head advt

श्रीलाल शुक्ल की यादें — विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा - 17: | Vinod Bhardwaj on Shrilal Shukla



विनोद भारद्वाजजी के संस्मरणनामा उनकी तरह ही बेबाक हैं. इस बार वाले, श्रीलाल शुक्ल की यादें में वह लिखते हैं अब आगे और नहीं... शायद कुछ लोगों को उनका यह बेबाक लेखन अखर रहा है, या फिर इतना पसंद किया जाना... हे हिंदी! उफ़ मठ! ...भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक


कुँवर जी श्रीलाल शुक्ल से मेरी तारीफ़ कर देते थे, इसलिए उनसे भी मेरी एक तरह की असंभव क़िस्म की दोस्ती हो गयी। अफ़सरों का क़िला तोड़ना मुश्किल होता है। 

श्रीलाल शुक्ल की यादें

— विनोद भारद्वाज संस्मरणनामा

ये मेरी कोविद लॉकडाउन डायरी की विदाई किस्त है, कुछ और लिखूँगा , स्टैम्प साइज़ संस्मरण नहीं। कुछ साल पहले मैंने फ़ेस्बुक पर निर्मल वर्मा, धर्मवीर भारती, विष्णु खरे पर छोटी-छोटी यादें लिखीं, तो शब्दांकन संपादक भरत एस  तिवारी उनसे प्रभावित थे, बोले, इन्हें बेहतर मंच चाहिए। लेकिन मेरे मित्र विष्णु खरे मेरी उन पर लिखी यादों से थोड़ा नाराज़ हो गए, उन्होंने ही इन यादों को स्टैम्प साइज़ संस्मरण नाम भी दिया। मुझे इस नाम से ऐतराज़ नहीं है। ये सोच समझ कर इस ख़ास शैली में लिखे गए हैं। अब कोविद लॉकडाउन में मैं अपनी किताबों से दूर दो महीने से अपने भाई के यहाँ हूँ। सारा समय रसोई, नेटफ्लिक्स, फ़ेसबुक की लाइव रिकॉर्डिंग और थोड़ी बहुत सैर में बँटा हुआ। दो महीने में पाँच कविताएँ कभी नहीं लिखी थीं, वे भी लिखी गईं। वैसे उसका श्रेय लॉकडाउन को कम और एक दोस्त को ज़्यादा है। 

पर मुझे लगता है इस स्टैम्प साइज़ संस्मरण शैली की अपनी एक भूमिका है। 

एक सच्चाई यह भी है कि मेरे हमउम्र लोग दोस्त न के बराबर रहे हैं। कम से कम मुझसे आठ साल बड़े मेरे दोस्त रहे हैं। या तो अब छोटी उम्र के दोस्त हैं, या पहले बड़ी उम्र के थे। 

श्रीलाल शुक्ल भी लखनऊ की बड़ी हस्ती थे। वे सरकारी अफ़सर थे, और उन्हें चवालीस साल की उम्र में ही राग दरबारी उपन्यास के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिल गया था। युवा लेखक उनके पैर छूने की कोशिश करते थे, तो वह उचित ही नाराज़ हो जाते थे। वह विद्यानिवास मिश्र नहीं थे। संगीत के बड़े पारखी थे। कुँवर नारायण की विष्णु कुटी में अक्सर दिखाई देते थे। तत्व चिंतन के लिए वह मशहूर और बदनाम दोनों थे। तत्व यानी मदिरा प्रेम। 

कुँवर नारायण की विष्णु कुटी और मेरे घर लखनऊ के दो सिरों पर थे। अक्सर रात को विष्णु कुटी में बतियाते हुए देर हो जाती थी। एक बार ग्यारह बज गए, कुँवर जी को लगा लड़का घर कैसे पहुँचेगा। उन्होंने सोए हुए ड्राइवर को जगाया, और उसने नींद में कार निकालने के लिए मना कर दिया। कुँवर जी ने चाभी ली और नाइट गाउन में ख़ुद ही गाड़ी चला कर मुझे मेरे घर छोड़ कर आए। 

गुज़रा ज़माना शानदार था। 

कुँवर जी श्रीलाल शुक्ल से मेरी तारीफ़ कर देते थे, इसलिए उनसे भी मेरी एक तरह की असंभव क़िस्म की दोस्ती हो गयी। अफ़सरों का क़िला तोड़ना मुश्किल होता है। 

एक लेखिका कहती है की इन मर्द लेखकों से दूर ज़रा संभल कर रहो, ये अपनी मेड को भी नहीं छोड़ते हैं। 

एक बार लखनऊ की अफ़सरों की मशहूर बट्लर पैलेस कॉलोनी कुँवर जी के साथ गया। शिवानी जी से मैं सिर्फ़ एक ही बार मिला। उनकी प्रतिभाशाली बेटी मृणाल पांडे से मेरे परिचय की शुरुआत बड़ी दिलचस्प थी। लघु पत्रिका आरम्भ में उन्होंने दो अलग अलग नामों और पतों से एक ही नाम से दो कविताएँ छपवा लीं और फिर कार्टून बना कर पत्र में बताया, मीनु और मृणाल पांडे एक ही व्यक्ति हैं। वे जब वामा पत्रिका की संपादक थीं, तो उनका दफ़्तर दिनमान की बग़ल में ही था। लंच के बाद उनसे गप्पबाज़ी में आनंद आता था। गगन गिल उनकी टीम में थीं। मुझसे वह मज़ाक़ में कहती थीं, आप आ जाते हैं, बस एक घंटे की छुट्टी हो जाती है। 

लेकिन रुकिए यह संस्मरण मृणाल पांडे पर नहीं है। 

श्रीलाल शुक्ल तो मिले नहीं, कुँवर जी ने कहा, शिवानी जी को हेलो कह देते हैं। शिवानी का व्यक्तित्व संस्कृति संपन्न था। काफ़ी बातें हुईं, शायद उनकी मेड श्रीलाल जी के यहाँ भी काम करती थीं। उन्होंने हँस कर बताया, एक बार वह मेड श्रीलाल जी के पीछे कल्छी ले कर दौड़ी थी। 

अब प्रिय पाठक, आप यह मत कहिएगा कि मैं सम्मानित लेखक की छवि बिगाड़ रहा हूँ। पर यह भी एक जीवन है। वह मेरे मित्र थे, मुझसे उनका स्नेह था। 

एक बार मेरी उनसे मुलाक़ात ब्रिटिश काउन्सिल लाइब्रेरी में तय थी। मैं यूनिवर्सिटी के बाद वहाँ विदेशी पत्रिकाओं से उलझा रहता था। श्रीलाल जी अंदर आए, तो बाहर जाने पर चेकिंग होती थी। वह कर्मचारी मुझे जानता था, उसने मेरी चेकिंग नहीं की, श्रीलाल जी की करी। 

एक अफ़सर को ज़ाहिर है बुरा लगा। बाहर आ कर बोले, विनोद, क्या मैं शक्ल से चोर लगता हूँ। 

श्रीलाल जी से मेरे पारिवारिक रिश्ते भी बन सकते थे। एक बार कुँवर जी के घर के आँगन में ओडिशि डान्सर संयुक्ता पाणिग्रही का नृत्य कार्यक्रम था। श्रीलाल जी पत्नी गिरिजा के साथ मौजूद थे। मेरी दिनमान में नौकरी शुरू हो गयी थी। चायपान के दौरान गिरिजा जी मेरे पास आयीं, बोलीं मेरी एक भतीजी बड़ी योग्य है, साँवली ज़रूर है। कहो तो शादी की बात करें। मैंने कहा ठीक है, अभी मैं लखनऊ में हूँ। 

उसके बाद एक दिन मैं महानगर के पुल पर नरेश सक्सेना और उनकी पत्नी विजय के साथ रिक्शे पर जा रहा था, तो रात के अन्धेरे में हेडलाइट विहीन एक ट्रक ने जानलेवा टक्कर मारी और पचपन दिनों के अपने विचित्र प्लास्टर में मैं शादी के सपने देखना भूल गया। 

श्रीलाल जी से अंतिम मुलाक़ात दिल्ली में हुई, वह मेरे घर के पास ही शेख़ सराय में ठहरे हुए थे। दोपहर का समय था, वह बहुत पिए हुए थे। एक बोतल ले कर प्रेस इन्क्लेव में मेरे घर आ गए। उनकी हालत अच्छी नहीं थी। पर बहुत स्नेह से बतियाते रहे। 

बाद में सुन कर दुख हुआ, उनके अंतिम वर्ष बहुत अच्छे नहीं बीते। 

राग दरबारी के शिवपाल गंज का हिंदुस्तान अद्भुत है। 
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
००००००००००००००००

विष्णु कुटी और कुँवर नारायण की यादें

यशपाल:: विनोद भारदवाज संस्मरणनामा 

निर्मल वर्मा :: विनोद भारदवाज संस्मरणनामा

केदारनाथ सिंह की यादें — विनोद भारदवाज संस्मरणनामा



एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

गलत
आपकी सदस्यता सफल हो गई है.

शब्दांकन को अपनी ईमेल / व्हाट्सऐप पर पढ़ने के लिए जुड़ें 

The WHATSAPP field must contain between 6 and 19 digits and include the country code without using +/0 (e.g. 1xxxxxxxxxx for the United States)
?