसे बिल्कुल पसंद नहीं था। एक दिन मालिक के मना करने पर भी वह अल्पसंख्यकों, महिलाओं और दूसरे सामाजिक मुद्दों पर एक लेख छाप देती है। नाटक की कहानी दो संपादकों दुर्गा तिवारी और मीनाक्षी रावत के आसपास चक्कर लगाती है, जो एक पत्रिका में काम कर रही हैं। मुख्यधारा के साथ तरक्की करने के लिए वरिष्ठ सम्पादक बिन्दु उन दोनों को एक ख़ास लीक पर चलने, सोचने ,सत्तापक्ष की हां में हां मिलाने और तथाकथित महान संस्कृति के साथ कदम-ताल करने के लिए बार-बार समझाती है। पर दुर्गा बनी बनाई लीक से हटकर सच्चाई छापने की हिम्मत दिखाती है तो उसे ही जिंदगी की लीक से हटा दिया जाता है।

तथाकथित सभ्य समाज और उसकी महान सोच के तले दबी नाटक ‘क से भय’ की नायिका दुर्गा इस समाज की सोच और चाल-चलन पर सवालिए निशान उकेरती है। स्वीटी रूहल के मार्गदर्शन में खेला गया यह नाटक डर के भ्रम बनने की प्रक्रिया को बखूबी दिखाता है।


वैश्वीकरण और बाजारवाद के दौर में विकसित होते समाज में बोलने, सुनने और देखने पर प्रतिबंध लगाने और सच्चाई पर पर्दा डालने के बाद बनने वाले दोहरे चरित्र की खिल्ली उड़ाने वाले मुखौटे स्टेज पर बार-बार उतर जाते हैं। ये मुखौटे महिलाओं के लिए तय बोलचाल, पहनावे, कामकाज और जिंदगी जीने के मानकों का भंडाफोड़ कर दर्शकों को हंसाते हैं और महिलाओं की सामाजिक स्थिति और उनको पुरुषों से कमतर स्थापित करने वाले विचारों पर सवाल खड़ा करते हैं।

नाटक में हाल-फिलहाल के सत्ता पक्ष पर खूब तंज कसे जाते हैं। छोटे-छोटे लोकगीतों को नाटक के बीच-बीच में जगह मिली है जो इस नाटक को दर्शकों तक पहुंच पाने का रास्ता मुकम्मल करते हैं।

नाटक ख़त्म होने के बाद जैसे ही छात्राएं दर्शकों के सामने आती हैं, दर्शक खड़े हो कर तालियां बजाने लगते हैं। पास बैठे एक सज्जन कि आँखों से आँसू फूट पड़ते हैं और ताली बजाते हुए वह बोल उठता है, ‘गौरी लंकेश को भी तो सिर्फ लिखने के लिए ही मार दिया था इन हिन्दुत्व वाले आतंकवादियों ने।’

मनदीप पूनिया : स्वतन्त्र पत्रकार, आईआईएमसी से पत्रकारिता की पढ़ाई
ईमेल: mpunia84@gmail.com

००००००००००००००००

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story: कोई रिश्ता ना होगा तब — नीलिमा शर्मा की कहानी
विडियो में कविता: कौन जो बतलाये सच  — गिरधर राठी
इरफ़ान ख़ान, गहरी आंखों और समंदर-सी प्रतिभा वाला कलाकार  — यूनुस ख़ान
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
परिन्दों का लौटना: उर्मिला शिरीष की भावुक प्रेम कहानी 2025
Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
ज़ेहाल-ए-मिस्कीं मकुन तग़ाफ़ुल Zehaal-e-miskeen makun taghaful زحالِ مسکیں مکن تغافل
रेणु हुसैन की 5 गज़लें और परिचय: प्रेम और संवेदना की शायरी | Shabdankan
एक पेड़ की मौत: अलका सरावगी की हिंदी कहानी | 2025 पर्यावरण चेतना
द ग्रेट कंचना सर्कस: मृदुला गर्ग की भूमिका - विश्वास पाटील की साहसिक कथा