'माधो, मैं ऐसो अपराधी', उपन्यास 'हर्फ हर्फ मुलाकात' का अंश - अल्पना मिश्र ये सुनहरे दिन छोटे थे। छोटे इसलिए कि जल्दी बीत गए…
मेरे हमदम, मेरे दोस्त - अल्पना मिश्र आज फिर सुबोधिनी को लगा कि उसके पीछे पीछे कोई ऐसे चल रहा है, जैसे पीछा कर रहा हो। वह और तेज चलने लगी।…
छावनी में बेघर - अल्पना मिश्र बाहर जो हो रहा होता है, वह मानो नींद में हो रहा होता है। जो नींद में हो रहा होता है, वह बाहर गुम गया-सा लगत…
इन्शाँ वही इन्शाँ है कि इस दौर में जिसने देखा है हकीक़त को हकीक़त की नज़र से ~ 'चाँद' कलवी ऐसा कुछ प…