सम्राट अशोक का नरक – बोधिसत्व की कविता | Shabdankan

सम्राट अशोक का नरक - बोधिसत्व की कविता का चित्र

सम्राट अशोक का नरक – बोधिसत्व

कोई भी सम्राट

प्रजा के दुःख का पाता है हिस्सा

भले ही न दिखें वह रोते

लेकिन वह जागरण से अधिक रोता है

जागते-सोते।

'अयोध्या में कालपुरुष' कवि बोधिसत्व का पाँचवाँ कविता संग्रह है। राजकमल से 2024 में प्रकाशित इस संग्रह में 11 गाथात्मक कविताएँ शामिल हैं। 'सम्राट अशोक का नरक' कविता इस संग्रह की विशेष कविता है, जो किताब के अतिरिक्त कहीं भी प्रकाशित नहीं है! शब्दांकन में बोधिसत्व और इस कविता का यह पहला प्रकाशन है। ~ सं0 


एक
बार-बार मैं मगध पहुँच जाता हूँ।
 
कभी जरांसध के अखाड़े में
कभी बिम्बिसार के कारागार में
कभी जीवक के अमृत उद्यान में
कभी सम्राट अशोक के नरक में।
 
लोग भले चुप रह जाएँ
इतिहास कहता रहता है
इतिहास कहता है कि पृथ्वी पर
किसी द्वारा बनवाये नरक का विचार
पहली बार मगध में संभव हुआ
 
अशोक के आत्म संतोष देने वाले कृत्यों
को नियम की संहिता में लिखवाया
उसके परम् प्रिय मंत्री राध गुप्त ने
बनवाया नरक।
 
अब पाटलिपुत्र और मगध में
सम्राट की इच्छा से प्रदान किया जा सकता था
मृत्यु के पहले विधिवत नरक।
 
जिसे मारना चाहता था सम्राट स्वयं
उसे मनचाही यातना देने के लिए
अशोक के निर्देश पर
भेजा जाता था
उसके बनवाये नरक में।
 
यह एक सुव्यवस्थित यंत्रणा शिविर था
यातना देने की सभी सुविधाएँ थीं यहाँ
मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में।
 
 
दो
सम्राट अशोक ने छोड़ दी हिंसा
सम्राट अशोक ने त्याग दिया अस्त्र
युद्ध भूमि से लौट आया
राज भवन और देने लगा अहिंसा का उपदेश।
 
लेकिन वह मिटा नहीं पाया
अपने राज भवन में बने यंत्रणा शिविर को
उसे वह स्वयं कहता रहा नरक।
 
वह जिनसे करता था घृणा उनको भेजता था नरक
अशोक के नरक में भेजा गया व्यक्ति
कभी नहीं लौटता था बाहर जीवित।
 
लौटा तो छोटे भाई सुमन का पुत्र निग्रोध
तो नरक से निकल कर
उसने ले लिया संन्यास
 
कहते हैं उसी निग्रोध ने अशोक को पराजित किया
स्वयं को अशोक के नरक से जीवित निकाल कर
उसने पराजित किया सम्राट को।
 
अशोक के उस नरक में यातना देने के अनेक उपाय थे
और चीखने और प्रार्थना करने और
सम्राट से आशा रखने की पूरी स्वतंत्रता थी।
 
बंदी व्यक्ति जितना चाहे रो सकता था
या नहीं भी रो सकता था
लेकिन शिविर के संचालक चाहते थे कि
मार खा रहा व्यक्ति रोए
जिससे वे अनुमान लगे सकें कि
यंत्रणा का कार्य चल रहा है कुशलता से।
 
अशोक भी जाता था अपने बनाये नरक में
स्वयं देखता था
अपने अप्रिय लोगों को भुगतते हुए नरक।
 
जो नरक में मारे जाते
अशोक उनके लिए रखता राजकीय शोक
उसने किसी हत्या पर खुशी नहीं प्रकट की
वह कहता रहा कि राज्य के लिए
यह सब एक आवश्यक कार्य है
नरक पर टिका है उसका साम्राज्य।
 
तीन
वे स्त्रियाँ अशोक को पसंद नहीं करती थीं
वे एक दिन अशोक की कुरूपता पर हंसी
अशोक ने उनको जीवित जलवा दिया।
 
वे संख्या में पाँच थी या पाँच सौ
किंतु वे जलाई गईं
लकड़ी से बने राज भवन में
लकड़ी के
द्वार बंद करके।
 
सुनने वालों ने सुना
जैसे हजारों स्त्रियाँ रोते-रोते जला दी गईं
 
क्या अकेले रो रही स्त्री अकेले रो रही होती है
क्या एक स्त्री के रोने में शामिल नहीं होता
हजारों स्त्रियों और पुरुषों का शोक।
 
फिर ऐसा अक्सर होने लगा
पाटलिपुत्र में जलते रहे
राज भवन के भिन्न-भिन्न हिस्से
अशोक स्वयं को शोकहीन करने के लिए
बहु विधि समाप्त करता रहा उनको
जिनसे उसको कोई भी असुविधा थी।
 
अक्सर वह स्वयं लगाता आग
अक्सर वह स्वयं उखाड़ता नाखून
और उन पर लगाता
छार-द्रव
अक्सर वह स्वयं काटता शीश
और धड़ को छोड़ देता उसी नरक में महीनों।
 
फिर राध गुप्त ने अशोक को सुझाव दिया
आपकी हर इच्छा पूरी करेगा राज्य
आप सम्राट हैं
आप क्यों करते हैं इतना श्रम
आप बनवाएँ एक नरक।
 
अशोक को भव्यता प्रिय थी
वह सारे कार्य बड़े-बड़े वैभव वाले करता था
उसने कहा कि एक भव्य नरक बनाया जाए।
 
ऐसा नरक जो सर्व प्रथम बन रहा हो कहीं
 
फिर उसने बनवाया एक बेजोड़ नरक
अपनी राजधानी में।
 
चार 
अशोक ने सब कुछ छोड़ा किंतु सत्ता नहीं छोड़ी
चीख चीत्कार के बीच रहा तो भी सत्ता में रहा
बौद्ध रहा तो बुद्ध वचनों में घिरा सत्ता में रहा
 
उसे हर स्थिति में प्रिय थी सत्ता
चाहे बनाना पड़े उसके लिए नरक
या बौद्ध बिहार
सम्राट को था केवल सत्ता से प्यार।
 
पाँच 
क्या राध गुप्त द्वारा कराई हत्याएँ
अशोक द्वारा कराई गई हत्याएँ नहीं मानी जाएँगी?
 
क्या राज्य में की गई कोई हत्या
राजा द्वारा की गई हत्या नहीं है?
 
पाटलिपुत्र में कोई भी करता प्रश्न तो
भेजा जाता
नरक
लेकिन एक अद्भुत बात हुई
लोग नरक जाते रहे
लेकिन बोलते रहे कि अशोक कर रहा है गलत
और लोगों का यही बोलते रहना
सम्राट अशोक की विफलता थी।
 
उस बालक निग्रोध ने भी कहा अशोक से
आप नरक बनवा कर भी मुझे नहीं मार पाए
आप के नरक के अस्तित्व से करता हूँ इंकार
 
अशोक समझ नहीं पाया कि अब
राजधानी और राज्य को नरक बनवाने के आगे
वह और क्या करे
 
कैसे भय से भरे प्रजा का मन
कैसे समझाये कि वह है सर्वोत्तम
 
कोई न कोई निग्रोध आ जाता था
हर अशोक के मार्ग में
यह कहने कि उनकी सत्ता व्यर्थ है
जीवन और स्वतंत्रता का और बड़ा अर्थ है।
 
अशोक शोक से भरा रहा
अपने बनवाए नरक में
सबसे अधिक बंधक रहा अशोक स्वयं
 
कोई भी सम्राट
प्रजा के दुःख का पाता है हिस्सा
भले ही न दिखें वह रोते
लेकिन वह जागरण से अधिक रोता है
जागते-सोते।
 
छः 
अशोक हत्या न करता तो हो जाती उसकी हत्या।
अशोक दूसरों के लिए नरक न बनाता तो
बनाया जाता अशोक के लिए नरक
 
लोग बताते हैं कि नरक बनाने के पहले
अशोक का जीवन नरक ही तो था।
 
पिता ने उसे कभी छुआ नहीं
वह पिता जो सम्राट था
बिन्दुसार 
वह अपने पुत्र को देखने से बचता रहा।
 
अशोक के जन्म के समय हुए अपशगुन
पिता बिन्दुसार को जीवन भर भय से ग्रस्त किये रहे
कि यदि वह अपने पुत्र को प्यार करेगा
सत्ता खो देगा और मारा जाएगा।
 
ऐसे में अशोक जीवन भर वंचित रहा पिता के स्नेह से
स्नेह हीन उसका जीवन एक अपार नरक था
जिसे पार करने के लिए उसने बनाया
एक और नरक
और साम्राज्य की जगह एक नरक संचालित करता रहा वह
जीवन के अंत तक लगभग।
 
सम्राट से अधिक वह एक नरक का निर्माता था
सत्यमेव जयते की घोषणा करता हुआ
नरक नियंता सम्राट।

बोधिसत्व

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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