नई क़लम — वह कौन थी! — विष्णुप्रिया पांडेय की छोटी हिंदी कहानी


भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) की युवा मीडिया एजुकेटर लेखक विष्णुप्रिया पांडेय लिखने का शौक़ और कथक नृत्य में रूचि रखती हैं. आइये विष्णुप्रिया की छोटी हिंदी कहानी, 'वह कौन थी!' पढ़ते हुए 'नई क़लम' में उनका स्वागत कीजिये...भरत एस तिवारी/शब्दांकन संपादक

वह कौन थी!

विष्णुप्रिया पांडेय की हिंदी कहानी

कितनी मासूम थी वह। उसके सांवले रंग में गज़ब का आकर्षण था। ऐसा लगता जैसे उसकी बड़ी-बड़ी आँखों में अनगिनत सवाल तैर रहें हों। मंदिर वाले बस स्टॉप पर लगभग हर रोज़ मैं उसे देखती, बस स्टॉप की बेंच पर कोने में चुपचाप बैठे हुए। ऐसा लगता वह मुझसे बातें करना चाहती है बहुत कुछ कहना चाहती है पर ऑफिस जाने की हड़बड़ी में आज तक उससे कुछ बात नहीं हो पायी थी।  जैसे हीं मैं  बस स्टॉप पर  पहुँचती मेरी नज़रें उसे ढूंढनें लगतीं। उसके स्कूल यूनिफार्म को देखकर मैंने अनुमान लगा लिया था कि वह रानी बाग़ के मदर मेरी कान्वेंट में पढ़ती है, शायद सातवीं या फिर आठवीं में। सभी स्कूल बसें इसी मंदिरवाले स्टॉप तक आती थी क्योंकि हमारी कॉलनी की सड़कें काफी संकरी थीं। यह बस स्टॉप हमारी कॉलनी के बड़े फाटक के बिलकुल सामने था। यही कारण था कि अधिकतर बच्चे अकेले हीं बस पर चढ़ते या उतरते दिखते। फिर भी सातवीं- आठवीं और उनसे छोटी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावक उन्हें छोड़ने और लेने ज़रूर आते थे। पर इसे तो कभी अपने पेरेंट्स के साथ नहीं देखा। यह तो जब भी दिखी अकेली दिखी। अपने आप में सिमटी हुई, कोने में बैठी बस का इंतज़ार करती हुई। उसकी बस शायद मेरी बस के बाद आती थी इसलिए मैंने उसे कभी बस पर चढ़ते नहीं देखा। कल उसकी आँखें मुझे बहुत उदास लगीं।  वह जिस तरह से मेरी और देख रही थी... मेरा मन हुआ मैं खुद उसके पास जाकर उससे बातें करूँ पर तभी मेरी बस आ गयी!

आज ऑफिस में भी मन बड़ा उखड़ा-उखड़ा रहा। उस बच्ची के चेहरे पर आज अजीब-सी प्रौढ़ता दिखी। मेरा मन बेचैन हो उठा। वह मेरी तरफ इतनी कातरता से क्यूँ देखती है? वह हमेशा बस स्टॉप पर अकेली क्यूँ आती है? कहीं वह किसी ज़ुल्म का शिकार तो नहीं! कहीं उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हो रहा! मेरा मन कई आशंकाओं से घिर गया। मैं रात को ठीक से सो भी नहीं पायी। मैंने निर्णय ले लिया था कल मैं उससे ज़रूर बात करूंगी चाहे मुझे अपनी बस छोड़नी पड़े।

मैं रात भर बेचैन रही। बार-बार वह मासूम चेहरा मेरी आँखों के सामने आ जाता। इतनी बेसब्री से मैंने सुबह का इंतज़ार कभी नहीं किया था। आज तो जैसे घड़ी भी सुस्त हो गयी थी। जैसे-तैसे मैंने रात गुजारी।

सुबह मैं समय से काफी पहले बस स्टॉप पर पहुँच गयी। मुझे वह कहीं नहीं दिखी। मुझे खुद पर हंँसी आ गयी, अभी तो मेरे बस को आने में आधा घंटा बाकी था और उसके स्कूल बस का समय तो मेरे बस के बाद था फिर वह इतनी जल्दी क्यों आएगी! मैं बेसब्री से उसका इंतज़ार करने लगी। वक्त काटे नहीं कट रहा था। मैं बार-बार कॉलनी के फाटक की तरफ देखती। आधा घंटा बीता... एक घंटा बीता... अब तो साढ़े नौ बजने वाले थे ! अब वह नहीं आएगी। मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने अपनी चार्टेड बस भी छोड़ दी थी। बस स्टॉप के सामने ही कुल्फी वाले का ठेला था जो रोज़ हीं वहाँ होता था। मैंने सोचा क्यूँ न कुल्फी वाले भैया से पूछ लूँ। शायद उसे बच्ची का मकान पता हो। मैं झट से कुल्फी वाले की तरफ बढ़ गयी।

"भैया, क्या आप उस बच्ची को जानते हैं जो रोज़ यहां इस कोने में बैठी रहती है, सुबह आठ बजे के आस पास", मैंने बस स्टॉप के बेंच की ओर इशारा किया।

कुल्फ़ीवाले ने अजीब सी नज़रों से मुझे देखा। मैंने फिर दोहराया,
"भैया अगर बता सको तो बहुत बड़ी मदद हो जाएगी।"

"बच्ची!!! मैंने तो कभी उस कोने में किसी बच्ची को बैठे नहीं देखा, मैडम जी! तीन साल से सुबह सात से शाम सात बजे तक यहीं होता हूँ। इस कॉलोनी के अधिकतर बच्चों को पहचानता हूँ पर यहां इस कोने में मैंने आज तक ऐसी किसी बच्ची को बैठे नहीं देखा।"

मेरा सर दर्द से मानों फटा जा रहा था। मेरी नज़रों के सामने अब भी वह मासूम चेहरा घूम रहा था।

वह कौन थी!?!? मेरी कल्पना, मेरा डर या मेरा दर्द भरा बचपन...

विष्णुप्रिया पांडेय 
142-A, EVA, सेक्टर-93, नॉएडा
००००००००००००००००


nmrk5136

एक टिप्पणी भेजें

6 टिप्पणियाँ

ये पढ़ी हैं आपने?

Hindi Story आय विल कॉल यू! — मोबाइल फोन, सेक्स और रूपा सिंह की हिंदी कहानी
गिरिराज किशोर : स्मृतियां और अवदान — रवीन्द्र त्रिपाठी
कोरोना से पहले भी संक्रामक बीमारी से जूझी है ब्रिटिश दिल्ली —  नलिन चौहान
मन्नू भंडारी की कहानी — 'रानी माँ का चबूतरा' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Rani Maa ka Chabutra'
मन्नू भंडारी की कहानी  — 'नई नौकरी' | Manu Bhandari Short Story in Hindi - 'Nayi Naukri' मन्नू भंडारी जी का जाना हिन्दी और उसके साहित्य के उपन्यास-जगत, कहानी-संसार का विराट नुकसान है
मन्नू भंडारी, कभी न होगा उनका अंत — ममता कालिया | Mamta Kalia Remembers Manu Bhandari
ईदगाह: मुंशी प्रेमचंद की अमर कहानी | Idgah by Munshi Premchand for Eid 2025
मन्नू भंडारी: कहानी - एक कहानी यह भी (आत्मकथ्य)  Manu Bhandari - Hindi Kahani - Atmakathy
Hindi Story: दादी माँ — शिवप्रसाद सिंह की कहानी | Dadi Maa By Shivprasad Singh
टूटे हुए मन की सिसकी | गीताश्री | उर्मिला शिरीष की कहानी पर समीक्षा