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माँ पूछती हैं "चाहते क्या हो तुम अभिसार ?" #AbhisarSharma #GauriLankesh



सबसे ज्यादा चिंताजनक इनके वो बेकाबू समर्थक हैं, जिनपर मैं नहीं बता सकता बीजेपी और उसकी सहयोगी संस्थाओं का काबू है या नहीं।

— अभिसार शर्मा 

गौरीलंकेश की हत्या, सिर्फ एक पत्रकार की हत्या नहीं है...यह राज्य की हाँ में हाँ नहीं मिलाने वाले, राज्य की कमियों पर ऊँगली उठाने वाले, आवाज़ों, विचारों और भारतीय संस्कृति के आत्मबल की हत्या की कोशिश है...लगता है बिना-हत्यारों के की जाने वाली इन हत्याओं का कारक और कारण, सन्देश भेजता रहता है कि मैं वह जल्लाद हूँ जो अपने खिलाफ़ उठने वाली आवाज़ को मार देता हूँ... अभिसार मित्र हैं, अनेक और पत्रकार भी मित्र हैं, मैं भी हूँ, आप भी हैं...और गौरीलंकेश की हत्या, बिलकुल हमारे मुहाने पर हुई हत्या है, हम ज़िन्दा हैं लेकिन  मुहाने पर हो रही इन हत्याओं में 'गोली' हमें छू कर ही जा रही है. बस! 
- सत्यमेव जयते / भरत तिवारी





आज सुबह मां का फोन आया...कहती हैं, चाहते क्या हो तुम? गौरी लंकेश को भी मार डाला। उसे लोग कुछ दिन याद करेंगे, फिर भूल जाएंगे। तुम जो लिख बोल रहे हो, मुठ्ठी भर लोगों की वाहवाही मिल जाएगी। मगर किसी की सोच नहीं बदल सकते तुम। तुम्हे कुछ हो गया तो किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा, रोएंगे तुम्हारे माँ-बाप, तुम्हारे बच्चे, तुम्हारी बीवी। कुछ नहीं बदलेगा। मां करे भी तो क्या करे। कभी चाचा, कभी मौसाजी, कभी पापा के दोस्त यहीं फोन करके बोलते हैं, "अभिसार को संभालो। कहो कंट्रोल मे लिखे। क्या जरूरत है ये सब बोलने की। कोई इतना सीधे थोड़े ना बोलता है? "

पिछले दो साल मे, कई बार पुलिस सुरक्षा लेनी पड़ी है। लोग अनापशनाप गन्दे व्हाट्सएप ग्रुप मे शामिल कर लेते हैं और गाली-गलौज करते रहते हैं। मगर गौरी लंकेश की हत्या के बाद मानो लोगों की संदेशों की बाढ़ सी लग गई है।



कोई कहता है, आप प्राइवेट सुरक्षा ले लो। कोई कहता है आप कुछ दिनो को लिए छुट्टी पर चले जाओ। सुरक्षा? अरे भई, हम पत्रकार हैं। लोगों से रूबरू होना मेरा काम है। उनके दिल की बात सुनना। मैने अब तक देश दुनिया के कई कोनों से रिपोर्टिंग की है। बस्तर से लेकर इस्लामाबाद तक। कहां कहां ले जाउँगा सुरक्षा? और मैं ऐसा क्या अजूबा कर रहा हूं कि जान पर बन आई है?



कांग्रेस नेता शहज़ाद पूनावाला ने तो ये ट्वीट तक कर दिया कि अगला नम्बर क्या अभिसार शर्मा का है? उन्होंने बेशक अपनी चिंता जताई है, मगर सुनकर अच्छा नहीं लगता ना? 






लंकेश की जिस रात हत्या हुई, उसी रात से शुभचिंतकों के संदेश आने शुरू हो गए थे। प्रेस क्लब भी गया था। वहां भी कुछ लोग यही बोल रहे थे। इतना असर नहीं पड़ा। मगर जब मां ने कहा ना, तो मानो पैरों की नीचे की जमीन बिखर गई। हौसले इतना कमजोर लगने लगे कि क्या बताऊं।

कभी भी अपने पूरे कैरियर मे ऐसा महसूस नहीं किया। कांग्रेस के दस सालों मे भी सरकार पर सवाल किये थे। मगर कभी जान पर नहीं बन आई। सरकारें दबाव बनाती हैं। मगर मोदी सरकार कई लेवेल्स पर आपरेट करती है। सरकारें जो दबाव पत्रकार पर बनाती हैं, वो तो हैं। सबसे ज्यादा चिंताजनक इनके वो बेकाबू समर्थक हैं, जिनपर मैं नहीं बता सकता बीजेपी और उसकी सहयोगी संस्थाओं का काबू है या नहीं। संस्थाओं मे संस्थाओं का तिलिस्म है। और उनके कट्टर...

गौरी को तो मार दिया। ऐसी ही खुली धमकी कई और पत्रकारों को मिलती रहती है। कुछ नमूने आपको सामने हैं। स्वाती चतुर्वेदी कहती हैं, मैं अपनी सुरक्षा तय नहीं कर सकती। धमकियां मिलती रहती हैं। स्वाती ने बीजेपी प्रायोजित ट्रोल्स पर किताब लिखी थी। रवीश से बात होती रहती है। उनपर भी परिवार का दबाव है। कई चीजें बताई, जो मैं नहीं बता सकता, यहां।



इतना नाराज़, गालीबाज़ देश बनाकर आप क्या हासिल करना चाहते हैं। इस नकारात्मक ऊर्जा से देश का भला होने वालों है या इसकी कोई गुप्त योजना है, ये तो ऐसी सोच को बढ़ावा देने वाले लोग ही समझा सकते हैं।

मोदीजी इन गालीबाजों को ट्विटर पर क्यों फालो करते हैं। क्या संदेश देना चाहते हैं। क्या मजबूरी है? और इन गालीबाजों को शर्म नहीं कि देश के प्रधानमंत्री तुम्हें फालो करते हैं। कम से कम उनकी इज्जत तो करो।

फिलहाल, मां की चिंता के आगे कशमकश मे हूं। उम्र के इस पड़ाव मे बड़ी ज्यादती होगी किसी भी बेटे के लिए माँ को इस तरह का तनाव, कष्ट देना। जानबूझ के कौन बेटा ऐसा करना चाहेगा ... 

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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गौरीलंकेश की हत्या, ईश्वर करे, निजी रंजिश हो — अभिसार शर्मा #GauriLankesh



ये रात बहुत लम्बी है 

— अभिसार शर्मा

मैं अभी भी उम्मीद करता हूँ, ईश्वर करे, गौरीलंकेश की हत्या का कारण, किसी निजी रंजिश का मामला निकल कर आये....



विडियो प्ले कीजिये



(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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कैबिनेट फेरबदल की असलियत ? — अभिसार शर्मा #CabinetReshuffle



ये सामान्य कैबिनेट फेरबदल नहीं 

— अभिसार शर्मा






...अगर ऐसा है, तो ये कहीं न कहीं, मोदी सरकार का कबूलनामा माना जायेगा, के वह तीन साल में नाकाम साबित हुई है। क्योंकि ये तीनों मंत्रालय प्रधानमंत्री मोदी के सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय थे।
ये सामान्य कैबिनेट फेरबदल नहीं !!! इस सरकार में कुछ भी सामान्य हो कैसे सकता है? हर मौका जश्न, हर घटना एक पर्व। खबर ये मिल रही है के तीन मंत्रियों की या तो छुट्टी तय है, या फिर उनका मंत्रालय बदल दिया जाएगा। और वो तीन नाम हैं, स्किल डेवलपमेंट मंत्री राजीव प्रताप रूडी, गंगा सफाई और जल संसाधन मंत्री उमा भारती और रेल मंत्री सुरेश प्रभु। अगर ऐसा है, तो ये कहीं न कहीं, मोदी सरकार का कबूलनामा माना जायेगा, के वह तीन साल में नाकाम साबित हुई है। क्योंकि ये तीनों मंत्रालय प्रधानमंत्री मोदी के सबसे महत्वाकांक्षी मंत्रालय थे।

और यह बदलाव तीन साल बाद? यानी के आपके कार्यकाल का आधे से ज़्यादा वक़्त निकल गया और अब आपको इन मंत्रालयों को चलाने वाले चेहरों पर एतबार नहीं रहा। रेल मंत्रालय की तो और भी “रेल” लगी हुई है। तीन सालों में दो मंत्री और हालात फिर भी नहीं सुधरे। मोदीजी को काफी उम्मीदें थीं सुरेश प्रभु से। इन्हें बाकायदा शिव सेना से उठा कर(POACH) भी ली आये थे। मगर नतीजा आपके सामने है। खुद सुरेश प्रभु हताशा में अपने इस्तीफे की पेशकश कर चुके हैं। उनकी हालत उस मासूम बालक की तरह है, जो जंगल में फँस गया है, और उसको कुछ समझ नहीं आ रहा है...



अब बात करते हैं राजीव प्रताप रूडी की। स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री मोदी का एक बड़ा नारा था। मगर हुआ क्या? सरकार की योजना थी के साल 2022 तक वह 500 मिलियन( पचास करोड़ ) लोगों को प्रशिक्षित करेगी। मगर कुछ ही दिनों पहले, इस साल सात जून को इसे तिलांजलि दे दी गई!

राजेश अग्रवाल, DG, और स्किल्स मिनिस्ट्री में संयुक्त सचिव का कहना था, के हम किसी आंकड़े का पीछा नहीं करना चाहते।

मंत्री राजीव प्रताप रुडी ने भी माना, “यह ज़रुरत के हिसाब से काम करेगी न के सप्लाई के हिसाब से।“

रूडी ने साफ़ कहा: मंत्रालय नौकरी देने पर नहीं बल्कि लोगों को प्रशिक्षण दे कर नौकरी-लायक बनाने पर ध्यान दे रहा है, लेकिन वो यह नहीं बताएँगे कि पिछले दो वर्षों में जिन 11.7 मिलयन लोगों को ट्रेनिंग दी गयी है उनमे से कितनों को नौकरी मिली!

ये क्या बात हुई भला। जिन्हें ट्रेन किया है, उनकी नौकरी की बात क्यों नहीं?



कुर्सी की #अकड़_में_भाजपा  — अभिसार शर्मा


अब नमामि गंगे की बात करते हैं। मोदीजी के दिल की करीबी योजना। कम से कम वह तो यही कहते हैं। दिक्कत ये है, सब कुछ वही कहते हैं। ज़मीन पर उसके कोई प्रमाण नहीं है...

याद है न, “न तो मैं आया हूं और न ही मुझे भेजा गया है। दरअसल, मुझे तो मां गंगा ने यहां बुलाया है"

मगर माँ गंगा की सफाई की तरफ कोई सफलता मिलती नहीं दिख रही हैं।

कैच न्यूज़ के एक आर्टिकल ने पांच बातें कही हैं :

1. 'स्वच्छ गंगा' योजना को विफल क़रार देते हुए, राष्ट्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को, वाराणसी में गंगा को साफ करने में विफल रहने के लिए, फटकार लगायी।

2. योजना का, सीवेज का नदी में गिरना अभी तक न रोक पाना; ऐसा कहीं खास कुछ हुआ नहीं नज़र आता जिससे लगे कि आसपास के शहरों से, गंगा में गिरने वाले 2700 मिलियन लिटर दूषित पानी, की रोकथाम हो रही है।

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3. एक बड़ा अवरोध केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सामंजस्य नहीं होना है, गंगा अधिकतर जिन राज्यों से हो कर गुजरती है वहां विपक्ष की सरकार है। योजना १०० पूरी तरह केंद्र के अनुदान से है लेकिन स्थानीय विभागों के द्वारा चलाई जा रही है।

4. देश में कॉर्पोरेट घरानों ने सीएसआर के तहत परियोजना को वित्तीय सहायता देने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई गई है, आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार को 2014-15 में निजी कंपनियों से मिलने वाली फंडिंग में स्वच्छ भारत और नमामि गंगे को सबसे कम फंड मिला है।

5. सरकार नदियों को आपस में जोड़ने की योजना लागू करना चाहती है। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि यह नदियों के प्राकृतिक पारिस्थितिकी में बाधा डाल सकता है।


यानी के न रेल में सुकून, उल्टा भारतीय रेल मोक्ष हासिल करने का शर्तिया तरीका बनती दिख रही है। 
न गंगा को सुकून। गंगा इतनी मैली है के यहाँ डुबकी लेकर आपको बिलकुल भी मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकती...
यानि उमा भर्ती और सुरेश प्रभु के मंत्रालयों के बुनियादी मक़सद में आपसी फेर बदल हो गया है। 
मोक्ष उमा जी के मंत्रालय से मिलना चाहिए था, मगर जिस पैमाने पर मौतें हो रही हैं, ये सौभाग्य जनता को रेल मंत्रालय से मिल रहा है। 
और स्किल मंत्रालय भी पटरी से उतर गया। 

उधर तीन साल होने को हैं और देश को एक फुल टाइम रक्षा मंत्री तक नहीं मिला है। कल्पना कर सकते हैं आप? सैनिकों के नाम पर कितने वोट मांगे थे मोदी सरकार ने और तीन सालों में एक अदद रक्षा मंत्री नहीं मिल पाया है। कौन बनेगा नया रक्षा मंत्री या फिर जेटली साहब को इसका अतिरिक्त बोझ उठाते रहना पड़ेगा?

 लिहाज़ा मेरे कुछ सवाल हैं:
1. क्या मोदी सरकार में टैलेंट-डेफिसिट, प्रतिभाओं की कमी है? यानी के मंत्रालयों को चलाने के लिए इनके पास चेहरे और प्रतिभा नहीं हैं। (जेटली को दो दो मंत्रालय)

2. तीन महत्वाकांक्षी मंत्रालयों में फेरबदल क्या साबित नहीं करता के इनके मंत्री काम नहीं कर पाए हैं (यह मामूली मंत्रालय नहीं हैं)

3. लिहाज़ा, क्या ये इस बात की स्वीकारोक्ति या कबूलनामा नहीं के सरकार यहाँ फेल हो चुकी है?

4. और अगर आप फेल हो गए हैं, तो फिर अच्छे दिन तो गए बारह के भाव में?

5. नोटबंदी की असफलता, जीडीपी में ज़बरदस्त गिरावट, नौकरियों के लिए माकूल माहौल न होना क्या साबित नहीं करता के बतौर वित्त मंत्री जेटली साहब भी देश को सही दिशा नहीं दे पाए हैं? क्या उनकी जवाबदेही तय की जाएगी?

इसे सामान्य फेरबदल मत समझना। अगर ये चेहरे हटाए गए, या इनकी अदला बदली की गयी तो यह देश के सामने पहला बड़ा कबूलनामा है कि...तुमसे न हो पायेगा बेटा तुमसे न हो पायेगा
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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कुर्सी की #अकड़_में_भाजपा — अभिसार शर्मा | @abhisar_sharma




शर्म तुमको मगर आती नहीं

 — अभिसार शर्मा

चलिए शर्म तो बहुत दूर की बात है, बीजेपी के तेवर में बला की दबंगई है। जैसे कि... कुछ भी कर लो, कुछ भी कह लो...कोई कुछ नहीं उखाड़ सकता। ये भाव हर तरफ दिखाई दे रहा है। और दिक्कत ये की जनता में इस बात को लेकर कोई आक्रोश नहीं। 

आग़ाज़ करते हैं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बयान से। गौर कीजिये क्या कहा योगीजी ने,

 “कहीं ऐसा न हो कि लोग अपने बच्चे दो साल के होते ही सरकार के भरोसे छोड़ दें। सरकार उनका पालन पोषण करे।



उनके इस कथन के हकीकत में तब्दील होने की गुंजाइश उतनी ही है, जितनी समूची भारतीय सियासत की संस्कारी और शरीफ हो जाने की है। यानी कि जो हो नहीं सकता, उसकी बात भी क्यों की जाए? मगर इससे आपकी नीयत का पता चलता है!!? आपकी संवेदनाओं का पता चलता है। बच्चों के प्रति आपकी भावनाओं का पता चलता है। वह 290 लोग जिनके बच्चे मारे गए हैं न, उन्हें भी पता है कि उनके बच्चे वापस नहीं आएंगे। ये चमत्कार नहीं होगा। मगर इन ग़मग़ीन लम्हों में, उन्हें सहानुभूति, मरहम की ज़रूरत है। कोई तो हो, जो उनके कंधे पर हाथ रखे और कहे, सब ठीक हो जाएगा। और आप क्या कहते हैं योगीजी? — कहीं दो साल बाद माता पिता अपने बच्चों को सरकार के हवाले न कर दें?



जनता को हिन्दू मुसलमान के नाम पर दो फाड़ कर ही चुके हो, काम करो न करो, क्या फ़र्क़ पड़ता है



मैं आज ईश्वर कि प्रार्थना करता हूँ कि सद्बुद्धि न सही, आपको इस बयान की बेरहमी समझने की समझदारी वो प्रदान करें। ये बयान ये साबित करता है कि बीजेपी जवाबदेही में कतई विश्वास नहीं रखती, अलबत्ता सियासी विकल्प न होने के चलते, एक दबंगई का भाव आ गया है। मोहल्ले का वह आका जो किसी को भी ताना कस देता है, किसी का भी ठेला उखाड़ देता है, किसी को भी छेड़ देता है। क्योंकि कोतवाल बड़े भाई जो ठहरे...बड़े भाई ! याद है न? क्योंकि सारा ज़ोर बड़े भाई के करिश्मे पर है। जनता को हिन्दू मुसलमान के नाम पर दो फाड़ कर ही चुके हो, काम करो न करो, क्या फ़र्क़ पड़ता है।

हम सब जानते हैं कि किसी भी त्रासदी की कुछ ज़मीनी हकीकत होती है। कुछ पहलू सरकार के काबू में भी नहीं होते। मगर उसे प्रस्तुत करने का एक तरीका होता है। बीजेपी वो शालीनता भूल गयी है जो ऐसे मौकों पर होनी चाहिए। और योगीजी ऐसी शालीनता का परिचय देने मे पूरी तरह नाकाम रहे हैं। क्योंकि अब तक... अब तक गोरखपुर की सियासी ज़िम्मेदारी तय नहीं की गयी है। अब तक नहीं!!! है न हैरत वाली बात?





हाँ योगीजी, सरकार बच्चों को नहीं पालेगी। मगर ये देश का दुर्भाग्य है कि वो 70 सालों से आप जैसे सियासतददानों को पाल भी रही है और बर्दाश्त भी कर रही है।

अब आइये हरियाणा की तरफ। अब तक साफ़ हो चुका है कि बेशर्मी से सरकारी मंत्रियों की शह के चलते पंचकुला में ऐसे हालत पैदा हुआ। सरकार ने बलात्कारी बाबा के समर्थकों को एक रात पहले यकीन दिलाया कि उन्हें कुछ नहीं किया जाएगा और जब वह वहां जमा हो गए, और हालात बिगड़ गए तो 36 भक्तों को गोली मार दी गयी। हालात वहां तक पहुंचे कैसे? क्यों मंत्री राम विलास शर्मा एक दिन पहले कह रहे थे कि श्रद्धा पर धरा 144 थोड़े ही लगा सकते हैं। करोड़ों की सम्पत्ति का नुकसान हुआ, मगर मौत किसकी हुई, मारा कौन गया? वो अंध भक्त, जो एक बलात्कारी में अपनी अटूट श्रद्धा के चलते वहां पहुंचे थे। और आज, आज अमित शाह से मिलने के बाद क्या कहा मनोहर लाल खट्टर ने? — “जिसको इस्तीफा मांगना है वो मांगता रहे, मैं तो नहीं दूंगा।“ !



ऐसा क्या कहा खट्टर साहब को माननीय अमित शाह ने, कि बाहर आकर ऐसे तेवर? कोई सियासी शालीनता तक नहीं? ऐसी हेकड़ी? ऐसा घमंड? किसलिए? और क्या इस सियासी घमंड, इस हेकड़ी को अमित शाह और खुद प्रधानमंत्री की शह मिल रही है। क्योंकि आपको याद होगा, बलात्कारी बाबा को सज़ा मिलने के बाद जो वाहियात बयान बीजेपी सांसद साक्षी महाराज ने दिया था, उसमें उनसे कोई जवाब तलब नहीं की गयी है। साक्षी महाराज ने बलात्कार पीड़ित उन साध्वियों और अदालत के फैसले पर सवाल खड़े कर दिए थे।

जिस दिन पंचकूला में हाहाकार मचा हुआ था, उस दिन सूचना और प्रसारण मंत्रालय की तरफ से टीवी न्यूज़ चैनल्स पर अंकुश डालने का फरमान जारी हुआ। आप देख रहे हैं इस सरकार की प्राथमिकताएं? हाल में रविशंकर प्रसाद से मैंने एक इंटरव्यू किया था। मैंने उनसे एक सवाल किया। मैंने उनसे पूछा कि ट्रिपल तलाक़ पर सरकार के रुख से क्या आपको उम्मीद है कि मुसलमान औरतों का आपको समर्थन मिलेगा और क्या ये सियासी पैंतरा नहीं है? जवाब हैरत में डाल देने वाला था। आवाज़ को और बुलंद करके, भौहें सिकोड़ के, कानून मंत्री ने कहा, हम देश के सत्तर फीसदी हिस्से पर राज कर रहे हैं। अब क्या ABP न्यूज़ बताएगा कि हम सियासत करेंगे और हमें बताया जाएगा कि हमें कौन वोट देगा? जवाब वाकई चौंकाने वाला था।





यानी कि अध्यक्ष महोदय से लेकर पार्टी का हर छोटा बड़ा नेता और तमाम मुख्यमंत्री, सबको ऐसा आभास है कि उन्हें सियासी अमरत्व या ऐसा अमर वरदान हासिल है, कि उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हम कुछ भी कहते रहेंगे, हम कुछ भी करेंगे और जवाबदेही नाम की कोई चीज़ नहीं है। बढ़िया है।

मगर एक छोटी सी बात याद रहे...और गौर कीजियेगा

तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था 
उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था

आएगा, आएगा। तुम्हारा भी दिन आएगा...और वापसी या फिर नीचे जाने के सफर में मुलाक़ात होगी।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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क्या वजह है जो प्रधानमंत्री ने गोरखपुर पर कुछ नहीं कहा —अभिसार शर्मा



मेरे प्रधानमंत्री बच्चों की मौत पर खामोश क्यों 

योगीजी यह क्या कह दिया? —अभिसार शर्मा


गोरखपुर हादसे पर, योगी के समवेदनहीन बयान पर और मोदी की खामोशी पर अभिसार शर्मा 


Abhisar Sharma's Video Blog on PM Modi's silence over Gorakhpur Children Tragedy


(ये अभिसार शर्मा के अपने विचार हैं।)
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अभिसार शर्मा दम है तुममें तो करो गोरखपुर की बात #GorakhpurTragedy @abhisar_sharma



क्या तुममें हिम्मत है अभिसार शर्मा? तुम तो राष्ट्रवादी भी नहीं, मगर तुम्हारी बिरादरी के एक फर्जी राष्ट्रवादी ने कल प्राइम टाइम टीवी पर दहाड़ते हुए कहा, और गौर कीजिये 

"हम वन्दे मातरम पर चर्चा कर रहे हैं और आप बेवजह गोरखपुर में मरे 60 बच्चों की बात कर रहे हैं"

( अंग्रेजी से तर्जुमा, अनुवाद)

(Image courtesy: Anoop Jaiswal, NBT)

जो शख्स ये कह सकता है कि हम वन्दे मातरम की चर्चा कर रहे हैं और आप गोरखपुर के मृत बच्चों की बात कर रहे हैं, वह कोई वहशी ही हो सकता है।


इस चैनल के एंकर ने तो साफ कर दिया उसकी प्राथमिकता क्या है। वो अब भी विपक्ष को ही कटघरे में रखेगा। वो अब भी सीमा पर रोज़ मर रहे सैनिकों को नज़रंदाज़ करेगा, और उसके लिए भी उदारवादियों, JNU के विद्यार्थियों और वामपंथियों को कटघरे में रखेगा, वो अब भी किसानों की दुर्दशा पे आँखें मून्देगा, वो गौ रक्षकों के आतंक पे खामोश रहकर अपनी नपुंसकता का परिचय देगा। मगर तुम?

तुम, अभिसार शर्मा, है दम तुममें?

गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के ऑन रिकॉर्ड क़ुबूलने के बावजूद कि मौत ऑक्सीजन सप्लाई काटने की वजह से हुई थी, आखिर योगी सरकार क्यों कह रही है कि ऐसा कुछ नहीं?

है दम योगी सरकार से ये पूछने का कि आखिर 9 अगस्त को मुख्यमंत्री के बीआरडी अस्पताल जाने के बावजूद, 60 बच्चों की बलि कैसे चढ़ गयी? है दम पूछने का तो पूछो गोरखपुर के जिला मजिस्ट्रेट के ऑन रिकॉर्ड क़ुबूलने के बावजूद कि मौत ऑक्सीजन सप्लाई काटने की वजह से हुई थी, आखिर योगी सरकार क्यों कह रही है कि ऐसा कुछ नहीं? झूठ क्यों? पर्देदारी क्यों? जब पुष्प गैस कम्पनी के मुलाजिम ने यह कह दिया है कि हम फरवरी 2017 से बीआरडी अस्पताल को 68 लाख के बकाया बिल के भुगतान की अपील कर रहे थे, मगर उन्होंने कुछ नहीं किया...तो फिर योगी सरकार ऐसा क्यों कह रही है कि मौत ऑक्सीजन काटने से नहीं हुई? अभिसार शर्मा है तुममें सरकार को इस शर्मनाक झूठ के लिए कटघरे में रखने के हिम्मत? क्या तुम बाकी गैर बीजेपी राज्यों की तरह यहाँ मुहीम चलाओगे या 30 घंटे में खामोश हो जाओगे?


कुछ देर के लिए कल्पना कीजिये अगर यही घटना किसी गैर बीजेपी राज्य में होती, क्या तब भी कथित, फर्जी और राष्ट्रवादी चैनल खामोश रहते?

क्योंकि इनका आक्रोश तो सुविधावादी है। अब तो बिहार से जंगलराज ख़तम हो गया है। जबसे नितीश लालू की गोदी से बीजेपी के पल्लू से बांध गए हैं। सारे पाप माफ़। अब मजाल है कोई बिहार के लिए जंगल राज शब्द का इस्तेमाल करे? ये बात अलग है के अब बिहार में भी गौ रक्षकों ने अपना जौहर दिखाना शुरू कर दिया और सुशासन बाबु ने भी एलान कर दिया है कि मैं गौ रक्षा करूंगा। ये बात अलग है के RJD के नेता की हत्या को जंगल राज की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाएगा।

हिम्मत और हौसला ज़रूर पैदा करना अभिसार। क्योंकि हर वो शख्स जो अपने बच्चों से मुहब्बत करता है, वो गोरखपुर के अपराध से आक्रोशित होगा। जो शख्स ये कह सकता है कि हम वन्दे मातरम की चर्चा कर रहे हैं और आप गोरखपुर के मृत बच्चों की बात कर रहे हैं, वह कोई वहशी ही हो सकता है। इन्सान नहीं। अभिसार शर्मा उम्मीद करता हूँ तुम, इंसानियत और वहशत के बीच के फर्क को समझोगे। उम्मीद है, बच्चों पर तुम्हारा दर्द इस बात पर निर्भर नहीं करेगा कि राज्य में किसकी सरकार चल रही है। मैं उम्मीद करता हूँ कि तुम गोरखपुर के अस्पताल में बच्चों के स्वस्थ्य से साथ हो रहे खिलवाड़ के खिलाफ एक मुहीम चलाओगे।

सबसे अहम् बात, उम्मीद है तुम देश के प्रधान सेवक और राष्ट्रऋषि पर दबाव बनाओगे कि इस बार लाल किले के प्राचीर से, सतही बातों के बजाय असल मुद्दों की बात करें। किसानों, दलितों, सामाजिक न्याय, मुसलमानों में असुरक्षा, और स्वस्थ्य को लेकर चल रहे संकट की बात करें। आये दिन घर पहुँच रही सैनिकों की लाशों की बात करें। उम्मीद है कि तुम उनपर दबाव बनाओगे कि वह यह समझा सकें के नोटबंदी से आखिर हुआ क्या? GST व्यवस्था से व्यापारियों में इतनी अफरा तफरी क्यों? अनिश्चितता क्यों?

उम्मीद है मोदीजी एक शब्द, गोरखपुर में पसरे मौत के सन्नाटे के बारे में कहेंगे। 

उम्मीद है मोदीजी एक शब्द, गोरखपुर में पसरे मौत के सन्नाटे के बारे में कहेंगे। उम्मीद है मुझे ! और उम्मीद है तुम, अभिसार शर्मा, उन पर ये दबाव बनाओगे। क्योंकि यही तुमने उस वक़्त किया था जब कांग्रेस सत्ता में थी। तब तुम और तुम्हारी बिरादरी के कई पत्रकार अन्ना आन्दोलन में शरीक हो गए थे। तब किसी ने तुम्हे देशद्रोही नहीं कहा था। तब प्रधानमंत्री कार्यालय से फ़ोन आते थे, मगर कोई तुम्हारे परिवार को टारगेट नहीं करता था। इस बार, ऐसा हो रहा है। मगर उम्मीद है तुम विचलित नहीं होगे। मुश्किल है। मगर उतना भी मुश्किल नहीं जितना गोरखपुर में मारे गए बच्चों के माँ बाप के लिए। उनका सोचो, अभिसार शर्मा। तुम्हारा दर्द, तुम्हारे तकलीफ शून्य है उनके सामने ...एक बहुत बड़ा शून्य। और यही शून्य उन माँ बाप की हकीकत भी है जिन्हें ज़िन्दगी भर, ज़िन्दगी भर अपने बच्चों के बगैर जीना है।

रात भर विचलित रहा। इससे पहले ऐसा तब हुआ, जब पाकिस्तान में आतंकवादियों ने स्कूल में घुसकर आतंकवादियों का नरसंहार किया था। तब कई दिनों तक बिखरा सा रहा था। वो तो पाकिस्तान के बच्चे थे। वो पाकिस्तान जो दुश्मन है, मगर गोरखपुर के 60 बच्चे तो हमारे अपने हैं न। है न? या फिर, उन्हें भी इसलिए भूल जाएँ, के यहाँ एक राष्ट्रवादी सरकार है। यहाँ राम राज आ गया है ...

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Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मस्त रहो अपनी भक्ति की चरस में — अभिसार शर्मा | Abhisar Sharma Blog #Adani



कटघरे में अभिव्यक्ति

— अभिसार शर्मा

चोटिल हूँ, लिहाजा कुछ दिनों से लिख नहीं पा रहा हूँ। हाथ टूट गया है। बडी हिम्मत करके कुछ लिख रहा हूँ। खुद बेबस हूँ, और मेरा पेशा, यानि पत्रकारिता मुझसे भी ज़्यादा बेबस। मेरा तो सिर्फ हाथ टूटा है, मगर मौजूदा पत्रकारिता के हाथ पैर पीछे से या तो बांध दिये गये हैं या तोड़ दिये गये हैं या फिर कुछ ने तो अपनी कलम सौंप दी है। इसे Emotional अत्याचार ना समझें, मगर सोचें ज़रूर! मामला वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता के इस्तीफे का है। उन्होंने इस्तीफा इसलिये दिया या दिलवाया गया क्योंकि उनकी पत्रिका Economic & Political Weekly के board of directors ने, जो पत्रिका का ट्रस्ट चलाते हैं, उन्हे ये आदेश दिया कि Adani business समूह के बारे में लिखे गये दो लेखों को हटाये। Adani गुट पहले ही मानहानी का मुकदमा ठोंकने का नोटिस भेज चुका था। अगर लेख इतने कमजोर थे, तो क्या उन्हें छापने से पहले हकीकत की कसौटी पर परखा नहीं गया था? और अगर विश्वास था तो किस बात का डर? दरअसल, डर सिर्फ मानहानी का नहीं, बल्कि प्रक्रिया का है। फैसला तो जब आयेगा तब आयेगा। मगर उससे पहले महंगी न्यायिक प्रक्रिया से कौन गुजरे। अब प्रक्रिया ही सजा है। Media house पे छापा मार दो, चाटुकार टीवी चैनलों में उसे जम कर उछाल दें, आधा काम वही हो जाता है। ये वो काल है जब मामले की सत्यता मायने नहीं रखती, बस शोर होना चाहिये। झूठ भी चीख चीख कर बोलो। कचरा सोच जनता मान ही लेगी। यह वही जनता है जो मोदीजी की काया से चौंधियाई हुई है। उनके वादों पे कोई जवाब नहीं चाहिये। इसका पेट शब्दों से भर जाता है। और क्या जनता और क्या पत्रकार। तीन साल बाद अब भी सारे सवालों के जवाब, विपक्ष से चाहिये। थकी मरी opposition से। ऐसे पत्रकार कैसे करेंगे सवाल एक ऐसी सरकार से, जो सिर्फ चतुराई से मुद्दों को भटकाना जानती है। ना किसानों पे सवाल, ना शहीद सैनिकों के बढ़ते जनाजों पर सवाल, ना नौकरियों पे सवाल।



मोदीजी गाय के नाम पर हो रही हत्याओं पर बोलते हैं मगर अपनी शर्तों पर। Media का कोई दबाव नहीं था उनपर। तीन साल पूरा होने पर कितने पत्रकारों ने इस सरकार और उसकी नाकामी पर उसे कटघरे मे खड़ा किया?

हम यानि पत्रकार खाते हैं अपनी विश्वसनीयता की। अपनी image की। भक्ति काल में हमने इसे ही दांव पे लगा दिया है। चाहे डर, या मौजूदा प्रधान सेवकजी से मंत्रमुग्ध होने के चलते, हमने वो सवाल पूछने बंद कर दिये हैं। अधिकतर media में मुद्दे गायब हैं। और जब सवाल नहीं पूछे जाते या उसकी ज़रूरत नहीं महसूस होती तो फिर ऐसा ही corporate आतंक सामने आता है। जब सम्पादक कमजोर हो जाता है और "मालिक" दिशा तय करता है। अगले सप्ताह supreme court को फैसला करना है के निजता यानि privacy एक बुनियादी अधिकार है या सामान्य अधिकार। मोदी सरकार इसे बुनियादी अधिकार नहीं मानती। हैरानी नहीं है मुझे। ये बात अलग है के सामान्य नागरिकों और समय पर कर्ज न चुकाने वाले धन्ना सेठों के लिये इस सरकार के लिये निजता के अधिकार के मायने बदल जाते हैं। आज आपकी "निजता" कटघरे में है, कल आपके विचारों की अभिव्यक्ति के अधिकार की बारी हो सकती है।

मस्त रहो अपनी भक्ति की चरस में.


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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#चतुर_सियासत: दर्द तो था मगर गाय के लिए — अभिसार शर्मा #CowVigilantism

बेशक, अखलाक की हत्या अखिलेश के राज में हुई थी, मगर हत्यारों और आरोपियों का महिमामंडन आपके नेताओं और केंद्र के मंत्रियों ने किया था... — अभिसार शर्मा 



मोदीजी और शाहजी की सोच

Abhisar Sharma on PM's message to Cow Vigilantes



मैं प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की सियासी सोच और चतुराई का कायल हो गया हूँ। विपक्ष और पत्रकार महोदय जहाँ सोचना बंद कर देते हैं, मोदीजी और शाह की सोच वहां से आरम्भ होती है…खासकर मीडिया जब भक्त हो और विपक्ष कन्फ्यूज्ड । गौर कीजिये क्या हुआ था, जब प्रधानमंत्री ने गौरक्षकों के आतंक पे अपना बयान दिया था। न्यूज़ चैनल्स ने इसे गौ के नाम पर आतंक पर मोदी का बड़ा वार करार दिया। बीजेपी के एक नेता के पैसे से चलने वाले, सरकार के चाटुकार चैनल ने तो ये तक कह दिया के ये मोदी का विपक्ष को करार तमाचा है। बकौल इस और इसके जैसे कुछ और चैनल्स के, क्या अब विपक्ष और उदारवादी और कुछ गिने चुने पत्रकार मोदी के खिलाफ अपना propaganda बंद करेंगे? वाकई? क्या विपक्ष और सरकार से सवाल करने वाले गिने चुने पत्रकारों को मोदीजी का एहसानमंद होना चाहिए के आपने कुछ तो कहा? मगर कहा क्या?

दर्द तो था, मगर गाय के लिए और उस चार साल के बच्चे के लिए

जैसे मैंने शुरुआत में कहा के मैं मोदी और शाह की सियासी सोच का कायल हूँ। कुछ कहा भी नहीं और आभास भी दे दिया कि — हमने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया है। देश और मीडिया उनके बयान से इसलिए प्रभावित था क्योंकि ‘मोदीजी इमोशनल हो गए थे’। उनकी आँखों में आंसू थे। मगर किसके लिए? जुनैद के लिए? पहलु खान के लिए? या अखलाक के लिए? अखलाक याद है न? जिसकी हत्या के आरोपी के अंतिम संस्कार में देश के पर्यटन मंत्री शामिल हुए थे और दिवंगत आत्मा के शरीर को तिरंगे से लिपटा गया था?

गौ-हत्या पर इमोशनल मोदीजी

खैर, ध्यान से पढियेगा जो मैं आगे लिख रहा हूँ। प्रधानमंत्री ने अपने इस इमोशनल भाषण में एक घटना का ज़िक्र किया। बताया कि किस तरह एक चार साल का बच्चा एक गाय के नीचे आ गया (और यहाँ प्रधानमंत्री पहली बार रोआँसे हुए) और बाद में गाय ने लड़के के घर के सामने खड़े होकर अपने प्राण त्याग दिए (यहाँ दूसरी बार मोदीजी का गला भर्रा गया) और इसी इमोशनल अपील के बाद उन्होंने कहा के ऐसी पावन गाय के नाम पर आतंक मचाना बंद करें। यानि दर्द तो था, मगर गाय के लिए और उस चार साल के बच्चे के लिए। ज़ाहिर है, अगर प्रधानमंत्री की इस बात पर यकीन किया जाए तो वाकई ये घटना मार्मिक थी...मगर चतुर सियासी सोच के धनी मोदीजी ने इस बयान के ज़रिये, गाय के नाम पर कट्टर सोच रखने वालों को नाराज़ नहीं किया। बल्कि प्रायश्चित करने वाली गाय के लिए आंसू बहाकर मोदीजी ने बता दिया कि उनके लिए गाय बहुत पावन है। होनी भी चाहिए, मेरे लिए भी है। यानि गौरक्षक खुश ! उसे मंच पर ऐसा प्रधानमंत्री दिखा, जिसकी आँखों में गाय के लिए तो आंसू हैं, मगर 15 साल के जुनैद, पहलु खान और अखलाक... उसका ज़िक्र तक नहीं। मानो गौ रक्षा या हिंदुत्व के नाम पर इनकी मौत इस पूरे घटनाक्रम का छोटा-सा पहलू है। इसे कहते हैं सियासत। इसे कहते हैं मास्टर-स्ट्रोक। गाय और उसके रक्षक भी कलंकित नहीं हुए और मीडिया का पेट भी भर गया।

दरअसल इसके पीछे कुछ हदतक अमित शाह की भी सोच है। याद है आपको — गुजरात के ऊना में दलितों पर हुए हमले के बाद मोदीजी की जुबान से गलती से फिसल गया था के अस्सी फीसदी लोग गौरक्षक के नाम पर पाखण्ड और आतंक फैला रहे हैं? क्योंकि यहाँ दाव पर बड़ा vote bank था और उत्तर प्रदेश के चुनाव होने वाले थे। खबर की मानें तो ये है कि अमित शाह ने मोदीजी के इस अस्सी-बयान पर आपत्ति जताई थी और इस बात को लेकर दोनों में चर्चा भी हुई थे और यह सहमति बनी के आगे से न 80 फीसदी जैसा कोई आंकड़ा ही दिया जाएगा और न ही गौरक्षकों को सीधे चुनौती दी जाएगी।

मोदीजी के ताज़ा बयान में वो सहमति दीखती है। इसमें गौरक्षकों को खुश करने के लिए गाय का महिमामंडन है और साथ ही —  बहुत खूबसूरती से —  मारे गए लोगों के लिए सीधे हमदर्दी नहीं जताई गयी है। अमित शाह ने तो ये तक बोल दिया है के हाल मे गाय के नाम पर हो रही हत्याएं कोई नयी बात नहीं है और पहले इससे ज्यादा गौ हत्याएं होती थी। हर बार की तरह इसमें उन्होंने कोई तर्क या आंकड़े नहीं दिए। वो पहले भी बोल चुके हैं कि हमारे शासन में सैनिकों की जान ज्यादा महफूज है और हमसे पहले ज्यादा सैनिक मारे जाते थे। यही बात वो किसानों के बारे मे कह चुके हैं और अगर कोई पूछे कि ऐसा आप किस आधार पर कह रहे हैं? तो मान्यवर चुप होने की नसीहत पहुँचा देते हैं। शाहजी को चुनौती देने की भला किसकी हिम्मत हो सकती है ?

भारत के इन दो सबसे ज्यादा ताक़तवर शख्सियतों ने बेशक बेहद चतुराई से अपने कट्टर vote-bank को बगैर नाराज़ किये, गाय के नाम पर चल रही हिंसा पर टिप्पणी दी है, मगर इस सियासी चतुराई के चलते दोनों ही इंसानियत और अपने फ़र्ज़ के लिए बुरी तरह नाकाम साबित हुए हैं। आपका फ़र्ज़ गाय के नाम पर किसी अतीत की घटना पर आंसू बहाना नहीं था, बल्कि एक स्टेट्समैन (statesman ) का परिचय देते हुए, जुनैद और पहलु के परिवार के ज़ख्मों पर मरहम लगाना होना चाहिए था। आपने ऐसा नहीं किया। आप अब भी सियासी-खेल खेल रहे हैं। मैं जानता हूँ आपके चाटुकार कहेंगे — ये सीधे तौर पर राज्य का विषय है और वैसे भी किसी समुदाय विशेष का नाम क्यों लेना। अरे तो क्या भूल गए तुम कि ऊना में दलितों पर हुए हमले के बाद, उत्तर प्रदेश चुनावों से ठीक पहले क्या कहा था?


बकौल मोदीजी, मेरे दलित भाइयों को छोड़ दो, बेशक मेरी जान लेलो, मगर मेरे दलित भाइयों को छोड़ दो। यानी कि गज़ब है वाकई! क्या प्रधानमंत्रीजी ये बोलने की हिम्मत कर सकते थे, कि मेरे मुसलमान भाइयों को छोड़ दो और बदले में मेरी जान लेलो? ऊना भी तो एक ही घटना थी न? नहीं?


सच तो ये है कि जुनैद, पहलु, अखलाक की हत्याओं से एक बड़ा सन्देश जा रहा है। और हत्याओं में शुमार हैं, आपकी सियासी सोच से इत्तफाक रखने वाले लोग। आपके समर्थक। झारखण्ड की हत्या में तो बीजेपी के एक महानुभाव सामने आ गए हैं। अखलाक की हत्या में भी कुछ ऐसा ही हुआ था।

और हाँ अमित शाहजी बेशक, अखलाक के हत्या अखिलेश के राज में हुई थी, मगर हत्यारों और आरोपियों का महिमामंडन आपके नेताओं और केंद्र के मंत्रियों ने किया था... आपकी सियासी चतुराई और कुछ नेताओं का रवैया इस आग में बारूद डालने का काम कर रहा है। दुःख के बात ये है कि गाय के नाम पर ये हिंसा जारी रहेगी, क्योंकि आप संवेदनहीन हैं, आप पत्थरदिल हैं और आपके राज्यों की सरकारों का रवैया भी मज़लूम के हक़ के खिलाफ है।

मुझे इंतज़ार रहेगा, जब बगैर किसी लाग लपेट के आप और मेरे प्रधानमंत्री, जुनैद की माँ के आंसू भी पोंछेंगे।




Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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गौरक्षक-विरोध और मेरा स्वार्थ — अभिसार शर्मा | Abhisar Sharma Blog #CowVigilantism


आइये मेरे जैसे स्वार्थी बन जाइये 

— अभिसार शर्मा

Abhisar Sharma Blog

मैं नहीं चाहता के भारतीय Passport शर्मिन्दगी का सबब बने। — अभिसार शर्मा

गाय और मजहब के नाम पर हत्या — जिसे हम अब mob lynching का नाम देते हैं —  उसके नंगे नाच के खिलाफ मेरे विरोध के कुछ निजी कारण हैं। आप मुझे Selfish या स्वार्थी भी कह सकते हैं। परवाह नहीं। मैं बताता हूँ वो निजी कारण क्या हैं? —  मैं एक Middle Class Family से आता हूँ। मैं पढ़ाई में बहुत औसत था। हर पिता की तरह मेरे पापा की भी मुझसे बड़ी उम्मीदें थीं। उनकी उम्मीदें मैं पूरी नहीं कर पाया और अब वैसी ही उम्मीदें मुझे अपने बच्चों से हैं। मैं चाहता हूँ वे खूब पढ़ें-लिखें, और Scholarship लेकर बाहर किसी University में जायें। मगर मैं नहीं चाहता के उनके passport  को लेकर उनपर तंज कसे जायें, उन्हें गौ-आतंकवादी कहा जाये, उन पर ताने कसे जायें। बिलकुल वैसे ही जैसा पाकिस्तानियों के साथ होता है। Passport पर पाकिस्तान ठप्पा देखते ही वे शक के घेरे में आ जाते हैं। मैं नहीं चाहता के भारतीय Passport शर्मिन्दगी का सबब बने।

Photo: dawn.com
मैं यह नहीं चाहता के बड़े होकर, मेरे बच्चे मुझसे कहें कि ‘तुमने इस अन्याय का विरोध नहीं किया और अब तुम्हारी खामोशी का खामियाजा हम भुगत रहे हैं।‘  — अभिसार शर्मा

इन गौ-आतंकियों ने मेरे देश की अस्मिता, उसके वर्चस्व पर हमला किया है। ये लोग मेरे देश को बदनाम कर रहे हैं। ये मुझे स्वीकार नहीं। मैं यह नहीं चाहता के बड़े होकर, मेरे बच्चे मुझसे कहें कि ‘तुमने इस अन्याय का विरोध नहीं किया और अब तुम्हारी खामोशी का खामियाजा हम भुगत रहे हैं।‘ मैं इसलिये नफरत की वहशत के खिलाफ बोल रहा हूँ। वर्तमान सरकार और उसकी विचारधारा के चाटुकार एक समानांतर Propaganda के ज़रिये आपको बताने की कोशिश करेंगे कि गाय के नाम पर हत्या कोई नई बात नहीं है। ये लोग सरकारी आंकडों को भी नजरअंदाज करेंगे। समझिये, ये सिर्फ हमारी दया के पात्र हैं। ये नहीं समझना चाहते इनकी चाटुकारिता का खामियाजा, इनके बच्चे, इनकी आने वाली पीढी भुगतेगी। मेरी तरह यह भी स्वार्थी हैं। फर्क इतना है कि मैं अपने बच्चों के भविष्य के लिये और ये अपने त्वरित, निकटतम भविष्य के लिये, अपनी रोजी रोटी के लिये।

आपके लिये ये चुनौती है कि आप हताश नहीं हों। उम्मीद का दामन ना छोड़ें। ये तो चाहते ही हैं कि आप हिंसा का रास्ता अख्तियार करें और आप पर वही तमगे लगाये जायें... आतंकवादी... देशद्रोही  — अभिसार शर्मा 

जुनैद, 15 साल के जुनैद को मार दिया ‘तुमने’। कितने ख्वाब सजाये होंगे उसकी मां ने...बिलकुल उसी तरह जैसे मैं अपने बच्चों को लेकर सजाये हुए हूँ। उस मां का दर्द बयान, महसूस कर सकते हो ‘तुम’? बोलो?


ये मत उम्मीद करो के देश के प्रधानमंत्री या BJP के अध्यक्ष इस मुद्दे पर कोई बयान देंगे। आजाद भारत के इतिहास के ये सबसे कमजोर प्रधानमंत्री और नेता हैं। Trump इनसे बेशक गले ना मिलना चाहे, मगर उससे तीन-तीन बार गले मिलेंगे, अपनी फजीहत करवायेंगे, मगर जुनैद या अखलाक के परिवार से गले कभी नहीं मिलेंगे। मुझसे इनसे कोई उम्मीद नहीं है।


आपके लिये ये चुनौती है कि आप हताश नहीं हों। उम्मीद का दामन ना छोड़ें। ये तो चाहते ही हैं कि आप हिंसा का रास्ता अख्तियार करें और आप पर वही तमगे लगाये जायें...आतंकवादी...देशद्रोही और आपको साथ मिलेगा — कुछ फर्जी Channels का —  मगर याद रखें, इंसानियत, मासूमियत और सच में बडी ताकत है। इसके सामने सभी तरह के झूठ बौने पड़ जाते हैं। ये लोग भी जानते हैं। इसलिये ये अहिंसात्मक विरोध से डरते हैं। इसका दामन मत छोड़ना।

और मैं भी तुम्हारे साथ हूँ और मेरे जैसे बहुत सारे हिन्दुस्तानी भी। क्योंकि उन सबको अपने भविष्य की चिंता है। निजी स्वार्थ ही सही। वो आपके साथ हैं।

देश का दुख कौन हरेगा? अमरीका? ट्रम्प? या हंसी-ठट्ठा?



अभिसार शर्मा
जाने-माने संपादक और टीवी एंकर
Twitter@abhisar_sharma
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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जंगलराज? #अब_शहर_ही_जंगल_है ! #AbhisarSharmaBlog


किस बात का जंगलराज? कैसा भीड़तंत्र? सब सही चल रहा है। All is well! 

— अभिसार शर्मा



7 लोग मार दिए गए। बीजेपी-शासित झारखंड में। शक के आधार पर। व्हाट्सएप पर एक अफवाह के आधार पर। आरोप था बच्चा चोरी का। बच्चे चोरी ही नही हुए और 7 घरों के चिराग तुमने बुझा दिए!


रोहतक का गैंगरेप याद है ना? मै नहीं भूल पा रहा हूं। पीड़ित की खाने की नली शरीर से बाहर निकाल दी थी। ये भी बीजेपी-शासित राज्य है। दो दिन पहले गुरूग्राम में लूट हुई थी! यहां भी जंगलराज कैसे हो सकता है।

बीजेपी शासित यूपी में 15 मार्च से 15 अप्रैल के बीच 179 बलात्कार हो चुके हैं। ये योगी का जंगल है! उखाड़ लोगे कुछ। है दम जंगलराज बोलने का?

20 डकैतियां, 273 लूट की घटनाएं, 240 हत्याएं और 179 बलात्कार। जी हां 179 बलात्कार। एक महीने में।

ये जंगलराज कैसे हो सकता है? क्यों? ये तो संपूर्ण-शांतिकाल से पहले की छोटीमोटी कुर्बानियां हैं, अब ये तो आपको को देनी होंगी।
गलती से मुसलमान समझे गए — अभिसार शर्मा 

वो सरकार जो राज्य और केन्द्र में औरत के सम्मान को मुद्दा बना कर सत्ता में आई थी, ये हालात उनके शासन में? अब ये न कहियेगा कि सरकार को संभलने में वक्त लगता है। शासन को समझने में वक्त लगता है। केन्द्र में मोदी सरकार की तरह इस सरकार के पास भी वही ब्रह्मास्त्र है। पुरानी सरकारों पर इसका ठीकरा फोड़ देना। याद है यूपी विधानसभा में मुख्यमंत्रीजी का ये बयान —

"आदतें कुछ खराब हो चुकी हैं, 12-15 वर्षों की आदतें आसानी से छूटने वाली नहीं है, वो छूटने में कुछ समय लग रहा है इसलिए कहीं न कहीं हरकतें दिखाने का प्रयास कर रही हैं।"!!

पूर्ण अशांत राष्ट्र — साध्वी खोसला

तो चलिए खराब आदतों की फेहरिस्त पर निगाह डाली जाए —

1. सहारनपुर में अराजकता, जिसका आगाज़ होता है बीजेपी सांसद द्वारा मुसलिम इलाके से अंबेडकर यात्रा निकालते हुए, जिसकी अनुमति नही थी, जिसका नतीजा — पुलिस अधिकारी के घर पर हमला। खुद बीजेपी सांसद के कर कमलों द्वारा हमले को अंजाम दिया गया। पुलिस अधिकारी ट्रांसफर!

2. सहारनपुर में फिर हिंसा। दलितों और ठाकुरों में तनाव। एक अगड़ी जाति के व्यक्ति की मौत, दलितों पर हमला। पुलिस हाथ पर हाथ रखकर बैठी रहती...मानो ठाकुरों को भड़ास निकालने की छूट दे रही हो।

3. अलीगढ़ में दंगे। एक मस्जिद के गुंबद पर विवाद, बीजेपी विधायक संजीव राजा आग में घी डालने का काम करते हैं। कहते हैं पूरी मस्जिद ही विवादास्पद है।

4. आगरा में बीजेपी विधायक उदयभान सिंह की नुमाइंदगी में बजरंग-दल, हिंदू-युवावाहिनी के शूरवीरों ने डीएसपी की पिटाई कर दी ।

5. मथुरा में सर्राफा बाज़ारियों की हत्या। वो भी कैमरे में कैद है। कैसे भूलोगे?

अरे? अब तो सरकार तुम्हारी है। किस बात का गुस्सा है फिर? क्या साबित करना चाहते हो? 

ये जंगलराज कैसे हो सकता है? क्यों? ये तो संपूर्ण-शांतिकाल से पहले की छोटीमोटी कुर्बानियां हैं, अब ये तो आपको को देनी होंगी।




यूपी में जो हो रहा है, उसमें दो चीज़ें समान हैं। पहली, कि पुलिस या तो पिटी या हमलावरों के सामने बेबस / मददगार दिखी। दूसरी ये कि भीड़ को लीड अक्सर बीजेपी नेताओं ने किया। अरे? अब तो सरकार तुम्हारी है। किस बात का गुस्सा है फिर? क्या साबित करना चाहते हो? पुलिस तक डरी हुई है। हतोत्साहित है। याद है चारू निगम की रोती हुई वो तस्वीरें। जिसकी आंखों में आंसू एक विधायक की बद्तमीज़ी का नतीजा थे? तो क्या अंतर है समाजवादी पार्टी के शासन और योगी राज में? वहां थानों में सपाईयों का जलवा था यहाँ...

अब सवाल ये कि क्या झारखंड की घटना और यूपी में नेताओं द्वारा भीड़ की नुमाइंदगी करना, उकसाना...इसमें कोई संबंध है क्या? क्या ऐसी सोच को बढ़ावा दिया जा रहा है कि भीड़ अपना कानून खुद लिखे? भड़काना, उकसाना, अफवाह फैलाना, भला ये कैसी सियासी पार्टी की सोच का हिस्सा हो सकती है?

और सबसे दुखद बात, सत्तारूढ़ दलों का मुद्दे को मानने से भी मना कर देना। मीडिया और जनता का खामोशी अख्तियार कर लेना। चुप हो जाना। बिल्कुल चुप।

हम अंदर से मर चुके हैं। हम एक शख्स की भक्ति में इस कदर लीन हैं, इस कदर...कि हमने हकीकत देखने से इंकार कर दिया है। हम सोचते हैं कि देश के कुछ लोग नर्क में जलते रहेंगे और वो आग हम तक कभी नहीं पहुंचेगी। हम अछूते रहेंगे, लिहाज़ा हम आवाज़ नही उठाएंगे। ठीक है एक मरे हुए समाज से एक राष्ट्र क्या और क्यों कोई उम्मीद रखे ! नहीं ?

मुसलमान - मीडिया का नया बकरा ― अभिसार शर्मा

Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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आम भारतीय को मेरा खुला ख़त — अभिसार शर्मा #AbhisarSharma #OpenLetter


जैसे Good Taliban Bad Taliban, वैसे ही ये हैं Good गुंडे। दाग अच्छे हैं। ये गुंडे अच्छे हैं

किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है

— अभिसार शर्मा


तुम्हे अंदाजा है तुमने क्या सामान्य बना दिया है? ग्रेटर नॉएडा में दो हिन्दुओं को गाय ले जाते वक़्त धुन दिया जाता है और अखबार की सुर्खियाँ कहती हैं, “उन्हें मुसलमान समझ कर पीट दिया गया”? मुसलमान समझ कर? वाकई? तुम्हारी घटिया सोच के किस कोने में यह तार्किक या सही है? तुमने अपने ही देश के नागरिकों को बेरहमी से पीटे जाने, जिसमें बहुतों की जान चली गयी को, सामान्य बना दिया है? हमने एक स्वतंत्र, प्रजातांत्रिक देश के नागरिकों को एक वस्तु बना दिया है, जिसकी कोई गरिमा नहीं, जिसके कोई अधिकार नहीं? यानी मुसलमान है तो मारने सही है?

अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव जीतने की एक मशीन बन गयी है। उसे किसी भी कीमत पर जीत चाहिए, किसी भी कीमत पर सरकार बनानी है

जब "दिवंगत " गाय की चमड़ी दलित निकालता है तो उसे देश के मॉडल राज्य गुजरात के ऊना में जलील किया जाता है? क्या देश का दलित, उसका मुसलमान अब ऐसे ही सत्ताधारी बीजेपी द्वारा समर्थित गुटों द्वारा शोषित होता रहेगा, और राष्ट्रऋषि ख़ामोशी से सब कुछ होते रहने देंगे?

क्यों राष्ट्रऋषिजी? ऋषि-मुनियों की तरह आपने भी शायद मौन धारण कर लिया है। सुविधावादी मौन। सियासी मौन। बहुत गज़ब का मौन है ये। माना आप तुष्टिकरण की राजनीति में विश्वास नहीं करते, मगर गौ के नाम पर आतंक फैलाने वालों का तुष्टिकरण क्यों?

नए वाले गुंडे

उत्तर प्रदेश में योगिराज के आने के बाद देखिये सहारनपुर में क्या हो रहा है। सहारनपुर में दो बार अराजकता के ऐसे नज़ारे दिखे, जो सिहरन पैदा करने वाले हैं...नहीं मैं दलितों के घरों को ठाकुरों और राजपूतों द्वारा जलाये जाने से नाराज़ नहीं हूँ। ना ही मैं उससे पहली वाले घटने में बीजेपी सांसद लखनपाल द्वारा कानून की धज्जियाँ उडाये जाने से चिंतित हूँ, जिसमें उन्होंने स्थानीय पुलिसकर्मी के घर पे धावा बोल दिया। आपने देखा कैसे पुलिस दोनों ही घटनाओं में या तो कमज़ोर और मूक दर्शक बनी रही, या फिर पिटी ! आगरा में भी यही हुआ। पुलिस को दौड़ा-दौड़ा के पीटा गया। और ये सब इन राष्ट्रवादी गुंडों, गाय के नाम पर आतंकवाद फैलाने वाले लोगों की करतूत है। ये सब हम सामान्य बना रहे हैं। ये सब शायद आप लोगों को पीड़ा नहीं देता। आपको ये चिंतित नहीं करता। और यह “नए वाले गुंडे”? ये सब अचानक इतने प्रभावशाली और ताक़तवर कैसे हो गए? यह हमारे लिए कानून व्यवस्था का सवाल क्यों नहीं है? माना योगीजी मेहनत कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने में जी जान से लगे हुए हैं। मगर आप लोग एक बात नहीं देख रहे। उनका सारा ध्यान 2019 पर है। किसी भी कीमत पर लोकसभा के चुनाव में मोदीजी को 70 प्लस सीटों की सौगात देनी है, बस। यानी सारा ध्यान सियासत पर। अक्सर सियासत और “सबका साथ सबका विकास” के उद्देश्यों में राई भर का अंतर होता है। क्योंकि अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी चुनाव जीतने की एक मशीन बन गयी है। उसे किसी भी कीमत पर जीत चाहिए, किसी भी कीमत पर सरकार बनानी है। गोवा मणिपुर, अरुणाचल, ये सारी मिसालें आपके सामने हैं। लिहाज़ा सब कुछ चलेगा।

मोदीजी के करिश्मे में बेहोश जनता को ये सब दिखाई नहीं दे रहा...और मीडिया भी...खैर छोडो!

क्या मस्त मौन करते हैं राष्ट्रऋषि  


बीजेपी की -- जीत किसी भी कीमत पर -- फलसफे ने सब कुछ बदल दिया है। हमने आँखें मूँद ली हैं। हम अपने देश के दूसरे नागरिकों के खिलाफ अन्याय बर्दाश्त कर रहे हैं। क्यों? क्योंकि हमारे ज़हन के किसी हिस्से में यह बात पल रही है, कि देशद्रोहियों को यही सरकार सबक सिखा सकती है। इन मुल्लों की अकल सिर्फ बीजेपी ठिकाने लगा सकती है। लिहाज़ा गाय के नाम पर पिटाई, दंगा, खून सब बर्दाश्त है। बीजेपी के नेता का अपने ही राज्यों में पुलिस के घरों को घेर लेना, वो हमें विचलित नहीं करता। क्योंकि रामदेवजी ने दरअसल हमारे दिलकी बात कही है। वो वाकई राष्ट्रऋषि हैं। क्या मस्त मौन करते हैं राष्ट्रऋषि ।

लिहाज़ा तुम भी मूँह फेर लो। अब तुम्हें कोई अत्याचार विचलित नहीं करता। क्या हुआ अगर यह दंगा करें, किसी की हत्या करें। अरे ये तो हमारे वाले हैं न? हमारे वाले गुंडे...जैसे Good Taliban Bad Taliban, वैसे ही ये हैं Good गुंडे। दाग अच्छे हैं। ये गुंडे अच्छे हैं।

अब विपक्ष को कटघरे में रखने को ही नयी दिलेर पत्रकारिता का नाम दिया जा रहा है

हम कैसे राक्षस बन रहे हैं या बन गए हैं? अंदाजा है? क्या आम इंसान और क्या पत्रकार। अब विपक्ष को कटघरे में रखने को ही नयी दिलेर पत्रकारिता का नाम दिया जा रहा है। और छाती ठोंक के बोलते हैं ये। सरकार की चाटुकारिता कर लो, मगर देश के नागरिकों के एक वर्ग को तो मत भूलो। उसके अधिकार भी आखिर अधिकार हैं। उसकी आवाज़ भी एक आवाज़ है। या वो आवाज़ अब मायने भी नहीं रखती?

राहत इन्दौरी साहब की यह ग़ज़ल याद आती है

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है।
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है॥

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में।
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है॥ 

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन।
हमारी तरहा हथेली पे जान थोड़ी है॥

हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है।
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है॥

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे।
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है॥

सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में।
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है॥

— अभिसार शर्मा

Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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गलती से मुसलमान समझे गए — अभिसार शर्मा #AbhisarSharma



ये आख़िर हम किस तरह के राक्षस बनते जा रहे हैं

- अभिसार शर्मा

Abhisar Sharma's status in english... translated to Hindi
मुझे हमेशा से इस बात का गर्व था कि भारतीय मीडिया का नज़रिया काफी हद तक सेक्युलर है।

अब ज़रा आज के टाइम्स ऑफ़ इंडिया की इस हेड लाइन को देखिये. "Mistaken as Muslims" … “गलती से मुसलमान समझे गए”। इसका अर्थ यह हुआ कि गौ आतंकवादियों (cow terrorists [sic]) द्वारा बुरी तरह पीटे गए वो दो आदमी अगर सच में मुस्लिम होते, तो हमारे समझ की वर्तमान स्थिति के हिसाब से यह पिटाई जायज होती?

क्या हम मीडियाकर्मियों को इस बात का अहसास है कि आम इंसान की तरह हम भी ऐसी घटनाओं को ‘सामान्य’ बना रहे हैं ? हम साथ-साथ हैं ?

क्या मीडिया होने के नाते हमें इसकी कड़े से कड़े शब्दों में घोर भर्त्सना नहीं करनी चाहिए? (indian media is misusing its freedom) आख़िर कैसे हम सत्ताधारी पार्टी बीजेपी द्वारा बढ़ावा दिये जाने वाले इन गुंडों के द्वारा अपने-ही देशवासियों, चाहे दलित या मुसलमान को ‘बस-एक-सामान’ बनाने दे सकते हैं?

ये आख़िर हम किस तरह के राक्षस बनते जा रहे हैं ?

मुझे बस राहत इन्दौरी का यह शेर याद आ रहा है –

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

अगर आप उनके मकानों को जलने देंगे तो भूल जाइये कि अपना घर बचा पाएंगे.

प्लीज...

(अभिसार शर्मा के फेसबुक स्टेटस का हिंदी अनुवाद  (c) : भरत तिवारी )


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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आत्मा मर रही है देश की... अभिसार शर्मा #AbhisarSharma #KillerCowVigilante


भारत के इस वीभत्स चेहरे का ज़िम्मेदार कौन है ?

अभिसार शर्मा



जम्मू मे उस अधमरे बुज़ुर्ग मुसलमान की तस्वीर ज़हन को नोच रही है। उसके परिवार की उन दो महिलाओं की चीखें अगर तुम्हे विचलित नही कर रही, तो आत्मा मर चुकी है तुम्हारी। कुछ ऐसा ही अखलाक के साथ हुआ होगा। कुछ ऐसी ही बेरहमी पहलू खान के साथ देखी थी हमने। पुलिस कितनी न्यायसंगत है, इसका प्रमाण इस बात से मिलता है कि पहलू खान और जम्मू, दोनो मामलों मे पीढ़ित के खिलाफ भी केस दर्ज कर दिया गया।

बेशर्मी देखिए जम्मू पुलिस की। कहते हैं कि गडरियों को वन विभाग के साथ साथ डिप्टी कमिश्नर की भी इजाज़त की ज़रूरत होती है, बल्कि खुद अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर ने कहा कि अगर मवेशियो को किसी वाहन मे ले जाया जा रहा हो, तब ही डिप्टी कमिश्नर की अनुमति की ज़रूरत पड़ती है। सवाल ये नहीं। तस्वीर आपके सामने है। बेबस कौन था। बेरहमी किसके साथ हो रही थी। यही किया गया था पहलू खान के रिश्तेदारों के साथ। हमलावरों के साथ साथ उनपर भी केस दर्ज कर दिया गया। न्याय की खातिर ? संतुलन की खातिर ? वो तो बिगड़ चुका है।

भारत का संतुलन बिगड़ चुका है। क्योंकि ये चीखें प्रधानमंत्री मोदी को सुनाई नही पड़ती। हां कभी कभी, दंडवत मीडिया से अक्सर ये खबरें आ जाती हैं कि मोदीजी इन घटनाओं से बेहद विचलित हैं। और उसमे भी प्रधानसेवकजी इस बात का खास ख़याल रखते हैं कि आसपास कोई चुनाव तो नही है?


मैने कुछ दिनो पहले कहा था कि जो श्मशान और कब्रिस्तान की बातें करते हैं उनकी विरासत सिर्फ राख हो सकती है। ग़लत कहा था मैने ? बोलो? दादरी, अलवर और जम्मू से होते हुए ये तो अब दिल्ली के कालकाजी आ गए? याद है ना? वहां भी सही दस्तावेज़ होने के बावजूद आशू, रिज़वान और कामिल पर केस दर्ज कर दिया गया। जानवरों पर अत्याचार का केस। शुक्र है पुलिस ने यही केस हमलावरों पर नही किया। क्योंकि गौ भक्ति करने वाले इन गुण्डों के लिए कामिल, आशू और रिज़वान जानवर ही तो हैं? क्योंकि यहां तो गाय का मामला भी नहीं था? यहां तो भैंसें लाई जा रही थीं? जिसके काटने पर कोई कानूनी रोक नही है।

एनडीटीवी की राधिका बोर्डिया वहां मौजूद थीं। उनके द्वारा शूट किये गए विडियो मे वो तीन अधमरे ज़मीन पर पड़े हुए हैं और पुलिस उनके खिलाफ केस दर्ज करती सुनाई पड़ती है। वाह! क्या प्राथमिकता है। कोई औरत ये भी कहती है, अरे मत मारो इन्हे। एक और आवाज़ आती है, ये तो समाज का गुस्सा है। विडियो का लिंक यहां है।


एक और विडियो है। ये जम्मू का है। वही, चीखती पुकारती बेबस औरतें, उस अधमरे बुज़ुर्ग के आसपास विलाप करते हुए। ये विडियो किसी ऐसे देश का सुनाई पड़ता है जो पहचाना नहीं जा रहा है। ये भारत तो नही हो सकता ?

रुकिए !!!

इस विडियो को देखिये



मीडिया जो योगी योगी कर रहा है क्या सहारनपुर और आगरा की तस्वीरें कानून व्यवस्था के चरमरा जाने का प्रमाण नही है ? "एबीपी न्यूज़" को छोड़ कर कितने चैनल्स ने इस गुंडई को हिंदुत्ववादी संगठनों का काम बताया है, उनका नाम लिया है। तारीफ "आजतक" की भी होनी चाहिए, जिन्होने बाकायदा एक स्टिंग आपरेशन किया था, जिसमे गौ गुंडों की हकीकत सामने आई थी।

कोई बताएगा, भारत के इस वीभत्स चेहरे का कौन ज़िम्मेदार है ? और ये सब करके क्या हासिल कर लोगे तुम? दरअसल मेरे लिए ये तमाम मामले निजी हैं। और आप सबके लिए होने चाहिए। क्योंकि मुझे डर है कि जब मेरे बच्चे बड़े होंगे, तो वो कैसे समाज और देश की बागडोर संभाल रहे होंगे। किस सोच मे पल रहे हैं हमारे बच्चे। क्या संस्कारी मां बाप उन्हे दूसरे धर्म के लोगों के लिए नफरत और हिकारत के माहौल मे बड़ा कर रहे हैं ? क्या ये वही मां बाप हैं जो मोदी भक्तों की तरह धर्मनिरपेक्षता को एक अभिशाप मानते हैं। जो मुसलमानों पर हमले को जायज़ ठहराने के ऐतिहासिक कारण ढ़ंढ़ते हैं ?

मानता हूं बाबर मुसलमान था। मुम्बई बम धमाकों, इंडियन मुजाहिद्दीन के पीछे भी मुसलमान था। मगर मै देश के उस 99. 99 फीसदी मुसलमान के साथ खड़ा हूं जिसका वोट बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए मायने नही रखता और आगे भी खड़ा रहूंगा। ये आंकड़ा नहीं है, सांकेतिक है ... और हाँ न मैं "जयचंद" को भूला हूँ और न ही भोपाल के संस्कारी जासूसों को ।


(ये लेखक के अपने विचार हैं।)
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मुसलमान - मीडिया का नया बकरा ― अभिसार शर्मा #AbhisarSharma



अभिसार शर्मा का व्यंग्य

मुसलमान - मीडिया का नया बकरा



एक जमाना था और वो भी क्या जमाना था . जब टीवी स्टूडियो मे एक पाकिस्तानी को इस्लामाबाद मे बिठा दिया जाता था और खुलकर सब उसे गरियाते थे. जमकर पिटाई होती थी और घरों मे बैठे दर्शकगण ताली पीटते थे और उन्हे आभास होता था कि हमने पाकिस्तान पर कब्जा कर लिया .बहुत मज़ा आता था. कुछ एंकर्स तो इसके चलते सुपरस्टार हो गए . पाकिस्तनियों को भी कोई प्राबलम नहीं होती थी क्योकि उन्हे टीवी पर ज़लील होने की मोटी रकम मिलती थी . मगर फिर टीवी चैनल्स को आभास हुआ कि पाकिस्तानियों को टीवी पर बुलाकर ज़लील करना थोड़ा महंगा पड़ रहा है . अब अर्थव्यवस्था के अच्छे दिन तो आए नहीं , लिहाज़ा किनारों को कुतरने का काम शुरू हो गया जिसे अंग्रेज़ी मे कास्ट कटिंग कहते हैं. लिहाज़ा नए बकरे ढूंढ़े जाने लगे . फिर किसी को याद आया कि भई देश का मुसलमान कब काम आएगा . एक तो वैसे भी कोई काम नहीं करता . घर बैठे दिन भर बीफ खाता रहता है, ऊपर से इसे वंदे मातरम से भी प्राबलम है यानि के देशभक्त भी खास नहीं है . ऊपर से सोशल मीडिया और आम जन जीवन मे एकटिव मोदी भक्त भी इससे परेशान रहता है . वो मोदी भक्त जो टीवी चैनल्स को टीआरपी देता है . लिहाज़ा दाव खेला गया . और क्या खेला गया . बम्पर रेटिंग . छप्पर फाड़ दर्शक .

अचानक टीवी पर बाढ़ आ गई मुद्दों की. मानो देश मे इससे बड़ा कोई मुद्दा ही नहीं है . तीन तलाक , गौरक्षा और बीफ , अज़ान से उठने वाला शोर , एंटी रोमियो अभियान . अब देश मे पूरी तरह राम राज्य आ चुका है . दिल्ली मे मोदी तो लखनऊ मे योगी हैं.  कोई भूखा नहीं है . अर्थव्यवस्था दहाड़ रही है  . कश्मीर मे शांतिकाल आ गया है. इतना अच्छा वक्त तो यहां कभी नहीं आया. क्यों ?  किसान अपनी खुशी को संभाल नहीं पा रहा है  . खुशी के आंसू तो सुने होंगे ...वो खुशी के मारे आत्महत्या कर रहा है  . जाहिर सी बात है मुद्दे बस यही रह गए हैं  . अब टीवी पर पहलू खान की हत्या , तेजबहादुर की बर्खास्तगी , बाबरी पर फैसला , तमिल नाडु के किसानो का मुद्दा थोड़े ही दिखाया जाएगा . इन तुच्छ मुद्दो को दिखा कर हम अच्छे दिनो की चमक धूमिल नही न करेंगे ?

अब जहां नज़र दौड़ाएं , यही मंज़र दिखाई देता है . मुसलमान या तो आईएसआईएस मे शामिल हो सकता है ,  अपनी बेचारी पत्नी पर अत्याचार कर सकता है या फिर गौ माता का भक्षक हो सकता है . हिंदू मर्द कहां अत्याचार करते हैं? वो गाय की भी कितनी रिस्पेक्ट करता है . कभी देखा है सड़क या गलियों मे गाय माता तो कचरा खाते हुए. तभी तो . किसी की मजाल है गाय माता के बारे मे कुछ कह दे . जान मार देंगे . और हां.  कभी देखा है किसी हिंदू औरत को जिसे उसके पति ने बेसहारा छोड़ दिया हो. संस्कारी हिंदुओं का नमूना देखना हो तो मोदी भक्तों की जुबान देखिए . सोशल मीडिया पर इनका आचरण देखिए. टोटल संस्कारी . अब इस सरकार और मीडिया का मक़सद है कि जिस खुशहाली मे हिंदू औरत रह रही है वैसे ही हालात मुस्लिम महिलाओं के लिए पैदा करना है .

क्योकि असल मुद्दा भी यही है अब मीडिया के लिए . वैसे भी मुद्दे भी वही दिखाए जाएं ना , जिसे दिखाने के बाद किसी की फीलिंग्स हर्ट न हो . किसी को चोट न पहुंचे . बीजेपी और उसकी सहयोगी संस्थाओं की फीलिंग्स हम कैसे हर्ट कर सकते हैं . बोलो तो ? आप भी ना .


ये मीडिया का स्वर्ण काल है . इससे बेहतर हालात शायद ही रहे हों . हां , 1975-77 के दौर मे भी मीडिया का गोल्डन काल आया था , कुछ लोग बताते हैं. सुना है उस वक्त भी झुकने के लिए कहा गया था ....पूरी तरह लेट गए थे .

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गाय का नाम बदनाम न करो — अभिसार शर्मा #AbhisarSharma



राष्ट्रवादी जल्लाद 

पहलू खान को फांसी पर ही तो चढ़ाया गया है। अखलाक के बाद। ऊना मे भी ऐसा ही किया गया था। एक तरफ आपके नेता अनापशनाप बयान देते हैं, जिसे सुनकर राष्ट्रवादी गुंडे लोगों को फांसी पर चढ़ाने पहुंच जाते हैं। 




गाय का नाम बदनाम न करो। प्लीज़! आज मै वो तस्वीरें आपके सामने रख रहा हूँ जो मेरे निजी जीवन की हैं, माँ के साथ मैं भी गाय के प्रति प्रेम और श्रद्दा के चलते गाय को नियमित रूप से चारा खिलाता हूं। सुकून मिलता है। मगर गाय के प्रति मेरे प्रेम और सामाजिक न्याय के प्रति मेरी ज़िम्मेदारी मे कोई विरोधाभास या टकराव नही है। एक सवाल आस्था का है और एक न्याय का। उम्मीद है रमण सिंह, निर्मला सीतारमण और गुलाबचंद कटारिया भी इस बात को समझेंगे। मेरे ऐसा कहने के पीछे वजह है --


बात सत्तर साल की चलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। आज़ादी के आंदोलन मे आरएसएस के किरदार पर भी बातें होंगी । और फिर ये लोग पूछेंगे संघ को अपने दफ्तर मे तिरंगा फहराने मे इतने साल क्यों लग गए।

आदरणीय निर्मला सीतारमण (Commerce Minister Nirmala Sitharaman) का कहना है कि ‘गौ रक्षा हमारी आजादी के आंदोलन का हिस्सा थी’, लिहाज़ा इस कोशिश को बेमानी न करार दिया जाए। निर्मलाजी आप सत्ता पर आसीन उन गिने चुने मंत्रियों मे से हैं, जिनकी मै निजी तौर पर इज्जत करता हूं। आप बीजेपी की सर्वश्रेष्ठ प्रवक्ता हैं। मगर लोकसभा में दिया गया आप का यह वक्तव्य समझ के परे है। स्वतंत्रता संग्राम? बात सत्तर साल की चलेगी तो बहुत दूर तलक जाएगी। आज़ादी के आंदोलन मे आरएसएस के किरदार पर भी बातें होंगी । और फिर ये लोग पूछेंगे संघ को अपने दफ्तर मे तिरंगा फहराने मे इतने साल क्यों लग गए।
मेरे अज़ीज़ हुक्मरानो, सवाल किसी की जान का है। बेकसूर मारा जा रहा है। आपका एक एक शब्द उस राष्ट्रवादी गुंडे के लिए हत्या को अंजाम देने का लीगल फरमान है।
बात दरअसल ये है कि मौजूदा हालात को देखते हुए, अलवर मे पहलू ख़ान की हत्या के मद्देनज़र निर्मला जी का बयान बेहद आपत्तिजनक है। आप संवेदनशीलता को समझने की कोशिश तो कीजिये! गाय के नाम पर इस देश में लोगों को मारा जा रहा है। हत्या हुई है। बीजेपी शासित राजस्थान सरकार के लिए मारे गए व्यक्ति और उसके हत्यारों मे कोई फर्क ही नही है। बावजूद इसके कि पहलू खान एक गौ स्मगलर नहीं था, दोनो पक्षो के खिलाफ केस कर दिया गया है। वह एक किसान था। उसके पास गाय को उसके दूध के लिए इस्तेमाल के लिए ख़रीदने और के जायज़ दस्तावेज़ थे। फिर भी उसको मार दिया गया। और राजस्थान सरकार दोनो पक्षों मे एक बेमानी समानता कायम कर रही है। जबकि एक आरोपी है और एक पीड़ित। राजस्थान सरकार ने मानो उस गुंडई को जायज़ ठहराने का बीड़ा उठा लिया है। बुधवार रात राज्य के होम मिनिस्टर से जब निधि राज़दान के कार्यक्रम मे जवाब नहीं देते बना तो वो कार्यक्रम को बीच मे ही छोड़कर भाग गए। वाह रे राष्ट्रवादी और वाह रे तुम्हारी दिलेरी। कार्यक्रम का लिंक यहां है
Insisting Cow Vigilante Attack Was 'Manhandling', Minister Walks Out Of Interview

बीजेपी हत्यारे और पीड़ित के बीच समानता कायम करने का यह काम पहली बार नही कर रही । अखलाक़ की हत्या के बाद पार्टी के नेताओं के गैर ज़िम्मेदाराना बयानों की लम्बी फेहरिस्त है। अखलाक़ की हत्या के आरोपी की दुखद मौत के बाद उसके शव को तिरंगे मे लपेटा गया और फिर उसे श्रद्धांजलि देने बीजेपी के बड़े बड़े दिग्गज पहुंचे थे। 300 प्लस सीटों के लिये इतना तो बनता ही है। क्यों? मगर इस सियासत मे आप एक चीज़ भूल जाते हैं। ऐसे बयान देकर गौ रक्षा के नाम पर अराजकता फ़ैलाने वालों को नैतिक लाइसेंस दे देते हैं।
मेरे भाई तुम्हारे गौ प्रेम ने तुम्हे सिर्फ नफरत सिखाई है, नफ़रत जो गाय के स्वभाव के खिलाफ है...

छत्तीसगढ़ के सीएम तो गौ हत्या करने वालों को फांसी की सज़ा की बात कहते हैं । याद है न आपको? पहलू खान को फांसी पर ही तो चढ़ाया गया है। अखलाक के बाद। ऊना मे भी ऐसा ही किया गया था। एक तरफ आपके नेता अनापशनाप बयान देते हैं, जिसे सुनकर राष्ट्रवादी गुंडे लोगों को फांसी पर चढ़ाने पहुंच जाते हैं। रमण सिंह सरीके नेता भूल जाते हैं कि ऐसे बयान देकर वो खुद प्रधानमंत्री मोदी की अपील की तौहीनी कर रहे हैं जिसमे उन्होने गौ रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी करने से मना किया। जब संवैधानिक पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग ऐसी बातें करते हैं, तब अंध भक्तों मे इसका क्या संदेश जाता है, इसकी बानगी आपके सामने है। मगर जब ज़ीरो काम से आपको बम्पर सीटें मिल रही हों और वो भी गौ, श्मशान करके, तो परवाह किसे है संवेदनशीलता का। मगर मेरे अज़ीज़ हुक्मरानो, सवाल किसी की जान का है। बेकसूर मारा जा रहा है। आपका एक एक शब्द उस राष्ट्रवादी गुंडे के लिए हत्या को अंजाम देने का लीगल फरमान है। लिहाज़ा समानता कायम मत कीजिए हत्यारे और पीड़ित के बीच। स्वतंत्रता संग्राम की दुहाई मत दीजिए। मौजूदा हालात मे गौरक्षा की प्रासंगिकता पर चिंतन मनन कीजिए। उसके नाम पर हो रही गुंडई को संबोधित कीजिए। जानता हूं सियासी तौर पर ये आपके लिए लाभकारी नहीं है, मगर पहलू खान भी इस देश का नागरिक है, उसकी हत्या के बाद डर मे जी रहे लोग भी देश के नागरिक हैं। उसके मन को टटोलिए। मुझे याद है जब ऊना मे दलितों पर हमला हुआ था, तब मोदीजी का दर्द छलका था। पहलू खान की हत्या पर भी कुछ कह दीजिए मोदीजी। वैसे अभी तो चुनाव भी नही है। वोट कटने का डर भी नही होगा।

इतना बताता चलूँ कि तुम मुझसे बड़े गौ भक्त नही हो. तुम्हारे लिए पूर्वोत्तर मे सत्ता पाना ज्यादा ज़रूरी है, लिहाज़ा वहां गौ माता कटती रहे, तब तुम्हे कोई दिक्कत नहीं. तुम्हे अपने नेता एन साईप्रकाश के यह कहने पर भी दिक्कत नहीं है कि ‘किसी की पसंद के भोजन को चुनने में कुछ भी गलत नहीं है और वह (एन साईप्रकाश ) लोकसभा के लिए निर्वाचित होने पर अपने क्षेत्र में कानूनी वधशाला बनाने की व्यवस्था सुनिश्चित करेगा। मेरे भाई तुम्हारे गौ प्रेम ने तुम्हे सिर्फ नफरत सिखाई है, नफ़रत जो गाय के स्वभाव के खिलाफ है। यही समस्या तुम्हारे खोखले राष्ट्रवाद की है। उस पर चर्चा बाद मे। खुश रहो। शांत रहो।
Abhisar Sharma
Journalist , ABP News, Author, A hundred lives for you, Edge of the machete and Eye of the Predator. Winner of the Ramnath Goenka Indian Express award.
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)




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