रवींद्र कालिया की कहानियों से मैं चमत्कृत था; उनकी भाषा, उनका यथार्थ के प्रति सुलूक, उनकी मध्यवर्गीय भावुकताविहीनता, उनका खिलंदड़ा अंदाज, इन …
आगे पढ़ें »अधिकतर ऐसा ही हुआ : कोई कालिया जी से मिला और उनका होकर ही रुखसत हुआ । उनका अत्यंत महत्वपूर्ण लेखक होना, आकर्षक अनोखा व्यक्तित्व, उनका वातावरण …
आगे पढ़ें »कृष्णा सोबती: प्रतिरोध की आवाज़ —ओम थानवी कृष्णाजी से पाठक के नाते मेरा रिश्ता पुराना था। दिल्ली आने के बाद कुँवर नारायण, कृष्ण …
आगे पढ़ें »जीवन का मर्म कानून से नहीं समझा जा सकता — मधु कांकरिया | Photo: Bharat S Tiwari जीवन का मर्म... रेखाचित्र और संस्मरण में अंतर समझाती मधु…
आगे पढ़ें »हिन्दी रेखाचित्र : रोहिणी अग्रवाल — दादी की खटोली में आसमान का चंदोवा हिन्दी रेखाचित्र : रोहिणी अग्रवाल — दादी की खटोली में आसमान का चं…
आगे पढ़ें »कुछ भी ‘अतिरिक्त’ उन्हें पसंद नहीं था। न ही किसी भावना का भावुक प्रदर्शन करते थे। न रंगों-शब्दों की फिजूलखर्ची रामकुमार के यहां है। सौ टका…
आगे पढ़ें »वह एक एरिया है, जहां से यह अहसास लिया जा सकता है कि गेट पार वाले इलाके में महिलाएं होती हैं। विपश्यना — सत्येंद्र प्रताप सिंह — संस्मरण:…
आगे पढ़ें »हद्द बेशरम हो तुम, जब बच्चे छोटे थे तो कभी गोदी में बिठाया तुमने? आज बड़े आये ह…
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