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निधीश त्यागी की भाषा में एक बेहतरीनपन है — तीन कविताएं


कुछ नहीं । सब कुछ — निधीश त्यागी की नई किताब से तीन कविताएं


...
जगह दो थोड़ी सी

   इस वक्त़ की हबड़ातबड़ी में
   इस दुनियादारी के जंजाल में...

निधीश त्यागी की भाषा में एक बेहतरीनपन है,

जो ऐसा है कि हिंदी साहित्य में नए अनुभवों को तलाशने वालों को पसंद आने की पूरी ताकत रखता है. उनके गध्य का प्रशंशक रहा हूँ, 

और अब इन तीन कविताओं के अलग-अलग स्वादों —  पढ़ते समय, पढ़ने के बाद, और अभी —  से ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि वह अपनी कविताओं का मुरीद भी बना ही चुके हैं. निधीश भाई एक बड़े पत्रकार हैं और वर्तमान में नेटवर्क18 के एडिटर (भाषा) हैं. उन्हें उनके नए और पहले कविता संग्रह "कुछ नहीं । सब कुछ" की बधाई.

भरत एस तिवारी / संपादक शब्दांकन

(नोट: संग्रह का विमोचन 10 अक्टूबर को है, यदि शामिल होना चाहें तो स्वागत है, कविताओं के बाद कार्यक्रम का विवरण दिया हुआ है.)

निधीश त्यागी की नई किताब— कुछ नहीं । सब कुछ —से तीन कविताएं 


हर बार हमेशा

स्पर्श करता हूं तुम्हारे बोले शब्द को
उस किताब की थोड़ी फटी जिल्द को
    जिसका चरित्र तुम्हारी तरह मुस्कुराता है
पत्तियों की सबसे महीन शिराओं में
प्रवाहित महानदी को
बारिश भीगी मिट्टी को
मेरे कंधे पर रखी तुम्हारे बालों की खुशबू को

    स्पर्श करता हूं
तुम्हारे होने को
देश काल की अनंत दूरियों दिशाओं से
तुम्हारी परछाइयों के जरिये
स्पर्श करता हूं तुम्हें

हर बार पहली बार
    हर बार हमेशा के लिए




जगह दो

जगह दो थोड़ी सी
अपनी जगह में
अपने सुख में
अपने आनंद में जगह दो

जगह दो थोड़ी सी
   उस तिल की बगल में
   बांह के घेरे में
   उंगलियों की गिरफ्त में
   धड़कनों के नाद
   और सांसों के राग में जगह दो

जगह दो थोड़ी सी
इस वक्त़ की हबड़ातबड़ी में
इस दुनियादारी के जंजाल में
जगह दो कि थोड़ा अकेला हुआ जा सके
जगह दो कि तुम वो हो सको जो हमेशा से थे
और एक लम्बी सांस लेकर
   दर्ज करवा सको
   आंखों में आत्मा की चमक
   और उम्र की झुर्री पर
   एक मुस्कान का आमदरफ्त
जगह
दो




हीजनबर्ग का उसूल

एक पल को जीते वक़्त कहां मुमकिन
उसे पकड़ पाना भी

उसे पकड़ने की कोशिश करना
उस गतिशील अमूर्त को तोड़ना है
    जिसका नाम जीवन है

उस वक्त़ कुछ भी कहना
अमूर्त की, जीवन की, ध्यान, नियति, नक्षत्रों, प्रार्थना
    की बंद मुट्ठी खोल देना है

प्रकृति को, प्रवासी को, उगते फूल को
चलती हवा और बहती नदी को
टोक देना है

फिर किसी खाली पल में पकड़ना
    उस जिये गये पल को
चमत्कृत होना उस पल से इस पल में
उस सुख दुख का हिसाब लेकर
जो जीवन बन कर आया था

— निधीश त्यागी

कुछ नहीं । सब कुछ — निधीश त्यागी की नई किताब से तीन कविताएं

किताबः कुछ नहीं । सब कुछ (कविताएं) | कवि और प्रकाशकः निधीश त्यागी | डिजाइनरः रूबी जागृत | मूल्यः 499/-

[विमोचन 10 अक्टूबर, 2019 शाम 6 बजे, जवाहर भवन, विंडसर प्लेस, नई दिल्ली में है. 
विमोचन  के साथ साथ अशोक वाजपेयी और सीमा कोहली शब्द, चित्र और प्रेम पर अपनी बात भी रखेंगे. 
इसके अलावा ख्यात रेडियो प्रसारक और लेखक नवनीत मिश्र की आवाज़ में चुनींदा कविताओं का पाठ.]



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